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2018 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो की एक टीम मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस पहुंची. पिछले चार सालों से सीबीआई भारत के एक कुख्यात रक्षा घोटाले की जांच कर रही थी और उसी के तार टीम को पोर्ट लुईस ले आए थे. दुनिया भर के टैक्स चोरों के लिए मॉरीशस जन्नत से कम नहीं है. इससे पहले उस घोटाले की इतालवी और भारतीय जांचों में पाया गया था कि हथियार बनाने वाली यूरोपीयन कंपनियों, अगस्ता वेस्टलैंड और फ़िनमेक्कानिका, के लोगों ने दलालों, भारत सरकार एवं सशस्त्र बलों के सीनियर अधिकारियों को घूस देकर तकनीकी जांच में हेरफेर कराई थी ताकि भारत को 3,727 करोड़ रुपए में 12 हेलीकॉप्टर बेच दें. मॉरीशस की एक कंपनी इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज के जरिए घूस का पैसा आने के सबूत पहले ही मिल चुके थे.
सीबीआई की टीम पहले मॉरीशस के अटॉर्नी जनरल के दफ़्तर गई, जहां उन्होंने इंटरस्टेलर और कुछ संबंधित फर्मों के बैंक और कंपनी दस्तावेज बटोरे. इंटरस्टेलर का ‘44, रुए सेंट जॉर्जेस’ स्थित पुराना दफ़्तर वहां से महज 10 मिनट की पैदल दूरी पर था. 2023 में, इसी नेटवर्क के रक्षा घोटाले की मेरी जांच में मुझे ऐसे बैंक स्टेटमेंट मिले थे जिनसे पता चला कि इंटरस्टेलर ने 15 सालों में हथियार निर्माताओं से कम से कम 250 करोड़ रुपए की घूस ली थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), ने अपनी जांच में पाया था कि कंपनी को दिल्ली का एक रक्षा दलाल सुशेन गुप्ता चलाता था.
‘44, रुए सेंट जॉर्जेस’, यह पता अगस्ता वेस्टलैंड मामले में बार-बार सामने आया था. सौदे के लिए सुशेन का कुछ पैसा मॉरीशस की ही एक कंपनी ‘सभाह् इनवेस्टमेंट्स’ के जरिए उसकी भारतीय कंपनियों में भेजा गया था. इसका भी पता वही था : ‘44, रुए सेंट जॉर्जेस’.
इसी पते पर सबसे आसानी से दिखने वाली कंपनी फिडिको ग्लोबल बिजनेस सर्विसेज थी, जो 2008 तक इंटरस्टेलर की सचिव, प्रबंधन कंपनी और पंजीकृत एजेंट के रूप में काम कर रही थी. हालांकि इसके दस्तख़त अगस्ता वेस्टलैंड सौदा निपटने के बाद भी इंटरस्टेलर के दस्तावेजों पर दिखाई देते हैं. यह मॉरीशस में दो अन्य फर्मों की निदेशक भी थी. ऐसा शक था कि इनके जरिए अगस्ता वेस्टलैंड ने घूस भेजी थी. इनकी जानकारी ईडी को मॉरीशस अधिकारियों से मिली थी. फिडिको का पता भी वही ‘44, रुए सेंट जॉर्जेस’ था. दिलचस्प बात यह है कि अगस्ता वेस्टलैंड मामले से पहले भी, यह पता ईडी और सीबीआई की रक्षा घोटालों की दूसरी जांच में सामने आ चुका था.