अनुसूचित जाति के प्यारे लाल बनवासी ने अपने 22 साल के बेटे शिव पूजन की शादी के भोज के लिए एक सप्ताह पहले ही 100 किलो लकड़ी ख़रीद ली थी. उन्हें क्या मालूम था कि वही लकड़ी बेटे की चिता जलाने के काम आएगी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र, वाराणसी जिले, के खरगुपुर में हाथी बाज़ार के रहने वाले प्यारे लाल बनवासी छोटी उम्र में से ही लकवाग्रस्त हैं. 45 वर्षीय प्यारे लाल को दिव्यांग पेंशन मिलती है. उससे और बेटे की कमाई और जो थोड़ा बहुत पत्नी कमाती है, उसी से घर चलता आ रहा था. अब उनका एक सहारा नहीं रहा. 5 जून को सड़क हादसे में बेटे की मौत हो गई.
संयोगवश, शिवपूजन के निधन से 15 दिन पहले 21 मई को वाराणसी में कपसेठी थाना क्षेत्र के महिमापुर हीरापुर गांव के 25 वर्षीय अच्छे लाल बनवासी की भी शिव पूजन जैसी परिस्थिति में एक सड़क हादसे में मौत हो गई.
दोनों ही मामलों में एक समानता यह भी है कि दोनों लड़के ट्रैक्टर से ईंट भट्टे पर मिट्टी गिराने का काम करते थे. शिव पूजन ट्रैक्टर चलाकर 20 दिन बाद होने वाली अपनी शादी के लिए पैसे जुटा रहा था. वहीं, अच्छे लाल ने ट्रैक्टर मालिकों से पैसे उधार लिए थे, जिसे चुकाने का उस पर दबाव था. मूसहर बनवासी समाज के ये दोनों लड़के ग़रीबी से लड़ते हुए अपने-अपने परिवारों की ज़िम्मेदारियां उठा रहे थे.
इसके अलावा, दोनों ही मामले में एक और ख़ास बात है जिस पर अब तक बहुत कम ध्यान गया है. इन दोनों मामलों में मौत के बाद मालिकों का मृतकों के परिजनों से सुलहनामा अथवा करार हुआ है. इन करारों में मृतकों के परिजनों से मामले को आगे न बढ़ाने का वचन लिया गया है.
शिव पूजन के पिता प्यारे लाल बनवासी ने मुझे बताया, ‘5 जून को मेरे बेटे को देखने के लिए लड़की वाले आने वाले थे. 25 जून को उसकी शादी तय हुई थी. शादी के लिए हमने कई तैयारियां की थी और 30 घरों वाली अपनी इस बस्ती में भी सबसे दो-दो हज़ार रुपए सहयोग देने को बोल दिया था.’
उन्होंने आगे बताया, ‘4 जून की शाम मेरे बेटे को बार-बार फ़ोन आ रहे थे, लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया. फिर ट्रैक्टर मालिक सौरभ और गोलू दोनों हमारी बस्ती में आए और मेरे बेटे को ट्रैक्टर चलाने के लिए कहने लगे.’
चूंकि मिट्टी लोडिंग का काम रात में ही होता है, इसलिए ट्रैक्टर मालिकों ने पूरी रात शिव पूजन से काम करवाया. सुबह क़रीब छह बजे, पिता के अनुसार, भूख लगने पर उसने मालिक से खाना खाने की छुट्टी मांगी, लेकिन मालिकों ने मना कर दिया और एक चक्कर और लगाने के लिए कहा. ‘वही चक्कर’, प्यारे लाल ने कहा, ‘मेरे बेटे की ज़िंदगी का आख़िरी चक्कर बन गया.’
पिता बनवासी के मुताबिक, ‘मिट्टी लेकर भट्टे की तरफ़ जाते समय, मोड़ पर एक गहरी खाई में ट्रैक्टर पलट गया. सुबह सात बजे फ़ोन पर हमें बताया गया कि शिव पूजन को चोट लगी है और उसे अस्पताल लेकर जा रहे हैं, लेकिन मेरे बेटे ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. उसके बाद ट्रैक्टर मालिक और कुछ भट्टे वाले मेरे बेटे की लाश को ट्रैक्टर पलटने वाली जगह ले आए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले गई. पुलिस ने हमसे कहा कि पोस्टमार्टम होगा तो आप लोगों को पांच लाख रुपए मिलेंगे. हमने उनकी बात मान ली और पुलिस बेटे की लाश शिवपुर पोस्टमार्टम हाउस लेकर चली गई. पोस्टमार्टम हाउस से चार बजे हम लोग अपने बेटे की बॉडी लेकर घर आए और वरुणा नदी के साथ बने कालिका धाम श्मशान घाट पर ले गए.’
