Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
14 फरवरी को एक आत्मघाती विस्फोटक ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर विस्फोटक से भरी कार को टकरा दी. यहां हमला पुलवामा में जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग में हुआ. हमले में कम से कम 40 भारतीय जवानों की मौत हो गई. विस्फोट के तुरंत बाद पाकिस्तान स्थित आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली. इसके बाद भारतीय सोशल मीडिया और समाचार चैनलों में पाकिस्तान से बदला लेने की मांग होने लगी. पुलवामा हमले के 12 दिन बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट के नजदीक जब्बा गांव में हवाई हमला किया. 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद भारत में पहली बार पाकिस्तान की सीमा के अंदर इस प्रकार का हमला किया. हमले के बाद समाचार एंकर प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही करने में एक दूसरे से मुकाबला करने लगे.
भारतीय सरकार ने इस हवाई हमले को “असैनिक सुरक्षात्मक कार्रवाई” बताया है जो गुप्त सूचना के आधार पर आतंकी समूह द्वारा भविष्य में भारत में किए जाने वाले हमलों को रोकने के लिए थी. लेकिन इसके बाद आई रिपोर्टों में भारत के दावों पर सवाल उठाए गए. 27 फरवरी को दोनों देशों के बीच जारी तनाव वायु सेना के बीच झड़प में बदल गया. भारत को अपना मिग-21 बिसन गुमाना पड़ा और पायलट अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तानी सीमा में पकड़ लिया गया. उसके अगले दिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने घोषणा की कि वर्धमान को “शांति की पहल” के तहत 1 मार्च को रिहा कर दिया जाएगा. पाकिस्तान ने अपनी घोषणा को पूरा करते हुए कल शाम वर्धमान को रिहा कर दिया है. इमरान खान की इस घोषणा के बाद भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना और भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने संयुक्त रूप से मीडिया से बात की और कहा कि दोनों देश के बीच हुई हवाई झड़प का कारण पाकिस्तानी सेना का भारतीय हवाई सीमा का उल्लंघन करना था.
अभी देखना बाकी है कि वर्धमान की रिहाई से सीमा पर जारी तनाव कम होता है या नहीं. कारवां ने वर्तमान परिस्थिति और पुलवामा हमलों के बाद भारत की रणनीति पर और जनता में युद्ध उन्माद और दोनों देशों के लिए आगे की नीति के बारे में तीन रक्षा और विदेश नीति विशेषज्ञों से बात की. ये विशेषज्ञ हैं : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैप्पीमोन जैकब, उसी विभाग के प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय और भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल वीके सिंह. वीके सिंह ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग अथवा रॉ के साथ भी काम किया है. नीचे प्रस्तुत है इन तीनों से बातचीत का संपादित अंश.
मुझे नहीं पता इससे क्या रणनीति उद्देशय हासिल हुआ : जेएनयू के एसोसिएट प्रोफेसर हैप्पीमोन जैकब.
हमारे पास अब तक किसी भी प्रकार का ठोस सबूत नहीं है कि भारतीय वायु सेना बालाकोट में जिन लक्ष्यों को निशाना बनाना चाहती थी उसमें उसे कितनी सफलता मिली. 28 फरवरी को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब वायु सेना से यह पूछा गया कि बालाकोट का सबूत क्या है तो कोई बात नहीं की. तो ऐसे में सरकार को हमले के घोषित लक्ष्य के मुताबिक ठोस प्रमाण देने चाहिए. कम से कम टैक्टिकल उद्देश्य की जानकारी देनी चाहिए.
रणनीतिक हिसाब से देखें तो पाकिस्तान के जवाबी हमले के बाद भारत ने अपना भी हमला रोक दिया है. मुझे अभी पूरी तरह से विश्वास नहीं है कि इससे रणनीतिक उद्देश्य प्राप्त हुआ है. दोनों देशों ने एक दूसरे पर हमले किए लेकिन इससे कुछ परिणाम निकल कर नहीं आया. यदि भारत के हमलों का उद्देश्य पाकिस्तान को यह बताना था कि यदि उसने फिर से हमला किया तो भारत सीमा के अंदर आकर हमला कर सकता है तो यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सका क्योंकि पाकिस्तान ने बराबर कार्रवाई की.
कूटनीतिक फ्रंट में भारत ने वह सब किया जो वह कर सकता था. इस मामले में उसकी तारीफ की जानी चाहिए कि उसने अमेरिका, सऊदी अरब और चीन से इस बारे में बात की. इसी प्रकार भारत ने फ्रांस के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र संघ को भी अपनी स्थिति से अवगत कराया. तो मुझे लगता है कि कूटनीतिक फ्रंट में भारत काफी मजबूत और परिपक्व दिखा. सेना के तीनों अंगों की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखने से लगता है कि ये लोग बिना कहे तनाव कम कर रहे हैं. कूटनीतिक स्तर पर कामकाज होगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि कल या आने वाले दिनों में किसी तरह की कार्रवाई होगी. पायलट को लौटा कर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कुछ नैतिक ऊंचाई हासिल की है. हालांकि भारत कह सकता है कि ऐसा पाकिस्तान ने दबाव में आकर किया है लेकिन मुझे इस पर शक है क्योंकि ऐसा उसी स्थिति में हो सकता है जब अमेरिका ने पर्दे के पीछे पाकिस्तान के साथ कुछ डील की हो.
