“अनुच्छेद 370 हटाना हमारे बुनियादी और संवैधानिक अधिकारों का कत्ल”, एक डोगरा हिंदू

05 अक्टूबर 2019

5 अगस्त को नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके बाद सरकार ने क्षेत्र में संपर्क पर रोक लगा दी जो फिलहाल जारी है. सरकार दावा कर रही है कि क्षेत्र में स्थिति सामान्य है और जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोग उसके फैसले से खुश हैं.

कारवां लेखों की अपनी श्रंख्ला “ये वो सहर नहीं” में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की आवाज को संकलित किया. इसी की पांचवीं कड़ी में पेश है जम्मू की शोध छात्रा सुरभि केसर का नजरिया.

पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू क्षेत्र की हिंदू डोगरा होने के चलते हमारी परवरिश ऐसे माहौल में हुई जिसमें हम कश्मीर को अपनी जमीन तो मानते थे लेकिन कश्मीरी मुसलमानों को उसे हथिया लेने वाले लोगों की तरह देखते थे. हमें बताया जाता था कि हमारे पास आर्थिक अवसरों और राज्य में समाजिक योजनाओं की कमी के लिए कश्मीर, कश्मीरी मुसलमान और संविधान का अनुच्छेद 370 जिम्मेदार  हैं.  यह बातें तब भी होती थी जबकि हमारा राज्य प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक में सबसे ऊपर के राज्यों में से एक था. हाय! कितना आसान होता है लोगों के अंदर नफरत पैदा कर देना.

इन बातों असर जम्मू में पले-बढ़े मेरे जैसे अन्य लोगों के दिमाग पर भी हुआ.  मैं यह मानती हूं कि कश्मीरी लोगों के आत्म निर्णय के राजनीतिक अधिकार की मांग के सांप्रदायिक रंग ले लेने से जम्मू की जनता के अंदर कश्मीर विरोधी भावना पैदा होने में आसानी हुई. कश्मीरी पंडितों के खिलफ 1990 के दशक में हुई सांप्रदायिक हिंसा  ने इस भावना को और बल दिया.  एक हद तक मांग के सांप्रदायिक रंग ले लेने से भारत सरकार को राज्य के सैन्यकरण का मौका मिला. इसका परिणाम यह हुआ कि कश्मीरी मुसलमान विरोधी नैरेटिव को केवल जम्मू के लोगों ने ही नहीं बल्कि भारत की तमाम जनता ने राष्ट्र की अखंडता पर मंडरा रहे खतरे के रूप में देखा.

आज मेरे राज्य के पास अनुच्छेद 370 द्वारा प्रदान किया गया विशेष दर्जा नहीं है.  कर्फ्यू के बावजूद जम्मू के अधिकांश लोगों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया. उनको लगता है कि अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिए जाने से उनकी आर्थिक समस्याएं खत्म हो जाएंगी और नौकरियां और आर्थिक समृद्धि आएगी. लोग यह क्यों नहीं समझते कि ऐसे राज्य जहां पर यह विशेष प्रावधान नहीं था वहां जम्मू-कश्मीर से ज्यादा गरीबी,  नौकरी की कमी और मानव  विकास सूचकांक नीचे है. इसकी गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि यह मामला  केवल आर्थिक तर्क-कुतर्क का मामला नहीं है.

सुरभि केसर पीएचडी कर रहीं हैं.

Keywords: Jammu Article 370 State Subjects Article 35A Ladakh
कमेंट