दिल्ली हिंसा : गोली से घायल मोहम्मद नासिर के मामले की पुलिस जांच गुमराह करने वाली

दिल्ली हिंसा में एक टैक्सी ड्राइवर को बचाने के लिए निकले 33 साल के मोहम्मद नासिर को घर लौटते हुए दंगाईयों ने घेर कर सिर में गोली मारी थी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

6 जुलाई को उत्तर पूर्वी दिल्ली के उत्तरी घोंडा इलाके की गली नंबर 8 में रहने वाले मोहम्मद नासिर खान को भजनपुरा पुलिस स्टेशन से फोन आया और फोन करने वाले अधिकारी ने अगले दिन स्टेशन आ कर मिलने को कहा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में हुए कत्लेआम में नासिर की आंख में गंभीर चोट लगी थी. सात हफ्तों में कई चरणों में मेरी उनसे बातचीत हुई जिनमें उन्होंने बताया कि उनके पड़ोसी नरेश त्यागी ने उन्हें गोली मारी थी. 12 मार्च से वह भजनपुरा स्टेशन में नरेश के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने बताया कि पुलिस उनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार तो कर ही रही है और साथ ही उन्हें नरेश और उसके परिवार वाले और सहयोगी लगातार शिकायत करने पर धमका रहे हैं.

नासिर ने कहा कि 7 जुलाई को वह एएसआई राजीव शर्मा से मिले जिसने उनसे कई सवाल पूछे और नरेश के खिलाफ नासिर के आरोपों को सुना. अगली शाम भजनपुरा स्टेशन के कॉन्स्टेबल रोहित कुमार नासिर के घर आया. जब नासिर ने उससे आने का कारण पूछा तो रोहित ने कहा कि वह (नसीर की शिकायत से संबंधित) 2020 की एफआईआर नंबर 64 की एक प्रति सौंपने और उनका बयान लेने के लिए आया है. नासिर ने बताया कि रोहित ने उनका बयान नोट किया और उसने यह भी बताया कि एफआईआर पर पहले ही आरोप पत्र दायर हो चुका है. रोहित ने यह नहीं बताया कि पुलिस ने पीड़ित का बयान दर्ज किए बिना आरोप पत्र कैसे दायर कर दिया. नासिर ने शर्मा सहित 12 मार्च से 7 जुलाई के बीच कम से कम पांच अलग-अलग मौकों पर दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी. नासिर ने हमें बताया कि शुरू में ऐसा लगा था कि पुलिस उनकी शिकायत पर कार्रवाई कर रही है लेकिन जब उन्होंने एफआईआर देखी तो वह दंग रह गए.

कारवां के पास मौजूद एफआईआर की कॉपी के अनुसार उसे 25 फरवरी को लगभग 11 बजे भजनपुरा स्टेशन में दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी अशोक कुमार एएसआई हैं. एफआईआर में दो समूहों के बीच झड़प का जिक्र है, जिन्होंने पथराव और गोलीबारी की थी. इसमें नासिर समेत सात लोगों का जिक्र है, जो हिंसा के दौरान कथित तौर पर घायल हुए थे, साथ ही उनके मेडिको लीगल सर्टिफिकेट नंबर भी हैं. कई पुलिस अधिकारियों को भेजे गए प्रश्नों के बावजूद दिल्ली पुलिस ने इस बारे में सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी कि उसने नासिर को चार महीने से अधिक समय तक एफआईआर के बारे में सूचित क्यों नहीं किया और शिकायत दर्ज कराने की कोशिश में बार-बार चक्कर लगाने के बावजूद किसी अधिकारी ने उनका बयान क्यों नहीं लिया. 8 जुलाई को दिल्ली पुलिस ने एफआईआर के संबंध में हमें लिखा, "जांच के दौरान पांच आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है." लेकिन पुलिस ने यह नहीं बताया कि 7 जुलाई तक पीड़ित से पूछताछ किए बिना ये गिरफ्तारियां कैसे हो गईं.

