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24 फरवरी को शाम करीब 6 बजे उत्तर-पूर्वी दिल्ली के हिंदू बहुल इलाके यमुना विहार में फहान इंटरनेशनल स्कूल के पास खड़े दिल्ली पुलिस के 10 कांस्टेबल वजीराबाद रोड पर खड़ी मुस्लिम प्रदर्शनकारियों की भीड़ को दौड़ा रहे थे. वहां रहनेवालों ने बताया कि उस दिन सुबह 11 बजे के बाद से इस सड़क पर नागरिकता (संशोधन) कानून का विरोध करने वाले एक मुस्लिम समूह और पुलिस कर्मियों के साथ खड़ी हिंदू भीड़ के बीच हिंसक झड़पें हो रही थीं. हिंदू दंगाइयों में किशोर, युवा और तोंदल गुंडे थे, जिनके हाथों में लोहे की छड़ें, लकड़ी के फट्टे और ईंटें थीं. कम से कम आधे घंटे के पथराव के बाद, कांस्टेबलों और हिंदू भीड़ ने "जय श्री राम" का नारा लगाते हुए मुस्लिम प्रदर्शनकारियों पर एकसाथ हमला कर दिया.
वजीराबाद रोड के एक तरफ यमुना विहार और दूसरी तरफ चांद बाग का मुस्लिम इलाका है, जहां एक महीने से सीएए विरोधी प्रदर्शन चल रहा है. 23 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने इलाके में भाषण दिया था और दिल्ली पुलिस को चांद बाग रोड पर जारी विरोध प्रदर्शन को खत्म करने के लिए तीन दिन का अल्टीमेटम दिया था. मिश्रा ने धमकी दी थी कि अगर पुलिस ऐसा करने में विफल रही तो सीएए समर्थक खुद मामला सुलटा लेंगे. अगली शाम इलाके में हिंसा भड़क उठी. पास के एक पेट्रोल पंप और कई वाहनों को आग लगा दी गई. वजीराबाद रोड पर धुंए के गुबार के बीच पत्थरों की बौछार होने लगी.
भीड़ को इस तरह दौड़ाने से पहले तक फहान इंटरनेशनल स्कूल के पास तैनात पुलिसवाले बचाव की मुद्रा में थे. दोनों तरफ से बराबर पथराव हो रहा था. पथराव का एक पैटर्न था : एक तरफ के लोग पथराव करते और दूसरी ओर के लोग जवाब में पत्थरबाजी करने लगते. मैं हिंदुओं और पुलिस के पीछे से रिपोर्टिंग कर रहा था. ये लोग पत्थर मार रहे थे और गालियां बक रहे थे. भीड़ ने गत्तों के बक्सों और दूध के पैकेट रखने वाले ढिब्बों को ढाल बना लिया था. हर 10 मिनट के अंतराल में पुलिस और हिंदू भीड़ मुसलमानों की ओर कूच करती और वहां से जवाबी रोढ़ेबाजी के बाद पीछे आ जाती. उस शाम कई बार मैंने गोली चलने की आवाजें सुनी लेकिन बताना मुश्किल था कि गोलियां कहां से चली हैं. वहां मेरी मुलाकात एक पत्रकार से हुई जिसने मुझे बंदूक चलाते एक आदमी की फोटो दिखाई, जो यमुना विहार की ओर से चांद बाग की तरफ गोली चला रहा था.
तकरीबन 5.30 बजे मैंने फहान इंटरनेशनल स्कूल के बाहर तैनात हैड कांस्टेबल से बात की. नाम न छापने की शर्त पर उसने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मौके से गायब रहने की शिकायत की. उसने कहा, “हम यहां सुबह से खड़े हैं और अब तक कोई मदद नहीं आई है. इन बहनचोदों ने सब कुछ जला कर खाक कर दिया है. इन लोगों ने पेट्रोल पंप, पास का एक अस्पताल, एम्बुलैंस, कार और बाइकें जला दीं.” यह साफ नहीं था कि आग हिंदुओं ने लगाई थी कि मुसलमानों ने. “दंगा रोधी बल का कोई अतापता नहीं और हमें अब तक नहीं बताया गया कि अतिरिक्त तैनाती की जाएगी या नहीं.”
