बिजनौर में सूदखोरों और फ़ाइनेंस कंपनियों की धमकियों से तंग आकर मज़दूर परिजनों ने खाया ज़हर

पुखराज का आवास जहां उन्होंने अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ सल्फास की गोली खाकर आत्महत्या का प्रयास किया. गोली खाने से उनकी बीवी और दो बेटियों की मौत हो गई है. कारवां के लिए अखिलेश पांडेय

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उत्तर प्रदेश में बिजनौर शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर नूरपूर थाना क्षेत्र के टंडेरा गांव में 26 जून, 2025 को एक ही परिवार के चार सदस्यों ने कृषि कीटनाशक खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया. सल्फास की गोलियां खाने वालों में परिवार के मुखिया पुखराज, पत्नी रमेशिया और दो बेटियां, शातू और अनीता थे. पुखराज का एक बेटा और एक विवाहिता बेटी भी है. बेटा सचिन पिता की तरह मज़दूरी करता है. बड़ी बेटी पूनम द्वारा दायर एफ़आइआर के अनुसार, परिवार पर आसपास के गांवों के राम अवतार, बिंदर, प्रदीप, नरदेव, मूलचंद, रजनीश चौधरी, सतीश और चांदपुर एवं नूरपुर की कंपनियों सहित कुल नौ लोन शार्कों, सूदखोरों और दो कंपनियों का कर्ज़ था.

समाचार पत्र दैनिक जागरण के अनुसार, घटना से पूर्व जाना स्मॉल फाइनेंस बैंक का एजेंट मोहित, पांच दिनों से लगातार पुखराज को किश्त जमा नहीं करने पर एफ़आइआर कराने की धमकी दे रहा था. समाचार पत्र ने लिखा है, ‘मोहित की धमकी से घबराए पुखराज ने स्वजन सहित आत्महत्या करने का निर्णय लिया. पुखराज के फ़ोन की सीडीआर से मोहित द्वारा लगातार फ़ोन किए जाने की पुष्टि हुई है.’

अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, ज़हर खाने से जब हालत बिगड़ी तो पांचों चीखते हुए झोपड़ी से बाहर भागे. ख़बर के मुताबिक, ‘ग्राम प्रधान रईस अहमद ने पुलिस को सूचना दी और करीब 8.30 बजे चारों को नूरपुर सीएचसी में भर्ती कराया गया. हालत गंभीर होने पर सभी को बिजनौर मेडिकल अस्पताल भेज दिया गया. जहां रमेशिया और अनीता की मौत हो गई, जबकि यहां से रेफर हुई छोटी बेटी शीतू ने मेरठ मेडिकल अस्पताल में दम तोड़ दिया. पुखराज की हालत भी बेहद नाज़ुक बनी हुई है.’

घटना के बारे में सहायक पुलिस अधीक्षक देहात विनय कुमार सिंह ने एक वीडियो बयान जारी कर बताया कि पूनम द्वारा दिए गए नामों की तहकीकात हो रही है, जबकि मोहित को गिरफ़्तार कर लिया गया है. एएसपी ने कहा कि जांच में सामने आया है कि मोहित ने पुखराज को 19 जून से 25 जून के बीच किश्त अदायगी का दबाव डाला था और किश्त न देने की स्थिति में थाने में एफ़आइआर कर जेल भेजने की धमकी दी थी. एएसपी सिंह ने अपने बयान में कहा है कि आगे की जांच जारी है और दोषियों के ख़िलाफ़ उचित एक्शन लिया जाएगा.

हमने टंडेरा गांव में पीड़ित परिवार के सदस्यों से भी मुलाक़ात की. हमने पुखराज के बेटे सचिन, बड़े भाई कैलाश, घर की कुछ महिलाओं और ग्रामीणों से मुलाक़ात हुई. परिजनों और गांव वालों से बातचीत करते हुए है साफ़ लग रहा था कि इलाके में सूदखोरों, लोन शार्कों और फ़ाइनेंस कंपनियों का ख़ौफ़ इस कदर है कि कोई खुल कर बोलने को राजी है. जैसे, बड़े भाई कैलाश और बेटे सचिन ने पुखराज पर कर्ज़ का दबाव होने की बात को स्वीकार करने में आनाकानी की.

