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8 फरवरी 2019 को अट्टापदी कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी ने एक अत्यंत विवादास्पद निर्णय में त्रिशूर स्थित निर्माण कंपनी एलए होम्स को लगभग 2730 एकड़ भूमि पट्टे पर दे दी. यह सोसायटी केरल के पलक्कड़ जिले के अट्टापदी गांव में राज्य द्वारा संचालित परियोजना है और इसे 1975 में 420 आदिवासी परिवारों को भूमि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था. इस हस्तांतरित भूमि का पट्टायम या मालिकाना इन 420 परिवारों का है. परिवारों को इस हस्तांतरण के बारे में, जो 25 वर्षों के लिए प्रभावी है, तब जा कर पता चला जब 2020 की शुरुआत में व्यापारी जमीन देखने आने लगे. ये परिवार अब एसीएफएस से छला हुआ महसूस कर रहे हैं और राज्य सरकार और सोसायटी के बीच आदिवासी भूमि और आजीविका की रक्षा के लिए हुए 44 साल पुराने समझौते को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं. 2018 के बाद से अट्टापदी में आदिवासी समूहों ने पूरी जमीन आदिवासियों को वापस करने की मांग करते हुए कई बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और जब स्थानीय लोगों को एलए होम्स के साथ हुए इस करारा का पता चला तो विरोध तेज हो गए हैं.
एसीएफएस की वेबसाइट के अनुसार, सोसायटी का प्राथमिक लक्ष्य उन आदिवासी परिवारों को भूमि वापस करना था जिनकी पारंपरिक भूमि पिछली शताब्दी में सरकारों और बागान मालिकों द्वारा जबरन कब्जा ली गई थी. इसकी स्थापना "अट्टापदी के 420 भूमिहीन आदिवासी परिवारों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से की गई थी." समूह की स्थापाना पश्चिमी घाट विकास कार्यक्रम के तहत की गई थी जो 1974 में शुरू की गई केंद्र पोषित परियोजना थी. योजना आयोग द्वारा जारी की गई 1982 से कार्यक्रम की एक मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया था कि एसीएफएस ने आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद की थी, ''जबकि क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने की भी देखभाल की.”
लगभग चार दशक बाद जमीनी हकीकत कुछ अलग है. कई स्थानीय कार्यकर्ताओं, एक पत्रकार, किसान संघ के एक नेता और प्रभावित परिवारों के एक आदिवासी नेता ने मुझे बताया कि कॉपरेटिव ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उन्हें उनके भूमि अधिकारों से वंचित कर दिया है. सोसायटी के सभी सदस्य आदिवासी हैं लेकिन इसके शासी निकाय में विभिन्न सरकारी अधिकारी हैं. आदिवासी कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि पलक्कड़ के जिला कलेक्टर और एसीएफएस के अध्यक्ष डी. बालामुरली 2019 के शुरुआत में आयोजित आम सदस्यों की बैठकों में मौजूद थे जहां कॉपरेटिव के आदिवासी सदस्यों ने एलए होम्स को बोर्ड में शामिल करने के किसी भी प्रस्ताव को वीटो कर दिया था. उन्होंने कहा कि सोसायटी ने इससे भी आगे बढ़ते हुए भूमि को पट्टे पर दिया और दावा किया कि आदिवासी सदस्यों ने हस्तांतरण के लिए अपनी सहमति दी है. ये बैठकें कब हुईं इस संबंध में सरकार के दावों को कार्यकर्ता सही नहीं कहते हैं. इसके अलावा केरल के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री एके बालन ने आदिवासियों को भूमि और उसके स्वामित्व के बारे में भ्रमित करने वाले बयान दिए हैं.
18 सितंबर 2020 को अट्टापदी के विभिन्न जनजातियों के पचास आदिवासी कार्यकर्ताओं ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एसीएफएस बोर्ड के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की. 22 सितंबर को अदालत ने आगे की कार्यवाही को लंबित करते हुए अनुबंध को दो महीने के लिए रोक दिया. 20 नवंबर को अदालत ने फिर से तीन महीने के लिए अनुबंध पर रोक लगा दी.
