31 मार्च की सुबह दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने दिल्ली के कालिंदी कुंज शरणार्थी शिविर से एक रोहिंग्या परिवार के चार लोगों को उठा लिया. इनमें 70 वर्षीय सुल्तान अहमद, उनकी 45 वर्षीय पत्नी हलीमा और उनके दो बेटे, 28 वर्षीय नूर मोहम्मद और 19 वर्षीय उस्मान, थे. एक हफ्ते पहले पुलिस ने इसी तरह छह लोगों के एक परिवार को हिरासत में ले लिया था. कालिंदी कुंज शिविर के एक 33 वर्षीय सामुदायिक नेता अनवर शाह आलम ने मुझे बताया कि दोनों परिवारों को पश्चिम दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में केंद्र सरकार के विदेश क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय द्वारा संचालित एक डिटेंसन केंद्र में ले जाया गया था. आलम और शिविर के अन्य निवासियों ने कहा कि पुलिस यह बताने से इनकार करती है कि परिवारों को क्यों हिरासत में लिया गया है. शिविर के एक अन्य सामुदायिक नेता मीनारा ने कहा, "हम पुलिस के पास गए, उनसे पूछा कि वे परिवार को क्यों ले गए हैं? पुलिस ने कहा, 'बीच में न पड़ो नहीं तो अगला नंबर तुम्हारा होगा."'
मीनारा ने बताया कि मदद के लिए रोते-चिल्लाते अपने पड़ोसियों की आवाज से वह सुबह 8 बजे जगीं. "मुझे बताया गया था कि वह मेरी चाची और परिवार को ले जा रहे हैं," उन्होंने कहा. "हम मौके पर पहुंचे और एक महिला पुलिस अधिकारी सहित लगभग पांच पुलिसकर्मी थे." इस 35 वर्षीय नेता ने मुझे बताया कि उनके परिवार को शिविर से बाहर निकालने से पहले उन्हें अपना सामान पैक करने तक का समय नहीं दिया गया था. "मेरी चाची बीमार थी. वह पिछले दस दिनों से पेट में दर्द की दवा खा रही थीं. उन्होंने उसे अपनी दवाएं भी लेने नहीं दीं."
मानवाधिकार वकील फजल अब्दाली पिछले दस वर्षों से भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ काम कर रहे हैं. जब पुलिस 31 मार्च को वह शिविर में ही थे. अब्दाली ने मुझे बताया कि वह पुलिस के पीछे-पीछे कालिंदी कुंज पुलिस स्टेशन तक गए और पूछताछ की कि उन्होंने परिवार को क्यों उठाया है. अब्दाली ने कहा, "एसएचओ ने मुझे बताया कि उनके पास केंद्र से आदेश हैं और वह केवल उनका पालन कर रहे हैं."
उस शाम स्टेशन हाउस अधिकारी सुखदेव सिंह मान से मिलने के लिए मैं कालिंदी कुंज पुलिस स्टेशन गई, जिन्होंने सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया. “इस मामले पर बोलने के लिए मैं अधिकृत नहीं हूं. आपको उच्च अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए. यह मामला पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर है,” मान ने कहा. हिरासत में लिए लोगों को दक्षिण पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त राजेन्द्र प्रसाद मीणा के पास भेजे जाने के बारे में पूछे गए प्रश्नों का भी कोई जवाब नहीं मिला.
शिविर में मीनारा और अन्य निवासियों ने जोर देकर कहा कि कालिंदी कुंज शिविर से जिन दोनों परिवारों को उठाया गया था, उनके पास शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग, संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी जारी किए गए कार्ड हैं. भारत का कोई राष्ट्रीय शरणार्थी कानून या कोई औपचारिक शरणार्थी-सुरक्षा ढांचा नहीं है और सरकार ने यूएनएचसीआर को देश में शरणार्थियों को पंजीकृत करने की अनुमति दी है. यूएनएचसीआर शरणार्थी-स्थिति निर्धारण प्रक्रियाओं का आयोजन करता है और उन व्यक्तियों को शरणार्थी कार्ड जारी करता है जो युद्ध, हिंसा या उत्पीड़न के भय के कारण अपने मूल देशों में लौटने में असमर्थ हैं. सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ वकील चंदर उदय सिंह के अनुसार, रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा के लिए यूएनएचसीआर कार्ड चाहिए लेकिन व्यवहार में यह लागू नहीं है.
