10 सितंबर 2012 को तमिलनाडु के चार गांवों के हजारों लोग तिरूनेलवेली जिले के इदिन्थाकरै गांव से लगे तटों पर कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केएनपीपी) का विरोध करने एकत्रित हुए. यह संयंत्र इस गांव से मात्र दो किलोमीटर दूर बना है. उस दिन संयंत्र में यूरेनियम ईंधन (फ्यूल) भरा जा रहा था जो परमाणु संयंत्र के आरंभ होने से पहले किया जाता है.
इस प्रदर्शन में भाग लेने वालों में अधिकांश महिलाएं थी. जैसे ही इन लोगों ने संयंत्र की तरफ कूच किया, राज्य सरकार ने लोगों को रोकने के लिए पहले आंसू गैस का इस्तेमाल किया और बाद में भीड़ पर गोलीबारी की. प्रदर्शनकारी पुलिस से बचने के लिए समुद्र की ओर भागे, इस घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 66 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार लोगों में से बहुतों पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया गया.
केएनपीपी देश का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है. सबसे पहले 1979 में इस संयंत्र का प्रस्ताव किया गया था और उसी वक्त से स्थानीय जनता और मछुआरा समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं. इस संयंत्र का निर्माण कार्य 2001 में शुरू हुआ और इसमें 2013 से काम आरम्भ हो गया. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि संयंत्र से निकलने वाले प्रदूषित रसायन को समुद्र में छोड़ा दिया जाता है और इस विषाक्त तत्व से मछलियों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. इन्हें डर है कि संयंत्र के चलते उनके और आने वाली पीढ़ियों की जीविका के संसाधन नष्ट हो जाएंगे. मछुआरों का कहना है कि जब से यहां संयंत्र चालू हुआ है मछलियों की संख्या और प्रजातियां कम होती जा रही हैं.
2011 में संयंत्र के खिलाफ प्रदर्शन तीव्र हो गया. उस साल जापान में सुनामी के कारण फुकुशिमा दाईची परमाणु संयंत्र नष्ट हो गया था. इस संयंत्र के छह रिएक्टरों में से तीन फट गए थे. उस हादसे में 1600 लोगों की मृत्यु हो गई थी. इदिन्थाकरै के निवासियों को इसी हश्र का डर है क्योंकि 2004 में यहां भी सुनामी आई थी.
इस साल जून में प्रदर्शन कर रहे समुदायों से मिलने के लिए मैंने तमिलनाडु की यात्रा की. उस गांव की 55 वर्षीय एंथनी जेवियर अमल गांव में चल रहे विरोध प्रदर्शन की अगुवा हैं. यहां के लोग उन्हें प्यार से जेवियर अम्मा पुकारते हैं. वह कहती हैं, “हमारे लिए यही एक घर है. हमें बस मछली पकड़ना आता है.” जेवियर अम्मा के लिए विरोध प्रदर्शन अपनी पहचान को बचाए रखने का मामला है.
सितंबर 2012 में अन्य लोगों के साथ अमल को भी गिरफ्तार किया गया था. वह बताती हैं, “उस दिन हम लोग वहां इसलिए जुटे थे ताकि सरकार को बता सकें कि हम जानते हैं कि वह क्या कर रही है. लेकिन सरकार हिंसक हो गई.” वह बताती हैं कि उन्हें गिरफ्तार कर सुबह 11 बजे स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया और रात 11 बजे तक वही रखा गया. इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. “मैं 80 दिनों तक त्रिची जेल में थी. मेरे खिलाफ राजद्रोह और राज्य के खिलाफ युद्ध का आरोप लगाया गया. कपड़े उतार कर हमारी तलाशी ली गई जैसे हम लोग हत्यारे या लुटेरे हैं. वहां का खाना बेकार था और हमारे वकीलों के सिवा हमें किसी से मिलने नहीं दिया जाता था. जेल से कोर्ट तक का सफर 7 घंटे का था. उन दिनों मेरा शरीर बहुत दर्द करता था.”
अम्मा फिलहाल जेल से बाहर हैं. 2004 सुनामी में उनका घर नष्ट हो जाने के बाद सरकार ने उन्हें एक कमरे का मकान दिया है. अम्मा इसी में रहती हैं. जीविका के लिए अम्मा इडली बेचती हैं और रोजाना 500 रुपए की कमाई कर लेती हैं. वह रोज सुबह 5 बजे उठती हैं, इडली और सांभर बनाती हैं और 6 बजते-बजते ग्राहक आने लगते हैं. अम्मा के तीन बच्चे हैं जो गांव के बाहर रहते और काम करते हैं. वह बताती हैं, “जब मेरा तीसरा बच्चा होने वाला था तब मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया.” उनके बेटे ने एक अतिरिक्त किचन बनाने में उनकी मदद की ताकि वह ज्यादा खाना बना सकें. गांव के अधिकतर लोग कमाई के लिए दो तरह के काम करते हैं. अमल ने मुझे बताया, “मैं बड़ी मेहनत से घर चला रही हूं. मुझे कर्ज चुकाना होता है और रोजाना के खर्चों को भी देखना है. मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चों की शादी हो जाए. लेकिन इस हालत में भी मैं आंदोलन के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हूं.”