केरल में आदिवासी भूमि के हस्तांतरण की वैधता हमेशा से विवादित रही है. आज केरल के भूमिहीन लोगों में 85 प्रतिशत दलित और आदिवासी हैं लेकिन 1970 में राज्य द्वारा लागू भूमि सुधारों के दौरान दोनों समुदायों की बड़े पैमाने पर उपेक्षा की गई थी. तब से राज्य में आदिवासियों ने भूमि अधिकारों के लिए व्यापक विरोध प्रदर्शन किए हैं. राज्य सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों का जवाब कृषि कॉपरेटिव या सहकारी समितियां बनाकर दिया जो अक्सर केंद्र सरकार से सहायता से चलती हैं और जिनमें आदिवासियों को आजीविका कमाने के लिए जमीन और बुनियादी ढांचा तैयार करके दिया जाता था. एसीएफएस इसी तरह की एक परियोजना थी.
1975 में राज्य सरकार ने केरल अनुसूचित जनजाति (भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध और अलगावित भूमि की बहाली) अधिनियम पारित किया जिसने गैर-आदिवासियों द्वारा आदिवासी भूमि की खरीद को प्रतिबंधित कर दिया. 1999 में अधिनियम को अनुसूचित जनजाति अधिनियम भूमि के हस्तांतरण और पुनर्स्थापना पर केरल प्रतिबंध के रूप में अपडेट किया गया था जिसमें कहा गया था कि "अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा प्रभावित किसी भी हस्तांतरण पर सक्षम प्राधिकारी की लिखित सहमति के बिना, रहना या मालिकाना रखना इस अधिनियम के शुरू होने के बाद, अनुसूचित जनजाति के सदस्य के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के लिए अमान्य होगा." कानून के तहत 24 जनवरी 1986 को कट-ऑफ तारीख घोषित कर दिया गया और इस तिथि के बाद गैर-आदिवासी व्यक्ति द्वारा किसी भी तरह की भूमि लेनदेन को अमान्य कर दिया.
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष सुकुमारन अट्टापदी यहां आदिवासी भूमि को वापस लेने के आंदोलन के नेताओं में से एक हैं. "1999 में जब केरल सरकार ने उस समय के आदिवासी भूमि कानून में संशोधन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो उसने आश्वासन दिया था कि वह सभी जनजातियों की भूमि को ऐसे किसी भी लेनदेन से बचाएगी. अदालत ने इस आश्वासन के आधार पर 1975 के भूमि कानूनों में संशोधन करने की अनुमति दी."
हालांकि अपने खुद के कानूनों की अवहेलना करते हुए आदिवासी भूमि को अक्सर केरल सरकार और वन विभाग द्वारा जब्त कर लिया जाता है. पलक्कड़ स्थित स्वतंत्र शोध संस्थान लालकृष्ण अनंतकृष्ण अय्यर इंटरनेशनल सेंटर फॉर एंथ्रोपोलॉजिकल स्टडीज के एक अध्ययन में पाया गया कि अकेले अट्टापदी में 1960 और 80 के बीच आदिवासियों से 10796.19 एकड़ भूमि अलग-थलग कर दी गई थी. अध्ययन में यह भी कहा गया है कि केरल में अट्टापदी क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा आदिवासी भूमि को अलग-थलग किया जा रहा है. 2010 में अट्टापदी में 85 एकड़ से अधिक आदिवासी भूमि को एक पवनचक्की फर्म द्वारा अतिक्रमण किया गया था जिसने सरकारी अधिकारियों की मदद से जाली दस्तावेज पेश किए थे. भूमि अभी भी आदिवासियों को बहाल नहीं की गई है और जिन सरकारी अधिकारियों ने अवैध हस्तांतरण में भाग लिया वे सभी सरकारी सेवा में वापस आ गए हैं.
भूमि को पट्टे पर देने का एसीएफएस का फैसला अट्टापदी में आदिवासी भूमि-अधिकारों के उल्लंघन के इस पैटर्न को दोहराता है. एसीएफएस की वेबसाइट के अनुसार, इसके उद्देश्यों में शामिल हैं "अट्टापदी की अनुसूचित जनजातियों के बीच सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव लाना और अनुसूचित जनजातियों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करना." तदनुसार, एसीएफएस ने मन्नारकाड तालुक के अट्टापदी ब्लॉक में चिंदक्की, करुवारा, पोथुपड्डी और वरदीमाला के गांवों में चार फार्म स्थापित किए. खेत 1092.79 हेक्टेयर भूमि में फैले हुए थे और उनमें काली मिर्च, कॉफ़ी, जायफल, इलायची और सुपारी जैसी नकदी फसलों की खेती होती थी.