जब नासिर ने रोहित से वही सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी राहुल कुमार ने नासिर से गुरु तेग बहादुर अस्पताल में बात की थी. नासिर को 24 फरवरी की रात को अचेतावस्था में जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. नासिर और उनके परिवार ने इस दावे का दृढ़ता से खंडन किया और हमें बताया कि नासिर के अस्पताल में रहने के दौरान एक बार भी किसी पुलिस अधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया. नसीर को 11 मार्च को जीटीबी से छुट्टी दे दी गई थी. इसके बाद रोहित ने नासिर को जांच अधिकारी से बात करने को कहा. उसने भी इस दावे को दोहराया. नासिर ने हमें बताया कि उन्होंने स्पष्ट रूप से राहुल से कहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं और उनके परिवार में किसी को भी जीटीबी में रहते हुए उनकी शिकायत दर्ज करने वाले पुलिस की याद नहीं है. नासिर ने कहा,"मैंने उनसे (राहुल) 8 जुलाई को पहली बार बात की. अस्पताल में पुलिस अगर मुझसे बात करती तो क्या मैं चार महीने तक अपनी शिकायत दर्ज करवाने के लिए इधर-उधर दौड़ता रहता? वे मुझसे कैसे बात कर सकते थे? मैं पहले तीन दिन तक तो बेहोश था और वे कहते हैं कि उन्होंने 25 तारीख को एफआईआर दर्ज कराई.” राहुल से संपर्क करने के कई प्रयासों के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

एफआईआर में कहा गया है कि जीटीबी में घायलों से अनुमति लेने के बाद शिकायत दर्ज की गई थी लेकिन घायलों में से कोई भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आया इसलिए पुलिस ने खुद आगे बढ़कर एफआईआर दर्ज की. इसके अलावा एफआईआर में कई अन्य विसंगतियां भी हैं. नासिर पर हमला जानलेवा था, लेकिन एफआईआर में हत्या की कोशिश का अपराध शामिल नहीं है. इसके अलावा, नसीर द्वारा सुनाई गई घटनाओं का क्रम एफआईआर की तुलना में बेतहाशा भिन्न है. पुलिस ने दावा किया कि वह घायलों को अस्पताल ले गई जबकि नासिर के परिवार के पास सबूत हैं कि मामला ऐसा नहीं था. यहां तक कि नासिर पर हमले का स्थान भी गलत है और पुलिस के संस्करण से लगता है कि नासिर उग्र भीड़ का हिस्सा थे, जबकि प्रत्यक्षदर्शी और अन्य सबूत इससे उलट बात बताते हैं.

यह बताना उचित होगा कि 5 जुलाई को जब पुलिस ने नासिर से पहली बार संपर्क किया उससे एक दिन पहले, कारवां ने दिल्ली पुलिस के कई अधिकारियों से संपर्क किया था जिसमें नासिर के मामले और पुलिस की कथित निष्क्रियता के बारे में विशिष्ट प्रश्न थे. 8 जुलाई को रोहित के नासिर के घर आने के बाद संयोग से दिल्ली पुलिस पीआरओ की प्रतिक्रिया कारवां को मिली. 17 जुलाई को भजनपुरा स्टेशन के वर्तमान स्टेशन हाउस ऑफिसर अशोक शर्मा ने हमें बताया कि हमें नासिर को अगले दिन रात 8 बजे पुलिस स्टेशन आने के लिए कहना चाहिए, ताकि वह नासिर की शिकायतों को सुन सकें. अशोक ने कहा कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है क्योंकि वह कुछ दिन पहले ही स्टेशन आए थे. 21 जुलाई को दिल्ली पुलिस को भेजे गए अन्य प्रश्नों के चलते, 22 जुलाई को राजीव ने नासिर को कई कॉल किए.

जब हम पहली बार 3 जून को 33 वर्षीय नासिर से उनके घर पर मिले, तो हमें अगले दरवाजे पर एक मंदिर दिखाई नहीं दिया, जो उनकी इमारत के साथ की दीवार से लगा हुआ है. बाद में जब वह हमें एक बालकनी में ले गए, तब जाकर हमें मंदिर की मीनार दिखी. नासिर और उनके परिवार को आश्चर्य हुआ जब उन्होंने हमारे आश्चर्य को देखा. "यह पूरा मोहल्ला मुस्लिम है, यह पूरी गली भी और यह मंदिर एक दशक से अधिक समय से यहां है," नसीर के पिता अब्दुल गलिल खान ने मुझे बताया. 24 फरवरी को पहली बार शुरू हुई झड़प, जिसे दिल्ली दंगों के रूप में संदर्भित किया गया, के बारे में जिले भर से रिपोर्ट आ रही थीं, उत्तरी घोंडा इलाका विशेष रूप से प्रभावित था. उस दिन नासिर पर हमला हुआ था और उनके परिवार ने हमें बताया कि उनके पास पड़ोस के कई इलाकों में रात भर हिंसा हुई. "हम बता सकते थे कि कुछ होने वाला है, लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे इलाके में कुछ होगा. मुझे यहां 20 साल हो गए हैं… सभी लोग शांति से रहते थे, यह सोचना भी नामुमकिन था कि ऐसा भी हो सकता है.” खान ने कहा, "हम कभी सुरक्षित नहीं रह सकते, चाहे हम कहीं भी जाएं."