मैं जहां था वहां से यह नहीं देख पा रहा था कि मुस्लिम प्रदर्शनकारियों की संख्या कितनी है लेकिन हैड कांस्टेबल ने दावा कि वे “हजारों की संख्या में हैं.” उसने कहा, “तुम्हें क्या लगाता है, हम यहां बिदक कर क्यों बैठे हैं?” फिर हिंदू भीड़ की ओर इशारा करके कहने लगा, “ये तो गनीमत है कि ये लोग यहां हैं नहीं तो हमारा काम तमाम हो जाता.” शाम 6 बजे तक वजीराबाद रोड पर सैंकड़ों हिंदू और जमा हो गए. वे लोग कहां से आए, पता नहीं चला पर लगा कि सड़क के एक ओर लगे फाटक को तोड़ कर आए हैं.
संख्या बल से हौसला मजबूत हुआ तो पुलिस और भीड़ चांद बाग की ओर बढ़ चले. फिर हिंदू भीड़ ने एक जलता हुआ टायर सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के टैंट पर फैंक दिया. देखते ही देखते पूर स्थल आग के आगोश में समा गया.
6.30 बजे पत्थरबाजी रुक गई. जहां कहीं हिंसा के सबूत बिखरे पड़े थे. सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के टैंट की राख के बगल में एक कार अभी तक जल रही थी. रोड डिवाइडर का एक हिस्सा उखाड़ दिया गया था, भूरे रंग के टैंपू ट्रक से धुंआ निकल रहा था, सैंकड़ों दंगाई खून की प्यास से तड़प रहे थे और हाथों में लोहे की रॉडों को तलवार की तरह लहरा रहे थे. बारी-बारी से “वंदे मातरम”, “मोदी, मोदी” और “जय श्रीराम” के नारे लगा रहे थे. चांद बाग की छतों से कभी-कभार कोई पत्थर आ जाता तो हिंदू भीड़ उग्र होकर उस छत की ओर पत्थर फैंकने लगती. हिंसा के बैकग्राउंड में दो-तीन तिरंगे लहरा रहे थे जो भीड़ की वहशियत और अंधराष्ट्रवादी टकराहट को अवास्तविक बना रहे थे.
प्रदर्शन की जगह से 300 मीटर की दूरी पर हिंदू दंगाइयों की एक और भीड़ इंतजार कर रही थी. मैंने एक दंगाई से पूछा कि वे कौन लोग हैं तो उसने कहा, “टेंशन मत लो, सब अपने ही लोग हैं. सब हिंदू ही हैं, आज इन मुल्लों की मैया चोद देंगे.” वहां से थोड़ी दूर, बैरीकेड पर खड़ा दंगाई चिल्ला रहा था, “आजादी चाहिए थी न? भोसड़ीके, यह लो आजादी.”
अगले दो घंटों तक दिल्ली पुलिस की एक छोटी टुकड़ी आराम कर रही थी और हिंदू भीड़ चांद बाग में पत्थरबाजी. इसके बाद दंगा रोधी बल के सशस्त्र जवान चांद बाग की ओर बढ़ चले और दिल्ली पुलिस वहां बचे हिंदू दंगाइयों को खदेड़ने लगी. दंगाई भजनपुरा और आसपास के बाजारों में भाग गए.
शाम 7:30 बजे के बाद मैंने देखा कि फहान इंटरनेशनल स्कूल से लगभग 500 मीटर की दूरी पर गुलाटी कम्यूनिकेशंस दुकान के सामने हिंदू लोगों की भीड़, जिसमें शायद 15 के करीब लोग होंगे, लगभग 50 साल के एक मुस्लिम आदमी को पीट रही थी. जब भीड़ का लीडर उस आदमी को पीट रहा था, तब बंद दुकान के पास खड़े एक हिंदू ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए उसे छोड़ देने के लिए कहा. मुश्किल से 15-20 सेकेंड की बहस के बाद बचाने वाले और भीड़ के नेता के बीच हाथापाई होने लगी. जब दो लोग बचाने वाले हिंदू से निपट रहे थे, तब बाकी दो गुंडे मुस्लिम आदमी को बेरहमी से मार रहे थे. गुंडों को खुद से दूर करते हुए मुस्लिम आदमी ने भागने की कोशिश करता, लेकिन वे उसके कपड़े पकड़कर खींच लेते. साथ ही बाकी लोग दो लड़ रहे हिंदुओं को अलग करने की कोशिश कर रहे थे. “अपने ही भाई को मार रहे हो, यह क्या कर रहे हो?” अंतत: मुस्लिम आदमी भीड़ के चंगुल से भाग निकलने में सफल हुआ और कहीं जाकर छिप गया. भीड़ के कुछ लोगों ने उसे ढूंढने के लिए उसका पीछा भी किया. मैं देख नहीं सका कि वह उसे पकड़ पाए या वह उनसे बचने में कामयाब रहा.
