6 फरवरी को फैज खान के परिवार को उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर में 26 वर्षीय फैज की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 20 से 26 दिसंबर के बीच राज्य में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में फैज सहित कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई थी. शुरू में राज्य पुलिस ने कहा कि वे जिंदा कारतूसों का उपयोग नहीं करते और प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने ही देसी कट्टों से गोली चलाकर हत्या की. 19 फरवरी को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने राज्य विधानसभा को बताया कि पुलिस ने विरोध प्रदर्शन के दौरान एक भी व्यक्ति को नहीं मारा और "दंगाइयों की गोलियों" से ही लोग हताहत हुए. हालांकि, फैज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिसकी एक प्रतिलिपि कारवां के पास है, पुलिस के दावों की सत्यता पर सवाल उठाती है. रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चला है कि शरीर पर एक ही गोली का घाव है और यह आम तौर पर कट्टों के कारण होने वाले घाव से भिन्न है. इसके अतिरिक्त रिपोर्ट इस तथ्य पर बहुत स्पष्ट है कि जिस भी हथियार का इस्तेमाल किया गया, वह छोटी दूरी से हमला कर सकने वाला हथियार नहीं था. रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि गोली दूर से चलाई गई थी जबकि कट्टा छोटी दूरी का हथियार है.
रामपुर मुरादाबाद जिले के अंतर्गत आता है. शव का पोस्टमार्टम मुरादाबाद शहर के दीन दयाल उपाध्याय जिला अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में किया गया था. यह अस्पताल सरकारी पोस्टमार्टम के लिए आधिकारिक प्राधिकरण है. शव परीक्षण 21 दिसंबर को शाम 4.50 से 5.30 बजे के बीच किया गया था. इसी दिन फैज की हत्या हुई थी. 29 दिसंबर को जब मैंने जिला मजिस्ट्रेट आंजनेय कुमार सिंह से बात की, तो उन्होंने मुझसे कहा, "अगर शव रामपुर में होता तो यहां हंगामा मच जाता." रिपोर्ट में उस गोली के प्रकार का जिक्र नहीं किया गया है जिससे फैज की मौत हुई. रिपोर्ट में बस इतना ही कहा गया है कि गर्दन के सामने गोली का एक घाव है जो आधा सेंटीमीटर से एक सेंटीमीटर का है और छाती की दीवार के बाईं ओर के पीछे की तरफ एक धातु की गोली बरामद हुई है. इस गोली को सील कर दिया गया और मुरादाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमित पाठक को भेज दिया गया. पाठक ने मुझे बताया, "हमारे पास कोई विवरण नहीं है ... अगर उसका संबंध नहीं है तो हम कोई दस्तावेज नहीं खोलेंगे." उन्होंने कहा कि "मुरादाबाद पुलिस ने रामपुर पुलिस को सभी विवरण भेज दिए हैं."
फैज के परिवार ने मुझे बताया कि पुलिस ने उसे गोली मारी. फैज के जीजा सिराज जमाल खान ने मुझे बताया, “मुझे फोन आया कि फैज को गोली मार दी है. जब मैं वहां पहुंचा तो लोगों ने मुझे बताया कि पुलिस ने गोली चलाई थी. लेकिन कोई इसे कैसे साबित करेगा?” उन्होंने कहा कि फैज के पिता आसिफ खान अपने बेटे की मौत के बारे में शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहते थे क्योंकि उन्हें पुलिस या प्रशासन से न्याय की कोई उम्मीद नहीं थी.
प्रशासन ने दावा किया है कि पुलिस ने वह गोली नहीं चलाई जिससे फैज की मौत हुई. यह दावा दो कारणों पर आधारित है : इस्तेमाल की जाने वाली बुलेट के प्रकार और जहां से गोली चलाई गई वहां से लक्ष्य की दूरी. सिंह ने मुझे बताया कि पुलिस ने भीड़ पर रबर की गोलियां चलाईं. “हमने रबर की गोलियां दागने के आदेश दिए क्योंकि वे घातक नहीं हैं. फैज की मौत धातु की गोली से हुई है न कि रबर की गोली से.” उन्होंने कहा कि फैज पर किसी ने करीब से गोली चलाई थी क्योंकि वह भीड़ का हिस्सा था. "अगर पुलिस ने गोली चलाई होती, तो वह सामने खड़े लोगों को लगती न की 100 मीटर तक जाने के बाद पीछे खड़े किसी व्यक्ति को लगती." यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कट्टा लंबी दूरी के लिए अप्रभावी हथियार है. जब मैंने पहली बार सिंह से बात की तो उन्होंने मुझे बताया, "जो बुलेट मिली थी वह बत्तीस बोर (0.32) की थी. यह पुलिस की गोली नहीं है. यह बोर तमंचों में पाया जाता है.
