बांदा नीरा के अपने पूर्व घर में लगा क्रिस्टोफर कोल का चित्र. उन्होंने भारी किलेबंद बांदा द्वीप समूह में डचों के खिलाफ ब्रिटिश नौसेना के एक सफल हमले का नेतृत्व किया. अंग्रेजों ने तब जायफल के कई पेड़ हटा कर उन्हें सीलोन, अब श्रीलंका, और अन्य उपनिवेशों में प्रत्यारोपित कर दिया. यह कार्रवाई जायफल व्यापार के पतन का बड़ा कारण बनी.
बांदा बेसर द्वीप में अपने वंशज पोंगकी वैन डेन ब्रोके के घर में पीटर वैन डेन ब्रोके के चित्र की प्रतिकृति. वह डच ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए बांदा आया था और जान पीटरजून कोएन के बाद बांदा द्वीप समूह के प्रमुख के रूप में कार्य किया. फ्रैंस हल्स द्वारा बनाई मूल पेंटिंग अब लंदन के केनवुड हाउस में लगी हुई है.
ऊपर की पहाड़ी से दिखाई देने वाला रहुन गांव. यहां मीठे पानी का कोई स्रोत नहीं है और एक छोटे से जनरेटर से बिजली शाम को कुछ घंटों के लिए ही चलती है. यह द्वीप अंग्रेजों और डचों के बीच विवाद का एक कारण था. 1667 में ब्रेडा की संधि करके मैनहट्टन के बदले में अंग्रेजों ने इसे डचों को सौंप दिया. आज रहुन में एक हजार से कुछ अधिक निवासियों में से ज्यादातर जायफल किसानों और मछुआरों के रूप में काम करते हैं.
जायफल के व्यापार की रक्षा के लिए बांदा में निर्मित फोर्ट बेल्गिका डचों द्वारा बनाया गया अब तक का सबसे मजबूत रक्षा ढांचा था. आज भी द्वीपों पर कम से कम छह बड़े किले देखे जा सकते हैं.
हालांकि जायफल अब उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है, जितना पहले हुआ करता था लेकिन बांदा से अब भी मसाले का निर्यात होता है. कई द्वीपवासियों के लिए अभी भी जायफल की खेती को उनकी आय का मुख्य स्त्रोत है.
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