नासिर ने उस दिन के बारे में बात करते हुए अपनी चोटें दिखाने के लिए जब अपना धूप का चश्मा उतारा तो हमने देखा कि बंदूक की गोली ने उनकी बाईं आंख को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था और उनकी आंख पर प्लास्टिक सर्जरी के निशान और दाग थे. वह राष्ट्रीय कैडेट कोर की दिल्ली नौसेना इकाई में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में कार्यरत हैं. "मुझे उम्मीद है कि आंख प्रत्यारोपण के बाद मैं दुबारा से देख सकूंगा," उन्होंने आशा जताई.

नासिर ने बताया कि 24 फरवरी की दोपहर करीब 2.45 बजे वह और उनकी बहन ओला टैक्सी में शालीमार बाग से घर वापस आ रहे थे. "जब हम आधे रास्ते में थे मुझे घर से एक फोन आया और उन्होंने कहा कि वापस मत आना." नासिर ने कहा कि चूंकि घर करीब था और कहीं और जाने का कोई रास्ता भी नहीं था इसलिए उन्होंने पीछे ना मुड़ने का फैसला किया.

नसीर ने कहा कि दोपहर करीब 3.10 बजे वह उत्तर घोंडा से लगभग तीन किलोमीटर दूर खजूरी खास के इलाके में पहुंचे. "खजूरी खास जल रहा था और सिग्नेचर ब्रिज के करीब एक पुलिस बैरिकेड था." खजूरी खास से उत्तर घोंडा जाने के लिए एक पुल को पार करना पड़ता है. नासिर ने मुझे बताया, "ड्राइवर एक वैकल्पिक मार्ग जानता था और हमें वहां से ले गया." नसीर ने कहा कि जैसे-जैसे वह घर के करीब पहुंचते गए, उन्हें दंगों के ज्यादा संकेत और झड़प कर रहे लोगों के समूह दिखाई देने लगे. उन्होंने कहा कि इससे पहले कि वह अपनी लेन की ओर जाती सड़क पर पहुंचते उन्होंने ड्राइवर को कार रोकने के लिए कहा और अपनी बहन से बुर्का उतार कर छिपा लेने को.

नासिर ने मुझे बताया कि उसके तुरंत बाद एक भीड़ ने उनकी कार को जबरदस्ती रोक दिया. “मैंने ऐसे ही कोई नाम बताया और उनसे कहा कि मैं हिंदू हूं. मैंने भीख मांगी और उनसे विनती की. मैंने उन्हें बताया कि मेरी बहन मरीज है. और उन्होंने हमें जाने दिया.” नासिर ने कहा कि उन्हें घर पहुंचने में लगभग सत्तर मिनट का समय लगा. अस्पताल उनके निवास से सोलह किलोमीटर दूर है और आने-जाने में आमतौर पर चालीस मिनट लगते हैं. लगभग 4 बजे तक वह अपनी गली के मुहाने पर पहुंच गए और नासिर ने कहा कि उन्होंने टैक्सी को गली की ओर जाने वाली सड़प पर पार्क किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने ड्राइवर को अपने साथ अपने घर आने के लिए कहा क्योंकि "उस जगह से निकलना किसी के लिए भी सुरक्षित नहीं था."

