कश्मीर के शोपियां में सुरक्षा बलों और उग्रवादियों के बीच पिसते लोग

सना इरशाद मट्टो

अगस्त के आखिरी दिनों में कश्मीर के शोपियां जिला और सत्र न्यायालय में भारत सरकार के हालिया फैसले का असर साफ दिखाई पड़ रहा था. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत उसे मिले विशेष दर्जे को छीन लिया था. इस कदम से कुछ वक्त पहले ही सरकार ने घाटी में संचार ठप्प कर धारा 144 लगा दी थी. इसका नतीजा यह हुआ कि जिन वकीलों से मैं अदालत में मिलने गया, उन्हें भी कुछ पता नहीं था और वे हालात को समझने की कोशिश कर रहे थे. जो थोड़ी-बहुत सूचनाएं उनके पास थीं वे अच्छी नहीं थीं. वे लोग मुझसे पूछ रहे थे : "कश्मीर के दूसरे हिस्सों में क्या हो रहा है?”

कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने से पहले ही शोपियां में डर का माहौल बना हुआ है. 1 अगस्त को केंद्र सरकार ने घाटी में सैनिकों की संख्या को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दिया था. वकील बसित अहमद वानी ने बताया कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने से एक दिन पहले उन्होंने सुना था कि किसी ने हिल्लाव और इमाम साहिब गांवों को जोड़ने वाली सड़क पर भारतीय सेना की गाड़ी में पत्थर मारा है. उन्होंने बताया कि सेना के जवानों ने “गाड़ी से उतर कर लोगों को पीटा और आसपास खड़े वाहनों, दुकानों और घरों की खिड़कियां तोड़ दीं.”

वकील हबील इकबाल ने बताया कि संचार पर रोक लगने के बाद शोपियां में 28 अगस्त तक समाचार पत्रों का वितरण नहीं हुआ. दिल्ली में स्थित सरकारी प्रेस विज्ञप्ति और एजेंसियों पर निर्भर रहने वाले घाटी के समाचार पत्र श्रीनगर शहर के अलावा किसी अन्य क्षेत्र को शायद ही कवर कर सकते थे इसलिए समाचार के लिए वकील ग्रामीण क्षेत्रों में हिरासत और यातना के मामलों के नोट देने लगे. हेफ-शेरमाल के वरिष्ठ वकील अब्दुल हामिद दार ने मुझे बताय कि भारतीय सेना ने उनके चचेरे भाई का टॉर्चर किया और उसकी चीखों को लाऊडस्पीकर पर “लोगों को सुनाया.”

"हम ऐसे इलाके में रहते हैं जहां सांस लेना भी दुश्वार है," दार कहते हैं. यहां के तमाम वकील और स्थानीय लोग भी दार जैसी ही सोच रखते हैं. यह भावना शोपियां में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच खुले तौर पर होने वाले संघर्षों और मनमानी गिरफ्तारियों के कारण है. हालांकि 5 अगस्त से शोपियां में ऐसा कुछ नहीं घटा है लेकिन उग्रवादी फरमान जारी कर रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैं. वहीं सुरक्षा बल भी इन धमकियों के जवाब में नागरिकों को और डरा रहे हैं.

शोपियां की हवा में फिक्र और नाफरमानी की मिलावट है. पेशे से वकील शाहिद ने बताया, "लोग बड़े पैमाने पर घर के अंदर बने हुए हैं" और कइयों ने “अपने व्यवसाय बंद कर दिए हैं.” केंद्र सरकार द्वारा कर्फ्यू में ढील दिए जाने के बावजूद, ताकि लोग सार्वजनिक स्थानों पर आएं जिससे हालात सामान्य होने के उसके दावे की पुष्टि हो सके, लोगों ने बाजार स्थानों, स्कूलों और कार्यालयों में लौटने से इनकार कर दिया है. स्टांप टिकट विक्रेता रसिख अहमद कहते हैं, “लोग नाराज हैं और वे इस फैसले का विरोध करना जारी रखेंगे.”

