उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग में रहने वाले मोहम्मद जुबैर, सोमवार की सुबह लगभग 8.30 बजे शाही ईदगाह में होने वाले एक वार्षिक समारोह में शामिल होने के लिए अपने घर से निकले थे. सत्रहवीं शताब्दी में बनी ईदगाह के आसपास अब पुरानी दिल्ली का चहल-पहल वाला सदर बाजार बसा है. 37 साल की उम्र में भी एकदम नौजवान दिखने वाले जुबैर इज्तिमा करने जा रहे थे. इज्तिमा ईदगाह में होने वाला एक जलसा है जिसमें हर साल 150000 से 250000 लोग इकट्ठा होते हैं.
उस दिन सुबह से ही जुबैर के साथ अजीबोगरीब घटनाएं हो रही थीं. सबसे पहले तो वह अपना मोबाइल घर पर ही भूल गए. यह गलती आगे जाकर लगभग जानलेवा गलती साबित हुई. फिर कश्मीरी गेट बस स्टॉप पर जब वह बस का इंतजार कर रहे थे तब एक मोटरसाइकिल पर सवार अजनबी उनके सामने आ कर रुका और उन्हें लिफ्ट की पेशकश की. उनके खस्ता सफेद कुर्ता-पजामा और गोलटोपी से अंदाजा लगाते हुए अजनबी ने जुबैर से पूछा कि क्या वह ईदगाह जा रहे हैं. बेउम्मीदी में मुफ्त की सवारी पाकर "मुझे लगा कि यह अल्लाह की मुझे सौगात है," जुबैर ने याद किया.
वापस लौटते हुए जुबैर ने अपने परिवार के लिए खाना और फल खरीदा. वह हर साल यही करते हैं. यह एक और घातक गलती साबित हुई. "अगर मैं खाना और फलों से भरे पॉलीबैग नहीं लिए होता तो दूसरे रास्ते से घर वापस जा सकता था. या कम से कम भाग तो सकता ही था," उन्होंने मुझे बताया.
दोपहर 2 बजे के करीब जुबैर ने घर लौटने के लिए मिनीबस ली. इस समय तक, उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा भड़क चुकी थी. हिंसक अफरा-तफरी की खबर फैलते ही, मिनीबस ने उनके मोहल्ले से कुछ दूरी पर यमुना पुश्ता पर उन्हें उतार दिया. उन्होंने कहा, "मैंने सुना कि खजुरी में दंगे हो रहे हैं इसलिए मैंने सोचा कि मैं भजनपुरा बाजार से निकल जाउंगा," उन्होंने मुझे बताया. खजूरी खास और भजनपुरा दोनों चांद बाग के करीब हैं. "जब मैं भजनपुरा बाजार पहुंचा, तो बाजार बंद और सुनसान पड़ा था."
जल्द ही जुबैर चांद बाग के मुस्लिम बहुल इलाके को हिंदू बहुल भजनपुरा से अलग करने वाली मुख्य सड़क पर पहुंच गए. लेकिन आमतौर पर व्यस्त रहने के कारण पैदल चलने वालों के लिए सीमेंट के डिवाइडर को पार करना असंभव हो जाता है. "मैंने यह सोचकर सबवे की तरफ चलना शुरू कर दिया कि मैं वहां सड़क पार करूंगा."
दोपहर के लगभग 3 बज रहे थे और गली के दोनों तरफ भीड़ जमा हो गई थी. जब जुबैर सबवे की सीढ़ियों से उतर रहे थे, उन्होंने ऊपर सीढ़ियों पर किसी को यह कहते सुना कि उसका वहां से गुजरना जोखिम भरा था. "मैंने सोचा कि शायद कुछ हमलावर वहां इंतजार में बैठे हों, इसलिए मैं वापस सड़क पर चलने लगा," उन्होंने बताया. “जिस व्यक्ति ने मुझसे सबवे पार नहीं करने को कहा उसने तिलक लगाया हुआ था. उसने मुझे दूसरे रास्ते की ओर जाने का इशारा किया, लेकिन मैं देख पा रहा था कि वहां पथराव हो रहा है. इससे पहले कि मुझे एहसास होता कि क्या हो रहा था, उन्होंने 'जय श्रीराम’ के नारे लगाने शुरू कर दिए और एक चीख सुनाई दी, 'मारो इस मुल्ले को’. मैं उनमें से एक से बहस करने लगा और उससे पूछा कि मेरी गलती क्या है? मैंने क्या किया है?'"