जल्द ही ड्राइवर को अपने परिवार के सदस्यों से अंधाधुंध फोन कॉल आने लगे और उसने नसीर से पूछा कि क्या वह उसे अपनी टैक्सी तक छोड़ सकता है. नासिर ने कहा कि करीब 6 बजे वह ड्राइवर के साथ उसे पड़ोस से बाहर निकलने में मदद करने के लिए निकले. “मुझे लगता है कि मुझे अपने पड़ोसियों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे अपने पड़ोसी मुझे चोट पहुंचा सकते हैं.” नसीर ने बताया कि वह ड्राइवर को लेकर छोटी-छोटी गलियों से होकर गुजरने लगे और देखा कि “हर तरफ दंगे हो रहे थे. तब तक मैं समझ चुका था कि अपने घर से निकल मैंने गलती की है. लेकिन मुझे उसे बाहर निकालना पड़ा क्योंकि उसने हमें घर तक पहुंचाया था.” नासिर ड्राइवर के साथ गोकुलपुरी फ्लाईओवर तक गए जो नासिर के घर से लगभग चार किलोमीटर दूर है. उन्होंने बताया कि वह घर आने के लिए वापस मुड़े ही थे कि मुश्किल से 200 मीटर नीचे सड़क पर, उन्होंने देखा कि हिंसा फ्लाईओवर के नीचे मुख्य सड़क तक पहुंच गई थी. नसीर ने हमें बताया कि उन्होंने तब एक परिचित व्यक्ति को देखा, जो हिंदू थे, जिन्होंने उन्हें पास के एक अन्य इलाके विजय पार्क तक लिफ्ट देने की पेशकश की. वहां से नासिर का घर दो किलोमीटर से भी कम दूरी पर था.

"जैसे ही मैं अपने रास्ते हुआ मैंने इधर-उधर भागते हुए लोगों की भीड़ देखी जो कहर बरपा रही थी. मुझे पता था कि मैं पकड़ा गया तो बचूंगा नहीं.” उन्होंने कहा कि वह पतली-पतली गलियों से गुजरे लेकिन अक्सर सुरक्षित मार्ग खोजने के लिए उन्हें वापिस भी लौटना पड़ता. अपने पड़ोस में दो किलोमीटर की दूरी तय करने में उन्हें लगभग नब्बे मिनट लगे. नासिर ने हमें बताया कि लगभग 8.45 बजे वह अपने घर से मुश्किल से दो गली दूर थे जब उन्होंने देखा कि “भीड़ पुलिस बैरिकेड के पास थी. मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई पुलिस देखी. मुझे नहीं पता कि वे क्या कर रहे थे." अब तक लगभग रात के 9 बज चुके थे और नासिर ने बताया कि जब वह अपने घर से 50 मीटर की दूरी पर पहुंचे तो भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.

नासिर ने कहा कि समूह के कुछ लोग हेलमेट पहने हुए थे और वे सभी “जय श्री राम” का नारा लगा रहे थे और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नारा लगा रहे थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ लोगों को पहचाना जो उन्हें मार रहे थे. वे पड़ोस के इलाकों और गलियों से थे. नासिर ने अपने पड़ोस के कम से कम छह लोगों का नाम लिया, जिनके बारे में उन्होंने बताया कि वे सभी हिंसा में सक्रिय रूप से शामिल थे. “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझ पर अपने घर के पास इस तरह से हमला हो सकता है. मुझे इन सभी लोगों पर, अपने सभी पड़ोसियों पर भरोसा था.” भीड़ में से एक आदमी, जिसे वह नहीं पहचानते थे, ने उससे कहा, “हम तुम्हें डिटेंशन सेंटरों में फेंकने जा रहे थे लेकिन अब हमें लगता है कि तुम इसके लायक नहीं हो. यह पूरा इलाका साफ हो जाएगा.” एक अन्य चिल्लाया, "हम एक हिंदू राष्ट्र हैं और यही बने रहेंगे." उन्होंने कहा कि जब भी वे लोग मारते तो उसका जश्न मनाते.

"मैंने उन्हें बताया कि मैं यहीं का रहने वाला हूं, लेकिन उन्होंने मेरी एक ना सुनी. मैंने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की कि मैं पड़ोसी हूं और यहां हर कोई मुझे जानता था.” नासिर ने कहा कि मिनटों के भीतर एक और भीड़ वहां पहुंच गई. “यह बहुत अधिक हिंसक थी. उनके पास लोहे की छड़ें, हथौड़े और पिस्तौलें थीं. उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया और फिर मुझे जमीन पर धकेल दिया.” नासिर ने कहा कि फिर नरेश ने उन्हें गोली मारी. नासिर के मुताबिक, त्यागी परिवार के ज्यादातर पुरुष उस दिन दंगों में सक्रिय रूप से शामिल थे. “नरेश, सुभाष और उत्तम त्यागी, ये सभी वहां मौजूद थे. उन्होंने मुझे प्रताड़ित किया और नरेश ने गोली चलाई.”