कुडनकुलम आंदोलन की अनोखी बात यह है कि इस आंदोलन को चलाने में महिलाएं आगे हैं. उदय कुमार परमाणु ऊर्जा के खिलाफ जन आंदोलन (पीएमएएनई) के प्रमुख सहजकर्ताओं में से एक हैं. उनका मानना है, “महिलाओं की भागीदारी इस आंदोलन को खास बनाती है.” पीएमएएनई, विभिन्न समुदायों का नागरिक अधिकार समूह है जिसकी स्थापना 2001 में हुई थी. इसी ने संयंत्र के खिलाफ इदिन्थाकरै में हुए आंदोलनों का नेतृत्व किया था. कुमार याद करते हैं, “आंदोलनकारी चर्च के टेंट में रोज बैठे रहते थे. यहां के लोग अन्य आंदोलनकारियों के लिए भोजन तैयार करते थे और सारी बैठकों में भाग लेते थे. इन्हीं लोगों ने आंदोलन को आगे बढ़ाया.”
2011 में शुरू होने के बाद आंदोलन 2015 तक जारी रहा जिसके बाद इसकी तीव्रता कम होती चली गई. जेवियर अमल के करीबी साथी मेलरेट राज आंदोलन के सक्रिय सदस्य हैं. वह याद करते हैं, “उन सालों में हम सोते नहीं थे. रोज सुबह अपने परिवार को भोजन करा देने के बाद हम लोग गिरिजाघर आ जाते और शाम तक यहीं रहते थे. फिर शाम को घर लौट कर खाना बनाते और वापस चर्च आकर सो जाते.” यहां का स्थानीय चर्च आंदोलनकारियों के जमा होने का अड्डा बन गया था. राज ने बताया कि जेवियर अमल और अन्य लोगों के गिरफ्तार हो जाने के बावजूद उन लोगों ने आंदोलन जारी रखा. “एक ऐसा समय भी आया जब हम लोग अपने गांव में कैद कर दिए गए. पुलिस ने गांव की सारी सड़कों को ब्लॉक कर दिया था. कोई गांव से बाहर नहीं जा सकता था और रसद गांव के भीतर नहीं आ सकती थी. हम लोग इस देश के नागरिक नहीं हैं क्या? मैं आज भी पुलिस की इस हरकत से नाराज हूं.”
राज मुझे इदिन्थाकरै तट तक ले गए और उस जगह को दिखाने लगे जहां पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के पर गोली चलाई थी. “हम लोग मछुआरे हैं, यही काम हमें आता है. सागर हमारी मां है. वह हमारे रक्त में है और मैं उसकी खातिर लड़ाई लडूंगा. जब 2012 में हिंसा हुई तो मैं पुलिस की गिरफ्त से इसलिए बच पाया क्योंकि मुझे तैरना आता है. जेवियर अमल को तैरना नहीं आता इसलिए उसे पुलिस ने पकड़ लिया.”
मैंने अमल के साथ गिरफ्तार हुईं आंदोलनकारी सुंदरी से भी मुलाकात की. उस अनुभव को वह अमानवीय बताती हैं. “हम अपनी जमीन के लिए लड़ रहे थे और वह हमें आतंकवादी कह रहे थे. जब एक आदमी और एक महिला के जेल जाने में फर्क होता है. जब एक महिला जेल जाती है तो वह अपने बच्चों से दूर हो जाती हो और जेल से बाहर आने के बाद उसका परिवार उस से दूरी बनाने लगता है. वे लोग उसे साथ रखने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं जबकि उसने कुछ गलत नहीं किया होता. मेरे परिवार वालों ने मुझसे बात करनी बंद कर दी लेकिन मेरे पति और मेरे बच्चों को पता था कि मैं जेल क्यों गई थी.” सुंदरी के पति पेन्टन कहते हैं, “मैंने सुंदरी को आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा था. मैंने उससे कहा था कि यदि आंदोलन उसके लिए जरूरी है तो उसे जाना चाहिए, मैं बच्चों की देखरेख कर लूंगा.”
सुंदरी बताती है, “हमें परमाणु ऊर्जा संयंत्र क्यों चाहिए? उन लोगों को लगता है कि हम लोग अनपढ़ हैं लेकिन हम जानते हैं कि वायु और सौर ऊर्जा से काम चल सकता है. यदि न्यूक्लियर ऊर्जा इतनी ही महान बात है तो इसे दिल्ली में क्यों नहीं लगा लेते? मोदी इसे अपने घर में लगा लें. उन लोगों को हमारे गांव को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है.”
