6 मार्च को जम्मू पुलिस ने 155 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में ले लिया. जम्मू शहर में शिविरों में रह रहे शरणार्थियों को हिरासत में लेने के बाद एक उप-जेल में भेजा गया. उन्हें पहले जम्मू में मौलाना आजाद स्टेडियम में उनके परिचय पत्र और कोविड-19 परीक्षणों के सत्यापन के लिए बुलाया गया था. जम्मू के पुलिस महानिरीक्षक मुकेश सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि हिरासत में लिए गए लोगों के पास पासपोर्ट अधिनियम की धारा (3) के तहत आवश्यक यात्रा दस्तावेज नहीं थे. उन्होंने कहा, ''उन्हें होल्डिंग सेंटर में भेजने के बाद निर्धारित मानदंडों के अनुसार उनका राष्ट्रीयता सत्यापन किया जाएगा. जिसके बाद इन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.”
11 मार्च को दिल्ली पुलिस ने भी 71 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया, जो राजधानी में शरणार्थियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ काम करने वाले एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने 24 मार्च से 31 मार्च के बीच कम से कम 19 और शरणार्थियों को हिरासत में लिया. एक एक्टिविस्ट ने नाम न प्रकाशित करने का आग्रह करते हुए कहा कि दिल्ली में 24 मार्च को 12 लोगों को हिरासत में लिया गया था जिनमें शाहीन बाग से छह और बाकी के छह मदनपुर खाबर कॉलोनी से थे. चार दिन बाद निजामुद्दीन स्टेशन से दो लोगों को हिरासत में लिया गया. उन्होंने कहा कि 31 मार्च को, हिरासत के दूसरे दौर में, एक आदमी को शाहीन बाग से और चार लोगों को मदनपुर खाबर कॉलोनी से हिरासत में लिया गया था.
जम्मू में सत्यापन अभियान और हिरासत में लेने के मामले जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के एक आदेश की पृष्ठभूमि में आए. अदालत हुनर गुप्ता द्वारा 2017 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. गुप्ता जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी की कानून और कानूनी मामलों के प्रमुख हैं. जनहित याचिका में "म्यांमार और बांग्लादेश के सभी अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के लिए जांच की मांग की थी." अपने आदेश में अदालत ने सरकार से पूछा कि "अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उचित कार्रवाई करने की प्रक्रिया के संबंध में" वह क्या उपाय कर रही है. गुप्ता ने इस बारे में एक भी शब्द नहीं कहा कि उन्होंने जनहित याचिका क्यों दायर की. उन्होंने कहा, "जम्मू संवेदनशील क्षेत्र है जो पाकिस्तान की सीमा के करीब है, मैंने इस क्षेत्र में रहने वाले अवैध रोहिंग्याओं को लेकर चिंता जाहिर की है. इन लोगों को जम्मू-कश्मीर से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए. क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए उन्हें जम्मू-कश्मीर लाया गया.”
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा जिसमें जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी. यह याचिका 11 मार्च को भारत में बतौर रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने दायर की थी, इसे 2017 की याचिका के एक हिस्से के रूप में दर्ज किया गया जिसके तहत रोहिंग्याओं के निर्वासन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. 26 मार्च को सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से तर्क दिया कि रोहिंग्या "शरणार्थी नहीं हैं" और "अवैध प्रवासी" हैं. मेहता ने कहा कि सरकार म्यांमार के साथ उनकी राष्ट्रीयता की पुष्टि कर रही है. मेहता ने कहा, "हम हमेशा म्यांमार के संपर्क में हैं और अगर वे इसकी पुष्टि करते हैं तो उन्हें निर्वासित किया जा सकता है. हम म्यांमार में किसी अफगान नागरिक को नहीं भेज सकते."
भारत में अनुमानित 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी हैं, जो जम्मू, हैदराबाद और नई दिल्ली में शिविरों में रहते हैं. म्यांमार में उत्पीड़न से भागते हुए वह सीमा पार कर भारत आए. हालांकि, भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, जो शरणार्थियों के अधिकारों और उनकी रक्षा के लिए देशों पर कानूनी दायित्वों का विवरण देता है. अदालत में मेहता के बयान के अनुसार, भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध प्रवासी मानता है.
कमेंट