केरल के अट्टापदी में 2730 एकड़ आदिवासी जमीन निजी फर्म को लीज पर देने का जोरदार विरोध

केरल के अट्टापदी में राज्य संचालित कॉपरेटिव एक फार्म के प्रवेश द्वार पर लगा एक साइन बोर्ड. एसीएफएस ने आदिवासी परिवारों के लगातार विरोध के बावजूद एक निजी फर्म को 2730 एकड़ जमीन लीज पर दे दी है.
आभार : आर सुनील
केरल के अट्टापदी में राज्य संचालित कॉपरेटिव एक फार्म के प्रवेश द्वार पर लगा एक साइन बोर्ड. एसीएफएस ने आदिवासी परिवारों के लगातार विरोध के बावजूद एक निजी फर्म को 2730 एकड़ जमीन लीज पर दे दी है.
आभार : आर सुनील

8 फरवरी 2019 को अट्टापदी कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी ने एक अत्यंत विवादास्पद निर्णय में त्रिशूर स्थित निर्माण कंपनी एलए होम्स को लगभग 2730 एकड़ भूमि पट्टे पर दे दी. यह सोसायटी केरल के पलक्कड़ जिले के अट्टापदी गांव में राज्य द्वारा संचालित परियोजना है और इसे 1975 में 420 आदिवासी परिवारों को भूमि प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था. इस हस्तांतरित भूमि का पट्टायम या मालिकाना इन 420 परिवारों का है. परिवारों को इस हस्तांतरण के बारे में, जो 25 वर्षों के लिए प्रभावी है, तब जा कर पता चला जब 2020 की शुरुआत में व्यापारी जमीन देखने आने लगे. ये परिवार अब एसीएफएस से छला हुआ महसूस कर रहे हैं और राज्य सरकार और सोसायटी के बीच आदिवासी भूमि और आजीविका की रक्षा के लिए हुए 44 साल पुराने समझौते को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं. 2018 के बाद से अट्टापदी में आदिवासी समूहों ने पूरी जमीन आदिवासियों को वापस करने की मांग करते हुए कई बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और जब स्थानीय लोगों को एलए होम्स के साथ हुए इस करारा का पता चला तो विरोध तेज हो गए हैं.

एसीएफएस की वेबसाइट के अनुसार, सोसायटी का प्राथमिक लक्ष्य उन आदिवासी परिवारों को भूमि वापस करना था जिनकी पारंपरिक भूमि पिछली शताब्दी में सरकारों और बागान मालिकों द्वारा जबरन कब्जा ली गई थी. इसकी स्थापना "अट्टापदी के 420 भूमिहीन आदिवासी परिवारों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से की गई थी." समूह की स्थापाना पश्चिमी घाट विकास कार्यक्रम के तहत की गई थी जो 1974 में शुरू की गई केंद्र पोषित परियोजना थी. योजना आयोग द्वारा जारी की गई 1982 से कार्यक्रम की एक मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया था कि एसीएफएस ने आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद की थी, ''जबकि क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने की भी देखभाल की.”

लगभग चार दशक बाद जमीनी हकीकत कुछ अलग है. कई स्थानीय कार्यकर्ताओं, एक पत्रकार, किसान संघ के एक नेता और प्रभावित परिवारों के एक आदिवासी नेता ने मुझे बताया कि कॉपरेटिव ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उन्हें उनके भूमि अधिकारों से वंचित कर दिया है. सोसायटी के सभी सदस्य आदिवासी हैं लेकिन इसके शासी निकाय में विभिन्न सरकारी अधिकारी हैं. आदिवासी कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि पलक्कड़ के जिला कलेक्टर और एसीएफएस के अध्यक्ष डी. बालामुरली 2019 के शुरुआत में आयोजित आम सदस्यों की बैठकों में मौजूद थे जहां कॉपरेटिव के आदिवासी सदस्यों ने एलए होम्स को बोर्ड में शामिल करने के किसी भी प्रस्ताव को वीटो कर दिया था. उन्होंने कहा कि सोसायटी ने इससे भी आगे बढ़ते हुए भूमि को पट्टे पर दिया और दावा किया कि आदिवासी सदस्यों ने हस्तांतरण के लिए अपनी सहमति दी है. ये बैठकें कब हुईं इस संबंध में सरकार के दावों को कार्यकर्ता सही नहीं कहते हैं. इसके अलावा केरल के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री एके बालन ने आदिवासियों को भूमि और उसके स्वामित्व के बारे में भ्रमित करने वाले बयान दिए हैं.

18 सितंबर 2020 को अट्टापदी के विभिन्न जनजातियों के पचास आदिवासी कार्यकर्ताओं ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एसीएफएस बोर्ड के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की. 22 सितंबर को अदालत ने आगे की कार्यवाही को लंबित करते हुए अनुबंध को दो महीने के लिए रोक दिया. 20 नवंबर को अदालत ने फिर से तीन महीने के लिए अनुबंध पर रोक लगा दी.

केरल में आदिवासी भूमि के हस्तांतरण की वैधता हमेशा से विवादित रही है. आज केरल के भूमिहीन लोगों में 85 प्रतिशत दलित और आदिवासी हैं लेकिन 1970 में राज्य द्वारा लागू भूमि सुधारों के दौरान दोनों समुदायों की बड़े पैमाने पर उपेक्षा की गई थी. तब से राज्य में आदिवासियों ने भूमि अधिकारों के लिए व्यापक विरोध प्रदर्शन किए हैं. राज्य सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों का जवाब कृषि कॉपरेटिव या सहकारी समितियां बनाकर दिया जो अक्सर केंद्र सरकार से सहायता से चलती हैं और जिनमें आदिवासियों को आजीविका कमाने के लिए जमीन और बुनियादी ढांचा तैयार करके दिया जाता था. एसीएफएस इसी तरह की एक परियोजना थी.

आतिरा कोनिक्करा कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

Keywords: Kerala Adivasi rights land rights
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