सिंह ने मुझे बताया, "यूएनएचसीआर ने रोहिंग्याओं को शरणार्थी पहचान दस्तावेज भारत सरकार के परामर्श से दिए हैं इसलिए उस स्थिति में रोहिंग्याओं को शरणार्थियों के रूप में माना जाना चाहिए और 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन के तहत जारी प्रावधानों की अनुमति दी जानी चाहिए. चूंकि भारत उस सम्मेलन का पक्षकार नहीं था इससे यह सुनिश्चित होता है कि वह रोहिंग्याओं के लिए कुछ भी न करे. हमारी सरकार जब ठीक लगे और जब महसूस हो इस तर्क का उपयोग हिरासत में लेने, निर्वासित करने और इन शरणार्थियों को प्रत्यावर्तित करने के लिए करती है." इस बीच, ऐसी स्थिति के जवाब में यूएनएचसीआर के आधिकारिक बयान में केवल यह कहा गया है कि संगठन "रोहिंग्या शरणार्थियों को उठा ले जाने और शरणार्थी शिविरों की तलाश करने संबंधी रिपोर्टों के बारे में जागरूक है" और यह "सरकारी अधिकारियों से लगातार आगे की जानकारी ले रहा है."
आलम ने मुझे बताया कि कुल 269 परिवार हैं जो वर्तमान में कालिंदी कुंज शिविर में रहते हैं. मीनारा ने कहा, "इस शिविर में सभी लोगों, सभी परिवारों के पास अपना यूएनएचसीआर कार्ड है. यह सबसे डरावाना हिस्सा है, कम से कम हमें बताएं कि हमने क्या गलत किया है, हमें बताएं कि आप इन परिवारों को क्यों उठा रहे हैं ताकि हममें से बाकी लोग थोड़ा अधिक सुरक्षित महसूस कर सकें." मीनार ने मुझे बताया कि मार्च की शुरुआत में जम्मू पुलिस द्वारा 150 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लेने और इस खबर के कालिंदी कुंज शिविर में पहुंचने के कुछ दिनों बाद एसएचओ मान और अन्य पुलिस अधिकारी उनसे और समुदाय के अन्य नेताओं से बात करने आए थे. मीनारा ने कहा, "उन्होंने हमें बताया कि हमें डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, जम्मू में जो कुछ भी हुआ है, ऐसा यहां कुछ नहीं होगा. “उन्होंने हमें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि शिविर में कोई नया शरणार्थी न रखा जाए और अगर कोई नया व्यक्ति आए तो हम उन्हें सूचित करें. अभी तक कोई नहीं आया है और हमने कोई अपराध नहीं किया है, कोई नियम नहीं तोड़ा है, फिर वे हमें अंधेरे में क्यों छोड़ रहे हैं?
स्थानीय निवासियों के अनुसार, कालिंदी कुंज शिविर से दो परिवारों के अलावा पास के श्रम विहार शिविर में तीन परिवारों के कुल छह लोगों को भी 24 मार्च को पुलिस ने उनके घरों से उठाया था. कालिंदी कुंज शिविर के 25 वर्षीय निवासी अब्दुल्ला ने मुझे बताया कि उनकी 22 वर्षीय बहन आइशा बेगम, श्रम विहार से पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए छह लोगों में से एक थीं. अब्दुल्ला ने कहा, "वह अकेली रह रही थी, उसके पति हैदराबाद गए हुए थे. उसे गुर्दे की बीमारी है इसलिए वह काफी बीमार भी रहती है. मुझे नहीं पता कि हिरासत में वह कैसे अपनी देखभाल कर रही है." जब से उसे हिरासत में लिया गया था, तब से अब्दुल्ला का अपनी बहन से कोई संपर्क नहीं है.