कैलाश से जब हमने फिर पूछा कि क्या इलाके में कर्ज़ देने वाली कंपनियां किश्त चुकाने में देरी होने पर डारती-धमकाती हैं, तो उन्होंने कहा कि एक फ़ाइनेंस समूह तो ऐसा है कि किश्त उगाही के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘घर में भले कोई मर गया हो, फिर भी उनको समय से किश्त चाहिए.’

लेकिन कुछ ग्रामीणों से बातचीत के क्रम में पता चला कि इलाके में सूदखोरों और फ़ाइनेंस समूहों एक ऐसा जाल फैला हुआ है जो ग़रीबों को कर्ज़ देता है और किश्त समय से न देने पर दबाव बनाता है.

हम लोगों ने टंडेरा गांव के प्रधान रईस अहमद से उनके आवास में मुलाकात की, लेकिन उन्होंने भी इस घटना के बारे में साफ़-साफ़ कुछ नहीं कहा. उन्होंने बताया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी कि पीड़ित परवार के ऊपर इतना सारा कर्ज़ था. अहमद ने हमसे कहा कि अगर उन्हें कर्ज़ का पता होता तो वह ज़रूर कुछ करते.

जब उनसे हमने जानना चाहा कि इलाके में सूदखोरों और समूहों का ख़ौफ़ कितना है, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है.

पुखराज का खाली घर. देश भर में ऐसी घटनाओं ने महामारी का रूप धारण कर लिया है. कारवां के लिए अखिलेश पांडेय

पुखराज ओबीसी जाति प्रजापति से थे. उनका परिवार लंबे समय से गरीबी से जूझ रहा था. भाई कैलाश के अनुसार, पुखराज ने बड़ी बेटी पूनम की शादी के लिए पांच साल पहले कुछ कर्ज़ लिया था. बाद में उन्हें कुछ और कर्ज़ लेना पड़ा जिसके बाद उन पर लगभग छह लाख रुपए कर्ज चढ़ गया था.

गांव के लोगों और पीड़ित परिवार से चर्चा करते हुए यह स्पष्ट हुआ कि इलाके में ग़रीबी के कारण लोग सूदखोरों और वित्तीय समूहों से कर्ज़ लेते रहते हैं जो लगातार बढ़ता जाता है. समय से किश्त न देने पर कर्ज़दारों को भारी दबाव का सामना करना पड़ता है और धमकियां झेलनी पड़ती हैं.

सूदखोर और फ़ाइनेंस समूह संपत्ति के एवज में कर्ज़ देते हैं और न चुका पाने की स्थिति में संपत्ति से हाथ धोने का ख़ौफ़ बना रहता है. ऐसी परिस्थिति में कई बार लोग आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं, जैसा पुखराज प्रजापति ने उठाया.

देश भर में ऐसी घटनाओं ने महामारी का रूप धारण कर लिया है. 19 जुलाई, 2025 को ऐसी ही घटना में, बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में एक परिवार के पांच सदस्यों ने सूदखोरों की धमकियों से तंग आकर ज़हर खा लिया जिसमें पत्नी, दो बेटियों और एक बेटे की मौत हो गई है.

रिपोर्टिंग के क्रम में जो अहम बात सामने आई वह यह थी कि सभी लोगों की बातों में दबाव का जिक्र था, लेकीन कोई भी खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. नाम न लिखने को कह कर कई ग्रामीणों ने बताया कि जिनसे काम पड़ सकता है उनसे दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं.

लोगों से बात कर यह भी पता चला कि यहां अमूमन अभिजात्य वर्ग के लोग ही वित्तीय समूह में काम और सूदखोरी करते हैं और उनके कर्ज़दार गरीब होते हैं जो अधिकांशतः समाज के वंचित वर्ग और जाति समुदाय के होते हैं. इसीलिए सामाजिक ताने-बाने के चलते वे दबाव का विरोध नहीं कर पाते.

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