ए. एस. दुलत भारत-पाकिस्तान संबंधों और कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ हैं. 1980 से दुलत, जम्मू-कश्मीर राज्य में बड़े सरकारी पदों पर कार्यरत रहे और उच्च स्तरीय राजनीतिक लोगों के बीच उनकी अच्छी पहुंच है. वह भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ के प्रमुख रहे और 1999 और 2002 के बीच, कारगिल युद्ध के दौरान, इंटेलिजेंस ब्यूरो के विशेष निदेशक भी थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में साल 2000 और 2004 के बीच दुलत कश्मीर मामलों में उनके सलाहकार थे.
कारवां के असिस्टेंट वेब एडिटर अर्शु जॉन ने दुलत से भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव पर बातचीत की. 26 फरवरी को भारत ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में हवाई आक्रमण किया. पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में यह कार्रवाई की गई थी. हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव तीव्र हो गया. दोनों ओर से हुए हवाई हमलों में भारत के 1 पायलट को पाकिस्तान में पकड़ लिया गया. पाकिस्तान सरकार ने 1 मार्च को पकड़े गए पायलट को छोड़ने की घोषणा की है. भारत के हवाई हमले पर टिप्पणी करते हुए दुलत कहते हैं, “मुझे इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी”. उन्होंने कहा कि इस प्रतिक्रिया को भारत के आगामी लोक सभा चुनाव से जोड़ कर देखा जाना चाहिए.
पुलवामा डरावनी त्रासदी थी. सरकार की तत्कालीन प्रतिक्रिया थी : “अगर तुम यह कर रहे हो, तो हम भी तुम्हें दिखा देंगे.” तो मुझे लगा कि कुछ तो होने वाला है और यह पूर्व में हुए सर्जिकल स्ट्राइक से बड़ा होगा. इसी संदर्भ में इन हवाई हमलों को देखा जाना चाहिए. मुझे उतना ही यकीन इस बात का भी था कि पाकिस्तान भी जवाबी कार्रवाई करेगा और हवाई हमले के तुरंत बाद उसने ऐसा किया भी.
हालांकि पुलवामा के बाद मैंने ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी लेकिन मैं भारत की प्रतिक्रिया को सही कहने या न कहने की स्थिति में नहीं हूं. हां, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बालाकोट हमले के बाद जो प्रतिक्रिया दी वह बहुत ही दिलचस्प है. खासकर उनका शांति वार्ता का प्रस्ताव और आतंकवाद सहित सभी मुद्दों पर भारत से बात करने की इच्छा. इमरान खान यह संदेश दे रहे हैं कि भारत के हमले के बाद पाकिस्तान को जो करना था वह उसने कर लिया है. उनका संदेश है, “हम यह नहीं चाहते थे लेकिन आपने हमें ऐसा करने के लिए मजबूर किया.” उधर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी तनाव कम करने का आह्वान किया है. परिणामस्वरूप खान का कद न केवल पाकिस्तान में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बढ़ गया है.
नरेंद्र मोदी की बात करें तो अभी यह देखना बाकी है कि हवाई हमले के बाद उनको कैसे देखा जाता है. भारत में लोगों का मानना है कि हवाई हमले से उन्हें लोक सभा चुनाव में फायदा होगा. कुछ लोगों के दिमाग में चुनाव चल रहा है. इसलिए मुझे लगा था कि इस बार कुछ होगा और यही कारण है कि पुलवामा की प्रतिक्रिया अनिवार्य थी.
तनाव शांत करने के लिए भारत को इमरान खान का शांति वार्ता का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए. मुझे लगता है जो किया जाना था वह किया जा चुका है. अब कूटनीति को आगे बढ़ाना चाहिए. अभी नहीं तो बाद में इसे खत्म होना ही है. हमारे पास दो ही विकल्प हैं, या तो हम पाकिस्तान से वार्ता करें या नाराज रहें. बॉक्सिंग मैच में 3 बेसिक राउंड होते हैं. यह पहला राउंड था. मुझे लगता है कि तनाव की स्थिति खत्म हो गई है लेकिन फिर भी कुछ कहा नहीं जा सकता. चुनाव होने वाले हैं और हो सकता है बॉक्सिंग मैच की तरह ही राउंड 2 और 3 खेला जाए. कौन बता सकता है कि महान लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है?
कश्मीर के सवाल पर मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी की समझदारी सभी के सामने है और दोनों की तुलना नहीं की जा सकती. वाजपेयी महान व्यक्तित्व थे. यही वजह है कि घाटी में उनका सम्मान है. लेकिन देखिए कि आज घाटी में क्या हो रहा है? कश्मीर का कोई सैन्य समाधान नहीं है. जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो घाटी के लोगों को उनसे बहुत उम्मीद थी. लेकिन जुलाई 2016 के बाद के इन ढाई वर्षों में हमने वहां की स्थिति को गड़बड़ा दिया है.
पिछले 30 सालों और उससे भी ज्यादा वक्त तक हमारे सामने आतंकवाद का खतरा मौजूद रहा है. इसमें कोई शक नहीं है कि आतंकवाद की फैक्ट्री पाकिस्तान में है और वहां आतंकी तैयार होते हैं. पाकिस्तान खुद इस संकट का सामना कर रहा है. किसी भी अन्य देश की तुलना में वहां सबसे अधिक आतंक है.
क्योंकि हम लोग एक खतरनाक स्थिति में रहते हैं इसलिए सभी प्रधानमंत्रियों को किसी न किसी तरह की परीक्षा देनी ही पड़ती है. इन परीक्षाओं को कौन सा प्रधानमंत्री कैसे देता है इससे उसकी महानता का पता चलता है. वाजपेयी को तीन-चार बार ऐसी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा. 1999 का कारगिल युद्ध, आईसी 814 एयर इंडिया विमान का अपहरण भी उसी साल हुआ और 2001 में संसद पर हमला. इसके बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने संयम से काम लिया. अप्रैल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीरी अवाम से कहा था: “मैंने पाकिस्तान की ओर 2 बार दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन दोनों ही बार मुझे धोखा मिला, लेकिन मैं कोशिश करता रहूंगा”. जनवरी 2004 में उन्होंने पाकिस्तान में आयोजित सार्क सम्मेलन में भाग लिया, जिसके बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने वाजपेयी को आश्वासन दिया कि वह पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए होने नहीं देंगे.
मनमोहन सिंह को भी 2008 के मुंबई हमले की बड़ी परीक्षा देनी पड़ी. इस मायने में मोदी तुलनात्मक रूप से ज्यादा भाग्यशाली रहे. उनकी एकमात्र बड़ी परीक्षा पुलवामा है. मनमोहन और अटल बिहारी वाजपेयी दोनों ने शांति से काम किया. जो किया जाना था वह चुपचाप किया. लेकिन मोदी इसका इस्तेमाल उग्रता से कर रहे हैं.