हालांकि, एफआईआर में घटनाओं का वर्णन अलग तरह से दर्ज है. एफआईआर में दावा किया गया है कि रात 9 बजे के आसपास प्रदर्शनकारियों के दो समूह के बीच टकरावा हुआ, जिनमें से एक घोंडा का था. माना जाता है कि एक हिंदू भीड़ थी और दूसरा नूर-ए-इलाही की, जो कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों का एक समूह था. एफआईआर के अनुसार, जैसे ही झड़प हिंसक हो गई समूहों ने पथराव किया और आपस में गोलीबारी की. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने और हिंसा को कम करने के लिए लाउडस्पीकर (पीए सिस्टम) का इस्तेमाल किया. कम से कम दो चश्मदीद गवाहों- दोनों ने नाम ना प्रकाशित करने का आग्रह किया- ने हमें बताया कि घोंडा क्षेत्र में कोई पुलिस मौजूद नहीं थी और कोई पीए सिस्टम भी नहीं था. नासिर ने भी इस बात की पुष्टि की. एक प्रत्यक्षदर्शी ने दावा किया कि घोंडा के पास हिंसा की शुरुआती लहर के बारे में सुनकर 8 बजे दुकानें बंद होनी शुरू हो गईं. दोनों चश्मदीदों ने कहा कि हिंदुओं की भीड़ सड़कों पर घूम रही थी और लोगों के साथ अभद्रता कर रही थी. उनमें से एक ने कहा, “वे चारों ओर भाग रहे थे और वे जो चाहते थे, कर रहे थे. अगर पुलिस वहां होती, तो क्या आपको लगता है कि किसी को भी गोली मारी जाती? ”

कम से कम दो अन्य प्रत्यक्षदर्शियों, जिन्होंने नाम ना प्रकाशित करने का आग्रह किया, ने नासिर के बयान की पुष्टि की और कहा कि नरेश ने ही नासिर को उनके घर के करीब गोली मारी थी. हालांकि, एफआईआर यह सुझाते हुए कि नासिर विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे और दो टकराव समूहों के बीच जवाबी गोलीबारी में घायल हो गए, कहती है कि नासिर को मोहनपुरी,मौजपुर में कम से कम 600 मीटर की दूरी पर गोली लगी.

गोली नासिर के चेहरे के बाईं ओर से निकली. “जैसे ही गोली चली, भीड़ तितर-बितर हो गई. मैं कुछ मिनटों के लिए मैदान पर ही पड़ा था लेकिन फिर मैं उठकर अपने घर जा पाया.” उनके एक पड़ोसी रिक्शा चालक ने उन्हें लगभग छह किलोमीटर दूर दिलशाद गार्डन में जीटीबी अस्पताल ले जाने की पेशकश की. नसीर के पिता खान ने मुझे बताया कि उनके रास्ते पर, “रिक्शा पर चारों तरफ से हमला हुआ. लोग लाठी, हथौड़े और जो कुछ भी वे पा सकते थे, चला रहे थे. लेकिन वह इतनी तेजी से रिक्शा चला रहा था कि कोई बात नहीं हुई. मुझे नहीं लगता कि कोई भी उसे रोक सकता था. हमारे चारों ओर पेट्रोल बम और देसी बम थे. उन्होंने हर चीज से हमला किया.''

हालांकि एफआईआर में दावा किया गया है कि पुलिस घायलों को अस्पताल ले गई. नासिर और उनके परिवार ने इस दावे को खारिज कर दिया. उन्होंने अपने फोन कॉल के स्क्रीनशॉट पुलिस हेल्पलाइन नंबरों पर साझा किए. उनके पड़ोसी ने नासिर को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने से पहले परिवार को तीस मिनट में कम से कम पांच बार फोन किया था.