"इस बीच, किसी ने मेरी खोपड़ी पर लोहे की रॉड से मारा और मेरे सिर से खून की बौछार होने लगी. इसके बाद, उन्होंने मुझे इतनी बुरी तरह से पीटा कि मुझे लगा कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा. मुझे पूरा यकीन था कि मैं मरने वाला हूं.”
जुबैर बेहोश हो गए और हमलावर शायद उन्हें मरा हुआ समझ कर चले गए. "थोड़ी देर के बाद, मैं बस धुंधला-धुंधला समझ पा रहा था कि चार लोग मुझे सड़क के दूसरी ओर ले जा रहे हैं," उन्होंने याद किया. "मुझे इसकी बहुत हल्की याद है कि मुझे एक एम्बुलैंस के पीछे रखा जा रहा है और किसी को गुरु तेग बहादुर अस्पताल में ले जाने की गुजारिश की जा रही है." हमले के बाद आस-पास खड़े लोगों ने परिवार को बताया कि सीमेंट डिवाइडर के पार कुछ मुस्लिम लड़कों ने देखा कि वह सड़क पर पड़े थे. उन लड़कों के बारे में परिवार को कुछ भी नहीं पता है लेकिन वे इतने मददगार और सतर्क थे कि एम्बुलेंस में छोड़ने से पहले उन्होंने एक स्थानीय डॉक्टर के पास ले जाकर जुबैर के सिर पर टांके लगवाए.
"उसके बाद, मुझे याद है कि कोई अस्पताल में बार-बार मुझसे मेरा नाम और नंबर पूछ रहा है," जुबैर ने कहा. “मैं ऐसी हालत में था कि मुझे अपना नंबर याद नहीं आ रहा था. अब तक, मैं खुन में पूरी तरह से भीग चुका था.” जुबैर के कपड़े फटे हुए थे और बनियान और जांघिया दिख रहे थे. जब उन्हें स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था तो उन्हें उल्टी हो गई.
अस्पताल के डॉक्टरों ने जुबैर से पूछा कि क्या उसके साथ कोई आया है. उन्होंने बताया नहीं. जुबैर ने अस्पताल में एक अन्य व्यक्ति को गोल टोपी पहने देखा. उन्होंने उस आदमी से कहा कि उन्हें एक्स-रे करवाने की जरूरत है और उससे मदद मांगी. गोल टोपी पहने व्यक्ति ने एक और आदमी को साथ में लिया और दोनों जुबैर को अस्पताल ले आए.
"एक्स-रे में कोई फ्रैक्चर नहीं दिखा लेकिन मेरा सिर घूम रहा था," उन्होंने मुझे बताया. जुबैर ने डॉक्टरों से उसे सीटी स्कैन के लिए भेजने के लिए कहा लेकिन उन्होंने जुबैर को बताया कि मशीन टूटी हुई है. "अचानक मुझे अपने भाई का नंबर याद आ गया और मैंने लोगों से कहा कि उसे तुरंत पहुंचने की इत्तेला करें." उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि वे उनके भाई से कुछ कपड़े भी साथ ले आने को कह दें.
जुबैर के भाई मोहम्मद खालिद सहित उनका परिवार इलाके में पसरे तनाव के कारण चांद बाग में अपने घर में ठहरे हुए थे. अस्पताल में लोगों से सुनने के बाद उन्होंने जुबैर के बहनोई मोहम्मद असलम को फोन किया, जो उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में एक निम्न-मध्यम वर्ग मोहल्ले इंद्रलोक में रहते हैं.
असलम ने रात 8 बजे के करीब जुबैर से अस्पताल में मुलाकात की. जुबैर पर हमला किए हुए चार घंटे हो चुके थे. चांद बाग में परिवार के लोग अपना घर नहीं छोड़ सकते थे. असलम शहर भर में खोजते रहे. असलम ईदगाह और इलाके के आस-पास के खाने के स्टॉल पर गए. वहां से वह कश्मीरी गेट स्टेशन की ओर गए. लगभग 7 बजे उन्होंने हार मान कर अपनी पत्नी और जुबैर की बहन जेब्रुनिशा से बात की.
असलम के अस्पताल पहुंचने के तुरंत बाद उनके फोन पर दोस्तों और रिश्तेदारों के संदेश आने लगे. संदेशों की बाढ़ के साथ बुरी तरह चोटिल और खून से सराबोर कुर्ता-पजामा पहने जुबैर की तस्वीर जिसे डंडे और तलवार पकड़े दंगाई भीड़ ने घेरा हुआ था वायरल होने लगी. यह पुलित्जर पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की ली गई तस्वीर थी. इंटरनेट पर इसे व्यापक शेयर किया गया. यह तस्वीर दिल्ली नरसंहार की प्रतीक बन गई.
