15 जून की दोपहर को झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के अंजेदबेड़ा गांव के 10 ग्रामीणों पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के दर्जन भर जवानों ने हमला किया. यह बात मानवाधिकार संगठनों के गठबंधन झारखंड जनवादी महासभा के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गांव वालों से किए गए साक्षात्कारों में पाई है. सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानकी तुबिद और कमल किशोर पुरती, ने उन 10 में से 9 गांव वालों के बयानों को अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में संकलित किया है और मुझे और अन्य मीडियाकर्मियों से साझा की है.
स्थानीय हिंदी समाचार पत्र प्रभात खबर की 17 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद, जिसमें कहा गया था कि ग्रामीणों पर "सशस्त्र माओवादियों" ने हमला किया था, कार्यकर्ताओं ने यहां का दौरा किया था. कार्यकर्ताओं को ग्रामीणों ने बताया है कि सीआरपीएफ ने उन पर अंधाधुंध हमला किया. जब यह हमला हुआ कुछ ग्रामीण अपनी झोपड़ियों की छतों पर खपरैल ठीक कर रहे थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि अंजेदबेड़ा में अधिकांश लोग हो समुदाय के हैं, जो एक अनुसूचित जनजाति है और हो भाषा में बात करते हैं. सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों से हिंदी में बोलने का दबाव डाला.
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कुछ बयानों को ऑनलाइन जारी किया है. हमने चाईबासा के एक निवासी को हो भाषा में दिए गए चार स्थानीय लोगों के वीडियो बयान दिखाए. निवासी ने, जो नाम जाहिर नहीं करना चाहते, पुष्टि की कि स्थानीय लोग सीआरपीएफ द्वारा हमले का वर्णन कर रहे थे.
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार, उस दिन दोपहर के लगभग 12.30 बजे अंजेदबेड़ा के चिडियाबेड़ा बस्ती के लोग बउज सुरिन के घर की छत पर खपरैल को ठीक कर रहे थे, तभी एक दर्जन से अधिक सीआरपीएफ जवान वहां पहुंच गए और घर को चारों तरफ से घेर लिया. जवानों ने उन ग्रामीणों से छत से नीचे उतरने को कहा. ग्रामीण समझ नहीं पा रहे थे कि जवान क्या कह रहे हैं, तो उनके इशारों को समझने और नीचे उतरने में उन्हें कुछ समय लगा. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ग्रामीणों को पास के एक निर्माणाधीन घर की दीवार के साथ पर बैठाया गया और उनसे पूछा गया था कि नक्सली कहां हैं? भाषा की दिक्कत के कारण वे जवाब देने में असमर्थ थे. फिर उन्हें अलग-थलग कर दिया गया. उनके हाथ उनकी पीठ के पीछे बंधे दिए और उन्हें पीटा."
तुबिद ने बताया कि छत पर 17 वर्षीय सिनू सुंडी भी काम कर रहा था. फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के मुताबिक, सुंडी ने कहा कि उन्होंने एक महिला को कहते सुना था, "पुलिसवाले आ रहे हैं." उन्होंने जवाब दिया, "तो हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं" और काम करना जारी रखा. सैनिकों ने हिंदी में उन पर चिल्लाना शुरू किया और उन्हें नीचे उतर आने का इशारा किया. रिपोर्ट के अनुसार, सुंडी ने कार्यकर्ताओं से कहा, "उन्होंने पूछा कि नक्सली कहां हैं? जब हमने जवाब दिया कि हमें पता नहीं है तो उन्होंने कहा कि हिंदी में बोलो, तो मैंने कहा कि मुझे नहीं आती. उन्होंने मुझे पास में रखी मूंगा की छड़ी से पीटा.” फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट ने सुंडी के हवाले से कहा कि जवानों ने उन्हें नक्सल कहा. उन्होंने कहा, "उन्होंने लकड़ी ढोने से हुए काले दाग को देखने के लिए को मेरे कंधे से मेरी कमीज उतारी और फिर सीआरपीएफ के जवान ने कहा, 'यह नक्सली है.' उन्होंने मुझे एक लकड़ी की पटिया पर पेट के बल लेटा दिया और पीटा. मैं घायल हो गया.”
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