नासिर का कई दिनों तक जीटीबी अस्पताल में इलाज चला. “मैं पूरे समय बेहोश था. मुझे बचाने और बाहर निकालने के लिए मैं खुदा का शुक्रिया अदा करता हूं. लेकिन मुझे न्याय चाहिए,” नसीर ने मुझसे कहा. एफआईआर का उल्लेख करते हुए कि पीड़ितों में से किसी ने भी शिकायत नहीं की, नासिर ने मुझसे पूछा, “मैं बेहोश था, मैं अपना बयान कैसे दर्ज कराता? और जब मैंने अपना बयान दर्ज कराने की कोशिश की, तो वे मुझे चुप कराते रहे.” उन्हें आंख की सर्जरी भी करनी पड़ी और एक न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लेनी पड़ी. उन्हें अभी भी लगातार चक्कर आते हैं और दर्द से जूझ रहे है. नासिर दो सेंटीमीटर से ज्यादा अपना मुंह नहीं खोल सकते हैं.

नासिर ने क्षेत्र के नागरिकों का मतिभ्रम करने के लिए मीडिया और सोशल-मीडिया मंचों को दोषी ठहराया. “भीड़ में कुछ युवाओं मैं पहचानता हूं लेकिन मैं उनका नाम नहीं लूंगा. उनके पास खुद को सुधारने का मौका है लेकिन दूसरों का नाम लेने में मैं संकोच नहीं करूंगा.” नासिर से बात करते-करते हम उनके रहने वाले कमरे में आ गए. कमरा बाहर की ओर खुलता है. आते-जाते लोगों ने जब देखा कि इंटरव्यू चल रहा है, तो कई स्थानीय लोग रुक गए.

नासिर ने कहा कि हिंसा के बाद से उनके और उनके परिवार को लगातार पड़ोस के कुछ हिंदू द्वारा धमकाया गया है, जिसमें त्यागी परिवार भी शामिल है. उन्होंने कहा कि हिंसा के बाद के पखवाड़े भर में उन्हें सबसे ज्यादा धमकियां मिलीं. नासिर ने हमें बताया कि ये लोग खान के जूस के स्टाल पर आने लगे. "दंगों के ठीक बाद जब स्टाल खुला और लॉकडाउन से ठीक पहले, वे आए और पूछा कि 'तुम्हारा बेटा कैसा है? 'उसकी आंख ठीक है?'' एक बार स्टार के पास वे काफी सारे इकट्ठा हुए और उन्हें धमकाने की कोशिश की.'' नासिर ने कहा कि त्यागी परिवार के कई सदस्यों ने उन्हें सड़क पर टोका,उन्हें उनकी चोटों की याद दिलाई, और कहा, "औकात में रहो". "इस साल पहली बार होली के दौरान (10 मार्च) वे हमारे घर के बाहर आए और 'जय श्री राम' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए."

नासिर ने बताया कि मार्च के दूसरे और तीसरे सप्ताह के बीच, उन्हें त्यागी परिवार के सदस्यों ने उन्हें पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करने की धमकी दी. “उन्होंने कहा कि उनके राजनीतिक कनेक्शन हैं. उन सभी ने बताया कि उनके रिश्तेदार डीसीपी, एसएचओ या कुछ और हैं." नासिर ने मुझे बताया कि उन्हें सटीक तारीख याद नहीं है लेकिन एक अन्य अवसर पर सुभाष ने उन्हें चेतावनी दी कि "अगर हम तुम्हारे साथ ऐसा कर सकते हैं तो सोचो कि तुम्हारे परिवार के साथ क्या कर सकते हैं."

गौरतलब है कि 9 अप्रैल को नरेश और उत्तम त्यागी को दिल्ली पुलिस ने 25 फरवरी को उत्तरी घोंडा में एक बुजुर्ग मुस्लिम की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी बुजुर्ग व्यक्ति के बेटे साहिल परवेज द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर की गई थी. परवेज ने भी 19 मार्च को ईदगाह राहत शिविर में पुलिस हेल्प-डेस्क पर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. द क्विंट की एक जांच के अनुसार, सुभाष, नरेश और उत्तम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य हैं. नासिर ने मुझे बताया कि वह ''साहिल के पिता को जानते थे. वह एक महान व्यक्ति थे जो एक एनजीओ चलाते थे और यहां के समुदाय के लिए बहुत काम किया.”

