वसंत का रंग लाल

फोटो फीचर : नेपाल में गृहयुद्ध के बाद का जीवन

फोटोग्राफ और आलेख Prasiit Sthapit अतिरिक्त रिपोर्टिंग Roshan Maharjan
18 May, 2022

तुम बहादुरी से लड़े, कॉमरेड

देश के लिए कर दिया खुद को कुर्बान

बसंत का लाल रंग

तुम्हारे खून से है

- जुनमाया नेपाली, "गर्म खून का प्रतिशोध"

मेरे बचपन में एक लंबे वक्त तक काठमांडू में मेरे दादा-दादी के कमरे की दीवार पर एक पुरानी तस्वीर टंगी रही. तस्वीर हमारे परदादा की थी. कम से कम हम बच्चों को तो यही बताया गया था. इसे हटाए जाने के बाद ही मुझे पता चला कि वास्तव में यह तस्वीर जोसेफ स्टालिन की थी. मेरे दादाजी, जो उन दिनों एक कट्टर कम्युनिस्ट थे, स्टालिन के मुरीद थे.

यह पता लगना कि इतने सालों से स्टालिन हम पर नजर रखे हुए थे और मेरा राजनीतिक जागरण संयोग से साथ ही हुआ था. 1990 के दशक के अंत में नेपाल के गृहयुद्ध के शुरुआती दिनों में देश में जो कुछ भी हो रहा था, उससे मुझे दूर ही रखा गया था. काठमांडू में रहते हुए, उन इलाकों से दूर जो संघर्ष के केंद्र थे, वहां केवल फुसफुसाहटें थीं : दो पुलिस अधिकारी एक घात में मारे गए, सात ग्रामीणों की माओवादी होने के शक में गोली मारकर हत्या कर दी गई. 2001 में माओवादियों द्वारा शाही नेपाली सेना के बैरकों पर हमला करने और कई उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारियों को मारने के बाद, राजा ने आपातकाल की घोषणा कर दी. अब हमलों की ज्यादा लगातार और अपरिहार्य खबरों के साथ, मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी और नागरिक अधिकारों में कटौती के साथ-साथ मुझ सहित सभी की चेतना में संघर्ष तारी हो गया.

 

कॉमरेड प्रतिरोध, काठमांडू, 26 फरवरी 2020. भीम बहादुर रोका, जिन्हें कॉमरेड प्रतिरोध के नाम से भी जाना जाता है, जनमुक्ति सेना में एक सैनिक थे. वह कई लड़ाइयों में शामिल रहे और विभिन्न रैंकों के कमांडर बन गए. युद्ध के दौरान उन्होंने अपने एक छोटे भाई, एक बहनोई और चार उप-कमांडरों को खो दिया. "अगर मैं कम्युनिस्ट नहीं होता, तो मेरे गांव के आसपास के बहुत से लोग साथ नहीं आते," उन्होंने कहा. आज देश और पार्टी की जो स्थिति उसको देखते हुए वह "मेरे जैसे कई सैनिकों की मौत के लिए दुखी और जिम्मेदार" महसूस करते हैं. युद्ध में जीवित रहने और कई अन्य लोगों को मरते हुए देखने के बाद, उन्होंने जन मुक्ति सेना के उन सेनानियों के बच्चों के लिए काठमांडू में अनाथालय खोला है जो मारे गए हैं. उन्हें अब भी गर्व है कि वह एक ऐतिहासिक आंदोलन का हिस्सा थे.
माओवादी पर्चा. 13 फरवरी 1996 को माओवादियों ने रोल्पा के होलेरी में एक पुलिस चौकी पर हमला किया. यह एक साथ किए गए उन तीन हमलों में से एक था जिसने नेपाल के एक दशक लंबे गृहयुद्ध की शुरुआत कर दी. कुछ हथियार लेकर वे नारे लगाते और इस पर्चे की प्रतियां बांटते गए. इसमें लिखा है, "प्रतिक्रियावादी राज्य को नष्ट करने और एक नए लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना के लिए जनयुद्ध के रास्ते पर आगे बढ़ो." “विद्रोह जनता का अधिकार है.”
रोल्पा जिले के होलेरी में एक अधूरा स्मारक, 15 अक्टूबर 2019. यह स्मारक, जो अभी भी निर्माणाधीन है, 13 फरवरी 1996 को माओवादी लड़ाकों द्वारा हमला किए गए पुलिस स्टेशन की साइट पर खड़ा है. 12 जुलाई 2001 को इस पर फिर से हमला किया गया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई थी और 70 को पकड़ लिया गया था. जिन्हें तीन महीने बाद छोड़ा गया.