सोमवार को उत्तर पूर्व दिल्ली में सिद्दीकी का पहला दिन था. पिछले दिन 23 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने एक आग लगाने वाला बयान दिया था जिसमें उन्होंने पुलिस को धमकी दी थी कि वह नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को सड़कों से हटाए. दोपहर तक समाचारों के साथ ही हिंसा की अफवाह फैलने लगी. दोपहर बाद थोड़ी ही देर में सिद्दीकी वहां पहुंच गए. एक दिग्गज कॉनफ्लिक्ट फोटोग्राफर के रूप में वह पूरी तरह से तैयार थे : उन्होंने एक हेलमेट और एक गैस मास्क पहन रखा था. "यह एक युद्ध क्षेत्र की तरह था," उन्होंने कहा. "टूटे हुई डंडे और ईंटें चारों तरफ बिखरी पड़ी थीं."
शुक्रवार को सिद्दीकी ने नई दिल्ली में फॉरेन कॉरेस्पॉन्डेंट्स क्लब में अपनी तस्वीर पर चर्चा में यह बात कही. सिद्दीकी ने श्रोताओं को बताया कि जुबैर पर हमला 90 सेकेंड से भी कम समय तक चला. "हमला होता ही रहता अगर सड़क पर मौजूद मुस्लिमों ने पथराव नहीं किया होता. तब तो जुबैर की मौत ही हो जाती." सिद्दीकी के अनुसार यहां तक कि स्थानीय हिंदू निवासीयों ने हमले को रोकने की कोशिश की. सभी ने यही बताया है कि संभवतः अपराधी बाहरी लोग थे.
"जुबैर बहुत शांत थे," सिद्दीकी ने कहा. "वह नहीं लड़ रहे थे. उन्होंने समर्पण कर दिया था. मुझे लगता है कि उन्होंने सोचा होगा कि ''बस हो गया, खेल खत्म हो गया है.'' सिद्दीकी की कुछ तस्वीरें इतनी ज्यादा भयानक थीं कि वे प्रकाशित नहीं की जा सकती. उनमें से एक में एक कुंद तलवार जुबैर के सिर के पीछे छुई हुई दिख रही थी और जहां पर तलवार जुबैर की खोपड़ी को छू रही थी वहां खून में भीगी हुई थी.
सिद्दीकी ने कहा कि वे वहां से दूर जाने लगे क्योंकि हमलावरों का ध्यान उनकी तरफ हो गया था. उन्होंने यह तस्वीर लगभग एक मीटर दूर से ली थी और उनका गैस मास्क जुबैर के खून से सना हुआ था. "मैं ऐसे प्रतिकूल माहौल के लिए प्रशिक्षित हूं," उन्होंने कहा. सिद्दीकी ने सुझाव दिया कि अगर वे प्रशिक्षित नहीं होते तो वह हमलावरों के करीब चले गए होते और फिर सबसे अधिक संभावना उनके खुद के मारे जाने की होती. (एक महीने के अंतराल में यह सिद्दीकी की दूसरी बहुचर्चित तस्वीर थी : उन्होंने 30 जनवरी को दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले एक युवक की तस्वीर भी खींची है.)
सिद्दीकी की जुबैर की ली गई तस्वीर को बदनाम करने के लिए दक्षिणपंथी सोशल-मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा लगभग तुरंत ही दुष्प्रचार अभियान शुरू किया गया था. 25 फरवरी को लेखक और स्वघोषित बीजेपी समर्थक मधु किश्वर ने जिनके लगभग 2 मिलियन फॉलोवर हैं, ने ट्वीट कर सिद्दीकी को "जेहादी" बताया. इसके तुरंत बाद तस्वीर दूर-दूर तक पहुंच गई. एक अन्य प्रकार के चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने एक पोस्टर में तस्वीर का इस्तेमाल किया और भारत में जवाबी हिंसा का आह्वान किया.
जुबैर पर हमले के बाद के दिनों में सिद्दीकी ने पत्रकारों और एक स्थानीय अस्पताल को फोन किया और उनके बारे में जानकारी मांगी. तस्वीर लेने के दो दिन बाद 26 फरवरी को सिद्दीकी ने जुबैर से मुलाकात की और हमले के दौरान बीच बचाव न करने के लिए माफी मांगी. जुबैर ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण में अपने आस-पास रहने के लिए सिद्दीकी को धन्यवाद दिया. "उनसे मिलने के बाद मुझे राहत महसूस हुई," सिद्दीकी ने कहा. "मुझे आश्चर्य है कि वह हमले में बच गए."
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद से जुबैर इंद्रलोक में जेब्रुनिशा और असलम के घर में रहने लगे. जब मैं उनसे मिला तो उनका पूरा सिर पट्टियों में ढंका हुआ था और उनकी रीढ़ और सीने में चोटें आई थीं. "जब मेरे सारे रिश्तेदारों ने तस्वीर देखी तो उन्होंने मुझे मरा हुआ समझ लिया," उन्होंने मुझे बताया. "मेरा परिवार और हमारे पड़ोसी तस्वीर को देखते हुए रोने लगे."
सोमवार की सुबह 48 वर्ष की जेब्रुनिशा ने चांद बाग में अपने परिवार से फोन पर बात की थी. परिवार वालों ने उन्हें बताया कि झड़प ने मोहल्ले को तबाह कर दिया है - सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे जा रहे थे, धरने पर बैठी औरतों को पीटा गया था और विरोध स्थल को जला दिया गया था. ठीक इसी वक्त जुबैर का अपना मोबाइल फोन अपने घर पर भूल जाना संगीन बन गया. उनका परिवार उन्हें मोहल्ले में तनावपूर्ण स्थिति और घर न आने के बारे में बता नहीं सका. जेब्रुनिशा का मानना है कि सोमवार को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला योजनाबद्ध तरीके से किया गया था क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि समुदाय के काफी सारे लोग ईदगाह जा रहे होंगे.
जैसे-जैसे हालात और बिगड़ते गए जुबैर का कहीं अता-पता नहीं चल पाया. दोपहर 3 बजे के आसपास, जेब्रुनिशा की बहन ने चांद बाग से फिर से फोन किया. चिंता और घबराहट के बीच दोनों बहनों ने अपने घरों में कुरान पढ़ने का फैसला किया. इस बीच जुबैर के भाई खालिद ने अपने पड़ोस की गलियों को खंगालना शुरू किया और जुबैर का जूता फुटपाथ पर पड़ा पाया. उन्होंने जानकारी के लिए वहां खड़े लोगों से पूछा जिन्होंने खालिद को बताया था कि सफेद कपड़े और गोल टोपी पहने एक आदमी को पीटा गया है. इससे कुछ समय पहले ही उन्हें अस्पताल से फोन आया था.
"अगर जुबैर वहां लड़ने के लिए गया होता तो क्या वह खाना और फल के बैग ले कर गया होता?" जेब्रुनिशा ने मुझसे पूछा. उसने अभी तक तस्वीरें नहीं देखी थीं. जब उनके बेटे ने उन्हें फोन पर तस्वीरे दिखाईं तो बिना चश्मा पहने उन्होंने एक हल्की सी झलक देखी. "मैंने तस्वीरों को ध्यान से नहीं देखा," उन्होंने मुझे बताया. "मैं उन्हें देखना भी नहीं चाहती."
जब हम बात कर रहे थे तो हमने खुली खिड़की से मुआदिन की आवाज सुनी. लाउडस्पीकर से संदेश में कहा गया कि क्षेत्र में साप्ताहिक हाट अगले दिन नहीं लगेगा. इंद्रलोक चांद बाग से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर है, लेकिन यहां तक भी खौफ पसरा हुआ था. पिछली रात 3 बजे जेब्रुनिशा और उनके पड़ोसियों को अफवाहों ने परेशान कर दिया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके उग्रवादी संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ता मोहल्ले में घुसने की तैयारी कर रहे हैं. चंद मिनटों में ही पूरा मोहल्ला सड़कों पर निकल आया.
जुबैर की तस्वीर के वायरल होने का एक बुरा नतीजा यह भी हुआ कि रिश्तेदारों, दोस्तों और यहां तक कि परिचितों के अंतहीन दौरे शुरू हो गए. जब मैं जुबैर का इंटरव्यू कर रहा था तो दस मेहमान उनके तंग दो-कमरे वाले अपार्टमेंट में उनसे मिलने का इंतजार कर रहे थे. जेब्रुनिशा ने मुझे बताया, "हमने इस घटना के बारे में किसी को भी नहीं बताया. सभी अपने फोन पर तस्वीर देखने के बाद मिलने आए."
उनसे मिलने आए लोगों में से एक उनके एक युवा रिश्तेदार 24 साल के मोहम्मद रेहान थे. ओखला में कपड़े की दुकान करने वाले रेहान ने एक व्हाट्सएप ग्रुप पर तस्वीर देखी थी. उन्होंने कहा, "मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. मैं एक पल में उन्हें पहचान गया." रेहान ने तुरंत अपनी दुकान के शटर गिरा दिए, परिवार को बुलाया और अस्पताल ले गए.
