दिल्ली के कालिंदी कुंज में रोहिंग्या शिविर में रहने वाली 25 साल की रोहिंग्या शरणार्थी मीनारा बेगम ने बताया, “जब मैं गर्भवती थी, मैं पूरा दिन कुछ नहीं खाती थी. क्योंकि अगर मैं खाऊंगी तो मुझे शौचालय जाना पड़ेगा. और यहां यह एक समस्या है.” मीनारा कैंप के एक छोटी सी दुकान चलाती हैं. शिविर में लगभग 53 रोहिंग्या परिवार रहते हैं और इसमें एक भी शौचालय नहीं है. उन्होंने कहा, "आप बिना खाए एक दिन जिंदा रह सकते हो, लेकिन क्या बिना शौचालय जाए रह सकते हो? यहां कोई भी हमारी जरूरत नहीं समझता."
मीनारा बेगम म्यांमार के राखीन राज्य से आए लगभग बारह सौ रोहिंग्या शरणार्थियों में से एक हैं जो राज्य की क्रूर कार्रवाई से बच गए और 2012 में भारत भाग आए. कालिंदी कुंज शिविर दिल्ली में सबसे बड़ा रोहिंग्या शरणार्थी शिविर है, लेकिन इसे चलाने में भारत सरकार की ओर से बमुश्किल कोई कदम उठाया जाता है. भारत 1951 के जिनेवा कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है - जो परिभाषित करता है कि शरणार्थी कौन हैं, उनके अधिकार क्या हैं और किसे शरण दी जा सकती है.
मिनारा दिल्ली के बाहरी इलाके में रहने वाली एक मुस्लिम औरत हैं, जो खाना, पानी और साफ-सफाई से बदहाल इलाके में बाकी 70 औरतों के साथ गुजारा करती हैं. शिविर में रहने वाली 10 साल की शाहीनूर ने मुझे बताया, “पहले हमारे पास सरकारी (दिल्ली शहरी आश्रय बोर्ड) शौचालय थे लेकिन चोरों ने इसे तोड़ दिया. अब हम एक-एक करके जंगल या बंजर ज़मीन पर जाते हैं.” इससे पहले कि शाहीनूर आगे कुछ कहती, बगल के शिविर में सार्टसर्किट से आग लग गई. वह तेज़ी से हाथ से बनी लकड़ी की सीढ़ी से नीचे चली गई और मुझे भी ऐसा ही करने को कहा.
2012 के बाद रोहिंग्या कालिंदी कुंज में बस गए. 2018 में पूरा कालिंदी कुंज शिविर स्थल आधी रात में जल गया था. शरणार्थियों ने बताया कि घटना से पहले, उन्हें पुलिस और सरकारी अधिकारियों द्वारा बार-बार परेशान किया गया था. जो कुछ भी जोड़ पाए थे उस आग में खाक हो गया. आग लगने के बाद शरणार्थी अस्थायी आधार पर उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा से एक किलोमीटर दूर मदनपुर खादर में चले गए. तीन साल बीत गए और छोटे निजी शौचालय फिर से बनाए गए. 12 जून, 2021 को यूपी सिंचाई विभाग के अधिकारी शिविर में आए और रोहिंग्याओं को सूचित किया कि उन्होंने यूपी सिंचाई बोर्ड के स्वामित्व वाली भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है. बाद में उस रात, शिविर में आग लग गई, जिससे वह बर्बाद हो गया. शरणार्थी कालिंदी कुंज वाली जगह पर वापस लौट आए और अभी भी वहीं रहते हैं.