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तुम बहादुरी से लड़े, कॉमरेड
देश के लिए कर दिया खुद को कुर्बान
बसंत का लाल रंग
तुम्हारे खून से है
- जुनमाया नेपाली, "गर्म खून का प्रतिशोध"
मेरे बचपन में एक लंबे वक्त तक काठमांडू में मेरे दादा-दादी के कमरे की दीवार पर एक पुरानी तस्वीर टंगी रही. तस्वीर हमारे परदादा की थी. कम से कम हम बच्चों को तो यही बताया गया था. इसे हटाए जाने के बाद ही मुझे पता चला कि वास्तव में यह तस्वीर जोसेफ स्टालिन की थी. मेरे दादाजी, जो उन दिनों एक कट्टर कम्युनिस्ट थे, स्टालिन के मुरीद थे.
यह पता लगना कि इतने सालों से स्टालिन हम पर नजर रखे हुए थे और मेरा राजनीतिक जागरण संयोग से साथ ही हुआ था. 1990 के दशक के अंत में नेपाल के गृहयुद्ध के शुरुआती दिनों में देश में जो कुछ भी हो रहा था, उससे मुझे दूर ही रखा गया था. काठमांडू में रहते हुए, उन इलाकों से दूर जो संघर्ष के केंद्र थे, वहां केवल फुसफुसाहटें थीं : दो पुलिस अधिकारी एक घात में मारे गए, सात ग्रामीणों की माओवादी होने के शक में गोली मारकर हत्या कर दी गई. 2001 में माओवादियों द्वारा शाही नेपाली सेना के बैरकों पर हमला करने और कई उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारियों को मारने के बाद, राजा ने आपातकाल की घोषणा कर दी. अब हमलों की ज्यादा लगातार और अपरिहार्य खबरों के साथ, मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी और नागरिक अधिकारों में कटौती के साथ-साथ मुझ सहित सभी की चेतना में संघर्ष तारी हो गया.
जनयुद्ध 13 फरवरी 1996 को शुरू हुआ था. माओवादियों ने तीन स्थानों पर पुलिस चौकियों पर एकसाथ हमले किए थे. इनमें से एक पश्चिमी नेपाल के रोल्पा जिले के एक छोटे से शहर होलेरी में और दूसरे पड़ोसी जिले रुकुम में थीं. रोल्पा और रुकुम जल्द ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के मजबूत केंद्र और गृहयुद्ध का गढ़ बन गए. संघर्ष खत्म होने से पहले, एक दशक बाद शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ, इन जिलों में राज्य बलों की कुछ सबसे क्रूर कार्रवाइयां देखी गईं. देश भर में युद्ध ने भारी तबाही मचाई: लगभग 17000 मौतें, 2506 लापता, हजारों विकलांग और लाखों विस्थापित हुए.
राज्य ने जितना दमन किया उतना ही माओवादियों अपनी जनमुक्ति सेना में लोगों को भर्ती करने में सफल रहे. कई लोगों को जोर जबरदस्ती से भर्ती किया गया था, लेकिन ज्यादतर लोगों ने राजशाही को खत्म करने और एक लोकतांत्रिक जन गणतंत्र की स्थापना के लिए तहे दिल से जनयुद्ध का समर्थन किया. एक पत्रकार और पूर्व पीएलए सेनानी मौसम रोका के शब्दों में, माओवादी कैडर का मानना था कि "कोई व्यवस्था जो बंदूक की नली पर टिकी हो, उसे केवल बंदूक से ही ध्वस्त किया जा सकता है." एक आकस्मिक बम विस्फोट में एक हाथ गवांने के बाद, रोका ने पार्टी का रेडियो स्टेशन “रेडियो जन गणतंत्र” चलाया, जो कभी-कभी हमलों के दौरान लाइव प्रसारण करता था. "सैनिक अक्सर युद्ध में जाने से पहले हाथ मिलाते थे और वे एक-दूसरे से कहते थे कि अगर वे शहीद हुए तो अगले जन्म में मिलेंगे," उन्होंने याद किया. "मुझे अभी भी हैरानी होती है कि किस तरह की विचारधारा रही होगी जो लोग बाहें फैलाकर मौत का सामना करने को तैयार थे."
