मुस्तफाबाद की फारुकिया मस्जिद में जब वर्दीधारी लोगों ने हमला कर लोगों को बुरी तरह पीटा

“उनके पास प्लास्टिक की थैलियों में पेट्रोल और डीजल था. उन्होंने उसे दीवारों और वहां रखे बिस्तरों पर उड़ेल दिया और फिर आग लगा दी. मस्जिद इतनी खस्ता हालत में है कि दीवारों पर प्लास्टर उखड़ गया है, केवल ईंटें बची हैं." शाहिद तांत्रे/कारवां
18 March, 2020

बर्बर हमलों में बचे लोगों ने कारवां को बताया कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के तीसरे दिन फारुकिया मस्जिद में आग लगाने से पहले वर्दीधारी लोगों ने उनकी बुरी तरह पिटाई की. यह हमला 25 फरवरी को शाम 7 बजे के करीब हुआ. हमले का शिकार हुए लोगों ने अभी बस मगरिब की नमाज अता ही की थी. हमले का शिकार हुए तीन लोगों और घटना के चश्मदीद रहे अन्य स्थानीय लोगों ने हमलावरों की पहलचान "बल" या "पुलिसवाले" के रूप में की. आगजनी के चश्मदीद एक स्थानीय निवासी के मुताबिक, अगले दिन पुलिसवालों ने पास के ही एक मदरसे को आग लगा दी. हमले का शिकार मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद ताहिर ने कारवां को बताया कि मस्जिद के भीतर 16 सीसीटीवी कैमरे थे और जिस कमरे में फुटेज इकट्ठा की जाती थी वह मदरसे के भूतल पर था. उनके मुताबिक, हमलावरों ने उस कमरे को नष्ट कर दिया जहां रिकॉर्डिंग रखी गई थी.

हमले का शिकार हुए तीन लोगों, 30 साल के ताहिर, 42 साल के दर्जी फिरोज अख्तर और 44 साल मस्जिद के मुअज्जिन जलालुद्दीन ने बताया कि वर्दीधारी हमलावरों ने उन्हें लाठियों से बेरहमी से पीटा. ताहिर, फिरोज और जलालुद्दीन को गंभीर चोटें लगीं. (जब वे अस्पतालों में भर्ती थे, मैं उनमें से दो से मिला.) हमले का शिकार हुए लोगों मानना है कि 30 से 60 के बीच वर्दीधारी आदमियों ने मस्जिद पर हमला किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने वर्दीधारियों को हमला करते हुए देखा लेकिन वे उन्हें पहचानने में सक्षम नहीं थे. फिरोज ने बताया कि हमलावरों ने "सैना की वर्दी के जैसी" पोशाक पहनी हुई थी, जबकि जलालुद्दीन और ताहिर ने कहा कि वे पुलिस की वर्दी पहने थे. ताहिर ने कहा कि मस्जिद पर हमला करने वाले पुरुषों ने बुलेटप्रूफ वास्कट पहने थे, जिसके कारण "हम यह नहीं बता सकते थे कि वे सच में पुलिस वाले थे या आरएसएस के थे या वे कौन थे." तीनों ही इस बात पर पक्के थे कि हमलावरों में से कोई भी सामान्य कपड़े नहीं पहने हुआ था.

हमले के गवाह और हमले के शिकार लोगों को बचाने में मदद करने वाले स्थानीय लोगों ने तीनों की बातों की पुष्टि की. हमले के दौरान और बाद में भी जलालुद्दीन की पत्नी वहीदा, मदरसे से करीब 50 मीटर की दूरी पर स्थित एक परिचित के घर पर थीं. उन्होंने बताया कि अगली सुबह उन्होंने पुलिसवालों को मदरसे में आग लगाते हुए देखा.

पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद वहीदा, कुछ अन्य परिवारों के साथ 59 वर्षीय व्यापारी नसीमुल हसन के घर पर रह रही थीं. हसन ने बताया कि हमलावरों में से कुछ ने, "फोर्स" की वर्दी पहनी हुई थी. मगरिब की नमाज के समय यानी लगभग शाम 6.30 बजे फारुकिया मस्जिद के मुख्य द्वार को तोड़ दिया. उन्होंने ताहिर की बात की पुष्टि करते हुए बताया कि वर्दीधारी हमलावरों के नाम के बैज नहीं दिख रहे थे. हसन ने कहा कि पुलिस ने मस्जिद में नमाज अता कर रहे मुस्लिम लोगों को बाहर घसीटा और उनमें से ''कुछ को मरने के लिए छोड़ दिया''. उन्होंने मुझे गेट पर खून के कुछ धब्बे दिखाए और कहा कि हमलावरों ने मस्जिद को जला दिया. दो अन्य स्थानीय निवासियों ने भी बताया कि उन्होंने में ऐसा होते हुए देखा था.

मैंने हमले की शिकार मस्जिद और मदरसे का दौरा किया. फारुकिया मस्जिद की दुर्गति स्पष्ट थी. इसकी दीवारें और कई बिस्तर और कूलर जल चुके थे. मदरसे का अगला दरवाजा भी टूटा हुआ दिखाई दे रहा था, आधी किताबें जल कर राख हो गई थीं और दीवारों पर कालिख जम गई थी.

मैंने पुलिस के खिलाफ लगे आरोपों के बारे में उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले के पुलिस उपायुक्त वेद प्रकाश सूर्या को फोन किया, मैसेज किया और ईमेल किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. रिपोर्ट प्रकाशित होते समय तक मुझे सूर्या को मेसेज किए आठ दिन हो चुके थे.

फारुकिया मस्जिद पर हमला उन कई हमलों में से एक था जिसमें उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के बीच मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया था. 23 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने मौजपुर चौक पर भड़काऊ भाषण दिया था जिसके बाद क्षेत्र में हिंसा शुरू हो गई. सूर्या और अन्य पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में मिश्रा ने अल्टीमेटम दिया था कि अगर जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 का विरोध कर रहे लोगों को तीन दिनों के भीतर हटाया नहीं गया तो मामला दिल्ली पुलिस के हाथ से निकल जाएगा. बाद के दिनों में सांप्रदायिक हिंसा उत्तर पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में फैल गई. कई गवाहों ने कहा कि हिंदू भीड़ ने मुसलमानों पर हमला किया और पुलिस ने दंगाई भीड़ की मदद की. 10 मार्च तक हिंसा के चलते 53 लोगों की मौत हो गई थी.

25 फरवरी तक मस्जिद के बाहर के क्षेत्र में लंबे समय से सीएए के विरोध में धरना दिया जा रहा था. इमाम ने कहा, "इसे शुरू हुए 40 दिन से ज्यादा हो चुके थे." गद्दे और अन्य आवश्यक चीजें जिनका इस्तेमाल प्रदर्शनकारी किया करते थे उन्हें मस्जिद के भीतर रखा जाता था. ताहिर ने कहा, “हम शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे और वहां किसी को भी असुविधा नहीं हो रही थी. हमने वहां से आने-जाने वालों के लिए रास्ता छोड़ा हुआ था.'' हमले के दिन बृजपुरी में हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे पर पथराव कर रहे थे. स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि दिल्ली पुलिस और हिंदू दंगाइयों का एक समूह लोगों पर लाठीचार्ज और गोली चला रहा था. बृजपुरी में तनावपूर्ण माहौल के कारण सीएए का विरोध कर रहीं महिला प्रदर्शनकारियों ने मस्जिद के बाहर धरने पर बैठने की जगह खाली कर दी.

ताहिर ने मुझे बताया कि मस्जिद के भीतर जब मगरिब की नमाज के समया लोग सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की घोषणा कर रहे थे. फिर लाठियां लिए दर्जनों "पुलिस वाले" मस्जिद में घुस आए. "जिस तरह से वे बात कर रहे थे, ऐसा लग रहा था कि वे बिहार से हैं या कहीं पूर्व से हैं," उन्होंने कहा.

