कारगिल के लोगों को चाहिए संयुक्त जम्मू-कश्मीर राज्य

30 सितंबर 2019

5 अगस्त को नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके बाद सरकार ने क्षेत्र में संपर्क पर रोक लगा दी जो फिलहाल जारी है. सरकार दावा कर रही है कि क्षेत्र में स्थिति सामान्य है और जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोग उसके फैसले से खुश हैं.

कारवां लेखों की अपनी श्रंख्ला “ये वो सहर नहीं” में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की आवाज को संकलित किया गया है. इसी की दूसरी कड़ी में पेश है कारगिल के वकील मुस्तफा हाजी का नजरिया.

1834 तक लद्दाख एक अलग देश था. जम्मू-कश्मीर के पहले महाराजा गुलाब सिंह के सेनापति जोरावर सिंह ने इसे जीता था. भारत के आजाद होने तक इस पर डोगरा सल्तनत का राज था. आजादी के बाद इसे जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा बना दिया गया. लद्दाख की सीमा जम्मू से गिलगित-बाल्टिस्तान तक जाती थी. आज के पाकिस्तान के शहर स्कर्दू में लद्दाख की शरदकालीन राजधानी थी, जबकि लेह उसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. इसी तरह लद्दाख का कारगिल नगर स्कर्दू, श्रीनगर, लेह और जंस्कर शहरों और नगरों के बीच व्यापार का केंद्र था. कारगिल को रणनीति के तहत चुना गया था क्योंकि यह इन स्थानों से बराबर की दूरी पर बसा था. वक्त बदला तो कारगिल चीन के यारकंद जैसे दूर-दराज के व्यापारियों के लिए बसेरा बन गया. उस वक्त किसे पता था कि इतना केंद्रीय शहर भविष्य में अनदेखी का शिकार बन जाएगा.

आजादी के बाद लद्दाख का एकमात्र जिला लेह था और कारगिल नगर लेह जिले का हिस्सा था. 1979 में कारगिल को अलग जिला बनाया दिया गया लेकिन यह लेह से दोयम ही समझा जाता रहा. पिछले 40 सालों में कारगिल और लेह ने विकास की दो अलग-अलग यात्राएं की हैं. तुलनात्मक रूप से लेह का विकास तीव्रता से हुआ और यह लद्दाख का पर्यायवाची बन गया. यहां के बौद्ध मठ, स्तूप, प्राकृतिक दृश्य और शांत नहरें पर्यटक की स्मृतिपटल पर घर कर जाती हैं. लेह की तस्वीरें विज्ञापनों और समाचारों में छाई रहती हैं.

दूसरी ओर कारगिल की पहचान 1999 के युद्ध वाली छवि से मुक्त नहीं हो पाई. बॉलीवुड में बनने वाली युद्ध की पृष्ठभूमि वाली फिल्मों ने कारगिल की इस पहचान को और पुख्ता किया. उस युद्ध को हुए दो दशक हो चुके हैं लेकिन आज भी बॉलीवुड की फिल्में इसी घिसेपिटे प्लॉट पर बनती हैं जिससे कारगिल की इसकी असली पहचान कहीं खो-सी गई है जो स्थानीय लोगों को जंग की डरावनी यादें भूलने नहीं देती. शायद ही लोगों को पता होगा की कारगिल लद्दाख का दूसरा जिला है जिसकी आबादी लेह से बड़ी है.

मुस्तफा हाजी कारगिल के वकील हैं.

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