2006 में शांति समझौते के बाद माओवादियों ने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया. दो साल बाद शाह राजवंश, जिसने लगभग ढाई सौ सालों तक देश पर शासन किया था, को औपचारिक रूप से हटा दिया गया था और नेपाल एक संघीय गणराज्य बन गया था. माओवादियों ने तब से कई सरकारों का नेतृत्व किया है या उनका हिस्सा रहे हैं और देश ने कुछ ऐतिहासिक बदलाव देखे हैं, जिनमें से कई नेकपा (माओवादी) की मूल मांगों का हिस्सा हैं: उदाहरण के लिए, एक नए संविधान का निर्माण और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में संक्रमण. फिर भी पार्टी ने अपने समर्थकों और लड़ाकों से जो वादा किया था वह पूरा नहीं हुआ है.
रोल्पा और रुकुम की यात्रा करते हुए मैं उन लोगों से मिला जिन्होंने दोनों तरफ से लड़ाई लड़ी, और दोनों पक्षों द्वारा किए गए अत्याचारों की कहानियां भी सुनीं. युद्ध को समाप्त करने वाली संधि ने युद्धकालीन अपराधों के लिए न्याय और सुलह की प्रक्रिया का वादा किया लेकिन जिन लोगों ने लड़ाई का खामियाजा भुगता उन्होंने इन उम्मीदों को खाली सपनों में सिमटते देखा है. समतामूलक नए समाज में विश्वास रखने वाले जिन लोगों ने बढ़-चढ़ कर संघर्ष किया उन्होंने हार मान ली है.
नेकपा (माओवादी) की दलित एरिया कमेटी की सदस्य रोल्पा की कवि जुनमाया नेपाली ने सरकारी सेना से बचकर लगभग एक महीने तक अपने बच्चों के साथ जंगल में घूमते हुए बिताए. उन्होंने उस वक्त का जिक्र किया जब उनके पास खाने को केवल एक मकई का दाना था जिसे उन्होंने दो तुकड़ों में तोड़ कर अपने बच्चों को खिलाया. "युद्ध खत्म होने के बाद हमें उम्मीद थी कि विकास होगा और हम शांति से रह सकेंगे," जुनमाया ने कहा. "हमने कोई विकास नहीं देखा लेकिन कम से कम शांति तो है. हमें भूमिगत होने की जरूरत नहीं है. किसी से डरने की जरूरत नहीं है.
रोल्पा के लिवांग की मीना नेपाली अपने दूसरे बच्चे के साथ सात महीने की गर्भवती थी, जब माओवादियों ने उसके पति, तिलक राम नेपाली का अपहरण कर लिया, जो एक स्कूल शिक्षक थे. उनका शव 18 दिन बाद लिवांग से कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के नीचे मिला, उनकी शर्ट की जेब में उनके परिवार को संबोधित एक पत्र था. इसमें लिखा था, "जयेंद्र की मां, मेरी जीवन साथी, मेरी पत्नी मीना, अगर मैं कभी घर नहीं लौटा तो तुम्हारी गोद में मेरा एक अंश, मेरे शरीर का एक हिस्सा, हमारा बेटा जयेंद्र है. उसे देखकर तसल्ली कर लेना. तुम्हारी कोख में एक और बच्चा है जो दो महीने में पैदा होगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह लड़का है या लड़की, उसका ख्याल रखना, बच्चे की रक्षा करना. भले ही चीजें मुश्किल हों लेकिन उम्मीद मत खोना."
मीना ने याद किया कि उनकी सबसे छोटी बेटी कहती कि वह पुलिस या सेना में शामिल होना चाहती है और अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए माओवादियों को मारना चाहती है. "मैं उससे कहती हूं कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, किसी को बदला नहीं लेना चाहिए," मीना ने कहा. "उसने अब अपना मन बदल लिया है. वह आगे पढ़ाई करना चाहती है लेकिन हमारे लिए आर्थिक रूप से यह मुश्किल है."
