We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing
मुस्तफाबाद में ईदगाह मैदान में चलाए जा रहे एक सरकारी राहत शिविर से बाहर निकलते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने कहा, "हालत बेहद खराब है.'' फरवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. हिंसा में प्रभावित हुए परिवारों के लिए सरकार ने राहत शिविर लगाए हैं. जोसेफ ने कहा, "हमें लोगों में विश्वास पैदा करने की जरूरत है ताकि वे फिर से अपनी जिंदगियों में लौट सकें और एक सामान्य जीवन जी सकें." 5 मार्च की शाम को तीन घंटे तक, जोसेफ और सुप्रीम कोर्ट के दो अन्य पूर्व न्यायाधीशों, विक्रमजीत सेन और ऐके पटनायक ने शिव विहार में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का और फिर मुस्तफाबाद राहत शिविर का औचक दौरा किया. जोसेफ ने कहा, "पुनर्वास प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है लोगों में दुबारा से इस विश्वास को पैदा करना कि जो यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं होगा.”
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि पीड़ितों के लिए "व्यक्तिगत चिंता" के चलते उन्होंने यह दौरा किया. उन्होंने हिंसा के कारण जान या संपत्ति के नुकसान का कोई "आकलन" करने के लिए दौरा नहीं किया. उन्होंने क्षेत्र के लोगों और मुस्तफाबाद के ईदगाह पर लगाए गए राहत शिविर में विस्थापितों के साथ बातचीत की. पूर्व न्यायाधीशों ने शिव विहार और मुस्तफाबाद दोनों क्षेत्रों में कोई सामूहिक बयान नहीं दिया, फिर भी उन्हें 2019 की नागरिकता (संशोधन) कानून पर न्यायपालिका की प्रतिक्रिया और उसके बाद की हिंसा के बारे में पत्रकारों के कई सवालों का सामना करना पड़ा. पीड़ितों की पुलिस में शिकायतें दर्ज कराने और मुआवजे की मांग करने के लिए क्षेत्र में मौजूद वकीलों ने भी पूर्व न्यायाधीशों के साथ बातचीत की और न्यायपालिका के आचरण पर अपनी निराशा जताई.
पटनायक के अनुसार, न्यायाधीश चाहते थे कि हिंसा में जो हुआ, उसके बारे में उन्हें प्राथमिक स्रोतों से जानकारी हो क्योंकि अब तक जो कुछ भी वे जानते थे वह सब मीडिया के माध्यम से पता चला था. सुप्रीम कोर्ट में लोगों के विश्वास की कमी के बारे में पूछे गए सवाल पर जोसेफ ने कहा कि भारतीय जनता के भरोसे में कमी के लिए अकेले शीर्ष अदालत को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए सरकार और न्यायपालिका का "सामूहिक प्रयास" होना चाहिए. जो कुछ भी उन्होंने देखा उसके आधार पर उन सभी ने बड़े पैमाने पर हुए नुकसान की बात की. पटनायक ने कहा, "बहुत नुकसान हुआ है."
उस दिन शाम 5.30 बजे, न्यायाधीशों की यात्रा का पहला पड़ाव मुस्तफाबाद में औलिया मस्जिद के पास स्थित एक घर था जिसे जलाया और लूटा गया था. घर के बाहर, आस-पास के निवासियों में से एक ने पटनायक को बताया कि वह हिंसा के चार दिन बाद 29 फरवरी को अपने घर लौट सके थे. निवासी ने कहा कि वह अभी भी डरें हुए हैं क्योंकि वहां तैनात पुलिस ने इसका कोई भरोसा नहीं जताया है कि मुस्तफाबाद में फिर से हिंसा नहीं होगी. पटनायक ने पूछा कि दंगाई बाहरी थे या स्थानीय. निवासी ने जवाब दिया कि वे सभी "स्थानीय हिंदू" थे. उन्होंने कहा कि वह दंगाइयों की पहचान कर सकते हैं लेकिन उन्हें पुलिस के संरक्षण की जरूरत है. "अगर पुलिस या प्रशासन उन पर थोड़ा दबाव डालें, तो मैं उन सभी का नाम ले सकता हूं," निवासी ने कहा.
जब निवासियों को धैर्यपूर्वक सुनने और अन्य घरों का निरीक्षण करने के बाद, पटनायक दो अन्य पूर्व न्यायाधीशों के साथ अपनी कार में वापस आ रहे थे, एक पत्रकार ने सीएए पर न्यायपालिका की प्रतिक्रिया के बारे में उनकी राय मांगी. इस साल जनवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने सीएए को चुनौती देने वाली और कानून के लागू होने पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करने वाली 143 याचिकाओं पर अपनी पहली सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया और कोई तत्परता नहीं दिखाते हुए केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया. यह निर्णय देश भर में कानून के खिलाफ बढ़ते विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में आया था, जिसमें दसियों हजार लोग सड़कों पर उतर आए थे और उनके खिलाफ पुलिस ने क्रूर कार्रवाई की थी.
हालांकि, पटनायक ने सीएए याचिकाओं पर चर्चा नहीं की और हिंसा पर अदालत की प्रतिक्रिया की बात नहीं की. पटनायक ने पत्रकार के सवाल के जवाब में कहा, "सुप्रीम कोर्ट के पास जमीनी प्राथमिक जानकारी नहीं है कि यहां क्या हो रहा है. पहले तथ्यों का आकलन किया जाना चाहिए, ताकि पता चल सके कि वास्तव में क्या हुआ है. जमीन पर जो हो रहा है, उससे सुप्रीम कोर्ट बहुत दूर है.” मैंने पटनायक से पूछा कि उस मामले में अदालत को क्या करना चाहिए. उन्होंने जवाब दिया, "पहली बात यह है कि किसी को तथ्यों के साथ आना चाहिए कि वास्तव में क्या हुआ है. अदालत के सामने आए सभी तथ्य किसी और की धारणा हैं."
