28 सितंबर 2018 को रेलवे सुरक्षा बल के महानिदेशक धर्मेंद्र कुमार ने भारतीय रेलवे के सभी जोनों के गोपनीय नोट जारी किए. भारतीय रेलवे को संचालन सुविधा को ध्यान में रखकर 16 जोनों में विभाजित किया गया है और इन जोनों में 68 डिवीजन हैं. आरपीएफ एक केंद्रीय निकाय है जो इन क्षेत्रों में रेल यात्रियों और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है. महानिदेशक के नोट के अनुसार, "इनपुट" मिला है कि "बड़ी संख्या में" रोहिंग्या अपने परिजनों के साथ यात्रा कर रहे हैं. रोहिंग्या म्यांमार के मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं जिन्हें इस बौद्ध-बहुल देश ने नस्लीय सफाई कर राज्यविहीन कर दिया गया है.
महानिदेशक के नोट में कहा गया है कि रोहिंग्या समुदाय के सदस्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के "हर कोने" से दक्षिण की ओर जाने वाली ट्रेनों में सवार हो रहे हैं ताकि केरल पहुंच सकें. नोट में जोनों को सलाह दी गई है कि "किसी भी अप्रिय घटना" से बचने के लिए कानून-प्रवर्तन अधिकारियों के साथ मिलकर "एहतियाती उपाय" किए जाएं. नोट में इस इनपुट के संबंध में आरपीएफ और रेलवे कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने और उन्हें "अधिकतम सतर्क" रहने के लिए कहा गया है. जैसे ही यह नोट मीडिया तक पहुंचा समाचारों में "रोहिंग्या शरणार्थियों की बाढ़", "केरल की ओर पलायन", और "दक्षिण की ओर बड़ी संख्या में बढ़ते कदम" जैसी सुर्खियां छा गईं.
26 सितंबर 2018 से 20 नवंबर 2018 के बीच भारतीय रेलवे ने अपने जोनल शाखाओं के लिए चार ऐसे परामर्श जारी किए थे. उसी दौरान पांच राज्यों में चुनाव भी होने थे. इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ शामिल थे - हिंदी भाषी तीन प्रमुख राज्यों में उस समय भारतीय जनता पार्टी का शासन था.
चुनाव अभियान के दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, जो फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्री हैं, ने अवैध अप्रवासियों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. 22 सितंबर 2018 को राजस्थान में एक रैली में उन्होंने पहली बार कहा था कि भारत में अवैध प्रवासी "दीमक" की तरह हैं. उन्होंने तर्क दिया कि "ये लोग अनाज को खा रहे हैं जो गरीबों कोमिलना चाहिए. ये हमारी नौकरियां ले रहे हैं." इस दौरान अप्रवासियों के खिलाफ शाब्दिक हमलों की, जिन्हें शाह घुसपैठिए कहते हैं, संख्या और आक्रामकता में बढ़ोतरी होती गई है.
एक साल से भी कम समय बाद जून 2019 में, भारत सरकार ने यह कबूल किया कि देश में रहने वाले रोहिंग्या की संख्या का कोई "सटीक आंकड़ा" उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा मेरे सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में पता चला है कि जुलाई 2019 तक भारतीय रेलवे अपने 27 डिवीजनों की ट्रेनों में एक भी रोहिंग्या की पहचान नहीं कर पाई थी. इनमें चार दक्षिणी राज्यों के डिवीजन भी शामिल थे.
जबकि भारतीय रेलगाड़ियों में भारी संख्या में रोहिंग्याओं के बारे में सलाह ने शाह के दावे को मजबूत करने में मदद की, लेकिन आरटीआई से मिली जानकारी से यह लगता है कि महानिदेशक की सलाह में कोई दम नहीं था. "जाहिर है, ऐसा लगता है कि यह अलर्ट फर्जी था," 2007 के समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में जांच का नेतृत्व करने वाले भारतीय पुलिस सेवा के एक पूर्व अधिकारी विकास नारायण राय ने मुझे बताया. "अगर मीडिया में रोहिंग्याओं के आंदोलन के बारे में ऐसी खबरें आती हैं और आपकी आरटीआई जानकारी कहती है कि अब तक किसी भी रोहिंग्या को गिरफ्तार नहीं किया गया है, तो एक आम आदमी भी यह कहेगा कि यह सब धोखाधड़ी थी."