कई लोगों के लिए युद्ध में किसी भी पक्ष में शामिल होने का निर्णय बदला लेने की इच्छा से शुरू हुआ. रोल्पा निवासी बहादुर पुन पुलिस में भर्ती हो गए क्योंकि माओवादियों ने उसके पिता की हत्या कर दी थी. रुकुम के गणेश खड़का पुलिस के हाथों अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए पीएलए में सिपाही बने. युद्ध के दौरान ऐसे उदाहरण आम थे.
संगीत पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण प्रचार साधनों में से एक था, जिसका उपयोग लड़ाकों को भर्ती करने और सदस्यों को प्रेरित करने के साथ-साथ व्यापक जनता को प्रभावित करने के लिए किया जाता था. एक संगीतकार और पार्टी की सांस्कृतिक शाखा के सदस्य झंकार बुडा मगर ने कहा, "हम उन जगहों की धुनों का इस्तेमाल करते थे जहां हमें बजाना होता." मगर ने याद किया कि माओवादियों का संगीत इतना शक्तिशाली था कि प्रतिद्वंद्वी दलों के सदस्यों को भी नेकपा (माओवादी) में परिवर्तित कर सकता था. "भाषण लोगों को उतना प्रभावित नहीं करते जितना संगीत कर सकता है," उन्होंने समझाया. "इसीलिए उन्होंने युद्ध के दौरान संगीत का इस्तेमाल किया."
"मैं विदा लेता हूं, कॉमरेड. इस भौतिक जीवन को क्रांति के लिए बलिदान कर रहा हूं"
मैं जा रहा हूं अपने दोस्तों को हमेशा के लिए छोड़कर
लड़ते-लड़ते मैं ढह गया, बराए मेहरबारी इस खबर को मेरे घर पहुंचा दें
कृपया मेरे माता-पिता से कहें कि वे अपने मर चुके बेटे की चिंता में ज्यादा न रोएं."
युद्ध से पहले, माओवादियों ने सैनिकों को लड़ने, प्रोत्साहित करने के लिए वीरता और साहस का आह्वान करने वाले गीत गाए. बाद में उन्होंने मृतकों के शोक में दुख से भरे गीत गाए. "युद्ध : मोर्चाबाटा फरकँदा ”-“ युद्ध भूमि से वापसी ” में खुशी राम पखरीन ने अपने इस ओपेरा में दोनों तरह की भावनाओं को समेटा है. यह एक पीएलए सैनिक की एक सपने के साथ युद्ध में जाने और मारे जाने की कहानी बयान करता है और एक नया नेपाल बनाने के लिए जीवित बचे लोगों का आह्वान करता है :
तुमको यह आखिरी लड़ाई लड़नी होगी और जीतनी होगी
रोते हुए दिल, पसीने से लथपथ देह
एक नए सवेरे का इंतजार कर रहे हैं
अक्टूबर 2005 में चुनबांग सम्मेलन, जिसमें नेकपा (माओवादी) राजशाही के खिलाफ बने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए सहमत हुई थी, के दौरान इस ओपेरा का प्रदर्शन किया गया था. इस सहमति ने 2006 के जनआंदोलन को जन्म दिया. इसने लोकतांत्रिक संसद को बहाल किया जिसे आपातकाल की स्थिति में भंग कर दिया गया था और शांति का मार्ग प्रशस्त हुआ. दर्शकों में उस दिन नेकपा (माओवादी) के लगभग सभी शीर्ष नेता थे और ओपेरा ने उनमें से कइयों की आंखें नम कर दी.
पार्टी के सत्ता में आने के बाद, माओवादी क्रांति का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा रहे संगीतकारों को किनारे कर दिया गया. "आप जानते हैं कि वे कैसे कहते हैं कि इस्तेमाल करो और फेंको?" चुनबांग सम्मेलन में प्रदर्शन करने वालों में से एक झंकार ने कहा. "इस तरह मुझे लगता है कि पार्टी ने हम संगीतकारों के साथ व्यवहार किया है."