एसीएफएस की वेबसाइट आदिवासी सदस्यों के लाभ के लिए किए गए अन्य कल्याणकारी उपायों के साथ सामूहिक खेती परियोजना के बारे में विस्तार से बताती है लेकिन उसमें खेती की जमीन के स्वामित्व के बारे में बहुत कम जानकारी है. सोसायटी के 816 पंजीकृत सदस्यों का उल्लेख करते हुए वेबसाइट कहती है, "चूंकि उनमें से अधिकांश की मृत्यु हो गई है, उनके कानूनी उत्तराधिकारियों का पता लगा कर उन्हें भूमि आवंटित करने की पहल की जा रही है." यह स्पष्ट नहीं है कि अगर भूमि के वारिस का पता लगाने के लिए ऐसी प्रक्रिया चल रही है तो सोसायटी ने 25 साल तक एलए होम्स को जमीन का पट्टा क्यों दे दिया.
सुकुमारन ने मुझे बताया, "सोसायटी के मूल उद्देश्य के अनुसार जब 1975 में इसका गठन किया गया था तब कॉफी और इलायची जैसी फसलों की खेती इस जमीन पर की जानी थी और पांच साल की अवधि के बाद इसे 420 आदिवासी परिवार को सौंप दिया जाना था ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.” एसीएफएस के आदिवासी सदस्यों में से एक शिवदासन पोथूपाडी ने इस बात की पुष्टि की और कहा कि, "पांच साल के भीतर उन्हें प्रत्येक परिवार को पांच एकड़ जमीन सौंपनी थी. साथ में वह जमीन भी जिसमें वह रह रहे थे."
लेकिन कॉपरेटिव सोसायटी बनने के बाद से अधिकारियों ने कभी भी भूमि को आदिवासियों को पूरी तरह से हस्तांतरित नहीं किया. 1970 के दशक के उत्तरार्ध में एसीएफएस ने सभी 420 परिवारों को पट्टे जारी किए लेकिन उन्हें अपने घरों के लिए प्रत्येक को केवल डेढ़ एकड़ भूमि का उपयोग करने की अनुमति दी. टीसी सुरेश, जो 1988 से 1996 तक एसीएफएस के बोर्ड में सचिव थे, ने मुझे बताया कि सोसायटी ने पेरिंथलमाना सहकारी कृषि विकास बैंक से 1.29 करोड़ रुपए का ऋण लिया था. उन्होंने कहा, "पंजीकृत सोसायटी ने कर्ज लेने के लिए पेरिंथलमाना सहकारी बैंक के समक्ष पट्टे प्रस्तुत किया." हालांकि एसीएफएस ने ऋण लेने के बाद कभी भी आदिवासियों को पट्टे वापस नहीं किए.
केरल के माल और सेवा कर विभाग के दस्तावेज इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि राज्य ने प्रत्येक आदिवासी परिवार को पांच एकड़ भूमि वितरित करने का वादा किया था. मार्च 1978 में जारी किए गए एक पट्टे की प्रति कारवां के पास है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पांच एकड़ भूमि एक आदिवासी व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत थी, न कि सोसायटी के नाम पर. जब मैंने बालामुरली से भूमि के स्वामित्व और उसके हस्तांतरण की वैधता के बारे में पूछने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया और मुझे पलक्कड़ के ओट्टापलम के वर्तमान सब-कलेक्टर अर्जुन पांडियन से बात करने के लिए कहा. पांडियन एसीएफएस के प्रबंध निदेशक भी हैं. उन्होंने इस बात से साफ इनकार कर दिया कि भूमि आदिवासियों की थी. उन्होंने कहा, "यह सरकारी आदेश पर गठित एक कृषक सोसायटी है और इसमें कहीं नहीं कहा गया है कि इसे वापस दिया जाएगा." भूमि की वापसी के बारे में पांडियन की बात अजीब है क्योंकि पट्टों में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि वह पहले से ही आदिवासियों के नाम पर पंजीकृत हैं और इस तरह से भूमि के पूर्ण स्वामित्व का संकेत देते हैं. सुरेश ने इस बात पर सहमति जताई कि 420 परिवारों को पांच-पांच एकड़ जमीन वितरित की जानी थी लेकिन उन कारणों से अनजान होने का दावा भी किया जिनके कारण एसीएफएस ने कभी इसका पालन नहीं किया.
सोसायटी का उल्लेख करते हुए सुरेश ने कहा, “शुरुआत से ही इसको नुकसान उठाना पड़ा. इससे उतना मुनाफा नहीं हुआ जितने की उम्मीद थी. जितना खर्च किया जा रहा था उससे कम रिटर्न था. 1995 के आसपास यह कुछ हद तक लाभदायक हो गई." वामपंथी झुकाव वाले आदिवासी संगठन आदिवासी भारत महासभा के महासचिव टीआर चंद्रन ने कहा कि सोसायटी पिछले कुछ सालों से लगभग किसी काम की नहीं रह गई. "सोसायटी अपने उस उद्देश्य से दूर चली गई है जिसके लिए इसे बनाया गया था तथा कुछ और ही करने लगी," चंद्रन ने मुझे बताया. उन्होंने कहा, “वे हर साल दो करोड़ रुपए का सरकारी अनुदान पाते हुए भी सोसायटी को नहीं चला पा रहे. कोई काम नहीं हो रहा है. कॉफी के पौधे कॉफी के पेड़ बन गए हैं. फसलों की कटाई नहीं हो रही है.”
हालांकि, पांडियन ने कहा, "अगर आप केरल के तीन सरकारी फार्मों को ले तो यह सबसे अच्छी चलने वाली फार्म है. बाकियों को तो अपने सदस्यों की तनख्वाह देने के लिए जूझना पड़ रहा है. लेकिन यही एकमात्र फार्म है जो अच्छी स्थिति में चल रही है.” हालांकि, उन्होंने तुरंत अपनी ही बात काटते हुए कहा, “2000 एकड़ जमीन है. उसमें से 500 एकड़ बहुत अच्छी हालत में है और अच्छा चल रहा है. आपको इसकी तुलना निजी फार्मों से नहीं करनी चाहिए क्योंकि सरकारी काम में तो समस्याएं होंगी ही. यह सरकारी अनुदानों पर भी निर्भर करता है. ”
जिन आदिवासियों के लिए सहकारी समिति बनाई गई थी और जिन्होंने खेतों में काम किया था वे एसीएफएस के निर्माण के बाद भी गरीब हैं. शिवदासन ने मुझे बताया, "कुछ 840 सदस्य खेतों में काम करते थे. 80 और 90 के दशक में वेतन बहुत ही कम था. साढ़े तीन-चार रुपए प्रति दिन मिला करते थे.” खेत में रहने की स्थिति भी निम्न दर्जे की थी. जिन्हें आप क्वार्टर्स कहते हैं, वे सिर्फ मिट्टी की दीवारों से बने घर थे. वे पूरी तरह से ढह गए. मकान सिर्फ दस साल तक रहे. परिवार दूर चले गए क्योंकि ये रहने लायक नहीं थे. घर बहुत छोटे थे. हम पीढ़ियों से इस भूमि के स्थायी निवासी हैं. सोसायटी बहुत बाद में आई. उन्होंने खेती के लिए उपयुक्त बनाने का वादा करके हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया. ”
चंद्रन ने कहा कि समाज के 816 (एसीएफएस की वेबसाइट में केवल 816 सदस्यों का उल्लेख है) सदस्यों में से कइयों का निधन हो गया है जबकि कई अन्य लोगों ने खेती छोड़ दी है और नौकरियों की तलाश में अन्यत्र चले गए हैं. आठ साल से अट्टापदी को कवर कर रहे पत्रकार आर सुनील ने मुझे बताया कि शुरू में कुल 120 परिवार वरदीमाला में बसे थे. सुनील ने कहा, "छह-सात साल पहले तक परिवार वहां रह रहे थे. आज वरदीमाला में एक भी परिवार नहीं है. जनसंख्या बढ़ने पर दावेदार की संख्या भी 120 परिवारों से बढ़कर 300 से अधिक परिवार तक पहुंच गई. सोसायटी ने दावेदारों की संख्या का हिसाब नहीं रखा है. ऐसी सोसायटी कैसे सामान्य निकाय की बैठक बुला सकती है? वे अपने हिसाब से कुछ लोगों को चुनते हैं और सामान्य निकाय की बैठक कर लेते हैं."