सैन्य स्तर पर मैं कह सकता हूं कि यह 50-50 रहा, क्योंकि भारत को वास्तव में इस स्तर पर कुछ हासिल नहीं हुआ. भारत ने अपनी राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य ऊर्जा एक ऐसे हमले में खर्च की जिससे कोई बड़ी रणनीतिक उपलब्धि हासिल नहीं हुई.
(महक महाजन से बातचीत पर आधारित)
मोदी सरकार इस हमले से चुनावी फायदा उठाना चाहती है : जेएनयू के प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय
मुख्य सवाल है कि पाकिस्तान से बातचीत कैसे हो क्योंकि अभी तक सरकार ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है. हो सकता है सरकार आने वाले लोक सभा चुनावों के मद्देनजर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए ढिलाई कर रही हो. ये लोग इससे चुनाव में अधिकतम फायदा उठाना चाहते हैं.
ऐसी परिस्थितियों में दो स्तरों पर बातचीत होती है. एक तरफ सोशल मीडिया में हमलों का जश्न मनाया जा रहा है और सरकार प्रेस को जानकारियां लीक कर रही है. दूसरे स्तर पर पर्दे के पीछे गुप्त तरीके से बात होती है. हमें उसका इंतजार करना चाहिए.
इस बात की खुशी मनानी चाहिए कि अभिनंदन वापस आ गए हैं. इसके एवज में पाकिस्तान ने बालाकोट में हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मांगा. पर हमें विश्व समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए व्यवस्थित रूप से बातचीत जारी रखनी चाहिए. भारत जवाबी कार्रवाई करने के बारे में नहीं सोच सकता क्योंकि दुनिया यह मानती है कि पाकिस्तान ने वह सब किया है जो उसे करना चाहिए था और जो हो चुका है उसे भूल कर आगे बढ़ना चाहिए. पाकिस्तान ने अभिनंदन को वापस भेज दिया. जहां तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सवाल है, दोनों देशों के बारे में उसकी राय समान है और यहीं से चीजों को आगे ले जाना चाहिए.
(अमृता सिंह से बातचीत पर आधारित)
पुलवामा हमला बहुत बड़ी गुप्तचर विफलता है : रिटायर्ड मेजर जनरल वीके सिंह
पुलवामा हमला क्यों हुआ? यह बड़ी गुप्तचर विफलता थी. ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को खबर न और इतना बड़ा हमला हो जाए? क्या गुप्तचर विफलता की जांच की गई, क्या सीआरपीएफ ने सारी ड्रिल पूरी की थी या उसके मार्ग की सुरक्षा जांच की गई, और तीनों बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कहां थे? सरकारी चूक की तहकीकात करनी चाहिए और जिम्मेदार लोगों को सजा देनी चाहिए. गुप्तचर एजेंसियों का काम ऐसे संगठनों में घुसपैठ करना है. हमें इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या कोई सटीक गुप्तचर सूचना मिली थी? यह कहना कि “कोई हमला होने वाला है” गुप्तचर जानकारी नहीं है. गुप्त सूचनाओं को सटीक होना चाहिए.
पुलवामा हमले के बाद इस तरह का कुछ होना ही था. एक अच्छी बात है कि भारत ने ऐसा कदम उठाकर पाकिस्तान को बता दिया है कि उसे चीजों को रोकना चाहिए. यदि आप आतंकवाद को पनाह देते हैं तो आपको इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए. मुझे लगता है आतंकी कैंपों पर हमला कर भारत ने अच्छा काम किया है. यह हमारी क्षमता दिखाता है कि हम ऐसा कर सकते हैं. लेकिन इससे ज्यादा बात नहीं बढ़नी चाहिए.
आज, जनता के अंदर युद्ध उन्माद कारगिल के दिनों से भी ज्यादा है. उन दिनों व्हाट्सएप नहीं था, सोशल मीडिया नहीं था. जनता को न्यूज पेपर पढ़ कर चीजों का पता चलता था. आज सभी के पास स्मार्टफोन है और अचानक पब्लिक चीख रही है, जुलूस निकाल रही है और अन्य चीजें कर रही है. इन चीजों को रोका जाना चाहिए.
लोग चिल्लाते हैं कि हमें लड़ाई लड़नी चाहिए लेकिन मारे सैनिक जाते हैं. मुंबई और चेन्नई में नारेबाजी करने वाला आदमी मरने नहीं जा रहा. सेना के जवान अपनी जान देते हैं. युद्ध कभी भी एक सही फैसला नहीं होता. यह अंतिम उपाय होना चाहिए. इसीलिए आपको दूसरी तरह से दबाव डालना चाहिए, आर्थिक और कूटनीतिक दबाव. तनाव नहीं बढ़ना चाहिए. हमें कूटनीतिक चैनलों का प्रयोग करना चाहिए और ऐसे दोस्ताना देशों से बात करनी चाहिए जो पाकिस्तान पर दबाव डाल सकते हैं.
(तुशा मित्तल से बातचीत पर आधारित)