“ऐसे तो कोई जानवरों को भी नहीं मारता”, दिल्ली में मुस्लिम विरोधी हिंसा में जिंदा बचे जुबैर की कहानी

03 मार्च 2020
साभार : मोहम्मद जुबैर
साभार : मोहम्मद जुबैर

उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग में रहने वाले मोहम्मद जुबैर, सोमवार की सुबह लगभग 8.30 बजे शाही ईदगाह में होने वाले एक वार्षिक समारोह में शामिल होने के लिए अपने घर से निकले थे. सत्रहवीं शताब्दी में बनी ईदगाह के आसपास अब पुरानी दिल्ली का चहल-पहल वाला सदर बाजार बसा है. 37 साल की उम्र में भी एकदम नौजवान दिखने वाले जुबैर इज्तिमा करने जा रहे थे. इज्तिमा ईदगाह में होने वाला एक जलसा है जिसमें हर साल 150000 से 250000 लोग इकट्ठा होते हैं.

उस दिन सुबह से ही जुबैर के साथ अजीबोगरीब घटनाएं हो रही थीं. सबसे पहले तो वह अपना मोबाइल घर पर ही भूल गए. यह गलती आगे जाकर लगभग जानलेवा गलती साबित हुई. फिर कश्मीरी गेट बस स्टॉप पर जब वह बस का इंतजार कर रहे थे तब एक मोटरसाइकिल पर सवार अजनबी उनके सामने आ कर रुका और उन्हें लिफ्ट की पेशकश की. उनके खस्ता सफेद कुर्ता-पजामा और गोलटोपी से अंदाजा लगाते हुए अजनबी ने जुबैर से पूछा कि क्या वह ईदगाह जा रहे हैं. बेउम्मीदी में मुफ्त की सवारी पाकर "मुझे लगा कि यह अल्लाह की मुझे सौगात है," जुबैर ने याद किया.

वापस लौटते हुए जुबैर ने अपने परिवार के लिए खाना और फल खरीदा. वह हर साल यही करते हैं. यह एक और घातक गलती साबित हुई. "अगर मैं खाना और फलों से भरे पॉलीबैग नहीं लिए होता तो दूसरे रास्ते से घर वापस जा सकता था. या कम से कम भाग तो सकता ही था," उन्होंने मुझे बताया.

दोपहर 2 बजे के करीब जुबैर ने घर लौटने के लिए मिनीबस ली. इस समय तक, उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा भड़क चुकी थी. हिंसक अफरा-तफरी की खबर फैलते ही, मिनीबस ने उनके मोहल्ले से कुछ दूरी पर यमुना पुश्ता पर उन्हें उतार दिया. उन्होंने कहा, "मैंने सुना कि खजुरी में दंगे हो रहे हैं इसलिए मैंने सोचा कि मैं भजनपुरा बाजार से निकल जाउंगा," उन्होंने मुझे बताया. खजूरी खास और भजनपुरा दोनों चांद बाग के करीब हैं. "जब मैं भजनपुरा बाजार पहुंचा, तो बाजार बंद और सुनसान पड़ा था."

जल्द ही जुबैर चांद बाग के मुस्लिम बहुल इलाके को हिंदू बहुल भजनपुरा से अलग करने वाली मुख्य सड़क पर पहुंच गए. लेकिन आमतौर पर व्यस्त रहने के कारण पैदल चलने वालों के लिए सीमेंट के डिवाइडर को पार करना असंभव हो जाता है. "मैंने यह सोचकर सबवे की तरफ चलना शुरू कर दिया कि मैं वहां सड़क पार करूंगा."

वैभव वत्स स्वतंत्र लेखक और पत्रकार है. न्यू यॉर्क टाइम्स और अल जज़िरा में प्रकाशित.

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