17 सितंबर 2020 को मलयालम दैनिक मध्यमयम ने बताया कि एसीएफएस ने एलए होम्स के साथ 2700 एकड़ जमीन का सौदा किया था जिसके बाद अट्टापदी में ताजा विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. चंद्रन ने कहा, "सोसायटी को पट्टा किसी और को हस्तांतरित करने के लिए उसके मालिक की सहमति की आवश्यकता है लेकिन उन्होंने पट्टों को एक सूटकेस में बंद कर रखा था और सदस्य इसमें मौजूद धाराओं से अनजान थे." 25 सितंबर 2020 को मंत्री बालन ने अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के प्रमुख सचिव को तत्काल चिह्नित एक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने एसीएफएस और एलए होम्स के बीच अनुबंधित अनुबंध की जांच करने का निर्देश दिया. पत्र में कहा गया है, "अनुबंध की शर्तें प्रथम दृष्टया सोसायटी के गठन के उद्देश्यों के विपरीत हैं." मंत्री ने प्रमुख सचिव से इस बारे में रिपोर्ट मांगी थी कि "फार्म के प्रशासन को बताकर अनुबंध का मसौदा तैयार किया गया अथवा नहीं और क्या सरकार की अनुमति के बिना कार्यक्रम को लागू किया जा रहा है."
30 सितंबर को एसीएफएस के तत्कालीन सचिव राजेश ने एलए होम्स के साथ समझौते को सही ठहराते हुए एसटीडीडी के निदेशक पी. पुगझेंडी को एक रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा बुलाई गई बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जो संगठन घाटे में चल रहे हैं उन्हें बंद किया जाएगा. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि फार्मों में पर्यटन कार्यक्रम को शुरू करने की बहुत अधिक संभावना है जिससे सोसायटी का मुनाफा बढ़ेगा. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2 नवंबर 2018 को आयोजित सामान्य निकाय की एक बैठक में फार्म-पर्यटन कार्यक्रम के प्रस्ताव, जिसमें जमीन पट्टे पर देना भी था, पर चर्चा की गई और प्रस्ताव स्वीकार किया गया. 25 नवंबर को एसीएफएस ने कम से कम दो स्थानीय पत्रों में फार्म पर्यटन कार्यक्रम के लिए बोलियां आमंत्रित करते हुए विज्ञापन जारी किए थे. राजेश की रिपोर्ट यह भी कहती है कि एक फार्म को बंद करना उन 420 परिवारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा जिन्होंने "45 वर्षों से इस संगठन के लिए काम किया है."
सोसायटी की वेबसाइट में "कंस्ट्रेंस" नामक एक अनुभाग के तहत समस्याओं की एक श्रृंखला से संबंधित है. फार्म के बुनियादी ढांचे को "बहुत दयनीय" बताते हुए वेबसाइट में कहा गया है कि सोसायटी की वित्तीय स्थिति बहुत गंभीर है और यह सदस्यों के लिए नए क्वार्टर्स या घरों का निर्माण करने का जोखिम नहीं उठा सकती है जिसके परिणामस्वरूप वे आजीविका वाले अन्य इलाकों में चले जाते हैं.” यह स्पष्ट नहीं है कि अट्टापदी में रह रहे सदस्यों के संबंध में सोसायटी के अधिकारियों का "आजीविका वाले अन्य इलाकों" का क्या मतलब है क्योंकि वे पीढ़ियों से वहां रहते आए हैं. 28 अक्टूबर को मध्यमाम ने एक आरटीआई के जवाब में राजेश के जवाब की एक कॉपी प्राप्त की जिसमें कहा गया था कि पांडियन ने एलए होम्स सौदे के बारे में उनकी अनुमति के बिना किसी भी आरटीआई का जवाब नहीं देने के मौखिक आदेश दिए हैं.