ताहिर ने कहा कि वर्दीधारी हमलावरों की पकड़ में जो आया उन्होंने उसको पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा, "हमने उन्हें बताया कि हम हिंदू-मुस्लिम एकता की अपील कर रहे हैं, लेकिन वे नहीं रुके, उन्होंने सभी को बेरहमी से पीटा. जब मैं लगभग बेहोश हो गया था, तब भी वे मेरे सिर, कमर, हाथों पर गुस्से से मारते रहे." ताहिर ने बताया कि हमलावर लगातार दो बातें बोलते जा रहे थे. "एक 'जय श्रीराम का नारा और दूसरी यह टिप्पणी जिसमें वे हमें पीटते हुए कह रहे थे 'बहुत आजादी मांगते हो न, लो आजादी.'" 

 

मस्जिद के इमाम ताहिर ने बताया कि हमलावर 'जय श्रीराम' का नारा लगा रहे थे और मारते हुए कह रहे ​थे, 'बहुत आजादी मांगते हो न, लो आजादी' शाहिद तांत्रे/कारवां

ताहिर ने बताया कि पिटाई के बाद वर्दीधारी लोगों ने मस्जिद में आग लगा दी. “उनके पास प्लास्टिक की थैलियों में पेट्रोल और डीजल था. उन्होंने उसे दीवारों और एक साथ रखे बिस्तरों पर उड़ेल दिया और फिर उसमें आग लगा दी. मस्जिद इतनी खस्ता हालत में है कि दीवारों पर प्लास्टर उखड़ गया है, केवल ईंटें बची हैं." ताहिर के मुताबिक हमलावरों ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के लिए मस्जिद के अंदर जमा की गई चीजों को जलाया और यहां तक ​​कि बाहर उनके लिए लगाए गए तंबू को भी आग के हवाले कर ​दिया. उन्होंने कहा कि वर्दीधारी लोग "व्यवस्थित रूप से" मस्जिद में घुसे और हमले को अंजाम दिया.

ताहिर के मुताबिक, कुछ लोग जो मस्जिद में थे, एक कनेक्टिंग गेट से होते हुए मदरसे के अगले दरवाजे की आरे भागे. मैं दो स्थानीय लोगों से मिला, जिन्होंने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि उन्होंने हमले के दौरान मदरसे से बाहर आने में 25 छात्रों और शिक्षकों की मदद की.

घटना के बाद से ताहिर उत्तर प्रदेश के मुरादनगर इलाके में अपने पिता के घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे. 5 मार्च को जब मैं उनसे मिला तो उनके जख्म साफ दिखाई दे रहे थे. उसके सिर पर दो टांके लगे थे, उनके बाएं पैर में फ्रैक्चर था और उनकी उंगलियां, हाथ और पीठ सूजी हुईं और नीली पड़ी थीं. "मेरी उंगलियां ठीक से काम नहीं कर रही हैं और मैं अपने जोड़ों को मोड़ तक नहीं पा रहा हूं," उन्होंने कहा.

उन्होंने याद किया कि हमलावरों ने जलालुद्दीन की भी पिटाई की थी. “मुअज्जिन साहब… उन्होंने उनके चेहरे पर लाठियों से मारा. उसका मुंह, उसके दांत, उसका जबड़ा सब बेकार हो गया है. "

मैं 3 मार्च को दिल्ली के ओखला इलाके में स्थित जामिया नगर के अल्शिफा अस्पताल में जलालुद्दीन से मिला. वह सिर से लेकर पांव तक बुरी तरह घायल थे. जलालुद्दीन ने बताया कि जब हमलावर अंदर घुस गए, ताहिर ने उनसे बात करनी चाही लेकिन वे फौरन ही उसे पीटने लगे. यह देखकर, वह मस्जिद के भीतर एक कमरे में भाग गए, जहां एक माइक्रोफोन, धार्मिक शास्त्र और रोजमर्रा के उपयोग के अन्य सामान रखे गए थे, और खुद को अंदर बंद कर लिया. उस समय उनकी आठ साल की बेटी उनके साथ थी. इस बीच वर्दीधारी लोग कमरे के बाहर उन लोगों को पीटते रहे. कुछ ने उस कमरे के दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया जिसमें जलालुद्दीन भाग कर चले गए थे.

जलालुद्दीन ने कहा, "उन्होंने पेट्रोल या अन्य किसी चीज से मस्जिद में आग लगा दी." वह एक खिड़की के जरिए देख सकते थे कि बाहर क्या हो रहा है. "जब मुझे लगा कि आग हमारे ऊपर भी आएगी, तो मैंने कुंडी खोल दी और हम भागने लगे, लेकिन उन्होंने मुझे पकड़ लिया." वर्दीधारी हमलावरों ने उनके सिर पर मारा और जल्द ही जलालुद्दीन बेहोश हो गए. उन्होंने बताया कि वह हमला करने वाले लोगों की संख्या का अनुमान नहीं लगा सकते. "मुझे उनकी नेम प्लेट देखने तक का मौका नहीं मिला," उन्होंने कहा. जब वह उठे, तो उन्होंने खुद को लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में पाया.

इस बीच, जलालुद्दीन की पत्नी वहीदा ने मुझे बताया कि उनकी बेटी मस्जिद के मेहमान खाने की ओर भागी. मेहमान खाने में रहने वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उसे अंदर जाने दिया. वहीदा ने बताया, ''उन्होंने मेहमान खाने में आग लगानी शुरू कर दी. तब उन्होंने दरवाजा खोलने के लिए बुजुर्ग को पकड़ लिया और उन्हें भी पीटना शुरू कर दिया. हमारी बेटी कंबल के नीचे छिप गई. उन्होंने पूछा, 'वह कौन छिप रहा है?’ बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि वह एक छोटी बच्ची है और फिर पुलिस ने दोनों को बाहर खींच लिया और उन्हें वहां छोड़ दिया.” उनके अनुसार, वर्दीधारी लोगों ने बेटी को नुकसान नहीं पहुंचाया और उसे फिर से भाग जाने दिया. “मेरी बेटी अभी डरी हुई है. खौफ उसके दिल में समा गया है,” वहीदा ने कहा. "वह इस बारे में बोलती रहती है कि पुलिस ने किस तरह से आग लगाई, कैसे उन्होंने उसके वालिद की पिटाई की."

वहीदा ने मुझे बताया कि उन्हें हमले के बारे में तभी पता चला जब यह हो रहा था. वह सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों में से थी, जो तब तक अपनी जान बचाने के डर से मस्जिद के सामने के धरना स्थल से चले गए थे. वहीदा ने कुछ अन्य लोगों के साथ मदरसे के करीब स्थित हसन के घर पर शरण ली. उन्होंने कहा कि हमले के दौरान “मैं लोगों को चिल्लाते हुए सुन सकती थी, 'मुअज्जिन साहब को पीटा जा रहा है. इमाम साहब को पीटा जा रहा है.' ... मैं बहुत बुरी हालत में थी क्योंकि मेरी बेटी भी उनके साथ थी.'' इलाके के कुछ लड़कों ने उनकी बेटी को मस्जिद के बाहर कहीं पाया और फिर देर रात उसे हसन के यहाँ ले आए, जहाँ वहीदा कुछ और लोगों के साथ रह रही थी.

5 मार्च को, मैं अल्लाशिफा अस्पताल के आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रमुख और जलालुद्दीन के डॉक्टर मोहम्मद फारुक से मिला. फारुक ने पुष्टि की कि जब जलालुद्दीन को 28 फरवरी को अस्पताल लाया गया था, तो उनकी हालत गंभीर थी. उन्होंने कहा, "यह उनकी किस्मत है कि वह जिंदा हैं. जब मैंने इस तरह की चोटें देखीं, तो इसने मुझे 1984 में दिल्ली में हुए सिख-विरोधी नरसंहार की याद दिला दी.'' शाहिद तांत्रे/कारवां

“मदरसे के बगल में घर हैं और घरों के बाद एक गली है. गली के बगल में हसन भाई के घर की चार-पांच मंजिलों की एक बड़ी इमारत है,” वहीदा ने बताया. “हम पूरी रात उस घर में रहे. सुबह तक, हमने सोचा कि चीजें अब तक शांत हो गई होंगी लेकिन सुबह मदरसे में आग लगा दी.” वहीदा ने कहा कि उन्होंने 4-5 पुलिसवालों को मदरसे के कार्यालय का ताला तोड़ते और उसमें घुसते हुए देखा. "हम छत से देख रहे थे ... मैंने खुद पुलिस को मदरसे में घुसते हुए देखा," उसने कहा. "हम कमरे से धुआं निकलते हुए देख सकते थे, हम जान गए थे कि इसे जलाया जा रहा है."