जनयुद्ध 13 फरवरी 1996 को शुरू हुआ था. माओवादियों ने तीन स्थानों पर पुलिस चौकियों पर एकसा​थ हमले किए थे. इनमें से एक पश्चिमी नेपाल के रोल्पा जिले के एक छोटे से शहर होलेरी में और दूसरे पड़ोसी जिले रुकुम में थीं. रोल्पा और रुकुम जल्द ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के मजबूत केंद्र और गृहयुद्ध का गढ़ बन गए. संघर्ष खत्म होने से पहले, एक दशक बाद शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ, इन जिलों में राज्य बलों की कुछ सबसे क्रूर कार्रवाइयां देखी गईं. देश भर में युद्ध ने भारी तबाही मचाई: लगभग 17000 मौतें, 2506 लापता, हजारों विकलांग और लाखों विस्थापित हुए.

राज्य ने जितना दमन किया उतना ही माओवादियों अपनी जनमुक्ति सेना में लोगों को भर्ती करने में सफल रहे. कई लोगों को जोर जबरदस्ती से भर्ती किया गया था, लेकिन ज्यादतर लोगों ने राजशाही को खत्म करने और एक लोकतांत्रिक जन गणतंत्र की स्थापना के लिए तहे दिल से जनयुद्ध का समर्थन किया. एक पत्रकार और पूर्व पीएलए सेनानी मौसम रोका के शब्दों में, माओवादी कैडर का मानना था कि "कोई व्यवस्था जो बंदूक की नली पर टिकी हो, उसे केवल बंदूक से ही ध्वस्त किया जा सकता है." एक आकस्मिक बम विस्फोट में एक हाथ गवांने के बाद, रोका ने पार्टी का रेडियो स्टेशन “रेडियो जन गणतंत्र” चलाया, जो कभी-कभी हमलों के दौरान लाइव प्रसारण करता था. "सैनिक अक्सर युद्ध में जाने से पहले हाथ मिलाते थे और वे एक-दूसरे से कहते थे कि अगर वे शहीद हुए तो अगले जन्म में मिलेंगे," उन्होंने याद किया. "मुझे अभी भी हैरानी होती है कि किस तरह की विचारधारा रही होगी जो लोग बाहें फैलाकर मौत का सामना करने को तैयार थे."

रुकुम के महत में भित्तिचित्र यानी म्यूरल, 20 अक्टूबर 2019. इस भित्तिचित्र में 22 सितंबर 1999 को क्षेत्र के पुलिस उपाधीक्षक ठुले राई को माओवादियों द्वारा कब्जे में लिए जाने को दर्शाया गया है. बाद में उन्हें एक शीर्ष माओवादी नेता देव गुरुंग के बदले में रिहा कर दिया गया था.
तारा और रामकली खड़का, पोखरी, रुकुम, 22 अक्टूबर 2019. 22 फरवरी 2000 को रामकली के पति, लक्ष्मी खडका की पुलिस ने उसके घर के पास ही गोली मारकर हत्या कर दी थी. खडका किसान थे. पुलिस ने उस दिन 14 अन्य लोगों की भी गोली मार कर हत्या कर दी थी और इलाके के लगभग सत्तर घरों में आग लगा दी थी. तीन महीने बाद रामकली के घर तारा का जन्म हुआ.

2006 में शांति समझौते के बाद माओवादियों ने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया. दो साल बाद शाह राजवंश, जिसने लगभग ढाई सौ सालों तक देश पर शासन किया था, को औपचारिक रूप से हटा दिया गया था और नेपाल एक संघीय गणराज्य बन गया था. माओवादियों ने तब से कई सरकारों का नेतृत्व किया है या उनका हिस्सा रहे हैं और देश ने कुछ ऐतिहासिक बदलाव देखे हैं, जिनमें से कई नेकपा (माओवादी) की मूल मांगों का हिस्सा हैं: उदाहरण के लिए, एक नए संविधान का निर्माण और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में संक्रमण. फिर भी पार्टी ने अपने समर्थकों और लड़ाकों से जो वादा किया था वह पूरा नहीं हुआ है.