आरटीआई से मिले जवाबों के अनुसार, जिन रेलवे डिवीजनों में जुलाई 2019 तक एक भी रोहिंग्या नहीं पकड़ा गया था वे हैं : कोटा, सोनपुर, जयपुर, सिकंदराबाद, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, वड़ोदरा, खड़गपुर, आद्रा, चक्रधरपुर, रांची, शालीमार, गुंटूर, तिरुचिरापल्ली, सेलम, अहमदाबाद, विजयवाड़ा, नई दिल्ली, पलक्कड़, रायपुर, गुंटकल, समस्तीपुर, मुरादाबाद, दानापुर, मुंबई सेंट्रल, फिरोजपुर और सोलापुर. इनमें से कुछ डिवीजनों ने यह भी निर्दिष्ट किया कि आरपीएफ ने नियमित रूप से खोज की थी. रतलाम, भोपाल, चेन्नई, मुगलसराय, लखनऊ, जबलपुर जैसे कई अन्य प्रभागों ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई नोट नहीं मिला है या उन्होंने डिवीजनों के भीतर किसी अन्य विभाग को मेरी आरटीआई बढ़ा दी.
लेकिन इसने पिछले साल सितंबर से नवंबर के बीच होने वाले कार्यक्रमों में शाह की बातों को ही मजबूत किया. 3 अक्टूबर 2018 को, रेलवे बोर्ड ने सभी क्षेत्रों में आरपीएफ को एक नोट भेजा, जिसमें उनसे "रोहिंग्याओं की घुसपैठ को रोकने के लिए की गई कार्रवाई का विस्तृत विवरण" मांगा गया था. इसमें एक फॉर्मेट दिया गया था जिसमें सभी अंचल कार्यालयों को डेटा एकत्र करना था. जिन ट्रेनों में रोहिंग्या यात्रा कर रहे थे उनमें की गई जांचों की संख्या, जांच का स्थान, हिरासत में लिए गए और पुलिस या सरकारी रेलवे पुलिस को सौंपे गए रोहिंग्याओं की संख्या, पुलिस मामले का संदर्भ, यदि कोई हो और घटना के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी देनी थी.
एक दिन बाद भारत सरकार ने घोषणा की कि उसने रोहिंग्या समुदाय के सात सदस्यों को 2012 में देश में अवैध रूप से प्रवेश करने के लिए हिरासत में लेने के बाद म्यांमार निर्वासित कर दिया था. अंतर्राष्ट्रीय एडवोकेसी समूह ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस निर्वासन को "अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करार दिया."
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली फटकार का शाह पर कोई असर नहीं पड़ा और उसी दिन राजस्थान के सीकर जिले में एक चुनावी रैली में फिर से प्रवासियों के प्रति उन्होंने अपनी नफरत का इजहार किया. "हमारी सरकार हर एक घुसपैठी की पहचान करेगी और सुनिश्चित करेगी कि वे मतदाता सूची से बाहर हों. हमने रोहिंग्या अप्रवासियों को म्यांमार में निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है," उन्होंने कहा.
लगभग एक हफ्ते बाद, खबरें सामने आईं कि इंटेलिजेंस ब्यूरो ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें पुष्टि की गई है कि रोहिंग्या उत्तर-पूर्वी राज्यों से दक्षिणी राज्यों की ट्रेनों में यात्रा कर रहे थे. रिपोर्टों के अनुसार, आईबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन, हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी, रोहिंग्याओं को भर्ती करने की कोशिश कर रहा था. इन खबरों ने शाह की चुनावी बयानबाजी को और पुख्ता किया.