जब मैं पहली बार 26 फरवरी को एलएनजेपी अस्पताल में फिरोज से मिला, तो वह बात करने की हालत में नहीं थे. एक हफ्ते से अधिक समय बाद 5 मार्च को हमने हमले के बारे में बात की. उन्होंने मुझे बताया कि "एक तरह की सैन्य वर्दी" में लगभग 35-40 लोगों ने मस्जिद पर हमला किया था. उन्होंने कहा कि उन्होंने उनमें से 15 को तब गिना था जब वे उन पर लाठियां बरसा रहे थे. "वे मेरे सिर पर मारते रहे," उन्होंने कहा. "उनका निशाना हमारा सिर था और वे हमें जान से मारने के लिए मार रहे थे." फिरोज ने बताया कि वह तुरंत नीचे गिर गए क्योंकि वह अपाहिज हैं. एक दुर्घटना में उनका बायां पैर बैकार हो गया था. फिरोज ने कहा कि हमलावरों ने चार-पांच मिनट के बाद उन्हें पीटना बंद कर दिया. वह मस्जिद के बाहर गोलियों की आवाज और धमाके सुन सकते थे. इमाम की तरह, उन्होंने याद किया कि हमलावरों ने "आज़ादी" शब्द का इस्तेमाल करके ताना मारा और जलालुद्दीन को लाठियों से पीटा.

वर्दीधारी लोगों ने मस्जिद के बाहर फिरोज को घसीटा और जले हुए तंबू में फेंक दिया. हमलावरों ने एक शख्स को निर्देश दिया कि जब तक उन्हें "सामान" नहीं मिल जाता, तब तक वह उन्हें रोके रहे. फिरोज ने याद करते हुए कहा कि जब वे चले गए तो उस आदमी से कहा, “यहां से भाग जाओ. पीछे से रास्ता खुला है. मैं इससे आगे तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा. ” फिरोज ने कहा कि वह कुछ कदम दौड़ा, लड़खड़ाया और फिर वापस दौड़ने के लिए उठा और फिर होश खो बैठा.

इस बीच फिरोज की पत्नी संजीदा मस्जिद से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित अपने घर में परेशान थी. अपने पड़ोसियों के जरिए वह उत्तर पूर्वी दिल्ली में होने वाली घटनाओं के बारे में, पुलिस की बर्बरता और हिंदू भीड़ द्वारा किए गए हमलों के बारे में सुन रही थी. “सारा हंगामा वहां हो रहा था. संजीदा ने मुझे बताया, ''बहुत सारे, कई सारे लोगों को गोली मार दी गई और उनमें से कई की मौत हो गई. मुझे चिंता हो रही थी क्योंकि मुझे पता नहीं था कि वह कहां है."

संजीदा ने अपने 20 साल के बेटे दानिश अख्तर को फिरोज की खोज-खबर लेने के लिए कहा, लेकिन बहुत दूर न जाने के लिए भी कहा. दानिश के निराश होकर वापिस लौटने पर उनकी चिंता को और बढ़ा दिया. शाम 7.30 बजे के कुछ समय बाद, संजीदा को एक आदमी का फोन आया, जिसने कहा कि वह फिरोज को अपने घर बृजपुरी पुलिया के पास ले गया है. परिवार अभी भी इस व्यक्ति को नहीं जानता है. "उसने मुझे बताया कि मेरे पति को मस्जिद में बुरी तरह से पीटा गया था," उन्होंने कहा. संजीदा ने आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका जानने की कोशिश की क्योंकि उस समय मुस्तफाबाद में कदम रखना उनके लिए खतरनाक था - उनके मोहल्ले में ही कई लोग घायल हो गए थे और फिर उन्हें घर वापस लाया जा रहा था. आंसू गैस और संभवतः आग लगने से उठे काले धुएं ने इलाके को घेर लिया था. संजीदा ने कहा कि फिरोज ने उसे फोन पर बताया कि उन्हें वहां नहीं आना चाहिए क्योंकि स्थिति काफी खराब थी. वे बंदूक चला रहे थे - वहां बहुत गोलीबारी हो रही थी.”