ऐसा लग रहा है कि लोगों के गुस्से ने उग्रवादियों की हिम्मत बढ़ा दी है और वे केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्से का फायदा उठाना चाह रहे हैं. शोपियां के दर्जनों गावों में 5 अगस्त के सप्ताह भर के भीतर ऐसे पोस्टर दिखाई पड़ने लगे जिनमें दावा होता है कि ये आतंकवादी संगठनों की ओर से हैं. इनमें लोगों को बताया जाता है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं. लोगों से कहा गया है कि वे केवल शाम 6 बजे के बाद अपनी दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खोलें. रसिख मानते हैं कि इससे “सुरक्षा बलों को परेशानी होती है क्योंकि वे नहीं चाहते कि लोग आतंकवादियों के आदेशों की फरमानी करें.” उन्होंने बताया कि पोस्टरों में लोगों को भारत द्वारा कश्मीर के "अवैध कब्जे" के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए कहा गया है.

सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई की. रसिख ने बताया कि 15 अगस्त के बाद, "शाम 6 बजे के बाद दुकानें खोलने पर गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी सुरक्षा बलों ने दी." इकबाल और शाहिद ने मुझे बताया कि सुरक्षा बलों ने सार्वजनिक स्थानों से पोस्टर हटाना शुरू कर दिया और उनको पीटा जिन पर पोस्टर लगाने का शक था.

मैंने जिन स्थानीय लोगों से बात की, उन्होंने कहा कि शोपियां के कुछ गांवों में उग्रवादी खुले तौर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. शेरमाल गांव के मोहम्मद सलीम ने बताया, "उन लोगों ने स्थानीय लोगों को प्रतिरोध जारी रखने और राजनीतिक तराने मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर बजाने के लिए कहा है." सलीम के अनुसार, “10 अगस्त की शाम एक स्थानीय मस्जिद के बाहर तीन स्थानीय आतंकवादी दिखाई दिए जिनका नेतृत्व नावेद बाबू कर रहा था, जो हिजबुल मुजाहिदीन का शोपियां जिला कमांडर है. वह लोगों को आंदोलन का समर्थन और तय घंटे में अपनी दुकानों को खोलने को कह रहा था.”

5 सितंबर को शोपियां के कई प्रमुख इलाकों में तीन पन्नों का एक पोस्टर दिखाई दिया जिसमें लोगों को पिछले पोस्टर के आदेशों की नाफरमानी न करने की धमकी थी. इकबाल ने कहा, "डीसी कार्यालय में भी पोस्टर लगाए थे." उन्होंने आगे बताय, "इन पोस्टरों में उन लोगों के नाम थे जिन लोगों ने दिन में अपनी दुकाने खोली थीं. दुकानदारों, पेट्रोल पंप और यहां तक ​​कि फल बेचने वालों को भी सिर्फ तय समय में काम करने का आदेश है.”

शोपियां के फल उद्योग पर भी असर पड़ा है. शोपियां फल मंडी घाटी का दूसरा सबसे बड़ा फल बाजार है. सोपोर फल मंडी 5 अगस्त से ही बंद है. सेबों का मौसम अगस्त के मध्य में शुरू होता है लेकिन मजदूरों के न होने और परिवाहन की अनुउपलब्धता से फल उत्पादक आशंकित हैं. सरकार ने घोषणा की है कि वह सीधे उत्पादकों से सेब खरीदेगी लेकिन उग्रवादियों ने पोस्टरों और समारोहों में घोषणा की है कि लोग सेब तोड़ने में देरी करें. सेब के बगीचे के मालिक इकबाल कहते हैं, "उग्रवादी भी जानते हैं कि राजनीतिक भावनाओं या फरमानों से सेब पेड़ पर लटके नहीं रहेंगे.”

