सतनाम सिंह बैंस ब्रिटेन में वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. वह पंजाब डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी प्रोजेक्ट (पीडीएपी) पर काम कर रहे हैं. यह एक सिविल सोसायटी ग्रुप है जिसकी शुरुआत 2008 में हुई थी. यह 1980 और 1990 के दशकों में पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा किए गए उत्पीड़न के दस्तावेज तैयार कर रहा है. इन दशकों में जैसे ही खालिस्तान आंदोलन ने जोर पकड़ा, राज्य में उग्रवाद और हिंसा की घटनाएं होने लगीं. इसके खिलाफ राज्य ने कई आतंकवाद रोधी अभियान चलाए जिनमें मानवाधिकारों का बड़े स्तर पर उल्लंघन हुआ. इस हिंसा की असलियत धीरे-धीरे लोगों के सामने आ रही है.
एक नई डॉक्यूमेंट्री फिल्म पंजाब डिसअपीयर्ड 1983-1985 के बीच आतंकवाद-रोधी अभियानों के दौरान गायब हुए हजारों पंजाबियों के मामलों की जांच में पीडीएपी के काम के बारे में बताती है. यह फिल्म संघर्ष के दौरान राज्य में हुई गैर न्यायिक हत्याओं और सामूहिक दाह संस्कार के बारे में भी बताती है. इसमें गुमनाम हत्याओं, दाह संस्कार और लोगों के गायब होने के नए सबूत पेश किए गए हैं. 27 मिनट लंबी इस फिल्म का 26 अप्रैल को शाम 5.30 बजे दिल्ली के जवाहर भवन में प्रीमियर किया गया था.
कारवां के स्टाफ राइटर प्रवीण दोंती ने ईमेल के जरिए बैंस से पीडीएपी के काम, नए सबूत और न्याय की संभावनाओं पर बात की. बैंस ने कहा, "सबूतों और दस्तावेजों ने पीड़ितों और उनके परिवारों को नई उम्मीदें दी हैं. इससे सैंकड़ों पीड़ित परिवारों की पहचान, पुनर्निवास के रास्ते और दोषियों के आपराधिक अभियोग की शुरुआत हो सकी है."
प्रवीण दोंती : पंजाब डॉक्यूमेंटेशन एंड एकवोकेसी प्रोजेक्ट को पंजाब से गायब हुए लोगों पर नए सबूत मिले हैं. डॉक्यूमेंट्री फिल्म के ट्रेलर में गुमनाम हत्याओं और अंतिम संस्कारों की बात है. वे नए सबूत क्या हैं?
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