कालिंदी कुंज के निवासी 23 वर्षीय अहमद कबीर को डर है कि उनके शिविर से हिरासत में लिए गए शरणार्थियों का भी यही हश्र होगा. कबीर शिविर में एक युवा क्लब के सदस्य और नेता हैं. क्लब को यूएन द्वारा समुदाय और वहां के बच्चों को शैक्षिक गतिविधियों में संलग्न करने में मदद करने के लिए स्थापित किया गया था. पहले परिवार को डिटेंशन केंद्र में भेजे जाने के कुछ दिनों बाद, कबीर शिविर के कुछ अन्य निवासियों के साथ परिवार से मिलने गए. “यह एक तीन मंजिला इमारत थी. हम परिवार के लिए कपड़े और भोजन के साथ रिसेप्शन पर गए, लेकिन उन्होंने हमें केवल कपड़े भेजने की इजाजत दी.” कबीर ने कहा. “हम केवल उन्हें खिड़की से लगभग 15 मीटर दूर से देख सकते थे. हम उनसे बात भी नहीं कर सकते थे. यह जेल से भी बदतर है, कम से कम जेल में वह आपको प्रियजनों से बात करने का समय देते हैं. ”
एडवोकेट अब्दाली पिछले एक महीने से दिल्ली में हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं की संख्या पर नज़र रख रहे हैं. उन्होंने मुझे बताया कि वर्तमान में कम से कम 89 शरणार्थियों को एफआरआरओ द्वारा इंद्रपुरी स्थित अपने डिटेंशन केंद्र में हिरासत में लिया गया है. 24 और 31 मार्च को शिविरों से जिन 16 शरणार्थियों को उठाया गया था, अब्दाली ने कहा कि उनके अलावा दो और लोगों को 28 मार्च को निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर हिरासत में लिया गया था. दिल्ली में यूएनएचसीआर कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन करने पर दिल्ली पुलिस ने 11 मार्च को 71 अन्य लोगों को हिरासत में लिया. शरणार्थी जम्मू में रोहिंग्या शरणार्थियों की बंदी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, जिन्हें वर्तमान में जम्मू के कठुआ जिले के एक शहर हीरानगर के एक उप-काराग्रह में रखा गया था जिसे बदलकर होल्डिंग सेंटर बना दिया गया है.
भय और दहशत की भावना अब कालिंदी कुंज शिविर में पूरे समुदाय में फैल गई है. 34 वर्षीय रोहिंग्या महिला कुलसुमा और उनके 37 वर्षीय पति शाह आलम ने कहा कि वह अपनी सिलाई मशीन और बाकी सारा कीमती सामान बेचने के बारे में सोच रहे हैं ताकि उस पैसे का इस्तेमाल कर सकें, बजाय इसके कि अगर पुलिस उन्हें और उनके चार बच्चों को हिरासत में रखने का फैसला करती है तो उन्हें अपने सामान से हाथ न धोना पड़े. कुलसुमा ने मुझे बताया कि 30 मार्च की रात को पुलिस ने उनके और सुल्तान अहमद के परिवार सहित चार परिवारों के घर जाकर उनसे सवाल-जवाब किए. सुल्तान अहमद को अगले दिन हिरासत में लिया गया था. "वे हमसे पूछने आए थे कि हमारे परिवार में कितने सदस्य हैं," कुलसुमा ने कहा. “उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को आवास दे रहे हैं. हमने उन्हें आश्वासन दिया कि हम ऐसा नहीं कर रहे हैं. उन्होंने तब हमारे यूएनएचसीआर कार्ड से विवरण नोट किया और छोड़ दिया." उन्होंने कहा, "वह इसी तरह से कर रहे हैं, वह रात में परिवारों से बात करने जाते हैं और फिर सुबह किसी को भी उठा कर ले जाते हैं."
