सदमा, बीमारी और मौत : कश्मीर द्वंद्ब का बच्चों पर असर

जब हीबा 18 महीने की थी तो उसकी आंख में पैलेट गन की गोली लगी थी.
शेफाली रफीक भट्ट
जब हीबा 18 महीने की थी तो उसकी आंख में पैलेट गन की गोली लगी थी.
शेफाली रफीक भट्ट

26 जून की सुबह जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में रहने वाले 46 साल के सरकारी कर्मचारी मोहम्मद यासीन भट्ट काम पर निकलने के लिए तैयार हो रहे थे कि उनका चार साल का बेटा निहान भट्ट जिद्द करने लगा कि वह भी साथ चलेगा. पहले तो यासीन ने अपने बेटे को ना चलने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन आखिरकार तीन बच्चों में सबसे छोटे निहान के आगे बाप ने हार मान ली. मोहम्मद, उनके साले निसार अहमद मीर और बेटा निहान अनंतनाग जिले के बिजबेहरा स्थित उनके ऑफिस साथ आए. उन्हें ऑफिस छोड़ने के बाद निहान को लेकर मीर पास के पादशाही बाग इलाके में पिकनिक मनाने लगे. दोपहर में यसीन को गोलियां चलने की आवाज आई. यसीन ने हमें बताया कि उन्हें मीर का फोन आया कि निहान को छाती में गोली लग गई है. मिनटों बाद चार साल के निहान की मौत हो गई.

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के अनुसार, आतंकवादियों ने उसके बेढ़े पर हमला किया था और गोलीबारी में आतंकियों की गोली निहान को लगी. इस साल की पहली छमाही में निहान के अतिरिक्त दो अन्य छोटे बच्चों की मौत ऐसी ही परिस्थितियों हुई है.

कश्मीर में जारी द्वंद्व में बच्चों की मौत आम है. 2003 और 2017 के बीच कश्मीर में कम से कम 318 बच्चों की हत्या हुई है. यह बात जम्मू-कश्मीर कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी की एक रिपोर्ट में है. उस रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से करीब 16 बच्चों की मौत पैलेट गन और आंसू गैस के गोलों के इस्तेमाल से हुई है. पिछले साल 8 बच्चे की मौत हुई थी और 7 बच्चे अपंग हो गए थे. यह आंकड़ा राष्ट्र संघ बच्चे और सशस्त्र द्बंद्व पर राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में है. गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार द्वारा घाटी को अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त विशेषाधिकार हटा लिए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में बच्चों सहित अन्य लोगों पर सुरक्षा बलों की अत्याधिक ज्यादतियों की खबरें बहार आई हैं.

बच्चों को हिंसा का जिस तरह शिकार होना पड़ता है वह उनके जीवन को खतरे में डाल रहा है. जम्मू-कश्मीर कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी के प्रोग्राम संयोजक खुर्रम परवेज के अनुसार, “घाटी के बच्चे रोज बर्बर हिंसा के गवाह बनते हैं जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो रहा है. पिछले कई सालों से स्थिति एक जैसी रही है और हालात में सुधार के संकेत नहीं मिल रहे हैं.”

राष्ट्र संघ की रिपोर्ट बताया गया है कि जनहानि की मुख्य वजह हिरासत में यातना देना, गोली लगना, पैलेट गन से मारना और सीमा पार की गोलाबारी है. 4 मई की शाम हंदवाड़ा के वानीगाम इलाके में सीआरपीएफ के जवानों और आतंकियों के बीच गोलीबारी हुई. जब गोलीबारी शुरू हुई तो पास के एक खेत में एक परिवार के सात लोग काम कर रहे थे. उस परिवार के सदस्य फिरोज अहमद ने बताया कि गोलीबाली की आवाज कान में पड़ते ही उनका परिवार घर की ओर भागा. उनका घर वहां से 2 किलोमीटर की दूरी पर है. घर पहुंचने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका कजन हाजिम शाफी भट्ट, जो गोलाबारी की जगह के पास था, घर नहीं आया है. परिवार को चिंता होने लगी. चिंता की बड़ी वजह यह भी थी कि 16 साल का हाजिम विकलांग था. फिरोज ने बताया, “जब वह लिखता तो उसका हाथ कांपता और बोलता तो जुबान बहकती थी. इफ्तार में फिरोज ने अपने पहचान के एक पत्रकार को फोन लगाया जिसने उन्हें तुरंत बता दिया कि गोलीबारी में हाजिम की मौत हो गई है.

इश्तियाक वानी स्वतंत्र पत्रकार हैं.

राशिद हसन स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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