इस बीच उस अजनबी ने फिरोज के घावों पर प्राथमिक ड्रेसिंग करने के बाद उन्हें डॉक्टर को दिखाया. अजनबी ने परिवार को बताया कि डॉक्टर ने जोर देकर कहा है कि फिरोज को तुरंत अस्पताल ले जाया जाए. जैसे ही स्थिति थोड़ी शांत हुई, वह शख्स फिरोज को मुस्तफाबाद के अल हिंद अस्पताल ले गया. संजीदा के पड़ोसियों में से एक दानिश को बाइक पर अस्पताल ले गया. संजीदा ने मुझे बताया कि जब दानिश ने खून में लथपथ अपने पिता को देखा तो उसके आंसू बह निकले और जल्द से जल्द संजीदा को अस्पताल आने को कहा. वह फिर अपने पड़ोसियों की मदद से अस्पताल पहुंची.

संजीदा ने कहा, "वहां इतने सारे घायल लोग थे कि कई घायलों को फर्श पर लेटा दिया गया था. जिन पुरुषों की दाढ़ी थी, उनकी दाढ़ी और चेहरे पर आग लगी थी. पेट फटे पड़े थे." चूंकि अस्पताल की अपनी क्षमता थी, इसलिए कर्मचारी फिरोज का इलाज नहीं कर सके. ताहिर ने भी उल्लेख किया कि उन्हें पहले अल हिंद में ले जाया गया था, जो घायल मरीजों से भरा हुआ था.

25 फरवरी की रात 9 से 10 बजे के बीच, संजीदा और दानिश ने अलग-अलग अस्पतालों में कई फोन किए और उनसे अपनी एंबुलेंस भेजने के लिए विनती की. जब कहीं से भी काम नहीं हुआ तो संजीदा अपने एक रिश्तेदार सलीम के पास पहुंची, जिन्होंने दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों से संपर्क किया. एक गैर सरकारी संगठन के एक वकील दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी तक पहुंचने में कामयाब रहे, जिसने कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में स्थिति में सुधार होने पर वह एंबुलेंस में भेज देगा. सलीम ने कहा कि उसने मदद के लिए पुलिस को फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

फिरोज, संजीदा, दानिश, जलालुद्दीन के अनुसार आखिरकार रात में 1 बजे के बाद एंबुलेंस पहुंची और वह उनमें से एक को ले गई. "भजनपुरा के पास, किसी ने एम्बुलेंस पर पथराव किया," फिरोज ने कहा.

फिरोज और जलालुद्दीन दोनों के परिवार वालों ने उनका इलाज करने में एलएनजेपी की अनिच्छा के बारे में बताया. ताहिर ने कहा कि अल हिंद के बाद उसे एलएनजेपी में भी ले जाया गया था, लेकिन अस्पताल ने उसका इलाज करने से इनकार कर दिया क्योंकि वहां बहुत अधिक भीड़ थी. ताहिर को तब मध्य दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. संजीदा, और वहीदा दोनों ने बताया कि एलएनजेपी के अधिकारी उनके प्रति उदासीन थे और इलाज के लिए जो जद्दोजहद करनी पड़ी उसमें बार-बार बाधा बनते रहे.

संजीदा ने मुझे बताया कि शुरू में एलएनजेपी अस्पताल के कर्मचारियों फिरोज को भर्ती करने से इनकार कर दिया था. सलीम ने कहा कि आम आदमी पार्टी के विधायक शोएब इकबाल के बेटे आले मोहम्मद इकबाल ने परिवार की मदद की. आले एलएनजेपी में पहुंचे थे, जो कि जज एस मुरलीधर और अनूप जयराम भंभानी की पीठ द्वारा दिए गए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के और वकील के साथ थे. इस आदेश ने दिल्ली पुलिस को "तत्काल आपातकालीन उपचार" प्राप्त करने के लिए घायल पीड़ितों के लिए "सुरक्षित मार्ग" सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. अस्पताल के कर्मचारियों ने तब जाकर हामी भरी और फिरोज को भर्ती कराया.

जब मैं पहली बार एलएनजेपी में उनसे मिला था, तो फिरोज के सिर, कंधे और हाथ में कई टांके लगे थे, उसकी पीठ पर गहरे घाव थे, हाथ और पैर सूजे गए थे और उसके पैरों पर चार चकत्ते पड़े थे. सलीम ने मुझे बताया कि एलएनजेपी के प्रभारी डॉक्टरों ने उनका उचित इलाज करने से इनकार कर दिया. उनके अनुसार, वे दंगा प्रभावित क्षेत्रों से आने वाले लोगों को जल्द से जल्द डिस्चार्ज करने के इच्छुक थे, तब भी जब मरीज साफ—साफ गंभीर रूप से घायल थे. संजीदा ने बताया कि फिरोज के ''पूरे सिर पर पूरे टांके लगे हैं, लेकिन डॉक्टर मुझे कह रहे थे कि तुम्हारा पति ठीक है, उसे घर ले जाओ.’’ जब मैं उससे मिली, तो फिरोज को भर्ती हुए बारह घंटे से ज्यादा हो गए थे. उन्होंने कहा , “उसे देखो, उसकी हालत देखो. आप जिस ड्रेसिंग को देख रहे हैं, वह मुस्तफाबाद के अस्पताल में लोगों ने की थी और यहां के डॉक्टरों ने ड्रेसिंग को हटाया भी नहीं था. जब डॉक्टर हमसे बात करते हैं तब उनका लहजा, उनकी भाषा बहुत भद्दी होती है."

फिरोज ने बताया कि वह तुरंत नीचे गिर गए क्योंकि वह अपाहिज है. हमलावरों ने चार-पांच मिनट के बाद उन्हें पीटना बंद कर दिया. वह मस्जिद के बाहर गोलियों की आवाज और धमाके सुन सकते थे. ​शाहिद तांत्रे/कारवां

एलएनजेपी अस्पताल ने जलालुद्दीन की हालत की कोई परवाह नहीं की. जब जलालुद्दीन ने बात की, तो वह केवल बुदबुदा सकता था, क्योंकि उसके जबड़े की हड्डी तीन जगहों पर चकनाचूर हो गई थी. वहीदा ने मुझे बताया कि उनका जबड़ा पिन से जुड़ा हुआ था क्योंकि उसके दांत लगभग ढीले हो गए थे. उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी, खोपड़ी और बाएं हाथ में फ्रैक्चर था और उसके दाहिने हाथ की दो उंगलियां भी टूट गई थीं. इलाज बतौर उनकी एक भुजा में एक रॉड डाली जानी बाकी थी. वह लंगड़ा कर चल रहे थे, उनकी आँखें खून से सनी थीं और उनकी गर्दन पर नील पड़ गई थी.

वहीदा ने कहा कि एलएनजेपी स्टाफ जलालुद्दीन को डिस्चार्ज करने के लिए बेचैन था. उनके मुताबिक डॉक्टर कहते रहे, "खली करो, खली करो. तुमको छुट्टी दे दी गई है. तुमको क्या यह धर्मशाला नजर आती है?" दो दिनों में, अस्पताल ने दो बार उनके डिस्चार्ज पेपर बना दिए. “कोई अच्छी रूह हमें यहाँ, अल्शिफा अस्पताल ले आई. हमें यहां से क्यों डिस्चार्ज नहीं किया गया? क्योंकि यह अस्पताल निजी है और वे देख सकते हैं कि मेरे पति की हालत काफी गंभीर है. क्या दो दिन में दो बार उन्हें डिस्चार्ज कर देने वाले एलएनजेपी के डॉक्टर यह नहीं देख सकते थे कि उनकी हालत बहुत नाजुक है?”