पूरे परिवार का पुलिस से भरोसा उठ गया है. उन्होंने कहा कि उन्हें प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला. नसीर ने कहा, "मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं और मुझे सिस्टम पर थोड़ा भरोसा था लेकिन अब सब खत्म हो गया है." उन्होंने हमें बताया कि छुट्टी मिलने के कुछ दिनों बाद वह पहली बार भजनपुरा पुलिस स्टेशन गए. "मैं एक कम रैंकिंग वाले पुलिस अधिकारी से मिला जिसने मुझे बताया कि कोई मेरे घर आएगा और मुझसे बात करेगा." उन्हें अधिकारी का नाम नहीं पता था. नासिर ने कहा कि उन्होंने कुछ दिन इंतजार किया लेकिन कोई नहीं आया इसलिए उन्होंने 18 मार्च को पुलिस को अपनी पहली शिकायत लिखी. शिकायत घोंडा पुलिस स्टेशन में एसएचओ को संबोधित है.

नासिर ने बताया कि अगले दिन, वह मुस्तफाबाद में हिंसा के पीड़ितों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए ईदगाह राहत शिविर में बने पुलिस हेल्प-डेस्क में शिकायत की एक प्रति ले गए. नसीर ने हमें बताया कि एक एएसआई वहां मौजूद था और लोगों की शिकायतें सुन रहा था. “उसने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया और कहा कि वह मुझे जानता था और कहता रहा कि 'हम आपकी शिकायत के बारे में देखेंगे' और फिर उसने अपना बिल्ला छिपा लिया.'' नासिर ने कहा कि एक वकील, जो लोगों की मदद कर रहा था, उसने यह देखा और हस्तक्षेप किया. "उसने मेरी शिकायत पर एएसआई की मोहर लगाई और शिकायत को स्वीकार कराया और उसकी पावती की एक प्रति मुझे दी."

नसीर ने कहा कि अगले चार हफ्तों में उन्होंने अपनी शिकायत की प्रगति के बारे में पूछताछ करने के लिए स्टेशन को फोन किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. एक महीने बाद, 18 अप्रैल को, नासिर ने भजनपुरा पुलिस स्टेशन में एसएचओ को एक और शिकायत भेजी. उन्होंने मुझे बताया कि कोविड-19 लॉकडाउन के कारण उन्होंने इसे डाक से भेजा. 20 अप्रैल को पुलिस स्टेशन ने शिकायत को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसे वापस भेज दिया. इन दोनों शिकायतों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री, अरविंद केजरीवाल, केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी भेजा गया.

नासिर ने कहा कि मई के महीने में वह भजनपुरा के तत्कालीन एसएचओ आरएस मीणा का फोन नंबर पाने में कामयाब हुए. उन्होंने कहा कि उन्होंने मीणा से फोन पर बात की, जिन्होंने उन्हें बताया कि कोविड-19 लॉकडाउन के कारण कुछ भी नहीं किया जा सकता है. 20 मई को नासिर मीणा से मिलने गए. उन्होंने कहा कि मीणा ने तालाबंदी के उसी बहाने को दोहराया.“जब मुसलमान उनके पास जाते हैं, तो वे उन्हें भेज देते हैं और जब कोई और जाता है, जिसका दंगों से लेना-देना हो या ना हो, उनकी बात सुनी जाती है. पुलिस वाले हमें दबाने की कोशिश कर रहे हैं, वे हमें तोड़ रहे हैं.” उन्होंने कहा कि जब वह भजनपुरा स्टेशन पर गए, तो पुलिस हर किसी को पानी और बिस्कुट परोस रही थी लेकिन उनकी अनदेखी की. "उन्होंने मुझे पुलिस स्टेशन से वापिस भेज दिया और मुझसे कहा कि कोई भी एफआईआर नहीं करेगा." मीणा ने भी एफआईआर नंबर 64 के बारे में नासिर को सूचित नहीं किया. मीणा को भजनपुरा स्टेशन से स्थानांतरित कर दिया गया है और उनका पता नहीं लगाया जा सका है.