इस पूरे हमले में पुलिस को कोई हिंसा नजर नहीं आई और न ही उन्होंने भीड़ को रोकने का प्रयास किया. पुलिस ने भीड़ में से किसी को भी हिरासत में लेने का प्रयास नहीं किया. वास्तव में हिंदू भीड़ के हमलों में पुलिस का अपराधियों का साथ देना, तमाम हिंसक मामलों में आम बात थी. दिन भर मैं मौजपुर मैट्रो स्टेशन से आदर्श मोहल्ला, विजय पार्क, सत्तर वाली गली, नूर इलाही, भजनपुरा और यमुना विहार इलाकों में गया. मैंने देखा कि दिल्ली पुलिस हिंदू दंगाइयों का साथ दे रही थी. ऐसा ही उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई में भी हुआ था. पुलिस हिंदू असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर मुसलमानों को हिरासत में लेने की कोशिश कर रही थी. हैरानी नहीं कि मौजपुर और उसके आसपास के इलाकों में हिंदू भीड़ ने “दिल्ली पुलिस जिंदाबाद” के नारे लगाए.
रात 8 बजे तक भीड़ कम हो गई थी और पथराव बंद हो गया था. पूरी हिंसा के दौरान पुलिस चौकी से थोड़ी दूरी पर एक मजार जल रही थी. सड़क पर यमुना विहार की तरफ खड़े लगभग 30 हिंदू दंगाई इसे देखकर खुश हो रहे थे. उन दंगाइयों में से एक चिल्लाया, “हिंदुस्तान में रहना होगा” बाकी लोग ने साथ दिया, “जय श्रीराम कहना होगा.” कुछ समय बाद, दंगाइयों में से एक ने मजार के जलने की खुशी में सभी को लड्डू बांटने शुरू किए. हर लड्डू के साथ “जय श्री राम” का नारा लगता.
हिंदू दंगाइयों का एक झुंड पास के बाजार में चला गया. विरोध स्थल से 500 मीटर से कम की दूरी पर मैंने देखा कि एक दंगाई ऑटो के ऊपर बैठा था और बाकी उस ऑटो को धकेलकर खुली जगह ले जा रहे थे. साफ था कि वे उसे जलाने जा रहे थे. जैसी ही भीड़ ने “जय श्रीराम” का नारा लगाया अचानक उस ऑटो का मालिक वहां आया और दंगाइयों से उसके ऑटो को न जलाने की मिन्नतें करने लगा. एक छोटे से झगड़े के बाद, कुछ दंगाइयों ने मांग की कि एक "हिंदू भाई के ऑटो" को आग के हवाले नहीं करना चाहिए, जबकि अन्य दंगाइयों ने जोर देकर कहा कि परमिट के कागजात "एक मुल्ला के नाम" पर हैं.
इसके बाद उम्र में बड़ा दिखने वाला दंगाई वहां प्रकट हुआ और उसने झगड़ा छोड़ कर मजार को गिराने का आदेश दिया. दंगाइयों ने तुरंत अपनी उन्मादी ताकत मजार की तरफ लगा दी. दिल्ली पुलिस ने बेपरवाही से अपने डंडे हवा में उठाते हुए दंगाइयों को भगाने का नाटक किया. डंडे इतनी दूरी पर थे कि दंगाइयों को छू भी नहीं सकते थे. पुलिस सिर्फ उन्हें वहां से चले जाने को कह रही थी. लेकिन दंगाइयों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और न ही पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास ही किया. मजार जल रही थी और दंगाई उसे पूरी तरह से गिराने के लिए आग के बुझने का इंतजार कर रहे थे.
अनुवाद : अंकिता
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