एसीएफएस की महासभा में इसके प्रबंधन के साथ-साथ इसके सभी आदिवासी सदस्य शामिल हैं. पांडियन ने दावा किया कि सामान्य निकाय भूमि हस्तांतरण के लिए सहमत हो गया था और यहां तक कि उसने बिक्री की अनुमति देने वाली याचिका पर हस्ताक्षर किए. "हम उनकी सहमति के बिना ऐसा नहीं कर सकते" पांडियन ने मुझे बताया. “लगभग 300 परिवारों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए…यह एक सामान्य निकाय है. फार्म एक पंजीकृत सोसायटी है. सभी परिवार सामान्य निकाय का हिस्सा हैं और इसे सामान्य निकाय के समक्ष रखा गया था और इसे सामान्य निकाय द्वारा पारित किया गया था. उसके बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.”
हालांकि, सुकुमारन ने इस बात से असहमति जताई और तर्क दिया कि सोसायटी के प्रबंधन ने जनजातीय सदस्यों की बातों पर विचार नहीं किया. सुकुमारन ने बताया, ''इसके लिए वे सामान्य निकाय की बैठक करते हैं. उन्होंने कहा, "वे अपने फैसले खुद करते हैं और इसे पास करते हैं. आदिवासी सदस्यों की वहां कोई सुनवाई नहीं है.” सदस्यों ने ऐसी ही एक बैठक में एलए होम्स को पट्टे की भूमि के हस्तांतरण का विरोध करने का प्रयास किया. सुकुमारन ने कहा कि बैठक इस साल हुई थी, लेकिन उन्हें तारीख याद नहीं थी.
शिवदासन ने बताया, "बोर्ड ने हमसे अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बारे में राय मांगी. हम सभी 420 परिवारों ने भूमि को सौंपने से इनकार कर दिया. हमने उन्हें अपना दो टूक विरोध बता दिया और उन्होंने यह भी कहा कि वे अनुबंध नहीं करेंगे.” शिवदासन ने कहा कि बैठक में बालमुरली मौजूद थे. उन्होंने कहा कि उन्हें बाद में पता चला कि बोर्ड ने अपने किसी भी सदस्य की सहमति के बिना 1092.79 हेक्टेयर जमीन के लिए हस्ताक्षर किए थे.
राजेश की रिपोर्ट के अनुसार, एसीएफएस ने एक मीडिया विज्ञापन जारी किया जिसमें पर्यटन कार्यक्रम को निष्पादित करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए गए. चार प्रस्तावों की जांच के बाद, सोसायटी ने एलए होम्स का चयन किया. रिपोर्ट ने पुगझेंडी को यह आश्वासन देने का प्रयास किया कि कंपनी की भूमिका 25 साल की लीज अवधि के लिए फार्म-पर्यटन कार्यक्रम को लागू करने तक सीमित है. इसमें कहा गया है कि परियोजना से निर्मित रोजगार के अवसरों पर "सदस्यों/उनके आश्रितों को 50 फीसदी या 25 व्यक्तियों जो भी अधिक हो, को प्राथमिकता दी जाएगी" और कम से कम अट्टापदी के अनुसूचित जनजाति के 25 लोगों को नौकरी दी जाएगी.” परियोजना के खिलाफ उठाई गई शिकायतों का उल्लेख करते हुए, रिपोर्ट में यह कहा गया है कि "कई शिकायत करने वाले सदस्य सोसायटी से सेवानिवृत्त होने के बाद भी काम कर रहे हैं और लाभ प्राप्त कर रहे हैं."
