23 दिसंबर 2021 की सर्द शाम को श्रीनगर के प्रताप पार्क में विरोध प्रदर्शन के लिए लगभग बीस कश्मीरी जुटे. सेना के दो ट्रक जल्द ही पास के रीगल चौक पर पहुंचे और उनसे उतरे दर्जनों सैनिकों ने पार्क को घेर लिया. कुछ सादे कपड़ों में थे और उनमें से दो ने मुझे बताया की कि वे भी भारतीय सेना में हैं. हालांकि प्रदर्शनकारी उनकी मौजूदगी से बेफिक्र नजर आ रहे थे. यह देखते हुए कि सेना आमतौर पर कश्मीर घाटी में प्रदर्शनकारियों के साथ कैसे पेश आती है, यह गैरमामूली दृश्य था.
कुछ मिनटों बाद वर्दीधारी दो जवानों ने ट्रक से एक होर्डिंग निकाली और उसे पार्क के अंदर सादे कपड़े वाले दो लोगों को सौंप दिया. होर्डिंग पर मोटे-मोटे तीन हर्फों में लिखा था : “आखिर कब तक”. इस लिखावट के पीछे खून के रिसते हुए धब्बे थे. नीचे, हैशटैगों की बाढ़ थी- #VoiceAgainstTerrorism (आतंकवाद मुर्दाबाद), #StopKillingKashmiris (कश्मीरियों को मारना बंद करो), #KashmirBadalRahaHai (कश्मीर बदल रहा है) और #KashmirForTiranga (कश्मीर चाहे तिरंगा). बैनर में "कश्मीर एकजुट हो" की अपील भी थी.
सैनिकों के होर्डिंग लगाने और उसके सामने मोमबत्तियां जलाए जाने के पंद्रह मिनट बाद, विरोध करने पहुंचने वालों में थे : भारतीय जनता पार्टी से जुड़े एक नेता और कुछ दूसरे छोटे समूहों के नेता, रिटायर सिविल सेवक, जिन्हें खराब सेवा रिकॉर्ड के लिए जाना जाता है और कुछ लोग जो पत्रकारिता और अति-राष्ट्रवादी बमबारी के बीच डोलते रहते है. सेना का एक अधिकारी ने, जिसने खुद को प्रादेशिक सेना की 125वीं बटालियन का कर्नल संजय भाले बताया, एक मशाल जलाई और प्रदर्शनकारियों में जो सबसे ज्यादा मुखर था उसे थमा दी. समूह ने पांच मिनट से भी कम समय के लिए आतंकवाद के खिलाफ कुछ नारे लगाए और पाकिस्तान को मटियामेट करने का दम भरा. इसके बाद उन्होंने दूरदर्शन, एशियन न्यूज इंटरनेशनल, एशियन न्यूज नेटवर्क और मुट्ठी भर स्थानीय वेब पोर्टलों के आस लगाए कैमरों को बाइट देने के लिए ब्रेक ले लिया.
पहला भाषण शाहीना भट ने दिया जो श्रीनगर नगर निगम की निर्वाचित सदस्य हैं. कर्नल ने खुद मशाल उन्हें सौंपी थी. "जब भी कोई हत्या या नाइंसाफी होती है तो हम अपनी आवाज उठाते हैं," शाहीना ने कहा. “बीजेपी ने कश्मीर में स्थिति को नियंत्रित किया है और मैं यहां हत्याओं को रोकने के लिए उनकी आभारी हूं. कश्मीर में विकास आ रहा है.'' आधे घंटे में पूरा मजमा निपट गया. एक चौथाई मोमबत्तियां छोड़ बाकी बुझा दी गईं. मीडिया जल्दी से निकल गया. सादे कपड़े पहने तीन जवानों ने होर्डिंग को नीचे उतारा और पास में ही सेना के एक ट्रक में महफूज रख लिया.
यह कार्यक्रम एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसैपियर्ड पर्सन्स द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों का एक भौंडा नाट्य रूपांतरण जान पड़ रहा था. तीन दशकों से अधिक समय से, लापता हुए हजारों युवा कश्मीरियों की बीवियां जिन्हें हाफ विडो या आधी-बेवाएं कहते हैं और उनकी माएं, अपने खोए हुओं को याद करने और राज्य से जवाब मांगने के लिए हर महीने की 10 तारीख को प्रताप पार्क में इकट्ठा होती थीं. “आखिर कब तक” विरोध प्रदर्शन ने उसी खूनी पंजों का इस्तेमाल किया जो आमतौर पर एपीडीपी के पोस्टरों पर पाया जाता था.
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