5 मार्च को, मैं अल्लाशिफा अस्पताल के आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रमुख और जलालुद्दीन के डॉक्टर मोहम्मद फारूक से मिला. फारूक ने पुष्टि की कि जब जलालुद्दीन को 28 फरवरी को अस्पताल लाया गया था, तो उनकी हालत गंभीर थी. उन्होंने कहा, "यह उनकी किस्मत है कि वह जिंदा हैं. जब मैंने इस तरह की चोटें देखीं, तो इसने मुझे 1984 में दिल्ली में हुए सिख-विरोधी नरसंहार की याद दिला दी.''

एलएनजेपी की डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट रितु सक्सेना ने इस बात से इनकार किया कि एलएनजेपी ने किसी को समय से पहले ही डिस्चार्ज कर दिया या हिंसा के दौरान घायल हुए लोगों के इलाज में कोई लापरवाही या कमी रही है.

वहीदा ने कहा कि एलएनजेपी राज्य सरकार का अस्पताल है और इसलिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगे आना चाहिए था. "हर कोई कहता है कि केजरीवाल अच्छी चिकित्सा सेवाएं देते हैं, पर इस बार क्या हुआ है?" उन्होंने कहा. "कम से कम, इस समय केजरीवाल को खड़े होना चाहिए था और कहना चाहिए कि सभी रोगियों को अस्पताल से तभी छोड़ा जाएगा जब उनकी हालत खतरे से बाहर होगी." जब मैं वहीदा से बात कर रहा था तभी किसी ने आगे बढ़कर उनके हाथ में 500 रुपए का नोट थमा दिया. मैंने उनसे पूछा कि क्या दिल्ली सरकार के किसी व्यक्ति ने उनसे संपर्क किया है और मदद की पेशकश की है. "नहीं, हमारे समुदाय के ऐसे लोग हैं आगे बढ़कर मदद के लिए आए हैं, लेकिन सरकार से कोई नहीं आया है."

हमले का शिकार हुए लोगों ने कहा कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्यों निशाना बनाया गया. जलालुद्दीन ने मुझसे कहा, "मैंने केवल उन्हें यह कहते हुए सुना है कि 'तुम आजादी चाहते थे, मैं तुमको आजादी दूंगा,'" ताहिर ने कहा, "यह स्पष्ट नहीं है कि उनका मकसद क्या था. लेकिन कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयानों से ऐसा लगता है कि उनका असली निशाना विरोध प्रदर्शन था, और उसकी वजह से हमारी मस्जिद भी जल गई."

हमारी बातचीत के दौरान, संजीदा और वहीदा दोनों ही कांप रही थीं. संजीदा ने कहा कि उनका परिवार और उनके सभी पड़ोसी “पूरी तरह से आतंक में जी रहे हैं. लोग अपने बच्चों के साथ छतों पर छिपने को मजबूर हैं. कोई खाना नहीं पका रहा, कोई खा नहीं रहा है. अपने बच्चों और पतियों की सुरक्षा के लिए दिन और रात हम बस नमाज और कलमा पढ़ रहे हैं.” वहीदा को यकीन था कि वर्दीधारी लोगों ने हत्या के मकसद से उनके पति पर हमला किया था. "पुलिस ने उन्हें इस तरह से मारा कि वह जिंदा न बच सकें," उन्होंने कहा. "अगर पुलिस वाले उनके हाथों और पैरों पर मारते तो उन्हें पता होता कि वह जिंदा है, लेकिन उन्होंने चेहरे और गर्दन पर मारा ताकि वह मर जाए. लेकिन अल्लाह सबसे बड़ा है. अल्लाह ने उसकी जान बचाई है.”

"जितनी कुरान शरीफ थी, उन्हें भी शहीद कर दिया," वहीदा ने कहा. उन्होंने इस पूरे हमले को अपने विश्वास पर हमला बताया. "मुसलमान अपनी जान और संपत्ति दोनों गंवा रहा है," उन्होंने कहा. “बताओ, हमारी मस्जिद ने क्या गुनाह किया? हमारे कुरान ने क्या गुनाह किया? वे वहीं थे. यह धर्म और आस्था का मामला था. ”