रोल्पा और रुकुम की यात्रा करते हुए मैं उन लोगों से मिला जिन्होंने दोनों तरफ से लड़ाई लड़ी, और दोनों पक्षों द्वारा किए गए अत्याचारों की कहानियां भी सुनीं. युद्ध को समाप्त करने वाली संधि ने युद्धकालीन अपराधों के लिए न्याय और सुलह की प्रक्रिया का वादा किया लेकिन जिन लोगों ने लड़ाई का खामियाजा भुगता उन्होंने इन उम्मीदों को खाली सपनों में सिमटते देखा है. समतामूलक नए समाज में विश्वास रखने वाले जिन लोगों ने ​बढ़-चढ़ कर संघर्ष किया उन्होंने हार मान ली है.

शहीद रोड, रोल्पा, 16 अक्टूबर 2019. नुवागांव को थवांग से जोड़ने वाली शहीद रोड माओवादियों की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक थी. यह रोल्पा और पड़ोसी जिलों में परिवारों के अनिवार्य श्रम और नकदी की मदद से तैयार हुई थी.
गुना बहादुर बीके, जलजला, रोल्पा, 18 फरवरी 2020. गुना थबांग के बहादुर बीके पारंपरिक रूप से अछूत मानी जाने वाली जाति से हैं. वह माओवादियों के साथ शामिल नहीं थे लेकिन उन्हें जबरन पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों में ले जाया जाता था. कभी-कभी वहां पहुंचने के लिए कई दिनों तक पैदल चलना पड़ता था. ऐसी ही एक यात्रा के बारे में वह कहते हैं, “मुझे रात बिताने के लिए एक ब्राह्मण के घर भेजा गया. उन्होंने हमसे पूछा कि मैं कौन सी जाति का हूं? जब मैंने कहा दलित हूं तो उन्होंने कहा कि मैं अंदर नहीं आ सकता क्योंकि मैं अछूत हूं और अगर मैं अंदर आया तो उनका घर अशुद्ध हो जाएगा. मैं जबरदस्ती अंदर घुस गया. मैंने उनसे कहा कि हम ठीक इसी चीज, जातिगत भेदभाव, के खिलाफ लड़ रहे हैं."
कांकरी, रुकुम के ऊपर उठता धुआं. 23 अक्टूबर 2019. पीएलए के पास हथियारों और विस्फोटकों के निर्माण और रखरखाव के लिए जिम्मेदार एक तकनीकी शाखा थी. वे अक्सर जंगलों में मोबाइल कार्यशालाओं से संचालित होते थे. कॉमरेड सुमन ने याद करते हुए बताया, "ये पेड़ हमारी सुरक्षा थे और हमने बदले में उनकी रक्षा की. गुरिल्ला युद्ध जंगलों में होता है, इसलिए वे हमारे लिए बहुत कीमती थे. वे हमें लाल सलाम दे करते जब हम उनके पास से गुजरते.”

नेकपा (माओवादी) की दलित एरिया कमेटी की सदस्य रोल्पा की कवि जुनमाया नेपाली ने सरकारी सेना से बचकर लगभग एक महीने तक अपने बच्चों के साथ जंगल में घूमते हुए बिताए. उन्होंने उस वक्त का जिक्र किया जब उनके पास खाने को केवल एक मकई का दाना था जिसे उन्होंने दो तुकड़ों में तोड़ कर अपने बच्चों को खिलाया. "युद्ध खत्म होने के बाद हमें उम्मीद थी कि विकास होगा और हम शांति से रह सकेंगे," जुनमाया ने कहा. "हमने कोई विकास नहीं देखा लेकिन कम से कम शांति तो है. हमें भूमिगत होने की जरूरत नहीं है. किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

 