राजनीतिक चिंताओं के अलावा, फल उत्पादकों को आर्थिक और रखरखाव की चिंताएं भी हैं. फलों के व्यवसायी सलीम का कहना था, “अगर सेब तोड़ लिए जाते हैं तो भी फल उत्पादकों के पास कीमतों की सौदेबाजी करने की शक्ति नहीं होगी.” वह बताते हैं, "पहले फल उत्पादक कश्मीर और कश्मीर के बाहर की मंडियों में अपने फल भेजा करते थे और वे सौदेबाजी कर पाते थे. लेकिन इस साल ऐसा नहीं होगा क्योंकि उत्पादक सिर्फ एक मंडी या सरकार को फल बेचने को मजबूर होंगे.” शोपियां फल मंडी के एक अन्य फल उत्पादक और कमीशन एजेंट शकूर अहमद ने बताया कि वह नहीं जानते हैं कि किस कीमत पर सौदेबाजी करनी है क्योंकि “हम यह नहीं जानते कि अन्य मंडियों में फसल किस भाव बिक रही है. हम यह भी नहीं जान पाएंगे कि हमारे सेब उपज मंडी तक पहुंचे भी या नहीं और किस कीमत पर इन्हें बेचा जा रहा है.”

शकूर ने कहा कि शोपियां में सेब का मौसम दिसंबर तक चलता है “इसलिए हमारे पास अब भी समय है. हम इंतजार करेंगे.” कई फल उत्पादक भी अपनी उपज को बेचना नहीं चाहते हैं. शकूर ने बताया, "सरकार दिखाना चाहेगी कि घाटी में हालात सामान्य हो गए हैं जो सच्चाई से बहुत दूर है."

शोपियां शहर के स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि सितंबर के पहले दो हफ्तों में उग्रवादियों ने निजी वाहनों को कुछ चौकियों पर रोक कर लोगों की तलाशी ली. सितंबर के शुरू में भारतीय सेना प्रमुख बिपिन रावत ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, "हम आतंकवादियों के पीछे नहीं जा रहे हैं क्योंकि हम मुठभेड़ से माहौल बिगाड़ना नहीं चाहते." 21 अगस्त को भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने एक संयुक्त कार्रवाई में एक आतंकवादी को मार डाला था.

शोपियां के निवासियों ने मुझे बताया कि संचार रोके जाने से उग्रवादियों को मोबाइल फोन ट्रेस कर पकड़े जाने का डर नहीं है और काम करना आसान हो गया है. इकबाल ने कहा, “लोग उनके फरमानों को मान रहे हैं. लेकिन यह नहीं बता सकते कि वे डर कर ऐसा कर रहे हैं या भरोसे से. उग्रवादी मारे जाने के डर के बगैर अपना काम कर रहे हैं.”

अधिकांश लोगों की तत्कालीन चिंता शोपियां में हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या को लेकर थी. वकीलों के अनुसार, 5 अगस्त के बाद तुर्कवांगन और हेफ-शेरमाल के बीच के 12 गांवों में कम से कम पचास युवकों को हिरासत में लिया गया है. उन्होंने कई मिसालें दीं जिनमें गिरफ्तारी और हिरासत में यातना के मामलों के लिए कोई कारण नहीं बताया गया था.

वकील शाहिद ने मुझे बताया कि शोपियां शहर के बगल के एक गांव शेरमाल में तकरीबन 13 लड़कों को 5 अगस्त के बाद उठा लिया गया. “उनकी न रिमांड दिखाई गई और न ही आरोप लगाया गया. हाल में उन्हें रिहा करने से पहले तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था." उन्होंने कहा कि उनके अपने गांव पिनजुरा में 25 और 26 अगस्त की रात आठ से दस लोगों को गिरफ्तार किया गया. "वे तब से रिहा नहीं किए गए हैं".

कुछ वकीलों ने मुझे बताया, “इन गिरफ्तारियों का क्रम सामान्य से अलग प्रतीत होता है.” उन्होंने कहा कि शोपियां में ज्यादातर मामलों में, भारतीय सेना पहले लोगों को गिरफ्तार करती है और फिर उन्हें पुलिस को सौंप देती है. इकबाल ने कहा, ''सेना रात के छापे में अधिक प्रभावी रहती है जबकि पुलिस को आमतौर पर स्थानीय लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. इसलिए सेना लोगों को हिरासत में लेती है.”

ऐसे मामलों में जमानत के लिए आवेदन करने से लोग डरते हैं. रसायन विज्ञान के टीचर शौकत अहमद और रसिख ने मुझे बताया कि पांच युवाओं को उनके इलाके तुरकावांगन से हिरासत में लिया गया. शौकत ने बताया, "एक सेना की और बाकी पुलिस की हिरासत में हैं". रसिख ने कहा कि हिरासत में लिए गए लड़के 19 या 20 साल के हैं और एक नाबालिग है. उनके परिवार वालों ने जमानत की अर्जी नहीं दी है.

इस तरह के मामलों का जिक्र करते हुए इकबाल ने कहा, "परिवार वालों को डर लगता है कि अगर जमानत की अर्जी दायर की गई तो हो सकता है उन्हें पीएसए के तहत आरोपी बना दिया जाए. जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट, 1978 या पीएसए गिरफ्तार व्यक्ति को बगैर आरोप या मुकदमे के दो साल तक प्रतिबंधात्मक हिरासत में रखने की इजाजत देता है. मीडिया की खबरों के मुताबिक मुख्यधारा के राजनेताओं और आजादी समर्थक नेताओं सहित कम से कम चार हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. उनमें से बहुतों को पीएसए के तहत बुक किया गया है. हालांकि कोई आधिकारिक गिनती सामने नहीं आई है. इकबाल ने कहा कि कई बार ऐसा हुआ है जब स्थानीय पुलिस अधीक्षक ने गिरफ्तार व्यक्ति को सूचित किया कि उसे रिहा किया जा सकता है और परिवार को आश्वासन मिलने के बाद उन्होंने जमानत के लिए याचिका दायर की.

तुरकावांगन के मालडेरा में स्थानीय लोगों ने बताया कि सुरक्षा बलों ने अगस्त के मध्य में एक रात उनके गांव में छापा मारा और कुछ लड़कों को हिरासत में लिया लेकिन कार्रवाई का कारण नहीं बताया. शौकत ने कहा, "दो लड़कों को बुरी तरह से पीटा गया था, अभी भी उनके जख्म नहीं भरे हैं." मैं इन लड़कों में से एक के घर गया जहां उसके वृद्ध दादा-दादी से मिला. घटना के बाद से ही ये लोग घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं.”

हेफ शेरमाल में ऐसे ही कई मामले हैं. मुझे एक गांव न जाने का सुझाव दिया गया क्योंकि वह बेहद खतरनाक माना जाता है और वहां बार-बार मुठभेड़ें होती हैं. शेरमाल के दार ने कहा, “हमारे क्षेत्र में पीएसए के तहत चार युवाओं को बुक किया गया है.”

दार ने बताया कि कैसे उनके चचेरे भाई बशीर अहमद दार को यातना दी गई. ईद के एक दिन पहले वहां की 11 मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ी गई. भारतीय सेना ने बशीर को उठा लिया. बशीर का एक भाई आतंकवादी बन गया था, सेना बशीर को चिलिपोरा सैन्य शिविर में दो बार ले गई और दोनों बार बेंत से उसे बुरी तरह पीटा. दूसरी नजरबंदी और यातना के बाद, उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया. दार ने बताया कि वह चल नहीं सकता”. उन्होंने कहा, "उनको टॉर्चर करने की एकमात्र वजह यह था कि वह उग्रवादी भाई के ठिकाने का खुलासा कर दें और उसे सरेंडर करने को कहें.”

दार ने कहा कि बशीर की चीखों को उनके गांव में लाउडस्पीकर पर सुनाया जाता था. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के एक दिन बाद सुरक्षा बलों ने उनके घर में घुसकर घरेलू सामानों को नष्ट करना शुरू कर दिया. “उन्होंने हमारी खाने की चीजों में मिट्टी का तेल मिला दिया. हमे लगभग एक लाख रुपए का नुकसान हुआ.”

बशीर के बारे में मैंने भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस को ईमेल भेजा था लेकिन जवाब नहीं मिला. अगर वे जवाब देते हैं तो कहानी को अपडेट किया जाएगा.

स्थानीय लोगों ने मुझसे नाउम्मीदी से बात की. रसिख ने कहा, "जब बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया है, तो आम लोगों का क्या होगा. शोपियां में जो हो रहा है उससे युवाओं में भारत के प्रति अधिक घृणा और क्रोध पैदा हो रहा है.” वह कहते हैं, “लोगों ने इरादा कर लिया है कि जब तक कश्मीर में द्वंद्व खत्म नहीं होता वे विरोध जारी रखेंगे.”