ट्रैक्टर मालिक ने शिव पूजन की तेहरवीं में खाने का सामान भिजवाया था. ट्रैक्टर मालिक ब्राह्मण जाति का है. शिव पूजन ने दो महीने पहले ही ट्रैक्टर चलाना सीखा था. उसे पूरी तरह से ट्रैक्टर चलाना भी नहीं आता था, इसके बावजूद वह एक रात में 20 से ज़्यादा चक्कर लगाता था. इस काम के लिए उसे 500 रुपए मज़दूरी मिलती थी. यानी एक चक्कर का 25 रुपए मिलता था. वह शाम 7 बजे से पूरी रात काम करता था. प्यारे लाल ने कहा, ‘मैं कोई कार्रवाई नहीं कर सकता. हम कहां अकेले दौड़ पाएंगे. हम पूरी तरह टूटे हुए हैं. अगर मेरे बेटे को खाना दे देते, तो जान नहीं जाती. मेरा बेटा भूख चला गया.’
20 जून को सड़क हादसे में जान गंवाने वाले अच्छे लाल बनवासी की बहन पूजा बनवासी ने मुझे बताया, ‘20 जून की शाम को निशांत सिंह घर आया और मेरे भाई को ट्रैक्टर चलाने के लिए कहने लगा. भाई के मना करने पर वह उसे गाली देने लगा. बाद में मेरा भाई चला गया और पूरी रात उसने ट्रैक्टर चलाया. निशांत सिंह राजेश सिंह का बेटा है. मेरे भाई ने राजेश सिंह से पांच हज़ार रुपए उधार लिए थे. मेरा भाई दिन रात ट्रैक्टर चला रहा था. दिन के 350 और रात के 400 रुपए मिलते थे. दिन में 30 चक्कर और रात को 40 चक्कर लगा लेता था.’
20 जून की रात नींद लगने का कारण कोल्हुआ बाबा के पास अच्छे लाल का ट्रेक्टर पलट गया और उसकी मौत हो गई. पूजा ने आगे बताया, ‘वे ठाकुर समाज के लोग हैं. वे जल्दी से उसका दाह संस्कार करने के लिए दबाव बनाने लगे. हमने मना किया कि जब तक हमारे पापा नहीं आएंगे हम कुछ नहीं करेंगे. हमने अपने पापा को फ़ोन कर बुलाया. पुलिस के आने पर जब पोस्टमार्टम के लिए ले जाने लगे तब वे लोग रोकने लगे. पोस्टमार्टम के बाद उसका दाह संस्कार किया गया.’
अच्छे लाल के पिता मुंबई के कल्याणी में रहते हैं. वह राजमिस्त्री का काम करते हैं. अभी साल भर पहले अच्छे लाल की शादी हुई थी. उसकी पत्नी गर्भवती है. ठाकुरों ने ख़ुद पर एफ़आइआर न करने पर ज़ोर देकर परिवार को सुलह करने के लिए राज़ी कर लिया. उसके बाद दोनों पक्षों ने सुलहनामा किया. आपसी करार के बाद राजेश सिंह ने पांच हज़ार रुपए का कर्ज़ माफ़ कर दिया. इसके अलावा उन्होंने परिवार की कोई मदद नहीं की.
पूजा ने आगे बताया, ‘वे बस जल्द से जल्द मेरे भाई का क्रियाकर्म करना चाहते थे. हर चीज़ का विरोध कर रहे थे, पोस्टमार्टम भी नहीं होने देना चाहते थे. हमें पता था ठाकुर पलट जाएंगे, इसलिए हमने अपने भाई का पोस्टमार्टम करवाया.’