20 नवंबर 2018 को जारी किया गया चौथा अलर्ट, पिछले वाले अलर्ट से अलग था. सभी क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए आरपीएफ के महानिदेशक द्वारा जारी अलर्ट ने रोहिंग्या की आवाजाही का विवरण कुछ मानव तस्करों और एक सशस्त्र अलगाववादी संगठन के साथ जोड़ा. नोट में कहा गया है: “बांग्लादेश से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक रोहिंग्या मुसलमानों की आमद के संदर्भ में, ऐसा ज्यादातर त्रिपुरा जिले के सोनई से हो रहा है. भारत में प्रवेश करने के बाद, वे रेल मार्ग से फैल जाते हैं.”
उस वर्ष के अंत में बीजेपी तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव हार गई. फिर भी 2019 के आम चुनावों में शाह ने असम के राष्ट्रीय नागरिक पंजिका की तर्ज पर भारतभर के लिए कानून बनाकर अवैध अप्रवासियों को बाहर करने का वादा किया. अप्रैल 2019 में, पश्चिम बंगाल में एक रैली में उन्होंने कहा, "भारतीय जनता पार्टी की सरकार चुन-चुन कर घुसपैठियों को बंगाल की खाड़ी में फेंक देगी."
मैंने विभूति नारायण राय से बात की, जो 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार के समय गाजियाबाद जिले के पुलिस प्रमुख थे. राय ने मुझे बताया कि उन्हें विश्वास नहीं होता कि रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों की पहचान करने के लिए रेलवे ने एक खोज भी की थी. राय ने कहा, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के भीतर इस तरह के अलर्ट को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जारी किया जाना समझा जाता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वास्तविक खतरे के रूप में नहीं लिया जाता.
मेरी आरटीआई के जवाबों से पता चलता है कि रेलवे अधिकारियों ने सलाह पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. सभी क्षेत्रों को कम से कम तीन नोट भेजे गए थे, लेकिन मेरे आरटीआई के जवाब में कई डिवीजनों ने कहा कि उन्हें उनमें से एक भी नहीं मिला है. गाड़ियों से रोहिंग्या बच्चों की पहचान करने और उन्हें गाड़ी से उतार देने के बारे में मेरे सवाल का जवाब देते हुए, कई डिवीजनों ने पुष्टि की कि उन्होंने कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं अपनाई है. दक्षिणी रेलवे के क्षेत्र से केवल दो डिवीजनों ने प्रश्न का उचित उत्तर दिया. पालक्काड डिवीजन ने कहा कि बच्चों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है. त्रिवेंद्रम डिवीजन ने कहा कि "किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार किशोरों के साथ व्यवहार किया जा रहा है."
यह पता लगाने के लिए कि क्या रोहिंग्या की पहचान करने की कोई प्रक्रिया है, मैंने पूछा कि कैसे अधिकारियों ने किसी रोहिंग्या मुसलमान को भारतीय मुसलमान से अलग किया. कई प्रभागों ने कहा, "भारतीय मुस्लिम नागरिक से रोहिंग्या को अलग करने के लिए कोई विशिष्ट मानदंड नहीं अपनाया गया है." इसके जवाब में, दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र से गुंटकल विभाग ने कहा, "संदेह और उनके चेहरे-मोहरे के आधार पर संदिग्धों से पूछताछ की जाएगी और उनकी बातों की सत्यता जांची जाएगी.” केवल कुछ प्रभागों ने कहा कि वे किसी संदिग्ध व्यक्ति उसके दस्तावेजों, जैसे कि वोटर कार्ड या आधार कार्ड के बारे में पूछेंगे.
किसी भी विभाग ने रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों की खोज के लिए किसी भी अलग दस्ते का गठन नहीं किया है. बड़ोदरा डिवीजन ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए उसने 12 दस्ते बनाए थे. डिवीजनों द्वारा इन अलर्टों के प्रति दिखाई गई उदासीनता के बारे में राय का कहना है, "खुफिया एजेंसियां नियमित रूप से ऐसे अलर्ट जारी करती रहती हैं जिनका उद्देश्य केवल मौजूदा सरकार को खुश रखना होता है."