प्रदर्शनकारियों की मुख्य चिंता संयंत्र से पैदा होने वाले कचरे को लेकर है. मेलरेट के पति ने संयंत्र से निकल कर समुद्र में मिलने वाले कचरे के बारे में बताया. “यह साबुन के पाने से निकलने वाले झाग जैसा होता है. यह गाय के पेशाब के रंग की तरह भूरा और गर्म होता है. उस पानी से धुआं निकलता रहता है और आप जब उसे छूते हैं तो वह गर्म लगता है. मछलियां ऐसे पानी में जिंदा नहीं रह सकतीं. पहले मछलियां हमें 10 किलोमीटर के दायरे में मिल जाती थीं लेकिन अब 20 से 25 किलोमीटर दूर जाकर पकड़ना पड़ता है. यहां तक कि जिन मछलियों को हम पकड़ते हैं उसमें भी रसायन का असर होने की चिंता लगी रहती है. आजीविका के लिए हमारे बच्चे क्या करेंगे?
रूपर्ट साइमन राजा इदिन्थाकरै के मछुआरे हैं. वह इस आंदोलन में 1991 से जुड़े हैं. वह कहते हैं, “आज के हालात भी पहले जैसे ही हैं. सरकार जनता की सुनना नहीं चाहती. वह हमारी भावनाओं का सम्मान नहीं करती. हम यहां किसी भी प्रकार का विनाश नहीं चाहते. अगर यहां तूफान या सुनामी आ जाए तो हम कहां जाएंगे? यह फुकुशिमा बन जाएगा.”
पीएमएएनई के अनुसार, फिलहाल संयंत्र में ऊर्जा को संग्रह करने और परमाणु कचरे को सुरक्षित डिस्पोज (निपटान) करने का कोई दीर्घकालीन कार्यक्रम नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मानकों में की गई सिफारिशों के अनुसार, गहराई में तैयार किए गए भंडारण में कचरे को रखा जाना चाहिए. यानी ऐसी जगह जहां स्थाई तौर पर रेडियो एक्टिव कचरे को रखा जाए. फ्रांस की एक अंतर-सरकारी संस्था, परमाणु ऊर्जा एजेंसी, विकसित परमाणु तकनीक संबंधित आधारभूत संरचना निर्माण के लिए देशों के साथ सहकार्य करती है. इस संस्था ने अपनी 2008 की रिपोर्ट में परमाणु कचरे को उचित रूप से डिस्पोज करने के महत्व के बारे में बताया है. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि ईंधन को पुन: संसाधित करने की प्रक्रिया में पैदा होने वाले रेडियो एक्टिव (रेडियोधर्मी) कचरे को मनुष्य और पर्यावरण से हजारों साल तक दूर रखा जाना चाहिए.” इस कचरे के दुष्प्रभाव से मनुष्य और पर्यावरण के बचाव के लिए दुनिया भर में इसके प्रबंधन के लिए अंडरग्राउंड सुविधाएं तैयार की जा रही हैं.”
फिलहाल कुडनकुलम में ऐसी कोई सुविधा नहीं है. पीएमएएनई के कुमार पूछते हैं, “ये लोग कचरे का क्या कर रहे हैं इसका जवाब नहीं देते.” कुमार का दावा है कि कचरे का भंडारण संयंत्र में ही किया जा रहा है. यदि कोई स्थाई सुविधा नहीं है तो इसका मतलब है ये लोग कुडनकुलम संयंत्र को कचरे के भंडारण के लिए इस्तेमाल करेंगे जो बहुत खतरनाक होगा. यह संयंत्र यहां 40 से 60 वर्षों तक होगा लेकिन इसका कचरा 48000 सालों तक बना रहेगा. यह गंभीर बात है. सदियों तक इसका असर हमारी आने वाली नस्लों पर पड़ेगा. इन लोगों को पहले कचरा प्रबंधन के लिए सुविधाएं तैयार करनी चाहिए.”
मैंने भारतीय परमाणु ऊर्जा कॉरपोरेशन से बात करनी चाही जो केएनपीपी परियोजना और परमाणु रिएक्टर के लिए जिम्मेदार संस्था है लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला. इस बीच, यहां की महिलाएं अब किसी भी वक्त अपने आंदोलन को दुबारा शुरू करने को तैयार हैं. हालांकि वे केएनपीपी में काम रोकने में असमर्थ रहीं लेकिन अमल ने हार नहीं मानी है. वह कहती हैं, “हिंदुस्तान के लोग हमें पहचानते हैं. हमने भारत के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूम कर लोगों को बताया है कि वह अपनी जमीन न दें. अब लोग जागरुक हैं. वे जानते हैं कि परमाणु संयंत्र कितने खतरनाक होते हैं. इन्हें कोई पसंद नहीं करता. हमारे आंदोलन ने लोगों को रास्ता दिखाया है.”