मैं पिछले 3 सालों से कश्मीर में फोटो पत्रकार के रूप में काम कर रही हूं. कश्मीर में महिला फोटो पत्रकार बहुत कम हैं. कश्मीर में टकराव को कवर करने वाली महिलाओं को अलग नजरों से देखा जाता है. जब एक शुक्रवार मैं पहली दफा जामिया इलाके में जारी मुठभेड़ को कवर करने गई तो एक लड़के ने मुझसे आकर कहा, “दीदी, दीदी आप चली जाओ, आपको लगेगी.” उसका कहना था कि मुठभेड़ कवर करना आदमियों का काम है. जब मैं घर वापस गई तो सोचने लगी कि मेरी जगह कोई लड़का होता तो उसको भी चोट लगती. उसको भी खून आ सकता था.
उस दिन मैंने पहली बार पैलेट गन का चलना देखा और जाना कि आंसू गैस आपका दम घोंट देती है. आप दूर भी हों तो भी आप उसकी गंध को महसूस कर सकते हैं और आपको खांसी आ जाती है. लड़के पत्थर फेंक रहे थे. चूंकि मैं पहली मर्तबा कवर कर रही थी इसलिए कुछ नहीं पता था कि मुझे कहां खड़े होकर शूट करना चाहिए. सीआरपीएफ वाले मुझे ऐसे घूर रहे थे मानो सोच रहे हो, “यह कौन लड़की है जो हिजाब में कश्मीरी पत्रकारों के साथ आई है.” उस वक्त मेरे घर वालों को पता नहीं था कि मैं ऐसी मुठभेड़ें कवर कर रही हूं.
उसके बाद मैं अकेली जाने लगी. मिलिटेंट के जनाजे को चबूतरे पर रखते हैं. मर्द फोटोग्राफरों को वहां तक जाने दिया जाता है लेकिन औरतों को नहीं. हम हाई-एंगल शॉट नहीं ले सकतीं. वहां ऐसे भी लोग होते हैं जो आपको खामखा बताने लगते हैं कि कहां से जाना है, कहां से आपको फोटो लेनी है. वह लोग कहते हैं, “आ गई लड़की. हां लड़कों ने तो आजादी ला दी कश्मीर में. अब लड़कियां लाएंगी.” हालांकि ऐसी भी औरतें होती हैं जो आपकी मदद करती हैं.
एक बार मैं पत्थर फेंक रहे एक लड़के का फोटो ले रही थी तभी अचानक वहां पुलिस वाला आ गया और मुझे वहां से जाने के लिए कहने लगा. मैंने अपना आईडेंटिटी कार्ड दिखाया लेकिन उसने कहा कि वह उसे नहीं मानता. जब मैंने उससे कहा कि मैं अपना काम कर रही हूं जैसे वह अपना काम कर रहा है तो उसने धमकी दी कि वह मेरा कैमरा जब्त कर लेगा.
पहले तो मेरे घरवालों ने मुझे जर्नलिज्म पढ़ने की इजाजत ही नहीं दी कश्मीर में ऐसी सोच है कि औरतों को डॉक्टर या टीचर बनना चाहिए या घरों में बुटीक चलाना चाहिए. 2016 में मिलिटेंट कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद जो अशांति का माहौल बना उसके बाद मेरे टीचर मेरे घर पर मां-बाप को समझाने पहुंच गए. उन्होंने मशवरा दिया कि हम लोग हमारी लोकेलिटी में रहने वाले एक-दूसरे प्रोफेसर राशिद मकबूल से जा कर मिलें और वह हमें बताएंगे कि मुझे क्या करना है और क्या पढ़ना है. उन्होंने कहा, “आपको यह समझना चाहिए कि इसे मुठभेड़ को कवर करना पड़ेगा, एनकाउंटर वाली जगह जाना पड़ेगा. कभी-कभी रात को भी बाहर रहना पड़ेगा. इसको रात को फोन आएगा कि इमरजेंसी है, तो जाना पड़ेगा.”
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