लेकिन जब मैं 19 फरवरी को फिर सिंह के पास पहुंचा, तो उन्होंने अपना रुख बदल लिया और कहा, “मैं बोर-वोर नहीं समझता. यह गोली तमंचे से निकली थी.” जब मैंने कहा कि तमंचे में आमतौर पर छर्रे इस्तेमाल होते है गोलियां नहीं, तो उन्होंने कहा, "तमंचा से मेरा मतलब निजी पिस्तौल से है." सिंह ने जोर देकर कहा फैज की मौत कट्टे से ही हुई है. उन्होंने कहा, "जब पुलिस की गोली लगती है तो वह इतनी मारक होती है कि बहुत ज्यादा क्षति पहुंचाने के बाद शरीर से बाहर निकल जाती है. लेकिन शव से जो गोली बरामद हुई, वह किसी कट्टे की ही हो सकती है.” उन्होंने मुझे यह भी बताया कि अगर पांच फीट या उससे कम की दूरी से गोली लगती है तो गोली घुसने के स्थान पर "त्वचा में कालापन" होता है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गोली लगने के घाव के पास की त्वचा पर किसी भी तरह के कालेपन या जलने का रिकॉर्ड नहीं है. मैंने उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक विभूति नारायण राय को रिपोर्ट दिखाई. "कहीं भी रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि त्वचा काली हो गई या जल गई है, जिसका अर्थ है कि बुलेट को दूर से चलाया गया था." उन्होंने कहा, "आमतौर पर इससे एक छोटी दूरी के कट्टे जैसे हथियार की संभावना खारिज होती है." मैंने फोरेंसिक में माहिर एक डॉक्टर को भी रिपोर्ट दिखाई जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते. उन्होंने मुझसे कहा, "यह गोली पास से नहीं चलाई गई है और एकदम सटाकर भी नहीं चलाई गई है. गोली दूर से चलाई गई है. हर हथियार की अपनी एक सीमा होती है, लेकिन रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह बताता हो कि गोली पास से चलाई गई थी.”
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों में से एक अंशु माली ने मुझे बताया, "शरीर पर कोई कालापन या जलन का निशान नहीं था, जिसका मतलब है कि गोली बहुत दूर से चलाई गई थी." जब मैंने उनसे पूछा कि यह दूरी कितनी हो सकती है, तो उन्होंने कहा कि केवल विशेषज्ञ ही यह निर्धारित कर सकता है. माली ने यह भी कहा कि हालांकि पोस्टमार्टम किए जाने के दौरान कोई वीडियोग्राफी नहीं हुई थी लेकिन तस्वीरें ली गई थीं. उत्सुकता से, रिपोर्ट स्वयं इंगित करती है कि जांच अधिकारी ने वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी का अनुरोध नहीं किया था.
मैं सिंह के पास फिर से उनके इस दावे पर सवाल करने के लिए पहुंचा कि फैज को भीड़ में से ही किसी ने गोली मारी थी क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया था कि गोली नजदीक से नहीं मारी गई थी. सिंह ने कहा, ''पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार गोलियां ऊपर से नीचे की ओर चलाई गई हैं. पुलिस छतों पर नहीं थी, सड़कों पर थी. इसलिए, गोली किसी ऐसे व्यक्ति ने मारी होगी जो ऊपर तैनात था.” वह इस बात से सहमत थे कि घाव यह बताता है कि गोली पांच फीट से अधिक दूरी से चलाई गई थी. हालांकि, राय ने कहा, “प्रशासन या पुलिस के कहने भर से उनके दावों को कैसे मान लिया जाए? वे कह सकते हैं कि यह एक विशेष प्रकार की गोली थी, लेकिन इस बात का प्रमाण कहां है कि यह उसी प्रकार की थी जिसे शरीर से बरामद किया गया था?” उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर गोली की नाप या प्रकार के बारे में नहीं जानते और इसे आगे के परीक्षण के लिए फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है. "लेकिन उत्तर प्रदेश में सभी फोरेंसिक प्रयोगशालाएं पुलिस विभाग के अधीन हैं, इसलिए उनका कोई भी निष्कर्ष संदेह के घेरे में आ जाता है," राय ने कहा.
एक फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉक्टर ने मुझे बताया कि यह रिपोर्ट बोर को निर्धारित करने में बहुत मदद नहीं करेगी "क्योंकि यह पिछड़ी किस्म की रिपोर्ट है." फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “अगर आपको एफएसएल रिपोर्ट मिल जाए तो बेहतर है, लेकिन इसमें कई महीने लगेंगे. बैलिस्टिक्स जांच रिपोर्ट आमतौर पर पुलिस जारी नहीं करती है, इसे सीधे अदालत में पेश किया जाता है, वे इसे डॉक्टर को भी नहीं दिखाते हैं.” उन्होंने कहा, "पीएम रिपोर्ट को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह धातु की गोली है. आमतौर पर दंगाई या कट्टा और इसी तरह के हथियार चलाने वाले लोग छर्रों का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने कहा, "मैं 90 प्रतिशत संभावना के साथ कह सकता हूं कि यह कट्टे से नहीं हुआ है."
रिपोर्ट के आधार पर, राय ने भी कहा, “उत्तर प्रदेश में अपने अनुभव से मैंने बहुत मुश्किल से ही कभी भीड़ को पुलिस पर गोलीबारी करते देखा है. 15 प्रतिशत संभावना है कि जिस गोली से फैज की मौत हुई वह भीड़ में से किसी ने चलाई हो, लेकिन ज्यादा संभावना यह है कि पुलिस ने भीड़ पर गोलीबारी की है.”