नेपाल के बाकी हिस्सों की तरह, रोल्पा में आव्रजन एक बड़ा मुद्दा है. हर साल हजारों लोग जिला छोड़ कर चले जाते हैं. युद्ध के दौरान गांवों और कस्बों में ज्यादातर केवल बूढ़े लोग ही बचे थे क्योंकि युवा पार्टी में शामिल हो गए थे और उन्हें भूमिगत होना पड़ा था. चूंकि माओवादियों के वादे का आर्थिक बदलाव कभी नहीं आया है इसलिए ऐतिहासिक रूप से ही गरीब जिले रोल्पा में जीवन कठिन बना हुआ है.
रोल्पा के एक पूर्व पीएलए सेनानी, कॉमरेड सुमन ने कहा, "पीछे मुड़कर देखने पर मुझे लगता है कि यह सब एक काल्पनिक कहानी थी. लेकिन हम वहां थे, हम जिंदा इतिहास का हिस्सा हैं." सुमन, जो अभी भी एक सक्रिय पार्टी सदस्य हैं, ने दावा किया कि वह कई लड़ाइयों में मरते-मरते बचे और लगभग बीस गोलियां उन्हें लगी हैं. अब वह मायूस है और कहते हैं, "हमने जो कुछ भी किया, शायद हमने यह सिर्फ उनके (पार्टी नेताओं) लिए किया." फिर भी उन्हें अभी भी पार्टी में विश्वास है, भले ही उन्हें एक और क्रांति की उम्मीद नहीं है. सुमन ने कहा कि क्रांति केवल दो स्थितियों में संभव होगी : सबसे पहले, देश के सभी दूरसंचार टावरों को उड़ा देना होगा क्योंकि अब सभी के पास फोन है और अधिकारी उन्हें ट्रैक करने के लिए उनका उपयोग कर सकते है. दूसरा, युवाओं को छलने वाले विदेशी रोजगार को रोकना होगा. "वर्तमान संदर्भ में यह संभव नहीं है," उन्होंने अफसोस जताया.
युद्ध की स्मृति हर उस व्यक्ति के मन में अंकित है जो इससे गुजरा है, चाहे वह काठमांडू में हो जहां अत्याचारों और लड़ाई की खबरें मुश्किल से सुनने को मिलतीं, या उन जगहों पर जहां वास्तव में हिंसा की कीमत चुकाई जा रही थी. स्मृति न केवल लोगों में बल्कि माहौल में भी रची बसी है. "गुरिल्ला युद्ध जंगलों में होता है इसलिए वे हमारे लिए बहुत कीमती थे," कॉमरेड सुमन ने कहा. "वहां से हम गुजरें तो पेड़ जरूर हमें लाल सलाम कह रहे होंगे." लेकिन युद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी के लिए, यह अक्सर इतिहास की एक घटना के रूप में प्रकट होता है, न कि नेपाल के हाल के दिनों की सबसे महत्वपूर्ण घटना के रूप में. स्कूल के पाठ्यक्रम में, इसका जिक्र केवल एक या दो वाक्यों में किया जाता है. जब मैंने अपने छोटे चचेरे भाइयों से इसके बारे में पूछा, तो उनमें से कोई भी नहीं जानता था कि इसमें शामिल लोग कौन थे, युद्ध क्यों हुआ या इसके क्या परिणाम हुए.
कॉमरेड लाल, जो कभी पार्टी के वफादार सदस्य थे, पछताते हैं : "अगर युद्ध जो विजय के इतना करीब था, उसे इस तरह ध्वस्त किया जा सकता है, तो क्रांति का क्या उपयोग है?"
माता, पिता, भाइयो और बहनो,
आओ हम अपना बदला लेने के लिए दुख को हथियार में बदल दें.
अगर हम मर जाएं, तो एक-दो आंसू हमारे लिए बहा देना
जो हम जीत गए तो जैसे पहले मिलते थे वैसे ही मिलेंगे.
- जुनमाया नेपाली, "गर्म खून का प्रतिशोध"
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