कॉमरेड सुमन का फोन, लिस्ने लेक, रोल्पा. 15 फरवरी 2020. कॉमरेड सुमन अपनी एक पुरानी पीएलए की तस्वीर दिखाते हुए.
कॉमरेड सुमन, राज्य पोखरी, रोल्पा . 15 फरवरी 2020. देवेंद्र घर्ति मगर, जिन्हें कॉमरेड सुमन के नाम से भी जाना जाता है, पीएलए में एक सैनिक थे. उन्होंने बताया कि 7 मई 2002 को गाम की लड़ाई के दौरान वह इतनी बुरी तरह से घायल हो गए थे कि उनके साथी सैनिकों को लगा कि उनकी मौत हो गई है. वह बच गए और उन्हें सर्जरी के लिए लखनऊ ले जाया गया, उन्होंने कहा, जहां उन्हें लगभग भारतीय पुलिस ने पकड़ ही लिया था. वापस नेपाल लौटने पर, वह लड़ते रहे और कई बार फिर से घायल हो गए- उन्होंने दावा किया कि उन्हें कुल मिलाकर लगभग बीस गोलियां लगीं थी. उनके शरीर के बायें भाग में कोई हरकत नहीं है.

रोल्पा के लिवांग की मीना नेपाली अपने दूसरे बच्चे के साथ सात महीने की गर्भवती थी, जब माओवादियों ने उसके पति, तिलक राम नेपाली का अपहरण कर लिया, जो एक स्कूल शिक्षक थे. उनका शव 18 दिन बाद लिवांग से कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के नीचे मिला, उनकी शर्ट की जेब में उनके परिवार को संबोधित एक पत्र था. इसमें लिखा था, "जयेंद्र की मां, मेरी जीवन साथी, मेरी पत्नी मीना, अगर मैं कभी घर नहीं लौटा तो तुम्हारी गोद में मेरा एक अंश, मेरे शरीर का एक हिस्सा, हमारा बेटा जयेंद्र है. उसे देखकर तसल्ली कर लेना. तुम्हारी कोख में एक और बच्चा है जो दो महीने में पैदा होगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह लड़का है या लड़की, उसका ख्याल रखना, बच्चे की रक्षा करना. भले ही चीजें मुश्किल हों लेकिन उम्मीद मत खोना."

मीना ने याद किया कि उनकी सबसे छोटी बेटी कहती कि वह पुलिस या सेना में शामिल होना चाहती है और अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए माओवादियों को मारना चाहती है. "मैं उससे कहती हूं कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, किसी को बदला नहीं लेना चाहिए," मीना ने कहा. "उसने अब अपना मन बदल लिया है. वह आगे पढ़ाई करना चाहती है लेकिन हमारे लिए आर्थिक रूप से यह मुश्किल है."

 

भांग के रेशे से बुनाई, रचीबांग, रोल्पा. 19 अक्टूबर 2019. भांग रोल्पा और रुकुम में सबसे आम फसलों में से एक है. पौधे का कुछ भी बर्बाद नहीं होता है: पत्तियों, फूलों और फलों को हशीश और मारूआना के उत्पादन के लिए काटा जाता है, खाना पकाने और दवा के रूप में उपयोग के लिए बीज से तेल निकाला जाता है और तने का इस्तेमाल थोड़ा सुधार कर धागा बनाने के लिए किया जाता है. विशेषज्ञों का तर्क है कि अगर नेपाल में भांग को पूरी तरह से वैध कर दिया गया, तो इससे गरीब और दूरदराज के रोल्पा और रुकुम जैसे जिलों को बहुत लाभ होगा .
नंदकली के हाथ, कुरल, रुकुम, 22 अक्टूबर 2019. नंदकली ओली 22 फरवरी 2000 को पुलिस के हाथों पांच लोगों की हत्या की अकेली चश्मदीद थी. पुलिस ने उस दिन दस अन्य लोगों को भी गोली मार दी और इलाके के लगभग 70 घरों में आग लगा दी. उस सुबह माओवादियों द्वारा उनके एक अधिकारी की हत्या कर दिए जाने के बाद वे भड़क गए थे. मारे गए पांच लोग उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी नेपाली कांग्रेस के सदस्य थे. नंदकली पुलिस की बात याद करते हुए बताती हैं कि जाते हुए उन्होंने कहा, "आज इस गांव में बहुत मजाआया."

कई लोगों के लिए युद्ध में किसी भी पक्ष में शामिल होने का निर्णय बदला लेने की इच्छा से शुरू हुआ. रोल्पा निवासी बहादुर पुन पुलिस में भर्ती हो गए क्योंकि माओवादियों ने उसके पिता की हत्या कर दी थी. रुकुम के गणेश खड़का पुलिस के हाथों अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए पीएलए में सिपाही बने. युद्ध के दौरान ऐसे उदाहरण आम थे. 

चैतोर बहादुर और गौमाला पुन मगर, हरजंग, रोल्पा, 16 फरवरी 2020. गौमाला के पति ऐभान पुन ने 11 मार्च 1999 को रोल्पा के हरजंग में नेकपा (माओवादी) के विरोधी दलों की एक बैठक में भाग लिया था. माओवादियों ने उस घर को बंद कर दिया और आग लगा दी. सात लोगों को जिंदा जला दिया गया और भागने की कोशिश में ऐभान की गोली मार कर हत्या कर दी गई. गौमाला के लिए सबसे दुखद बात यह है कि उनके बेटे चैतोर को अपने पिता की याद भी नहीं आती. उस समय चैतौर केवल दो साल का था. उसका भाई निमो बहादुर अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए पुलिस में शामिल हो गया.
पांच कम्युनिस्ट आइकन, थबांग, रोल्पा का एक भित्तिचित्र. 19 अक्टूबर 2019. यह भित्तिचित्र थबांग के मुख्य प्रवेश द्वार को सुशोभित करता है. थबांग युद्ध शुरू होने से पहले ही नेपाल में कम्युनिस्ट आंदोलन के गढ़ के रूप में ख्याति पा चुका था. क्षेत्र की विद्रोही प्रकृति ने 1995 में ऑपरेशन रोमियो और 1998 में ऑपरेशन किलो सिएरा-2 जैसे कई राजकीय दमनों को न्योता दिया.

संगीत पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण प्रचार साधनों में से एक था, जिसका उपयोग लड़ाकों को भर्ती करने और सदस्यों को प्रेरित करने के साथ-साथ व्यापक जनता को प्रभावित करने के लिए किया जाता था. एक संगीतकार और पार्टी की सांस्कृतिक शाखा के सदस्य झंकार बुडा मगर ने कहा, "हम उन जगहों की धुनों का इस्तेमाल करते थे जहां हमें बजाना होता." मगर ने याद किया कि माओवादियों का संगीत इतना शक्तिशाली था कि प्रतिद्वंद्वी दलों के सदस्यों को भी नेकपा (माओवादी) में परिवर्तित कर सकता था. "भाषण लोगों को उतना प्रभावित नहीं करते जितना संगीत कर सकता है," उन्होंने समझाया. "इसीलिए उन्होंने युद्ध के दौरान संगीत का इस्तेमाल किया."

"रिटर्न फ्रॉम द बैटलफील्ड" फिल्म का एक दृश्य.

"मैं विदा लेता हूं, कॉमरेड. इस भौतिक जीवन को क्रांति के लिए बलिदान कर रहा हूं"

मैं जा रहा हूं अपने दोस्तों को हमेशा के लिए छोड़कर

लड़ते-लड़ते मैं ढह गया, बराए मेहरबारी इस खबर को मेरे घर पहुंचा दें

​कृपया मेरे माता-पिता से कहें कि वे अपने मर चुके बेटे की चिंता में ज्यादा न रोएं."

 

"रिटर्न फ्रॉम द बैटलफील्ड" फिल्म का एक दृश्य.

युद्ध से पहले, माओवादियों ने सैनिकों को लड़ने, प्रोत्साहित करने के लिए वीरता और साहस का आह्वान करने वाले गीत गाए. बाद में उन्होंने मृतकों के शोक में दुख से भरे गीत गाए. "युद्ध : मोर्चाबाटा फरकँदा ”-“ युद्ध भूमि से वापसी ” में खुशी राम पखरीन ने अपने इस ओपेरा में दोनों तरह की भावनाओं को समेटा है. यह एक पीएलए सैनिक की एक सपने के साथ युद्ध में जाने और मारे जाने की कहानी बयान करता है और एक नया नेपाल बनाने के लिए जीवित बचे लोगों का आह्वान करता है :

तुमको यह आखिरी लड़ाई लड़नी होगी और जीतनी होगी

रोते हुए दिल, पसीने से लथपथ देह

एक नए सवेरे का इंतजार कर रहे हैं

 

सूखने के लिए छोड़ा दिया गया एक तख्ता, चुनबांग, रुकुम, 22 फरवरी 2020. यह वह स्थान था जहां चुनबांग सम्मेलन के बाद माओवादी कैडर और नेतृत्व के लिए ओपेरा "रिटर्निंग फ्रॉम द बैटलफील्ड" का प्रदर्शन किया गया था. नेकपा (माओवादी) की केंद्रीय समिति ने राजशाही के खिलाफ मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के गठबंधन के साथ गठबंधन करने के लिए सम्मेलन में सहमति व्यक्त की. इसने 2006 के जन आंदोलन को जन्म दिया जिसने संसद को बहाल किया और शांति का मार्ग प्रशस्त किया.
पुष्प कमल दाहाल “प्रचंड” और बाबुराम भट्टराई का वीडियो से निकाला फोटो. नेकपा (माओवादी) के चुनबांग सम्मेलन की इस तस्वीर में पार्टी के दो शीर्ष नेताओं दाहाल और भट्टराई ओपेरा “युद्ध मोर्चाबाटा फरकँदा”- युद्ध भूमि से वापसी देख रहे हैं. उस दिन दर्शकों में से कइयों के आंसू छलक पड़े थे.
हंसिया हथौड़ा, थवांग, रोल्पा . 20 अक्टूबर 2019.

अक्टूबर 2005 में चुनबांग सम्मेलन, जिसमें नेकपा (माओवादी) राजशाही के खिलाफ बने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए सहमत हुई थी, के दौरान इस ओपेरा का प्रदर्शन किया गया था. इस सहमति ने 2006 के जनआंदोलन को जन्म दिया. इसने लोकतांत्रिक संसद को बहाल किया जिसे आपातकाल की स्थिति में भंग कर दिया गया था और शांति का मार्ग प्रशस्त हुआ. दर्शकों में उस दिन नेकपा (माओवादी) के लगभग सभी शीर्ष नेता थे और ओपेरा ने उनमें से कइयों की आंखें नम कर दी.

पार्टी के सत्ता में आने के बाद, माओवादी क्रांति का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा रहे संगीतकारों को किनारे कर दिया गया. "आप जानते हैं कि वे कैसे कहते हैं कि इस्तेमाल करो और फेंको?" चुनबांग सम्मेलन में प्रदर्शन करने वालों में से एक झंकार ने कहा. "इस तरह मुझे लगता है कि पार्टी ने हम संगीतकारों के साथ व्यवहार किया है."

नेपाल के बाकी हिस्सों की तरह, रोल्पा में आव्रजन एक बड़ा मुद्दा है. हर साल हजारों लोग जिला छोड़ कर चले जाते हैं. युद्ध के दौरान गांवों और कस्बों में ज्यादातर केवल बूढ़े लोग ही बचे थे क्योंकि युवा पार्टी में शामिल हो गए थे और उन्हें भूमिगत होना पड़ा था. चूंकि माओवादियों के वादे का आर्थिक बदलाव कभी नहीं आया है इसलिए ऐतिहासिक रूप से ही गरीब जिले रोल्पा में जीवन कठिन बना हुआ है.

