आघात और आक्रोश में तपता कश्मीर

17 अगस्त 2019
अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिए जाने का विरोध कर रहीं कश्मीरी महिलाएं.
दानिश सिद्दीकी / रॉयटर्स
अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिए जाने का विरोध कर रहीं कश्मीरी महिलाएं.
दानिश सिद्दीकी / रॉयटर्स

रास्ता रोके कांटेदार तारों वाले बैरिकेडों और भारी भरकम हथियारों से लैस सुरक्षा बलों के दिखाई पड़ने से बहुत पहले, आकाश में ही घेराबंदी के अहसास ने दबोच लिया था. हवाई जहाज के श्रीनगर की धरती को छूने से पंद्रह मिनट पहले, विमान की खिड़कियां बंद कर लेने की घोषणा हुई. जहाज के कर्मचारी घूम-घूम कर यह सुनिश्चित कर रहे थे कि सारी खि​ड़कियां बन्द है. एक फ्लाइट अटेंडेंट ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय का हवाला देकर कहा, "डीजीसीए का आदेश है, सर." पहले हल्का अविश्वास हुआ, फिर इसका मजाक उड़ाया गया. मेरे बगल में एक कश्मीरी यात्री ने हंसते हुए कहा, "यह नजरबंदी है." दूसरों ने इस शब्द को दोहराया जैसे कि वह इसे अपनी शब्दावली में शामिल कर लेना चाहते हों. उनमें से कुछ, उत्सुक यात्रियों ने बाहर झांकने के लिए खिड़कियां आधी खोल दीं लेकिन जल्द ही उन्हें बंद कर लिया. सुबह के 7.30 बजे थे और मैंने भूरे मानसून की धुंध में लिपटी सब्ज हरी घाटी की झलक देखी. एक व्यक्ति ने कहा, "शायद वे नहीं चाहते कि हम यह देखें कि घाटी में वे कितने (सुरक्षा) बलों को ले आए हैं." वह यात्री अगले दिन, 12 अगस्त को ईद के लिए घर लौट रहा था.

कुछ ने इसे लेकर हंसने की कोशिश की जबकि बाकी चिंतित दिखे. जल्द ही, उन्हें यह मालूम करना था कि जहां उन्हें जाना है वहां तक कैसे पहुंचें. जैसे ही जहाज रनवे पर उतरा, बहुत से यात्रियों ने अपने सेलफोन को स्विच ऑन किया और उसे घूरते रहे, शायद आदतन या शायद किसी उम्मीद से. जल्द ही वे हकीकत से रूबरू हो गए. 5 अगस्त को जब केन्द्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावी ढंग से निरस्त कर दिया था, उसके बाद से घाटी में सख्त तालाबंदी की जा रही है और संचार सेवा को बंद कर दिया गया है. बैगेज बेल्ट के बगल में स्थित पर्यटन विभाग के काउंटर पर हरे रंग की पट्टी पर एक संदेश उभरा हुआ था: "धरती के स्वर्ग में आपका स्वागत है."

मैं दिल्ली के कुछ अन्य पत्रकारों के साथ कश्मीर के डिवीजनल कमिश्नर के कार्यालय में "कर्फ्यू पास" लेने गया. यह पास शहर के कुछ हिस्सों में आने-जाने के लिए मददगार होता है. तकनीकी रूप से, यह केवल "144 सीआरपीसी प्रतिबंधों के तहत आने-जाने के लिए मान्य" है, और कर्फ्यू के दौरान इसका कोई उपयोग नहीं है. एक हल और तीन खड़ी पट्टियों वाला लाल कश्मीरी झंडा, डिवीजनल कमिश्नर कार्यालय की इमारत पर भारत के तिरंगे झंडे के बगल में लहरा रहा था. कार्यालय परिसर घाटी से बाहर अपने परिवार के सदस्यों को कॉल करने की प्रतीक्षा कर रहे गुस्साए लोगों से भरा था. बहुत से लोग जो कॉल नहीं कर सके थे वे कश्मीरी में चिल्ला रहे थे और अपना दुख-क्षोभ जाहिर कर रहे थे और संकट से उपजे भाईचारे के चलते किसी भी अजनबी से जिसने उनकी बात सुनी, शिकायत कर रहे थे.

दोपहर से पहले, अब क्रम संख्या 32 की बारी थी, और 420 लोग अभी भी इंतजार में खड़े थे. हालांकि, दिल्ली के टीवी पत्रकार टेलीफोन सुविधा के बारे में बड़ा-चढ़ा कर दिखा रहे हैं. एक युवक ने एनडीटीवी के नजीर मसूदी पर आरोप लगाया कि इतना दमन होने पर भी वह स्थिति सामान्य होने की रिपोर्ट कर रहे हैं. अन्य लोग उसके साथ शामिल हो गए और मसूद को घेर लिया और तब तक उसके साथ बहस की जब तक कि अन्य पत्रकार इस तनाव को कम करने के लिए नहीं आ गए.

आरिफ नाम के 25 वर्षीय नौजवान छात्र ने बाद में मुझे बताया कि वह अपने भाई से संपर्क नहीं कर पाने से इतना नाराज नहीं है जितना इस बात से कि भारतीय मीडिया स्थिति के सामान्य होने की रिपोर्ट कर रहा है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का हवाला देते हुए, इन दोनों को गिरफ्तार कर लिए गया है, आरिफ ने कहा, "अगर भारत अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए इतना अडिग था, तो वह कम से कम उमर और महबूबा जैसे नेताओं को विश्वास में ले सकता था. इन्हीं लोगों ने तो घाटी में भारत के विचार को स्वीकार्य बनाया और इसके लिए संघर्ष किया... आज, यह स्पष्ट है कि कश्मीर का विचार भारत के साथ पूरी तरह से असुरक्षित है."

प्रवीण दोंती कारवां के डेप्यूटी पॉलिटिकल एडिटर हैं.

Keywords: Article 370 Bharatiya Janata Party Jammu and Kashmir Kashmir Valley kashmiri resistance Amit Shah Narendra Modi
कमेंट