पूरे प्रकरण पर बालन का रुख आदिवासियों के समर्थन से लेकर उनके दावों को खारिज करने के बीच डोलता रहता है. उन्होंने पहली बार सितंबर में इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट मांगी लेकिन 1 नवंबर 2020 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, बालन ने कहा कि "सरकार को इसका कोई ज्ञान नहीं है." उन्होंने आगे कहा, “सोसायटी ने सरकार को सूचित किया है कि वह सोसायटी के उपनियमों के अनुसार ऐसा करने की शक्ति रखती है. प्रमुख सचिव को इसकी जांच करने के लिए कहा गया है. प्रमुख सचिव आवश्यक कार्रवाई करेंगे.” बालन ने सुझाव दिया कि यह भूमि सोसायटी के साथ निहित है, न कि आदिवासी परिवारों के लिए. वह साथ में यह भी कहते हैं कि सोसायटी इसे किसी अन्य पार्टी को बेच नहीं सकती है. “अट्टापदी में वह जमीन व्यक्तियों को वितरित करने के लिए नहीं है. यह सोसायटी के लिए है,” उन्होंने कहा. “उन्होंने सामूहिक रूप से और स्वेच्छा से सोसायटी के माध्यम से उत्पादों को बेचने के लिए खेती के लिए जमीन दी थी. आदिवासियों की सहमति से सोसायटी का निर्माण हुआ था. सोसायटी की सभी गतिविधियों का लाभ आदिवासियों के लिए है. आदिवासी जमीन किसी और को नहीं बेची जा सकती.” मंत्री ने कहा कि सोसायटी ने सरकार को सूचित किया है कि एलए होम्स को 25 साल का पट्टा भी सोसायटी को लाभ पहुंचाने के लिए है. बालन ने भूमि हस्तांतरण की वैधता पर अपनी आधिकारिक स्थिति के बारे में पूछे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया.
पत्रकार सुनील ने कहा, "सोसायटी का एकमात्र बचाव यह है कि सोसायटी अधिनियम के तहत यह स्वीकार्य है. हां इस अधिनियम के तहत सोसायटी की स्थापना की गई थी लेकिन भूमि केवल आदिवासियों के लिए है. मुद्दा यह है कि आदिवासी पुनर्वास भूमि को पट्टे पर दिया जा सकता है या नहीं. अगर ऐसा होता है तो वन विभाग ''जो 1975 से पहले भूमि पर दावा करता है”, भूमि वापस ले लेगा. यदि शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो जमीन वापस ले ली जाएगी. यह इसका एक और खतरनाक पहलू है. वे इसे सोसायटी की जमीन कहते रहते हैं. यह नहीं भूलना चाहिए कि यह आदिवासी पुनर्वास भूमि है.”
सुकुमारन ने कहा, "अपनी जमीनों के बारे में सोचते हुए सोसायटी अपने नियमों पर चलने के लिए स्वतंत्र है." “लेकिन क्या सोसायटी के पास कोई जमीन है? आदिवासियों को भूमि का पट्टा 40 साल पहले दिया गया था. जैसा कि मंत्री ने बताया आदिवासियों को जमीन बांटने का सवाल ही नहीं उठता. इसे पहले ही पट्टे के जरिए उन्हें बांट दिया गया था." उन्होंने एक बार फिर इस बात को दोहराया कि सोसायटी के अधिकारियों ने ऋण वापस लेने के लिए पट्टे जमा किए बाद में इन दस्तावेजों को परिवारों को कभी नहीं लौटाया गया. सुकुमारन ने कहा कि वह उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कुछ पट्टों की फोटोकॉपी पाने में कामयाब रहे. उन्होंने तर्क दिया कि एलए होम्स का परिवारों को लाभ पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है. “यह अकूत कमाई का एक जरिया है. यही उनका एकमात्र उद्देश्य है,” सुकुमारन ने कहा.
एलए होम्स की वेबसाइट के अनुसार, इसकी स्थापना 2010 में निर्माण की अवधारणा जिसे प्रीफैब्रिकेशन कहा जाता है, को ध्यान में रखकर की गई थी. कंपनी ने अपनी परियोजनाओं में कॉटेज, फार्महाउस और बंगलों का उल्लेख किया है. एलए होम्स के निदेशक, लतीश वीके, सह-निदेशक अनूप केवी और अशोकन केवी के साथ एसीएफएस के साथ पट्टे पर हस्ताक्षर करने वालों में से थे. अट्टापदी के जिन स्थानीय लोगों से बात की, उन्होंने मुझे बताया कि एलए होम्स चेम्मनुर इंटरनेशनल ग्रुप के चेयरमैन बॉबी चेम्मनुर से जुड़ा है, जो मुख्य रूप से सोने और हीरे के खुदरा क्षेत्र में निवेश करते हैं. हालांकि चेम्मनुर का नाम एलए होम्स परियोजनाओं से संबंधित दस्तावेजों या प्रचार सामग्री में कहीं भी दिखाई नहीं देता है, लतीश ने कथित रूप से अन्य उपक्रमों में चेम्मनुर के साथ काम किया है.