रेहान, जो ब्रांडेड लेवी के मोजे पहने हुए थे और परिवार के अधिक संपन्न सदस्य लग रहे थे, ने मुझे स्कूटर पर मुख्य सड़क तक लिफ्ट दी. इंद्रलोक की संकरी गलियों में पूरी कुशलता के साथ चलते हुए उन्होंने कहा, "2016 तक, मेरा व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा था नोटबंदी के बाद से बहुत मुश्किलें हो गईं." बड़े पैमाने पर गरीब, मजदूर वर्ग के समुदाय के रूप में, मुस्लिम आर्थिक रूप से जारी मंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. जुबैर भी संकट से जूझ रहे हैं. जिस कारखाने में वह काम करते थे वह बंद हो गया था और वह काम की तलाश में हैं.
रेहान अभी भी हमले से उत्तेजित थे, हालांकि उनका तरीका दोस्ताना रहा. "पहले हम चीजों को अनदेखा करते थे," उन्होंने कहा, "लेकिन अब हमें यह महसूस होना शुरू हो गया है कि अगर कहीं भी कुछ बुरा होता है तो उसका अगला शिकार हम होंगे." उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने कुछ समय पहले अपना फेसबुक अकाउंट डीएक्टिवेट कर दिया था क्योंकि देश भर में जो चल रहा था उससे वे उदास और नाराज थे. उन्होंने कहा, "हिंदुओं को लेकर कभी-कभी मुझे लगता है कि उनके दिल में हमारे खिलाफ कुछ है." अलविदा कहने से पहले रेहान ने मुझे बताया कि मुस्लिम समुदाय के भीतर हमले की स्थिति में प्रतिकार की मनोदशा है. "हम निर्दोष लोगों पर हमला नहीं करेंगे लेकिन झेलने की भी एक सीमा है," उन्होंने कहा. "हम कब तक डरते रहेंगे?"
जब मैं बुधवार रात जुबैर से मिला, तो लगभग तीन दिन हो चुके थे जब वह ईदगाह के लिए अपने घर से निकले थे. चांद बाग में उनके परिवार का कोई भी सदस्य- उनकी पत्नी, मां और भाई-बहन उत्तर पूर्वी दिल्ली में फैली उथल-पुथल और भय के कारण उनसे मिलने नहीं गए थे. जुबैर की बेटी मरियम, जो उनके तीन बच्चों में सबसे बड़ी है, वह खाना नहीं खा रही थी. उन्होंने अब भी उस तस्वीर को नहीं देखा था जो पूरी दुनिया में घूम चुकी थी. "मुझे डर है कि उस दिन की सभी दर्दनाक यादें फिर से ताजा हो जाएंगी," उन्होंने कहा.
"मुझे पता है कि आप इस स्टोरी को अपने मनमुताबिक बदल सकते हैं," जुबैर ने मुझे बिस्तर पर लेटे हुए, समुदाय के बीच मीडिया के प्रति एक परिचित अविश्वास को व्यक्त करते हुए कहा. "मेरी गुजारिश है आपसे कि जब आप मेरे बारे में लिखें, तो इसे इस तरह से लिखें कि जो कोई भी इसे पढ़े वह दहल जाए. एक साधारण आदमी जो अपने घर से बाहर निकलता है, खाना खरीदता है और अपने बच्चों के बारे में सोचते हुए घर लौट रहा हो- उसे इस तरह क्यों पीटा जाना चाहिए? ”
जुबैर मुझसे लगभग एक घंटे से बात कर रहे थे उनके चेहरे पर तनाव दिखने लगा. मैंने उनसे पूछा कि चांद बाग में अपने घर लौटने के बारे में वे क्या सोचते हैं. "मेरे अंदर बहुत डर है," उन्होंने कहा. "अब से मैं किसी पर भी भरोसा करने से पहले सौ बार सोचूंगा."
जेब्रुनिशा ने मुझे बताया कि जब खालिद ने पहली बार अपने भाई पर हमले के बारे में सुना तो वह बहुत भावुक हो गए थे. उसने हमले के अपराधियों से बदला लेने की कसम खाई, जब तक कि उन्हें बाकी परिवार ने शांत नहीं कर दिया. जब मैंने उस सुबह खालिद से बात की थी तो फोन पर उसकी आवाज कांप गई थी. "कोई मानवता नहीं बची है," उन्होंने कहा. “ऐसे तो जानवरों को भी नहीं मारते हैं."