हम लद्दाखियों को इंतजार था जिसका “ये वो सहर नहीं”

कारवां के लिए केविन इलांगो

5 अगस्त को नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके बाद सरकार ने क्षेत्र में संपर्क पर रोक लगा दी जो फिलहाल जारी है. सरकार दावा कर रही है कि क्षेत्र में स्थिति सामान्य है और जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोग उसके फैसले से खुश हैं.

इस विषय पर कारवां लेखों की एक श्रृंख्ला “ये वो सहर नहीं” में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों का पक्ष आपके सामने ला रहा है. इसकी पहली कड़ी में पेश है लद्दाखी मार्केटिंग प्रोफेशनल रिगजिन यांगडोल के विचार.

5 अगस्त की सुबह मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा, “कैसा लगा सुनकर?” जब तक मैं उसका सवाल समझ पाती, उसने फिर पूछ लिया, “मेरा मतलब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से.” मैंने जवाब दिया, “हां हम इसकी मांग बरसों से कर रहे हैं और अगर ऐसा होता है तो मुझे खुशी होगी.” मैंने सोचा था कि शायद मेरे दोस्त ने अलग केंद्र शासित राज्य बनाए जाने की मांग को लेकर हमारे किसी नेता के विरोध प्रदर्शन का वीडियो देखा होगा और इसलिए मुझसे यह सवाल पूछ रहा है. बाद में जब मेरे आसपास के लोग जोर-शोर से इसकी बात करने लगे तब मुझे एहसास हुआ कि क्या हुआ है. मैं सोच में पड़ गई. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था. जम्मू-कश्मीर में द्वंद के हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना असंभव-सी लगने वाली बात थी. भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में जहां एक सीधा-साधा कानून बनाने में सालों लग जाते हैं, यह सब अचानक हो गया था. मैंने राहत की सांस ली. लेकिन बाद में जब मैंने केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की प्रक्रिया पर गौर किया, तो आजादी का एहसास गायब हो गया.

मैं 1990 के दशक में लद्दाख की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की गोद में पैदा हुई और पली-बढ़ी. मुझे अपने लद्दाखी होने पर फक्र है. लेकिन स्कूल और मीडिया में लद्दाख कभी दिखाई नहीं देता था. लगता था जैसे किसी भी किताब या राष्ट्रीय स्मारक में हमारे लिए जगह नहीं है. जब मैं बच्ची थी तो यह बात मुझे परेशान करती थी. इससे ज्यादा मैं इस बात से घबराई रहती थी कि हमारी शांत जमीन उग्रवाद की गिरफ्त में आ जाएगी, जैसा कश्मीर में हो रहा था.

जब मैं बड़ी हो रही थी तो मैंने अपने बड़े-बूढ़ों को केंद्र शासित प्रदेश की मांग के लिए लड़ते देखा था. लद्दाखी लोग अमन पसंद हैं और इस देश में अहिंसक आंदोलनों को कोई भाव नहीं देता. केंद्र शासित प्रदेश की मांग राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों में सिमट कर रह गई. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं अपनी जिंदगी में ऐसा होते देख पाऊंगी क्योंकि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों में संपूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य को कश्मीर के दर्पण में देखा-दिखाया जाता है.

हम जो चाहते थे वह हमें मिल तो गया लेकिन इसकी एक कीमत है. लाखों लोगों को बंधक बना लिया गया है, वे दुनिया की ओर से कैद कर दिए गए हैं. वक्त ही बताएगा कि कितने बेगुनाह मारे गए. लद्दाख को मिली इस नई पहचान का हम सब तहे दिल से स्वागत करते अगर यह बातचीत के जरिए लोकतांत्रिक तरीके से हासिल होती. हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या समझाएंगे?

मैं खुश हूं कि हमारी अलग पहचान को मान्यता मिली है लेकिन जो भविष्य दूर से हमें तक रहा है उसे देख मैं सिहर उठती हूं. हमारे संवेदनशील पर्यावरण पर इस फैसले का क्या असर पड़ेगा? क्या कारोबारी विकास की तेज आंधी हमारे मूल पर्यावरण को उजाड़ देगी? या इससे जंस्कार जैसे दुर्गम इलाकों में विकास की रोशन पहुंचेगी जहां आज भी बिजली, दूरसंचार और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं.