6 जुलाई को उत्तर पूर्वी दिल्ली के उत्तरी घोंडा इलाके की गली नंबर 8 में रहने वाले मोहम्मद नासिर खान को भजनपुरा पुलिस स्टेशन से फोन आया और फोन करने वाले अधिकारी ने अगले दिन स्टेशन आ कर मिलने को कहा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में हुए कत्लेआम में नासिर की आंख में गंभीर चोट लगी थी. सात हफ्तों में कई चरणों में मेरी उनसे बातचीत हुई जिनमें उन्होंने बताया कि उनके पड़ोसी नरेश त्यागी ने उन्हें गोली मारी थी. 12 मार्च से वह भजनपुरा स्टेशन में नरेश के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने बताया कि पुलिस उनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार तो कर ही रही है और साथ ही उन्हें नरेश और उसके परिवार वाले और सहयोगी लगातार शिकायत करने पर धमका रहे हैं.
नासिर ने कहा कि 7 जुलाई को वह एएसआई राजीव शर्मा से मिले जिसने उनसे कई सवाल पूछे और नरेश के खिलाफ नासिर के आरोपों को सुना. अगली शाम भजनपुरा स्टेशन के कॉन्स्टेबल रोहित कुमार नासिर के घर आया. जब नासिर ने उससे आने का कारण पूछा तो रोहित ने कहा कि वह (नसीर की शिकायत से संबंधित) 2020 की एफआईआर नंबर 64 की एक प्रति सौंपने और उनका बयान लेने के लिए आया है. नासिर ने बताया कि रोहित ने उनका बयान नोट किया और उसने यह भी बताया कि एफआईआर पर पहले ही आरोप पत्र दायर हो चुका है. रोहित ने यह नहीं बताया कि पुलिस ने पीड़ित का बयान दर्ज किए बिना आरोप पत्र कैसे दायर कर दिया. नासिर ने शर्मा सहित 12 मार्च से 7 जुलाई के बीच कम से कम पांच अलग-अलग मौकों पर दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी. नासिर ने हमें बताया कि शुरू में ऐसा लगा था कि पुलिस उनकी शिकायत पर कार्रवाई कर रही है लेकिन जब उन्होंने एफआईआर देखी तो वह दंग रह गए.
कारवां के पास मौजूद एफआईआर की कॉपी के अनुसार उसे 25 फरवरी को लगभग 11 बजे भजनपुरा स्टेशन में दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी अशोक कुमार एएसआई हैं. एफआईआर में दो समूहों के बीच झड़प का जिक्र है, जिन्होंने पथराव और गोलीबारी की थी. इसमें नासिर समेत सात लोगों का जिक्र है, जो हिंसा के दौरान कथित तौर पर घायल हुए थे, साथ ही उनके मेडिको लीगल सर्टिफिकेट नंबर भी हैं. कई पुलिस अधिकारियों को भेजे गए प्रश्नों के बावजूद दिल्ली पुलिस ने इस बारे में सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी कि उसने नासिर को चार महीने से अधिक समय तक एफआईआर के बारे में सूचित क्यों नहीं किया और शिकायत दर्ज कराने की कोशिश में बार-बार चक्कर लगाने के बावजूद किसी अधिकारी ने उनका बयान क्यों नहीं लिया. 8 जुलाई को दिल्ली पुलिस ने एफआईआर के संबंध में हमें लिखा, "जांच के दौरान पांच आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है." लेकिन पुलिस ने यह नहीं बताया कि 7 जुलाई तक पीड़ित से पूछताछ किए बिना ये गिरफ्तारियां कैसे हो गईं.
जब नासिर ने रोहित से वही सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी राहुल कुमार ने नासिर से गुरु तेग बहादुर अस्पताल में बात की थी. नासिर को 24 फरवरी की रात को अचेतावस्था में जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. नासिर और उनके परिवार ने इस दावे का दृढ़ता से खंडन किया और हमें बताया कि नासिर के अस्पताल में रहने के दौरान एक बार भी किसी पुलिस अधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया. नसीर को 11 मार्च को जीटीबी से छुट्टी दे दी गई थी. इसके बाद रोहित ने नासिर को जांच अधिकारी से बात करने को कहा. उसने भी इस दावे को दोहराया. नासिर ने हमें बताया कि उन्होंने स्पष्ट रूप से राहुल से कहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं और उनके परिवार में किसी को भी जीटीबी में रहते हुए उनकी शिकायत दर्ज करने वाले पुलिस की याद नहीं है. नासिर ने कहा,"मैंने उनसे (राहुल) 8 जुलाई को पहली बार बात की. अस्पताल में पुलिस अगर मुझसे बात करती तो क्या मैं चार महीने तक अपनी शिकायत दर्ज करवाने के लिए इधर-उधर दौड़ता रहता? वे मुझसे कैसे बात कर सकते थे? मैं पहले तीन दिन तक तो बेहोश था और वे कहते हैं कि उन्होंने 25 तारीख को एफआईआर दर्ज कराई.” राहुल से संपर्क करने के कई प्रयासों के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
एफआईआर में कहा गया है कि जीटीबी में घायलों से अनुमति लेने के बाद शिकायत दर्ज की गई थी लेकिन घायलों में से कोई भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आया इसलिए पुलिस ने खुद आगे बढ़कर एफआईआर दर्ज की. इसके अलावा एफआईआर में कई अन्य विसंगतियां भी हैं. नासिर पर हमला जानलेवा था, लेकिन एफआईआर में हत्या की कोशिश का अपराध शामिल नहीं है. इसके अलावा, नसीर द्वारा सुनाई गई घटनाओं का क्रम एफआईआर की तुलना में बेतहाशा भिन्न है. पुलिस ने दावा किया कि वह घायलों को अस्पताल ले गई जबकि नासिर के परिवार के पास सबूत हैं कि मामला ऐसा नहीं था. यहां तक कि नासिर पर हमले का स्थान भी गलत है और पुलिस के संस्करण से लगता है कि नासिर उग्र भीड़ का हिस्सा थे, जबकि प्रत्यक्षदर्शी और अन्य सबूत इससे उलट बात बताते हैं.
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