उबलते कश्मीर की गाथा

13 नवंबर 2019
23 अगस्त को सौरा में, भारत सरकार के खिलाफ हुए प्रदर्शन में एक कश्मीरी प्रदर्शनकारी.
तौसीफ मुस्तफा/एएफपी गैटी/इमेजिस
23 अगस्त को सौरा में, भारत सरकार के खिलाफ हुए प्रदर्शन में एक कश्मीरी प्रदर्शनकारी.
तौसीफ मुस्तफा/एएफपी गैटी/इमेजिस

जम्मू से श्रीनगर को जोड़ने वाले चार लेन के नए राजमार्ग से उम्मीद की जाती है कि इससे समूची कश्मीर घाटी की यात्रा में कम समय लगेगा. लेकिन अगस्त में मैंने जितने सप्ताह वहां बिताए, हर बार जब भी मैंने दक्षिण कश्मीर जाने की कोशिश की तो मुझे नाकेबंदियों पर घंटे–घंटे भर रोका गया. मैं उस वक्त इसी राजमार्ग पर था जब इस साल फरवरी में पुलवामा में एक आत्मघाती हमलावर ने केंद्रीय सुरक्षा बल के एक काफिले पर हमला कर दिया था, जिसमें करीब चालीस सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी. धमाका उस जगह पर हुआ जहां सड़क की ढलान ऊपर की तरफ होती है और यातायात धीमा हो जाता है– हमलावर ने यह जगह शायद इसलिए चुनी हो, जिससे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके. हमले के बाद सरकार ने सशस्त्र बलों के काफिले को सहज रखने के लिए जम्मू में ऊधमपुर से उत्तरी कश्मीर में बारामुला तक हफ्ते में दो दिन नागरिकों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दिया. हालांकि अब इस राजमार्ग की मरम्मत कर दी गई है लेकिन वहां से गुजरने वाले वाहन अब भी हिचकोले महसूस कर सकते हैं.

जब मैं वहां था तो शुक्रवार के अलावा इस राजमार्ग से हर दिन सेना के कई काफिले गुजरते थे. जब सेना का काफिला यहां से गुजरता तो तुरंत ही बाकी से सभी दूसरे यातायात ठप कर दिया जाता हैं. बख्तरबंद गाड़ियां और सुरक्षा बल रास्ता बंद रोक देते हैं, उनकी सीटियों की आवाज में आपातकाल का स्पष्ट भाव होता है. गाड़ियों का जमघट लग जाता है– यहां तक कि एम्बुलेंस को भी जाने की इजाजत नहीं होती. ज्यादातर यात्री बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करते, लेकिन कुछ चैन से नहीं रह पाते और अपनी कारों से बाहर आ जाते हैं. वे बाहर खड़े सैनिक काफिले को देखते और ऐसी बातें करते रहते हैं जैसे मौसम के बारे में बातें कर रहे हों.

एक दिन अगस्त के आखिर में मैंने एक परिवार को अपने बीमार बच्चे के साथ गाड़ी आगे निकालने के लिए गलत दिशा से बढ़ते हुए देखा. बच्चा यात्री की गोद में बैठा था और ड्राइवर रास्ता देने के लिए गुलाबी रंग की मेडिकल रिपोर्ट खिड़की से बाहर निकाल कर सुरक्षा बल के जवानों की तरफ लहरा रहा था. वायरलैस रेडियो से इजाजत मिलने के बाद जवानों ने कार को जाने दिया. सैनिक काफिले में उस दिन अजीब ढंग से प्राइवेट बसें, ट्रक, छोटी वैन और यहां तक कि टवेरा गाडियां भी थीं. कुछ दाईं तरफ मुड़कर तराल और पुलवामा जनपदों की तरफ गईं तो बाकी श्रीनगर की ओर बढ़ती रहीं. इन गाड़ियों में बैठे ज्यादातर वर्दीधारी सैनिक सो रहे थे. देखने वाले उनकी वर्दियों से सुरक्षा बल के नाम का अंदाजा लगा रहे थे.

कभी न खत्म होने वाले सैनिक काफिले की बात होती रही, घाटी में कड़ी कार्रवाई की अटकल कश्मीर में फैल गईं – “माहौल शांतिपूर्ण है, वे और ज्यादा सैनिकों को क्यों ला रहे हैं”? – या पकिस्तान के साथ जंग. सड़क पर मेरे सामने खड़ा एक अधेड़ व्यक्ति कुछ कहने के लिए मुड़ा. जब उसे लगा कि मैं कश्मीरी नहीं हूं तो उसने कहा, “कश्मीरी को मारने के लिए इतनी सेना चाहिए क्या?” मुझे हैरानी हुई कि क्या पुलवामा को लेकर राज्य उतना ही डरा हुआ है जितना उसने लोगों को महसूस कराया है.

भारत सरकार के कश्मीर को संविधान में विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने के दूसरे दिन 6 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्मीर पहुंचे. फिर इन्होंने घाटी में पूर्ण प्रतिबंध की शुरूआत कर दी. सड़कें बंद कर दी गईं, कर्फ्यू लगा दिया और इंटरनेट व फोन सेवाएं भी काट दी गईं. 1 अगस्त से भारत सरकार ने पहले से ही दुनिया के इस सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र में अस्सी हज़ार से अधिक सैनिक और भेज दिए.

प्रवीण दोंती कारवां के डेप्यूटी पॉलिटिकल एडिटर हैं.

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