इस बातचीत के बाद, न्यायाधीश अपनी कार में बैठकर राहत शिविर की ओर चले गए. बृजपुरी रोड पर ईदगाह से लगभग तीन सौ मीटर दूर तक ही कार जाने का रास्ता था. न्यायाधीश अपनी कार से उतरकर ओल्ड मुस्तफाबाद की चहल—पहल भरी गली से गुजरे, जिसमें छोटे रेस्तरां और दुकानें थीं जो उस वक्त खुली थीं. न्यायाधीशों ने एक छोटे से गेट से ईदगाह में प्रवेश किया, जहां लगभग एक हजार लोगों को राहत शिविर में आश्रय दिया गया था.
शिविर में वकीलों के लिए एक तय स्थान था. जैसे ही न्यायाधीशों ने प्रवेश किया, लगभग आधा दर्जन वकीलों ने सेन को घेर लिया, जबकि जोसेफ और पटनायक ने सुविधाओं का निरीक्षण किया. वकीलों में से एक ने सेन को बताया कि पुलिस ने मुस्लिम पीड़ितों द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में आरोपी व्यक्तियों के नाम सूचीबद्ध नहीं किए हैं, हालांकि शिकायतकर्ताओं ने नाम से उनकी पहचान की थी. सेन ने वकील से कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष आपको ''इन सभी चीजों को सामने लाना चाहिए.'' सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एक अन्य वकील ने सेन को जवाब दिया, "नहीं, ऐसा मैं नहीं कर सकता, आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में चीजें किस तरह से चल रही हैं!"
वकीलों ने अपनी पहचान उजागर करने से इनकार कर दिया, उन्होंने कहा कि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना के लिए अवमानना कार्यवाही का डर है, विशेष रूप से सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के खिलाफ टिप्पणियों पर विचार करने के बाद से. 4 मार्च को, मंदर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें दिल्ली हिंसा में नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर भी शामिल थे. सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि दिल्ली पुलिस के पास एक वीडियो है जिसमें मंदर ने कह रहे हैं कि उन्हें न्यायपालिका में "कोई विश्वास नहीं" है. इसके जवाब में पीठ की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश, शरद अरविंद बोबडे ने कहा, "अगर आप सुप्रीम कोर्ट के बारे में ऐसा महसूस करते हैं, तो हमें यह तय करना होगा कि आपके साथ क्या किया जाए."
अदालत ने मेहता की दलील का संज्ञान लिया और कहा कि जब तक मंदर के खिलाफ आरोप नहीं सुने जाते वे उनकी अपील नहीं सुनेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले की सुनवाई नहीं करेगा क्योंकि इसी तरह की याचिकाएं दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं, जिन्हें 13 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय को नफरत भरे भड़काऊ भाषणों से संबंधित याचिकाओं को 6 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. उस तारीख को, उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज करने और मामलों को 12 मार्च के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया.
एक अन्य वकील ने सीएए और उसके खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़े मामलों के संबंध में उच्च न्यायपालिका द्वारा अपनाए तरीकों पर चिंता व्यक्त करते हुए एक अलग उदाहरण का हवाला दिया. वकील उन कई याचिकाकर्ताओं में से थे, जिन्होंने पुलिस द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के किसी भी छात्र को गिरफ्तार करने से रोकने की मांग को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था. दिसंबर 2019 में, संसद द्वारा कानून बनाए जाने के तुरंत बाद, दिल्ली पुलिस ने कैंपस के अंदर सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान विश्वविद्यालय के छात्रों पर क्रूरतापूर्ण कार्रवाई की थी. वकील ने सेन को बताया कि अदालत ने इस तरह की सुरक्षा देने से इनकार कर दिया और यहां तक कि सरकार से दलीलों का जवाब तक नहीं मांगा. सेन ने जवाब में कहा, "मेरे लिए यह कहना बहुत आसान है लेकिन आपको बस संघर्ष करते रहना है."
पूर्व न्यायाधीशों की यात्रा से एक दिन पहले, अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग, एक स्वतंत्र द्विदलीय संघीय निकाय जो धर्म की सार्वभौमिक स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों पर काम करता है, ने सीएए को केंद्र में रखते हुए "नागरिकता कानून और धार्मिक स्वतंत्रता" पर एक सुनवाई आयोजित की. आयोग में पेश किया गया एक बयान कहता है कि भारतीय बुद्धिजीवियों में यह धारणा बढ़ रही थी कि सर्वोच्च न्यायालय अपने लोगों का भरोसा खोती जा रही है. राहत शिविर में, मैंने तीनों न्यायाधीशों से सुनवाई और देश की सर्वोच्च अदालत के बारे में की गई टिप्पणियों के बारे में पूछा.
पटनायक ने कहा, "यह महज एक दौर है. ऐसा भी दौर आता है जब लगता है कि न्यायपालिका विफल हो गई है. अमेरिका में भी, यूएस फेडरल सुप्रीम कोर्ट में उतार-चढ़ाव आए हैं, और लोगों की धारणा में भी उतार-चढ़ाव आते हैं. आखिरकार न्यायपालिका को संविधान और कानून के पक्ष में खड़ा होना पड़ता है.”
Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute