4 नवंबर को महाराष्ट्र पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के दो साल पुराने एक मामले में गिरफ्तार कर लिया. अर्नब की गिरफ्तारी के बाद अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बहस छिड़ गई है. यह मामला इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक की आत्महत्या से संबंधित है. अन्वय नाइक कॉनकॉर्ड डिजाइंस प्राइवेट लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और बोर्ड मेंबर थे. मई 2018 को दोनों ने आत्महत्या कर ली थी. खबरों के मुताबिक, नाइक ने जो सुसाइड नोट अपने पीछे छोड़ा है उसमें उन्होंने गोस्वामी और दो अन्य लोगों पर बकाया का भुगतान न करने का आरोप लगाया है और लिखा है कि “उनकी मौत के लिए ये लोग जिम्मेदार हैं.”
पुलिस ने सबूतों की कमी बता कर यह मामला 2019 में बंद कर दिया था लेकिन नाइक के परिवार वाले पुलिस जांच से संतुष्ट नहीं थे. मई 2020 में महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सीआईडी को इस मामले की पुनः जांच करने का आदेश दिया. कारवां की रिपोर्टिंग फेलो आतिरा कोनिक्करा ने अन्वय नाइक की बेटी अदन्या नाइक से बात की. अदन्या पेशे से आर्किटेक्ट हैं. इस इंटरव्यू में उन्होंने रिपब्लिक टीवी के प्रोजेक्ट को पूरा करते हुए उनके पिता को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा, उसके बारे में और केस को चालू रखने की कोशिश करते हुए उनके परिवार को मिली धमकियों के बारे में बात की.
आतिरा कोनिक्करा : रिपब्लिक चैनल के स्टूडियो का काम करने का ठेका कॉनकॉर्ड डिजाइंस को कब मिला था और गोस्वामी के साथ विवाद कब शुरू हुआ?
अदन्या नाइक : 2016 में हमें काम का ऑर्डर मिला था. वह 6 करोड़ 40 लाख रुपए से अधिक का काम था. वह प्रोजेक्ट पूरा कर दिया गया और सब कुछ सही था. मेरे पिता को काम के दौरान भी गोस्वामी और उनकी बीवी और अन्य लोगों ने अपनी मनमर्जी के बदलाव करने का दबाव डाला था. आखिरी मिनट में ये बदलाव बताए जाते थे और उन्हें तुरंत पूरा करने का दबाव डाला जाता. पिता जी बहुत दबाव में थे. उनसे कहा गया कि “तुम्हें जो करना है कर लो, लेकिन तुम्हें पैसा नहीं मिलेगा.”
आतिरा कोनिक्करा : गोस्वामी ने पैसे देने से इनकार करना कब शुरू किया?
अदन्या नाइक : जब प्रोजेक्ट चल ही रहा था तभी से पैसे देने से इनकार किया जाने लगा. अर्नब कहता था, “मैं अर्नब हूं, मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि मैं क्या कर सकता हूं. तुम एक मराठी हो, महाराष्ट्र में रहते हो, लेकिन तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते.” हम लोग घर में चर्चा करते थे कि हमें पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज करानी चाहिए, लेकिन मेरे पिता जी बहुत डरे हुए थे. वह कहते थे, “नहीं ऐसा नहीं कर सकते. वह धमकियां दे रहा है कि तुम्हारा करियर बर्बाद हो जाएगा और तुम्हारी बेटी का करियर भी बर्बाद हो जाएगा.” मैं एक आर्किटेक्ट हूं. मैं अपने पिता जी की मदद करती थी और साथ ही इंटर्नशिप भी कर रही थी.
आतिरा कोनिक्करा : स्टूडियो की प्लानिंग के वक्त ऐसे कौन से बदलाव थे जो वे अंतिम क्षणों में करवाते थे?
अदन्या नाइक : बहुत सारे बदलाव थे. अगर उन्हें कोई चीज सौंदर्य की दृष्टि से अच्छी नहीं लगती थी, तो वह कुछ और करने के लिए कहते. जब बदलना पड़ता है, तो काम की लागत बढ़ जाती है और मेनपावर का भी ख्याल रखना पड़ता है. ये दो-तीन दिनों में होने वाली बातें नहीं होतीं.
पैसा न देना का षड्यंत्र शुरू से ही रचा गया था. अगर उनका इरादा हमें पैसे देने का होता तो वह कबका दे चुके होते. साथ में मेरे पिता जी फिरोज शेख और नितेश शारदा के प्रोजेक्ट भी कर रहे थे. (सुसाइड नोट में लिखा है कि आईकास्टएक्स/स्काइमीडिया के शेख और स्मार्टवर्क्स के शारदा पर क्रमशः चार करोड़ रुपए और 55 लाख रुपए न देने का आरोप है. गोस्वामी के साथ ही इस मामले में ये दोनों भी सह-आरोपी हैं. सुसाइड नोट के अनुसार, गोस्वामी पर बकाया रकम 83 लाख रुपए से बहुत ज्यादा थी.) मेरे पिता जी ने खून के आंसू पी कर पैसे कम करके 83 लाख रुपए कर दिए. मान लीजिए यदि कोई आपसे 25000 लेता है और नहीं लौटता, तो आप सोचते हैं कि चलो 25000 न सही 15000 ही मिल जाएं.
आतिरा कोनिक्करा : इसका मतलब है कि किए गए काम के पैसे लेने के लिए आपके पिता को समझौते करने पड़े?
अदन्या नाइक : जी बिल्कुल. उन्होंने गोस्वामी के ऊपर बकाया कुल एक करोड़ बीस लाख रुपए (12000000) की रकम को घटाकर तिरासी लाख रुपए (8300000) रुपए कर दिया था लेकिन वह आदमी उतने पैसे देने को भी तैयार नहीं था. कितना बेशर्म है वह.
आतिरा कोनिक्करा : यह विवाद कितना लंबा चला?
अदन्या नाइक : यह प्रोजेक्ट 2 दिसंबर 2016 में शुरू हुआ था और हमने मार्च या अप्रैल, 2017 में उसे पूरा कर उन्हें सौंप दिया था. अप्रैल 2017 के बाद एक साल से अधिक तक यह विवाद चला. हम पैसे मांगते रहे लेकिन उसने पैसे नहीं दिए.
आतिरा कोनिक्करा : खबरों के मुताबिक आपके पिता ने पैसे मांगने के लिए अर्नब को ईमेल भी लिखे थे?
अदन्या नाइक : जी हां, वह उनसे विनती करते थे. कहते थे, “प्लीज पैसे दे दीजिए. मेरे जिंदगी का सवाल है.” उन ईमेलों में मेरे पिता ने लिखा है कि बात अब परिवार तक चली गई है और सभी लोग परेशान हैं. सभी लोगों पर दबाव है. यह हताश करने वाली बात है.” हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम क्या करें क्योंकि हम खुद को चारों तरफ से घिरा हुआ महसूस कर रहे थे. अगर ये तीनों आरोपी हमें हमारे 5 करोड़ 40 लाख रुपए दे देते तो हमारा कारोबार चलता रहता.
आतिरा कोनिक्करा : आपके पिताजी की मौत के बाद आप ने रायगढ़ जिले के अलीबाग पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की थी. जब आप लोग एफआईआर लिखवाने पुलिस के पास गए, तो उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अदन्या नाइक : सबसे पहले तो वे लोग एफआईआर दर्ज ही नहीं करना चाहते थे क्योंकि जैसे ही उन्होंने शिकायत में अर्नब का नाम देखा, डर गए. जांच अधिकारी सुरेश वराडे ने मेरी मां और मुझे धमकी दी कि “देखिए यह आप लोगों की जिंदगी का सवाल है. इसमें हाई प्रोफाइल लोग शामिल हैं. जरा सोचिए. मेरी बात मानिए और यह एफआईआर दर्ज मत कीजिए.” मेरे रिश्तेदारों ने पुलिस वालों से अनुरोध किया और सवाल पूछे कि क्यों नहीं दर्ज करें, तब जाकर वे एफआईआर दायर करने को राजी हुए. लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बाद भी तीनों आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया. हालांकि मैंने अलीबाग पुलिस स्टेशन में अपना बयान दर्ज करा दिया था और अर्नब ने मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त (ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर) के कार्यालय में मराठी में अपना बयान दर्ज कराया था.
हमने मिल रही धमकियों के बारे में गैर-संज्ञेय शिकायत भी दर्ज कराई थी. उन्हें इसकी एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी लेकिन मैं नहीं जानती कि उन लोगों ने ऐसा क्यों नहीं किया.
आतिरा कोनिक्करा : क्या आपको ये धमकियां पिछले दो सालों में मिली हैं?