रोल्पा के एक पूर्व पीएलए सेनानी, कॉमरेड सुमन ने कहा, "पीछे मुड़कर देखने पर मुझे लगता है कि यह सब एक काल्पनिक कहानी थी. लेकिन हम वहां थे, हम जिंदा इतिहास का हिस्सा हैं." सुमन, जो अभी भी एक सक्रिय पार्टी सदस्य हैं, ने दावा किया कि वह कई लड़ाइयों में मरते-मरते बचे और लगभग बीस गोलियां उन्हें लगी हैं. अब वह मायूस है और कहते हैं, "हमने जो कुछ भी किया, शायद हमने यह सिर्फ उनके (पार्टी नेताओं) लिए किया." फिर भी उन्हें अभी भी पार्टी में विश्वास है, भले ही उन्हें एक और क्रांति की उम्मीद नहीं है. सुमन ने कहा कि क्रांति केवल दो स्थितियों में संभव होगी : सबसे पहले, देश के सभी दूरसंचार टावरों को उड़ा देना होगा क्योंकि अब सभी के पास फोन है और अधिकारी उन्हें ट्रैक करने के लिए उनका उपयोग कर सकते है. दूसरा, युवाओं को छलने वाले विदेशी रोजगार को रोकना होगा. "वर्तमान संदर्भ में यह संभव नहीं है," उन्होंने अफसोस जताया. 

तेजा बिस्ट छेत्री, सुलीचौर, रोल्पा, 17 फरवरी 2020. क्रांति के दौरान वह नेपाली कांग्रेस से जुड़ी थीं जो तब सत्ता में थी. वह उस दिन से युद्ध के खिलाफ थी जिस दिन से यह शुरू हुआ था. "वे इसे जनयुद्ध कहते हैं, लेकिन वास्तव में यह एक सशस्त्र संघर्ष था," उन्होंने कहा.
कत्लगाह, टोपी फालना डंडा, रोल्पा, 15 फरवरी 2020. चाम बहादुर थापा, उनके पुत्र उजर मान और चाने महरा की 11 दिसंबर 1998 को इसी स्थान पर पुलिस ने गोली मार कर हत्या कर आग लगा दी थी. सभी तेबांग, रोल्पा, के थे. उन पर माओवादियों के बारे में जानकारी होने का संदेह था, हालांकि वे पार्टी से नहीं जुड़े थे. यह उजर की शादी का दिन था .
कॉमरेड लाल, थवांग, रोल्पा. 19 फरवरी 2020. मान प्रसाद बुडा, जिन्हें कॉमरेड लाल के नाम से भी जाना जाता है, 1977 में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े. छात्र संघों से शुरुआत कर, वह अंततः एक राजनीतिक कमिशार के पद तक पहुंचे. जब वह माओवादी पार्टी में शामिल हुए, तो वह रोल्पा के आसपास संबद्ध संगठनों के गठन के लिए उत्तरदाई थे और "स्कूली शिक्षा विभाग" में शामिल थे, जो पीएलए सैनिकों और आम जनता को विचारधारा सिखाता था. अब वह पछताते हैं : "अगर युद्ध जो विजय के बहुत करीब था, उसे इस तरह ध्वस्त किया जा सकता है, तो क्रांति का क्या उपयोग है?"

युद्ध की स्मृति हर उस व्यक्ति के मन में अंकित है जो इससे गुजरा है, चाहे वह काठमांडू में हो जहां अत्याचारों और लड़ाई की खबरें मुश्किल से सुनने को मिलतीं, या उन जगहों पर जहां वास्तव में हिंसा की कीमत चुकाई जा रही थी. स्मृति न केवल लोगों में बल्कि माहौल में भी रची बसी है. "गुरिल्ला युद्ध जंगलों में होता है इसलिए वे हमारे लिए बहुत कीमती थे," कॉमरेड सुमन ने कहा. "वहां से हम गुजरें तो पेड़ जरूर हमें लाल सलाम कह रहे होंगे." लेकिन युद्ध के बाद पैदा हुई पीढ़ी के लिए, यह अक्सर इतिहास की एक घटना के रूप में प्रकट होता है, न कि नेपाल के हाल के दिनों की सबसे महत्वपूर्ण घटना के रूप में. स्कूल के पाठ्यक्रम में, इसका जिक्र केवल एक या दो वाक्यों में किया जाता है. जब मैंने अपने छोटे चचेरे भाइयों से इसके बारे में पूछा, तो उनमें से कोई भी नहीं जानता था कि इसमें शामिल लोग कौन थे, युद्ध क्यों हुआ या इसके क्या परिणाम हुए. 