जब नासिर ने जोर देकर कहा कि एफआईआर में आरोपियों के नाम जोड़े जाने चाहिए तो कांस्टेबल रोहित कुमार ने नासिर को बताया था कि त्यागी को एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया है. नासिर ने हमें बताया कि जब उन्होंने रोहित से पूछा कि "मेरे मामले के साथ उस मामले की प्रासंगिकता क्या है, तो उन्होंने बात इधर-उधर करनी शुरू कर दी." दिल्ली पुलिस पीआरओ ने भी उसी तरह जवाब दिया. पीआरओ प्रतिक्रिया में कहा गया है, "यह उल्लेख करना उचित है कि कथित व्यक्तियों को पहले ही अपराध शाखा द्वारा एफआईआर संख्या 52/20 पीएस जाफराबाद में एक अन्य मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है." जब नासिर ने रोहित से पूछा कि एफआईआर में हत्या के प्रयास की धारा 307 क्यों नहीं जोड़ी गई, तो कुमार ने हामी भरी और कहा कि वह इसे जोड़ देगा. इसके अलावा रोहित ने नासिर को बताया था कि मामले में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है. तब नासिर ने रोहित से पूछा, "अगर चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है तो आप मेरा बयान क्यों ले रहे हैं?" नासिर ने कहा कि कांस्टेबल ने उसे बताया कि एक बयान से नासिर को मुआवजा पाने में मदद मिलेगी. पुलिस ने अभी तक चार्जशीट की प्रति नासिर या हमें नहीं दी है.

5 जुलाई की सुबह हम नासिर के इलाके में वापिस गए. हिंसा के दौरान इलाके का जो हाल हुआ था उसके निशान अब भी दिखाई दे रहे थे. कई होर्डिंगों में अब भी जलने और धुंए के निशान थे. जली हुई गाड़ियों की राख अभी भी फैली है. वहां की दीवारों पर सीएए विरोधी चित्र बने थे और नारे लिखे हुए थे.

जैसे ही हम नसीर की गली में घुसे मास्क पहने पांच लोग हमारे पीछे चलने लगे. जब हम पड़ोस के कुछ इलाकों की तस्वीर लेने के लिए छत पर चढ़े, तो नीचे के पांच लोग हमें पुकारने लगे. “फरवरी में यहां कुछ भी नहीं हुआ. यह सब झूठ है. किसी ने भी यहां पर कोई गोली नहीं चलाई है,” उनमें से एक ने कहा. जब हमने उन्हें बताया कि हमने फरवरी के दौरान हिंसा की रिपोर्ट की थी और हमारे पास खुद रिकॉर्ड की गई फुटेज हैं, तब भी उन्होंने जोर देकर कहा कि इस इलाके में कोई हिंसा नहीं हुई है. जब हम छत से नीचे उतरे, तब तक पांच लोग बढ़कर लगभग तीस हो गए थे.

एक महिला, जिसने अपना नाम कनिका बताया, ने बताया कि हम पक्षपाती हैं. परवेज के मामले में गिरफ्तारियों का उल्लेख करते हुए उसने कहा, "उन्होंने 16 निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया है. और यह आपकी वजह से हुआ है." उसने कहा, "यह आरएसएस को निशाना बनाने वाले मुसलमान हैं और यह आरएसएस के खिलाफ एक साजिश है." अब तक लगभग चालीस लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. उनमें से कुछ ने चिल्ला कर कहा कि मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की बातें "मुसलमानों की एक साजिश है." हमने भीड़ को शांत किया और वहां से चले गए.

जब हम पहली बार नासिर से मिले, तो वह हमें प्रभावित इलाकों को दिखाने के लिए इलाके भर में ले गए. वह अपनी कॉलोनी में बहुत लोकप्रिय लग रहे थे. उत्तरी घोंडा की पतली, संकरी गलियों में कई लोगों ने उन्हें दुआ सलाम किया. नासिर ने कहा कि 5 जुलाई को, हमारे जाने के बाद, भीड़ फिर अपने घर चली गई और मीडिया को इलाके में लाने के लिए, परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया. उस रात नासिर ने अपने पांच लोगों के परिवार को एक अज्ञात स्थान पर स्थानांतरित कर दिया और एक दिन बाद वहां वापिस आए जब इलाका शांत हो गया था. उन्होंने हमें बताया, "पहले धर्म इतना मायने नहीं रखता था लेकिन अब मुझे लगता है कि चीजें बदल गई हैं."