अदन्या नाइक : इन दो सालों में हमें लगातार धमकियां मिली हैं. हम यह जानते थे कि अर्नब के खिलाफ हमारे मामले के चलते हमें धमकियां मिल रही थी, लेकिन जो लोग हमें धमकियां देते थे हम उन्हें नहीं पहचानते थे. मेरे पास जो भी जानकारी थी, मैंने पुलिस को दे दी. जैसे धमकी देने वालों के फोन नंबर, किस तरह की धमकियां मिलीं, व्हाट्सएप कॉल आदि. मैंने वह सब पुलिस को दे दिया. मेरी मां द्वारा पहला वीडियो जारी करने से पहले, जिसमें उन्होंने जांच पर सवाल उठाए थे, मुझे मुर्बाद में बाइक सवारों ने रोक कर कहा था कि इस मामले में मुझे चुप रहना चाहिए. उन्होंने कहा था, “हमारी नजर तुम पर है. हम जानते हैं कि तुम कहां जाती हो, कहां छिपती हो.” यह कितना बड़ा भद्दा मजा है कि हम लोगों पर इस तरह का दबाव डाला जाए जबकि हमने कुछ नहीं किया. इसलिए हमने सोचा कि यदि हमको मरना ही है तो हम बोल कर मारेंगे.
आतिरा कोनिक्करा : साल 2019 में रायगढ़ पुलिस ने किस आधार पर जांच को बंद कर दिया था? क्या उन्होंने आपको इसकी क्लोजर रिपोर्ट दी?
अदन्या नाइक : हमें क्लोजर रिपोर्ट इस साल मई में दी गई है. हमें मई तक नहीं पता था कि मामला बंद हो गया है.
आतिरा कोनिक्करा : क्या इसके बाद आप लोगों ने गृहमंत्री से संपर्क किया?
अदन्या नाइक : नहीं, हमने इससे पहले भी किया था. हमने अपना आवेदन कई अन्य लोगों को भी मेल किया था. लेकिन हम गृहमंत्री से नहीं मिले थे. फिर हम उनसे इसलिए मिले क्योंकि हमारी जान खतरे में थी. हमें लगातार धमकियां मिल रही थीं कि हम लोगों को हमारे घर में आकर मार डालेंगे.
आतिरा कोनिक्करा : इस मामले में सीआईडी की जांच कहां पहुंची है?
अदन्या नाइक : हमने उनसे पूछा था कि जांच का क्या हुआ लेकिन हमें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. इन तीनों को सजा मिलनी चाहिए और न सिर्फ उन्हें बल्कि जांच अधिकारी वराडे जैसे लोगों को भी सजा मिलनी चाहिए जिन्होंने उनकी मदद की, उन्हें भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए.
आतिरा कोनिक्करा : क्या आप उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराने के बारे में सोच रही हैं?
अदन्या नाइक : जी हां, क्यों नहीं. यदि जरूरत पड़ी तो हम जरूर ऐसा करना चाहेंगे.
आतिरा कोनिक्करा : सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अक्सर लोग बरी हो जाते हैं. आपको क्या लगता है कि जांच किस तरह आगे बढ़ेगी?
अदन्या नाइक : मैं महाराष्ट्र पुलिस से दिल से प्रार्थना कर रही हूं कि कम से कम बिना किसी राजनीतिक दबाव में आए निष्पक्ष जांच करे और हमें न्याय दिलाए. एक झूठ को छुपाने के लिए आपको दस हजार झूठ बोलने पड़ते हैं. सिर्फ इसलिए कि आप चीख लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप सच कह रहे हैं. जो हमारे साथ हुआ है वह सच है. मेरे पिता ने खुद सुसाइड नोट लिखा था. इसमें कोई शक नहीं है.
आतिरा कोनिक्करा : जो लोग कहते हैं कि आपके कदम के पीछे राजनीतिक मकसद है, उनसे क्या कहना चाहेंगी?
अदन्या नाइक : यह लड़ाई इन तीन आरोपियों के खिलाफ हमारी व्यक्तिगत लड़ाई है. यह आपराधिक मामला है और इसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से क्या लेनादेना है, मुझे समझ नहीं आ रहा. अगर अर्नब के पास अंट-शंट बकने (बकवास करने) का अधिकार है, तो मेरे पास भी सच्चे तथ्य लोगों के सामने रखने का अधिकार है. और यह बताने का भी कि मेरे परिवार को किस तरह से परेशान किया गया. अब यह मामला सामने आ गया है और हम भारत की जनता से कहना चाहते हैं कि वे देखें कि कैसे एक आम आदमी का टॉर्चर किया गया. अगर अर्णब गोस्वामी जैसा बड़ा आदमी कोई बड़ा अपराध करता है, तो मामला खत्म कर दिया जाता है. यदि हम आज चुप रहे, तो कल ऐसा फिर किसी के साथ होगा.