उत्तर पूर्वी दिल्ली की गोकलपुरी की एक मस्जिद की मीनार पर "जय श्रीराम" नाम का झंडा लहरा रहा है. मस्जिद अंदर से टूट चुकी है और उसकी झुलसी दीवारें अब भी खड़ी हैं. मस्जिद परिसर में पहरा दे रहे दिल्ली पुलिस के एक और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के दो सिपाहियों ने "संवेदनशील" कहते हुए मुझे मस्जिद की तस्वीर लेने से रोकने की कोशिश की. 23 फरवरी से उत्तर पूर्वी दिल्ली में लक्षित सांप्रदायिक हिंसा में मस्जिद के अलावा, क्षेत्र के मुस्लिमों की कम से कम एक दर्जन दुकानें और घरों को भी गोकलपुरी और पड़ोसी गंगा विहार इलाके में जला दिया गया.
26 फरवरी को उनके जले हुए अवशेषों को देखते हुए, यह स्पष्ट था कि केवल मुस्लिम घरों और प्रतिष्ठानों को ही लक्षित किया गया है और केवल उन इमारतों को ही आग के हवाले किया गया था जिनमें दिखाई देने वाले चिन्हों से उनके मालिकों की पहचान पता चलती है, जैसे चांद के निशान वाली टाइलें या दरवाजों के बाहर लगी नेम प्लेटें. घर का सामान जल कर सड़क पर बिखरा पड़ा था. इन घरों में अब कोई नहीं रहता. स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि आगजनी से पहले कुछ लोग अपने मकान छोड़ कर चले गए थे और बाकियों को सुबह पुलिस ने निकाला.
मैं दिनभर गोकलपुरी और गंगा विहार के कुछ हिस्सों में घूमा और विभिन्न समुदायों के लोगों से पिछले तीन दिनों में हुई घटनाओं को समझने की कोशिश की और वे लोग इसके बारे में कैसा महसूस करते हैं, इस बारे में उनसे बात की. आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत क्षेत्र में कर्फ्यू लगा था और सड़क पर बहुत कम लोग ही थे जिनसे मैं बात कर सकता था. केवल सिख समुदाय को ही अपने मुस्लिम पड़ोसियों से सहानुभूति थी. दलित समुदाय के जाटव निवासी मुसलमानों के बारे में चिंतित होने के बजाय अपनी जिंदगी और सम्पत्ति के बारे में अधिक चिंतित दिखाई दिए. उनमें से कुछ ने खुद की पहचान सबसे पहले हिंदू के रूप में की और उच्च जाति के अपने भाइयों के साथ एकजुटता व्यक्त की. लेकिन इन सबसे ऊपर, बातचीत से उच्च-जाति के निवासियों की मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा उभर कर सामने आई.
ऊंची जाति के हिंदुओं ने मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी घृणा को सही ठहराने के लिए उत्पीड़न की घटनाएं सुनाईं. लेकिन ये बातें उत्पीड़न के ऐसे नेरेटिव पर आधारित थे, जिन्हें चर्चा करने वाले व्यक्ति ने निजी तौर पर कभी अनुभव नहीं किया था, लेकिन फिर भी वह ऐसा मानाते हैं क्योंकि उन्होंने इसके बारे में दूसरों से सुना था या इंटरनेट पर देखा था. उत्पीड़न के सबूत के रूप में वे जिन घटनाओं का जिक्र कर रहे थे वे या तो बिल्कुल झूठी थीं या ऐसे दावों पर आधारित थी जिनकी पड़ताल नहीं की जा सकती. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मुसलमानों ने उनकी धरती पर गलत तरीके से कब्जा कर लिया है और इसलिए उन्हें बाहर निकालने की जरूरत है. उच्च जाति के स्थानीय लोगों ने कहा कि वे खुद को स्वाभाविक रूप से भारतीय जनता पार्टी और दिल्ली पुलिस के साथ है क्योंकि उनका मानना है कि हिंसा के दौरान केवल इन दो संस्थाओं ने ही “हिंदुओं की रक्षा” की थी.
गोकलपुरी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले के हिंसा प्रभावित इलाकों में हिंदू बहुल इलाकों में से एक है. यह गोकलपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह आरक्षित सीट है और आम आदमी पार्टी के सुरेंद्र कुमार यहां से विधायक हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, गोकलपुर में 77 प्रतिशत हिंदू आबादी और 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी बसती है. क्षेत्र के बुजुर्गों ने बताया कि यह कॉलोनी मूल रूप से 1985 में शुरू की गई एक ग्रामीण-आवास पहल इंदिरा आवास योजना के तहत अनुसूचित जाति के लिए थी. बुजुर्गों ने कहा कि पिछले तीन दशकों में उच्च-जाति के लोग दलितों की जमीनें उनसे खरीदते गए और अब वे इस क्षेत्र में वर्चस्वशाली हैं. उनके अनुसार गुर्जर समुदाय इस क्षेत्र में बहुमत में है उसके बाद कुछ सिख, जाटव, ब्राह्मण, राजपूत और बनिया समुदाय आते हैं.
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