कुलसुमा का आरोप बेबुनियाद नहीं था. कबीर ने कहा कि 23 मार्च की रात को पुलिस ने छह लोगों के परिवार के एक सदस्य से पूछताछ की जिन्हें अगली सुबह हिरासत में ले लिया गया. उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस ने 21 वर्षीय नुरुल अमीन से पास के सरकारी गैस प्लांट में पूछताछ की थी जहां अमीन ने काम किया था. कबीर ने कहा, "उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि परिवार अगले दिन घर पर एक साथ रहे और फिर पुलिस ने आकर अमीन, उनकी पत्नी, उनके दो भाइयों और उनके माता-पिता को उठा लिया. हमारे पास इसका कोई सुराग नहीं है कि वे इन परिवारों को क्यों चुन रहे हैं."
समुदाय की नेता मीनारा के अनुसार, दिल्ली पुलिस मार्च के शुरू से ही शिविर में लगातार दौरे कर रही है, परिवारों से पूछताछ कर रही है, जाने से पहले उनकी तस्वीरें और उनके पहचान पत्र का विवरण ले रही है. कुलसुमा ने कहा कि वह और उनके पति इस डर से रात में सो नहीं पा रहे हैं. "मेरे सिर में बहुत दर्द है, मैं खा सकती नहीं, मैं काम नहीं कर सकती," उन्होंने मुझे बताया. उन्होंने कहा, ''मुझे हर वक्त डर लगा रहता है कि पुलिस अंदर आकर हमें दबोच लेगी. वे सामान बांधने तक का भी समय नहीं देते हैं. हमें केवल कपड़े साथ ले जाने होते हैं.” उनके पति आलम ने हामी भरते हुए कहा, "यहां हर कोई डरता है. हर कोई अपना सामान बेच रहा है."
31 मार्च को असम ट्रिब्यून ने बताया कि भारत सरकार औपचारिक रूप से एक 14 वर्षीय रोहिंग्या लड़की को म्यांमार भेजने जा रही है बावजूद इसके कि वह चाहती है कि उसे बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में भेजा जाए जहां उसके माता-पिता एक शरणार्थी शिविर में हैं. रिपोर्ट में सिलचर पुलिस के एक सूत्र के हवाले से कहा गया है, "हम केवल केंद्र द्वारा पारित आदेशों का पालन कर रहे हैं." 14 वर्षीय लड़की को 1 अप्रैल को निर्वासित किया जाना था और अगर ऐसा होता है, तो वह पहली रोहिंग्या होगी जिसे म्यांमार की सेना द्वारा देश में तख्तापलट करने के बाद निर्वासित किया जाएगा.
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि "गैर-वापसी" के अंतरराष्ट्रीय कानून सिद्धांत शरणार्थी को निर्वासित करने पर रोक लगाते हैं. सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने समुदाय के बीच म्यांमार वापस भेजे जाने के भय को स्वीकार किया. "डर है कि एक बार जब वे निर्वासित हो जाते हैं, तो उनका वध हो सकता है," बोबडे ने कहा. "लेकिन हम उस सब को नियंत्रित नहीं कर सकते."
आलम ने मुझे बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह अपने जीवन में फिर से इतना असुरक्षित महसूस करेंगे. आलम ने कहा कि दुनिया जानती है कि म्यांमार में हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे हैं और अब भारत में भी रहना मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा कि अगर पुलिस सिर्फ यह बता देती कि वह उनके समुदाय के सदस्यों को हिरासत में क्यों ले रही है, तो वह स्वेच्छा से उनका सहयोग करते. "लेकिन हम इस निरंतर भय में नहीं रह सकते हैं. हम यह नहीं जानते कि हमने क्या गलत किया है और पुलिस हमें क्यों ले जा रही है," आलम ने मुझे बताया. "अगर वह हमें म्यांमार वापस भेजने की योजना बनाते हैं, तो मैं चाहता हूं कि वह हम सभी को इकट्ठा करें और हमें मार दें. हमें सागर में डुबो दो, बस.''