वकील बबलू बनवासी ने मुझे बताया, ‘हमारे समाज में अज्ञानता और एकजुटता न होने के कारण इस तरह की सैकड़ों घटनाओं में कुछ भी नहीं हो पाता. मैं कानून का जानकार होकर भी इन घटनाओं में कुछ नहीं कर पाया. परिवारों को धमकाया जाता है, डराया जाता है. वे गरीब और कमज़ोर हैं, किसी ताकतवर इंसान के सामने खड़े नहीं हो पाते. इन पिछड़े लोगों को कीड़े-मकोड़े समझा जाता है. जिनके मरने पर किसी को दुख नहीं होता.’
एक जैसी दिखने वाली दोनों घटनाओं का जिक्र मीडिया में नहीं किया गया. न किसी नेता या संगठन ने आवाज़ उठाई. बबलू बनवासी ने कहा, ‘समाज के लोगों को लोग थोड़े पैसे एडवांस दे देते हैं, जैसे ही वे पैसे एडवांस ले लेते हैं, उन्हें लोग अपना बंधुवा समझने लगते हैं. अच्छे लाल के केस में भी राजेश सिंह ने पांच हज़ार रुपए दिए थे.’
बबलू ने कहा, ‘पांच हज़ार रुपए वसूलने के लिए अच्छे लाल को निशांत सिंह गाली-गलौज करके ले गया था. 21 जून की सुबह मालिक इसकी लाश ट्रैक्टर ट्रॉली में डाल कर लाए और आरोप लगाया कि अच्छे लाल शराब पीकर ट्रैक्टर चला रहा था इस कारण ट्रॉली पलट गई.’
बबलू के अनुसार, अच्छे लाल शराब नहीं पीता था. हमारे समाज में 12 से 14 वर्ष के बीच लोग शराब पीने लगते हैं. हमारे समाज के बारे में कही गईं दो बातों पर सभी यकीन कर लेते हैं : एक शराब पीना और दूसरा कर्ज़ लेना. लोग मानकर चलते हैं हमारे लोग शराब पीते हैं और पैसा कर्ज़ लेते हैं.’
उन्होंने आगे बताया, ‘अक्सर भट्टे वाले या इस तरह के लोगों के पास बरसात के चार महीनों में कोई काम नहीं होता. उस समय इनकी माली हालत अच्छी नहीं रहती. उसी का फायदा उठाकर ये लोग उनको कर्ज़ देते हैं. जब कर्ज़ देते हैं तब कुछ और बात करते हैं और जब काम पर ले जाते हैं तब कुछ और बात करते हैं. जैसा तय करते हैं, अक्सर वैसा नहीं होता. न सही से ईंधन देते हैं, न तय की गई खाने की रसद. यह समाज इसी तरह पिसता रहता है. जिसके पास परिवार है, बच्चे हैं, पत्नी है, वह आख़िर क्या करे.’
बबलू मानते हैं कि ये दोनों घटनाएं केवल हादसा न होकर श्रम कानूनों और मानवाधिकार का उल्लंघन है. उन्होंने मुझे बताया, अच्छे लाल मूसहर और शिव पूजन मूसहर की मौत यह दर्शाती है कि किस तरह असंगठित मजदूरों से बिना सुरक्षा उपायों के काम कराया जाता है. जबरन ओवरटाइम कराना, बिना बीमा या श्रमिक पंजीकरण के काम लेना, पूरी तरह गैरकानूनी है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘ट्रैक्टर मालिक की ज़िम्मेदारी बनती थी, और उसे सज़ा मिलनी चाहिए.’
कानूनन भी यदि किसी काम के दौरान मज़दूर की मौत होती है तो लापरवाही से मृत्यु का मामला बनता है. साथ ही, भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (रोजगार विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1996 जैसे श्रम कानूनों की धाराओं के तहत मुआवज़ा अनिवार्य है.
बबलू ने बताया, ‘दो मौतें होने पर भी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) लागू नहीं की गई है जो राज्य की ज़िम्मेदारी की सीधी अनदेखी है.’
इन मौतों के बारे में पुलिस ने क्या किया, यह जानने के लिए मैंने थानों में फ़ोन किया. कपसेठी इंचार्ज अरविंद ने मुझे बताया कि दोनों पक्षों ने थाने के बाहर ही सुलह कर ली है. मैंने पूछा कि पुलिस ने इस मामले में अब तक एक्शन क्यों नहीं लिया, उन्होंने कहा, ‘यह मामला जब थाना आया ही नहीं, तो इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई.’ वहीं, थाना जंसा के प्रभारी अनिल कुमार शर्मा ने कहा यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है.