5 अगस्त को नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके बाद सरकार ने क्षेत्र में संपर्क पर रोक लगा दी जो फिलहाल जारी है. सरकार दावा कर रही है कि क्षेत्र में स्थिति सामान्य है और जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोग उसके फैसले से खुश हैं.
कारवां लेखों की अपनी श्रंख्ला “ये वो सहर नहीं” में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों की आवाज को संकलित किया गया है. इसी की दूसरी कड़ी में पेश है कारगिल के वकील मुस्तफा हाजी का नजरिया.
1834 तक लद्दाख एक अलग देश था. जम्मू-कश्मीर के पहले महाराजा गुलाब सिंह के सेनापति जोरावर सिंह ने इसे जीता था. भारत के आजाद होने तक इस पर डोगरा सल्तनत का राज था. आजादी के बाद इसे जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा बना दिया गया. लद्दाख की सीमा जम्मू से गिलगित-बाल्टिस्तान तक जाती थी. आज के पाकिस्तान के शहर स्कर्दू में लद्दाख की शरदकालीन राजधानी थी, जबकि लेह उसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. इसी तरह लद्दाख का कारगिल नगर स्कर्दू, श्रीनगर, लेह और जंस्कर शहरों और नगरों के बीच व्यापार का केंद्र था. कारगिल को रणनीति के तहत चुना गया था क्योंकि यह इन स्थानों से बराबर की दूरी पर बसा था. वक्त बदला तो कारगिल चीन के यारकंद जैसे दूर-दराज के व्यापारियों के लिए बसेरा बन गया. उस वक्त किसे पता था कि इतना केंद्रीय शहर भविष्य में अनदेखी का शिकार बन जाएगा.
आजादी के बाद लद्दाख का एकमात्र जिला लेह था और कारगिल नगर लेह जिले का हिस्सा था. 1979 में कारगिल को अलग जिला बनाया दिया गया लेकिन यह लेह से दोयम ही समझा जाता रहा. पिछले 40 सालों में कारगिल और लेह ने विकास की दो अलग-अलग यात्राएं की हैं. तुलनात्मक रूप से लेह का विकास तीव्रता से हुआ और यह लद्दाख का पर्यायवाची बन गया. यहां के बौद्ध मठ, स्तूप, प्राकृतिक दृश्य और शांत नहरें पर्यटक की स्मृतिपटल पर घर कर जाती हैं. लेह की तस्वीरें विज्ञापनों और समाचारों में छाई रहती हैं.
दूसरी ओर कारगिल की पहचान 1999 के युद्ध वाली छवि से मुक्त नहीं हो पाई. बॉलीवुड में बनने वाली युद्ध की पृष्ठभूमि वाली फिल्मों ने कारगिल की इस पहचान को और पुख्ता किया. उस युद्ध को हुए दो दशक हो चुके हैं लेकिन आज भी बॉलीवुड की फिल्में इसी घिसेपिटे प्लॉट पर बनती हैं जिससे कारगिल की इसकी असली पहचान कहीं खो-सी गई है जो स्थानीय लोगों को जंग की डरावनी यादें भूलने नहीं देती. शायद ही लोगों को पता होगा की कारगिल लद्दाख का दूसरा जिला है जिसकी आबादी लेह से बड़ी है.
लद्दाख के बारे में जब लिखा जाता है तो उपर्युक्त पूर्वाग्रह दिखाई पड़ता है. लेखों में लेह का जिक्र तो होता है लेकिन कारगिल को बहुत कम जगह दी जाती है. जो थोड़ा बहुत साहित्य कारगिल के बारे में उपलब्ध है, वह भी इसके साथ इंसाफ नहीं करता. लेह पर केंद्रित विमर्श के चलते सरकारें भी कारगिल पर ध्यान नहीं देतीं. लद्दाख में जो भी सरकारी संस्थाएं हैं, उनके मुख्यालय ज्यादातर लेह में हैं. लद्दाख के नाम पर होने वाला विकास लेह में केंद्रित हो गया है. इसी तरह गैर सरकारी संस्थाएं और उनको मिलने वाला फंड भी लेह के हिस्से आ जाता है. कारगिल में बहुत कम संस्थाएं हैं.
इस फरवरी, जम्मू-कश्मीर सरकार ने लद्दाख को संभागीय दर्जा दिया था. दर्जे का मतलब था कि लद्दाख में एक नया सचिवालय बनेगा. जम्मू और श्रीनगर के बाद कश्मीर राज्य का यह तीसरा संभाग होता लेकिन इसके सारे मुख्यालय लेह में केंद्रित थे. जब कारगिल के लोगों ने 10 दिनों तक इसके खिलाफ प्रदर्शन किया तब जाकर सरकार ने संभागीय मुख्यालयों को कारगिल और लेह जिलों में चक्रीय तौर पर रखने का फैसला किया. अब हालांकी यह फैसले बेकार हो गया है क्योंकि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बना दिया गया है.
अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद के अलावा कारगिल को पहुंच की गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ता है. लद्दाख का क्षेत्रफल बड़ा है और यहां आबादी की बसावट फैली हुई है. मिसाल के तौर पर कारगिल लेह के मुकाबले श्रीनगर के करीब है. कारगिल जिले का बड़ा ब्लॉक द्रास है जो श्रीनगर से केवल 150 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है और पारा शून्य से 30 डिग्री नीचे चला जाता है जिससे लोगों को सर्दियों में कश्मीर क्षेत्र में पलायन करना पड़ता है. इसके अलावा यहां अनाज की पैदावार कम होती है और जरूरी सामान कश्मीर से आता है.
लेकिन लेह के लोग कश्मीर पर इस तरह से निर्भर नहीं है. वहां एयरपोर्ट है जो साल भर खुला रहता है. साथ ही गर्मियों में, हिमाचल प्रदेश के मनाली से यहां के लिए एक वैकल्पिक रास्ता खुल जाता है. यही कारण है कि कारगिल के लोग केंद्र शासित राज्य बना दिए जाने के पक्ष में कभी नहीं थे. ये लोग एक संयुक्त राज्य के समर्थक थे. इसलिए लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बना देने के खिलाफ कारगिल के लोगों ने भी प्रदर्शन किया.
फिर, उस केंद्र शासित प्रदेश का क्या मतलब होगा जिसकी विधायिका न हो, जिसके अपनी भूमि, रक्षा कानून न हो और रोजगार की सुरक्षा न हो. ये सब पहले अनुच्छेद 370 और 35ए द्वारा संरक्षित था.