मुस्तफाबाद की फारुकिया मस्जिद में जब वर्दीधारी लोगों ने हमला कर लोगों को बुरी तरह पीटा

18 मार्च 2020
“उनके पास प्लास्टिक की थैलियों में पेट्रोल और डीजल था. उन्होंने उसे दीवारों और वहां रखे बिस्तरों पर उड़ेल दिया और फिर आग लगा दी. मस्जिद इतनी खस्ता हालत में है कि दीवारों पर प्लास्टर उखड़ गया है, केवल ईंटें बची हैं."
शाहिद तांत्रे/कारवां
“उनके पास प्लास्टिक की थैलियों में पेट्रोल और डीजल था. उन्होंने उसे दीवारों और वहां रखे बिस्तरों पर उड़ेल दिया और फिर आग लगा दी. मस्जिद इतनी खस्ता हालत में है कि दीवारों पर प्लास्टर उखड़ गया है, केवल ईंटें बची हैं."
शाहिद तांत्रे/कारवां

बर्बर हमलों में बचे लोगों ने कारवां को बताया कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के तीसरे दिन फारुकिया मस्जिद में आग लगाने से पहले वर्दीधारी लोगों ने उनकी बुरी तरह पिटाई की. यह हमला 25 फरवरी को शाम 7 बजे के करीब हुआ. हमले का शिकार हुए लोगों ने अभी बस मगरिब की नमाज अता ही की थी. हमले का शिकार हुए तीन लोगों और घटना के चश्मदीद रहे अन्य स्थानीय लोगों ने हमलावरों की पहलचान "बल" या "पुलिसवाले" के रूप में की. आगजनी के चश्मदीद एक स्थानीय निवासी के मुताबिक, अगले दिन पुलिसवालों ने पास के ही एक मदरसे को आग लगा दी. हमले का शिकार मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद ताहिर ने कारवां को बताया कि मस्जिद के भीतर 16 सीसीटीवी कैमरे थे और जिस कमरे में फुटेज इकट्ठा की जाती थी वह मदरसे के भूतल पर था. उनके मुताबिक, हमलावरों ने उस कमरे को नष्ट कर दिया जहां रिकॉर्डिंग रखी गई थी.

हमले का शिकार हुए तीन लोगों, 30 साल के ताहिर, 42 साल के दर्जी फिरोज अख्तर और 44 साल मस्जिद के मुअज्जिन जलालुद्दीन ने बताया कि वर्दीधारी हमलावरों ने उन्हें लाठियों से बेरहमी से पीटा. ताहिर, फिरोज और जलालुद्दीन को गंभीर चोटें लगीं. (जब वे अस्पतालों में भर्ती थे, मैं उनमें से दो से मिला.) हमले का शिकार हुए लोगों मानना है कि 30 से 60 के बीच वर्दीधारी आदमियों ने मस्जिद पर हमला किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने वर्दीधारियों को हमला करते हुए देखा लेकिन वे उन्हें पहचानने में सक्षम नहीं थे. फिरोज ने बताया कि हमलावरों ने "सैना की वर्दी के जैसी" पोशाक पहनी हुई थी, जबकि जलालुद्दीन और ताहिर ने कहा कि वे पुलिस की वर्दी पहने थे. ताहिर ने कहा कि मस्जिद पर हमला करने वाले पुरुषों ने बुलेटप्रूफ वास्कट पहने थे, जिसके कारण "हम यह नहीं बता सकते थे कि वे सच में पुलिस वाले थे या आरएसएस के थे या वे कौन थे." तीनों ही इस बात पर पक्के थे कि हमलावरों में से कोई भी सामान्य कपड़े नहीं पहने हुआ था.

हमले के गवाह और हमले के शिकार लोगों को बचाने में मदद करने वाले स्थानीय लोगों ने तीनों की बातों की पुष्टि की. हमले के दौरान और बाद में भी जलालुद्दीन की पत्नी वहीदा, मदरसे से करीब 50 मीटर की दूरी पर स्थित एक परिचित के घर पर थीं. उन्होंने बताया कि अगली सुबह उन्होंने पुलिसवालों को मदरसे में आग लगाते हुए देखा.

पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद वहीदा, कुछ अन्य परिवारों के साथ 59 वर्षीय व्यापारी नसीमुल हसन के घर पर रह रही थीं. हसन ने बताया कि हमलावरों में से कुछ ने, "फोर्स" की वर्दी पहनी हुई थी. मगरिब की नमाज के समय यानी लगभग शाम 6.30 बजे फारुकिया मस्जिद के मुख्य द्वार को तोड़ दिया. उन्होंने ताहिर की बात की पुष्टि करते हुए बताया कि वर्दीधारी हमलावरों के नाम के बैज नहीं दिख रहे थे. हसन ने कहा कि पुलिस ने मस्जिद में नमाज अता कर रहे मुस्लिम लोगों को बाहर घसीटा और उनमें से ''कुछ को मरने के लिए छोड़ दिया''. उन्होंने मुझे गेट पर खून के कुछ धब्बे दिखाए और कहा कि हमलावरों ने मस्जिद को जला दिया. दो अन्य स्थानीय निवासियों ने भी बताया कि उन्होंने में ऐसा होते हुए देखा था.

मैंने हमले की शिकार मस्जिद और मदरसे का दौरा किया. फारुकिया मस्जिद की दुर्गति स्पष्ट थी. इसकी दीवारें और कई बिस्तर और कूलर जल चुके थे. मदरसे का अगला दरवाजा भी टूटा हुआ दिखाई दे रहा था, आधी किताबें जल कर राख हो गई थीं और दीवारों पर कालिख जम गई थी.

कौशल श्रॉफ स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं कारवां के स्‍टाफ राइटर रहे हैं.

Keywords: Delhi Violence Delhi Police
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