25 फरवरी की सुबह दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके की गली नंबर 17 में कुछ औरतें और आदमी एक तंबू के नीचे इकठ्ठा हुए थे. ये सभी शोक व्यक्त करने आए थे. पास के मकान नंबर 1715 में रहने वाले 23 साल के शाहीद अल्वी को उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में घेर कर गोली मार दी गई थी.
पेशे से ऑटो चालक अल्वी, शाम तकरीबन 3-4 बजे पास ही की एक दरगाह पर नमाज पढ़कर वापस घर जा रहे थे, जब उनके पेट में दो गोलियां मारी गईं. गोली वजीराबाद रोड़ पर मौजूद मोहन नर्सिंग होम के पास मारी गई. यह अभी साफ तौर पर पता नहीं है कि अल्वी की मौत मौके पर ही हुई थी लेकिन परिवार के सदस्यों के अनुसार दो अनजान लोगों ने अल्वी को पास के मदिना चैरिटेबल क्लीनिक में भर्ती कराया था. “मैं कल घर पर ही था और भाई दरगाह से वापस आ रहा थे,” शाहिद के भाई इरफान ने बताया. “जब वह भजनपुरा पहुंचा तब दंगाइयों ने उसके पेट में गोली मार दी. वह सड़क पर ही गिर पड़े. कुछ मुस्लिम उन्हें पास के एक निजी नर्सिंग होम ले गए. वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.” इरफान आगे बताते हैं, “हम नहीं जानते कि वह वास्तव में कब मरे, लेकिन मुझे संदेह है वह गोली लगने के तुरंत बाद ही वह मर गए थे.
तब तक अल्वी की खून से लथपथ तस्वीरें सोशल मीडिया पर घूमने लगी थीं. एक तस्वीर में, जिसमें उन्हें पहचानना मुश्किल था, शाहिद का बहुत ज्यादा खून बह रहा था और कुछ लोग उसे एक सीढ़ी के नीचे लेकर जाते हुए दिख रहे थे. शाहिद की बहन सितारा को इन तस्वीरों से ही भाई की चोट के बारे में पता चला. “व्हाट्सअप पर तस्वीरें देखने से पहले हमें बिलकुल अंदाजा नहीं था कि भाई को गोली मारी गई थी. मैं जल्दी से मदिना क्लीनिक पहुंची और शाहिद की बॉडी को घर ले आई,” सितारा ने मुझे बताया. “मैं शाम सात बजे बॉडी लेकर घर पहुंची जिसके कुछ देर बाद इरफान बॉडी के पोस्टमार्टम के लिए दिलशाद गार्डन के गुरु तेग बहादुर अस्पताल ले गया.”
उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के उस हिस्से में हिंसा भड़की, जहां 23 फरवरी को नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. उस दोपहर, सीएए समर्थक लोगों की भीड़ जय “श्री राम” के नारे लगाते हुए जाफराबाद-मौजपुर इलाके में दाखिल हुई. कथित तौर पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग और भीड़ ने एक दूसरे पर पत्थर मारे. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार अगले दिन हिंसा आसपास के इलाकों, चांद बाग, यमुना विहार और भजनपुरा तक फैल गई, हिंदुओं की भीड़ ने राहगीरों पर हमला किया और पुलिस के सहयोग से गाड़ियों, दुकानों और इमारतों में आग लगा दी. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक कई लोगों की हिंसा में जान जा चुकी थी. कई परिवारों ने समाचार पत्र द हिंदू को बताया कि उनके रिश्तेदारों की मौत गोली लगने से हुई है.
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