एक अनुष्ठान बलि के अवशेष, लिवांग, रोल्पा . 17 अक्टूबर 2019.
रामकिरने रोका, गोबांग, रोल्पा. 19 अक्टूबर 2019. रामकिरने रोका अब थवांग ग्रामीण नगर पालिका की उपाध्यक्ष हैं. वह विभिन्न माओवादी-संबद्ध संगठनों से जुड़ी थीं और युद्ध के दौरान पार्टी को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया. उनकी बहन जोवांसारी रोका, एक पीएलए सेनानी थी. बंदूक के मिसफायर होने से उनकी मौत हो गई थी.
कॉमरेड स्याउला, थवांग, रोल्पा. 19 अक्टूबर 2019. लाप बहादुर रोका, जिन्हें कॉमरेड स्याउला के नाम से भी जाना जाता है, 20 अगस्त 2002 को चलबांग, रोल्पा में रसोई में काम कर रहे थे, क्योंकि पीएलए नेताओं ने कुछ दिनों बाद हमले की योजना बनाई थी. सेना ने उन्हें घेर लिया, और एक युद्ध छिड़ गया. वह घायल हो गए और उन्हें अपना हाथ गंवाना पड़ा था. पार्टी जिस दिशा में जा रही है, उससे निराश होकर उन्होंने कहा, "वे असली कम्युनिस्ट नहीं हैं, हम अब जानते हैं. मुझे लगता है कि वे साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा नियंत्रित कम्युनिस्ट हैं."
राज्य पोखरी, रोल्पा. 15 फरवरी 2020. ज्ञान बहादुर रोका मगर का शव 31 अक्टूबर 1998 को इसी स्थान पर खोजा गया था. पुलिस ने पिछली शाम को अपने खेत में काम करते हुए उनका अपहरण कर लिया था.
ज्ञान बहादुर रोका मगर का पोता कम्युनिस्ट झंडा लिए राज्य पोखरी, रोल्पा में. 14 फरवरी 2020. पुलिस द्वार अपहरण कर लिए जाने और उसके बाद ज्ञान बहादुर की मौत के दो दशक बाद भी उनका परिवार अभी भी न्याय के इंतजार में है. युद्ध को समाप्त करने वाले समझौते ने युद्धकालीन अपराधों के लिए जवाबदेही का वादा किया था लेकिन यह आशा एक खाली सपने में सिमट गई है.

कॉमरेड लाल, जो कभी पार्टी के वफादार सदस्य थे, पछताते हैं : "अगर युद्ध जो विजय के इतना करीब था, उसे इस तरह ध्वस्त किया जा सकता है, तो क्रांति का क्या उपयोग है?"

माता, पिता, भाइयो और बहनो,

आओ हम अपना बदला लेने के लिए दुख को हथियार में बदल दें.

अगर हम मर जाएं, तो एक-दो आंसू हमारे लिए बहा देना

जो हम जीत गए तो जैसे पहले मिलते थे वैसे ही मिलेंगे.

- जुनमाया नेपाली, "गर्म खून का प्रतिशोध"

 

रेस्ट स्टॉप, झ्यालंगा, रुकुम, 22 अक्टूबर 2019. पीएलए ने खारा में सेना के शिविर पर दो बार हमला किया और दोनों बार बुरी तरह पराजित हुई. इसी रास्ते से वे पहाड़ी पर स्थित शिविर के लिए चढ़ाई करते थे.
बुरांस, पुतलीचौर, रोल्पा, 22 फरवरी 2020. जुनमाया नेपाली की एक कविता "गर्म खून का प्रतिशोध" में लिखा है, "जैसे गुरास वसंत की शोभा बढ़ाता है / तुमने युद्ध के मैदान को सजाया / तुमने देश और अपने लोगों की स्वतंत्रता के लिए खुद को शहीद कर दिया."

 


Prasiit Sthapit is a visual storyteller based in Kathmandu. In 2016, he received the Magnum Emergency Fund Grant and was selected for the World Press Photo Joop Swart Masterclass. He is currently associated with the multimedia collective Fuzz Factory Productions, the photography platform photo.circle, and the photography festival Photo Kathmandu. He is also the director of Fuzzscape, a multi-media music documentary project.

Roshan Maharjan is a Kathmandu-based trekking guide and the co-founder of Yoga Trekking International. He is also a researcher on issues of cultural preservation and music.