मार्च 2020 में मलयालम दैनिक मातृभूमि ने बताया कि चेम्मनुर ने विभिन्न सरकारी अस्पतालों में क्वारंटीन सुविधाओं के रूप में लगभग 200 पोर्टेबल जगह दान की. चेम्मनुर के स्वामित्व वाले अंतर्राष्ट्रीय ज्वैलर्स के फेसबुक पेज पर इन जगहों के बारे में एक पोस्ट है जो कहती है कि “इस महान उपक्रम का श्रेय डॉ. बॉबी चेम्मनुर, श्री लतीश वी. को है." चंद्रन ने मुझे बताया कि चेम्मनुर ने एलए होम्स उद्यम की देखरेख के लिए अट्टापदी में कई दौरे किए. उन्होंने कहा, "बॉबी चेम्मनुर आए और पूछताछ करने के लिए यहां रहे. वह पांच-छह दिनों के लिए यहां एक फार्म में रहे." स्थानीय लोगों ने हस्तांतरण के सबूत की खोज शुरू कर दी और चेम्मनुर के नाम वाले वाहनों को नोटिस करने के बाद ही विरोध शुरू कर दिया.
पांडियन ने यह भी पुष्टि की कि चेम्मनुर ने परियोजना में रुचि दिखाई है जबकि केरल सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं था. पांडियन ने बताया, "वास्तव में वे (एलए होम्स) इस परियोजना के लिए निवेश की कोशिश कर रहे थे. वे इसमें निवेश करने के लिए बहुत से व्यापारियों से जुड़ रहे थे. हम एलए होम्स के साथ समझौता कर रहे थे लेकिन एलए होम्स निवेशकों की तलाश में था. इस तरह से उन्होंने बॉबी चेम्मनुर से संपर्क किया होगा. दरअसल, लॉकडाउन के दौरान एक बार उन्होंने वहां का दौरा किया था. उन्होंने इसके लिए अनुमति नहीं ली."
लतीश ने आदिवासी समुदायों द्वारा की गई आपत्तियों के बारे में किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया और कहा कि वह टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि मामला न्यायालय में है. लतीश ने कंपनी के लिए चेम्मनुर के संबंधों या एसीएफएस के साथ सौदे में उनकी भूमिका के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दिए. चेम्मनुर ने एलए होम्स या फार्म पर्यटन परियोजना के संबंध में भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया.
स्थानांतरण के खिलाफ आदिवासी संगठनों और वामपंथी यूनियनों ने अट्टापदी में बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं. सुकुमारन ने कहा, "ओट्टापलम आरडीओ" (राजस्व विभागीय अधिकारी) और अन्य अधिकारी अवैध हस्तांतरण कर आदिवासी लोगों को उनकी भूमि से वंचित कर रहे हैं. हम उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करने के लिए राज्यपाल से मिलने जा रहे हैं." 1 अक्टूबर को पलक्कड़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समन्वय समिति के अध्यक्ष के. मायांडी और केरल में दलित और आदिवासी अधिकार संगठनों से जुड़े कई अन्य कार्यकर्ताओं ने ओट्टालम राजस्व मंडल कार्यालय के बाहर सत्याग्रह किया.
10 अक्टूबर को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने त्रिशूर जिले के एलए होम्स कार्यालय में आदिवासी भूमि को एलए होम्स को दिए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. पार्टी ने अपने एक पोस्टर में एलए होम्स को पर्यटन माफिया बताया है. 5 नवंबर को प्रदर्शनकारियों ने आदिवासियों को जमीन वापस करने की मांग करते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के कार्यालय में एक याचिका की.
सुकुमारन ने मुझे बताया कि आदिवासियों को भूमि से वंचित करने के लिए गांव के अधिकारियों, राजनीतिक दलों और कंपनियों ने साथ काम किया है. “जब आदिवासी भूमि की बात आती है तो उन्हें कर रसीदें या पट्टे के दस्तावेज नहीं दिए जाते और यदि उन्हें पट्टे के दस्तावेज दिए जाते हैं तो उन्हें भूमि ही आवंटित नहीं की जाती है. जहां तक जमीन का मामला है सरकार ने उन्हें कभी जमीन नहीं दी.”
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