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26 फरवरी की शाम दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा में घायल हुए लोगों की भीड़ थी. एक के बाद एक एम्बुलेंस घायलों को लेकर आ रही थी. मृतकों के शवों को उनके रिश्तेदार घर वापस ले जा रहे थे. अब तक कम से कम 43 लोगों की हिंसा में मौत हुई है. अस्पताल के बाहर मुझे पता चला कि घायलों को सरकारी रैन बसेरा में रखा जा रहा है.
रैन बसेरा में मैंने शौकत अली मिर्जा और मोहम्मद इमरान से बात की. दोनों को ही शरीर के निचले हिस्सों में गोलियां लगी हैं. उन्होंने बताया कि 25 फरवरी को हुई हिंसा में उन्हें गोली लगी थी. पहले उनका इलाज अल हिंद अस्पताल में चला और बाद में लोकनायाक अस्पताल लाया गया.
मुस्तफाबाद के बाबू नगर में रहने वाले और मजदूरी कर गुजर-बसर करने वाले 42 साल के मिर्जा ने मुझे बताया कि गोली की चोट का दर्द सहन नहीं हो रहा है. रैन बसेरा के बिस्तर पर लेटे हुए उन्होंने 25 फरवरी की उस रात को याद किया जब उन्हें गोली लगी थी. उस रात तकरीबन 9 बजे मिर्जा नमाज पढ़ कर लौट रहे थे. “अंधेरे में मुझे कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था. जब मैं लोगों के नजदीक पहुंचा तो देखा कि गोलियां चल रही हैं और आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं. हमारे घर के पास पंजाब नेशनल बैंक की शाखा है. मैं वहीं था जब गोली आ कर मुझे लगी.” मिर्जा ने आगे बताया, “मुझे नहीं पता कि गोली हिंदू भाई ने चलाई थी कि मुस्लिम भाई ने. बस इतना पता है कि गोली आई और मेरे पैर में घुस गई.”
24 फरवरी की दोपहर को मिर्जा के मोहल्ले में “जय श्रीराम” चिल्लाती एक भीड़ घुस आई. उन्होंने कहा कि दोपहर 2.30 बजे भीड़ मोहल्ले पर हमला करने लगी. उनका हमला रात भर चलता रहा. मिर्जा ने बताया कि पुलिस मौके से गायब थी. उन्होंने बताया कि अगर पुलिस ने अपना काम किया होता तो इतनी जाने नहीं जातीं.
मिर्जा के मुताबिक हिंसा की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा के भाषण के बाद हुई. 23 फरवरी की शाम को मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि वह चांद बाग रोड को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से खाली कराए. मिश्रा ने धमकी दी कि अगर पुलिस ने ऐसा नहीं किया तो वह और उनके समर्थक मामले को अपने हाथों में ले लेंगे.
मिर्जा मानते हैं कि मिश्रा हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं. “कपिल मिश्रा ने दिल्ली में आग लगा दी.” फिर बीजेपी के बारे में उन्होंने कहा, “उस पार्टी में कुछ अच्छे लोग भी हैं लेकिन जो कुछ आज दिल्ली में हो रहा है उसके लिए वही जिम्मेदार है और उसे सजा मिलनी चाहिए.
ओल्ड मुस्तफाबाद के 22 साल के मोहम्मद इमरान की कहानी भी ऐसी ही है. इमरान ने बताया कि वह अक्सर सीएए विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेते हैं लेकिन जब हमला हुआ वह घर में थे. 25 फरवरी को शाम 5 बजे उन्हें जांघ में गोली लगी. उस वक्त वह घर के बाहर खड़े थे.
उन्होंने बताया कि मुस्तफाबाद में वह और उनके लोग अपने घरों में भी महफूज नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर हम अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं तो और कहां महफूज रहेंगे?” इमरान ने कहा कि जिन लोगों ने दिल्ली में हिंसा की है, वे लोग हिंदू और मुसलमानों को आपस में बांटना चाहते हैं. इमरान भी उनके इलाके में गोलियां चलाने वालों को नहीं पहचानते. उन्होंने बताया कि जिन पर हमला हो रहा था पुलिस ने उनकी मदद नहीं की बल्कि उसने उस हिंदू भीड़ का ही साथ दिया जो मुसलमानों पर हमला कर रही थी. उन्होंने कहा, “वे लोग बहुत बड़ी तादाद में थे और जब पुलिस भी उनका साथ दे रही थी तो हम कर भी क्या सकते थे?”
मिर्जा ने मुझे बताया कि अपने जीवन के 42 सालों में उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा और उम्मीद है कि आगे कभी नहीं देखना पड़ेगा. मिर्जा ने कहा कि सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शन किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है. उनका कहना था कि प्रदर्शनों से किसी भी धार्मिक समुदाय को, चाहे हिंदू, सिख या ईसाई, परेशानी नहीं हुई है. “हमारी लड़ाई हमारे हिंदू भाइयों के खिलाफ नहीं है. हमारी लड़ाई सरकार के खिलाफ है.”
थोड़ी देर बाद मिर्जा ने मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया और उस भाईचारे के बारे में बताया जो उनके मोहल्ले में हमेशा से था. आंखों में आंसू भर कर और भर्राई आवाज में मिर्जा ने बताया कि कैसे 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से चीजे बदल गईं. “छह साल पहले हम सब साथ बैठ कर खाना खाते थे. वे लोग हमारे घर में ईद मनाते थे और हम उनके यहां दीवाली. ईद में वे हमारे घर सिवैया खाने आते थे. हम रक्षाबंधन में हमारी हिंदू बहनों से राखी बंधवाते थे. घरों की शादियों में हम ऐसे हाथ बटाते थे जैसे एक ही परिवार हों. हम उनके घरों में जाकर मां-बाप का आशीर्वाद लिया करते थे. हमारे घर में कोई मरता था तो अंतिम संस्कार में वे लोग हमारी मदद करते थे और जब उनके यहां कोई मरता था तो हम भी यही करते थे. हम उनके लिए लकड़ियां खोजा करते थे.”
आज के हालातों पर उन्होंने कहा, “सब खत्म हो गया है जी, इन छह सालों में देश बर्बाद हो गया. इन छह सालों ने देश को बदल दिया. आज हमारी हिंदू बहनों को डर लगता है कि हम उनके साथ कुछ बुरा कर देंगे. मैं दुआ मांगता हूं कि भाईचारा लौट आए. भाईचारा वाले पुराने दिन बहुत याद आते हैं.” मिर्जा की सरकार से बस एक ही प्रार्थना है, “मैं इस सरकार से विनती करता हूं कि वह पुराने दिन लौटा दे. हम साथ रहते, खाते—पीते और सोते थे. हम क्रिकेट साथ खेलते थे और क्या नहीं करते थे. हमें कभी नहीं लगता था कि वे हमसे अलग हैं. पड़ोस का घर हमारे चाचा के घर जैसा था. औरतें हमारी बहने जैसी थीं. अब उनको डर लगता है. पिछले छह सालों में जहर भर गया है.”
23 फरवरी की शाम से ही उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाके बड़े पैमाने पर सांप्रदयिक हिंसा के शिकार हुए हैं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हिंदुओं ने मुस्लिम मोहल्लों में हमला किया, गाड़ियों और दुकानों में आग लगाई और मुस्लिम लोगों को पीटा. गुरु तेग बहादुर अस्पताल के चिकित्सा निदेशक सुनील कुमार ने पुष्टि की है कि कम से कम 7 लोगों की मौत गोली लगने से हुई है.