नांदेड़ बम धमाका : क्या सीबीआई ने आरएसएस की भूमिका से ध्यान भटकाने के लिए जांच को उलझाया?

30 दिसंबर 2022
26 अक्टूबर 2018 को बेंगलुरु में केंद्रीय जांच ब्यूरो के क्षेत्रीय कार्यालय के सामने फोन पर बात करता एक पुलिसकर्मी. सीबीआई को नांदेड़ बम ब्लास्ट मामले से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को यशवंत शिंदे के साथ साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने बहस करने के लिए दस्तावेज देखने की मांगी की थी. इन दस्तावेजों में जांच मे की गई सीबीआई की कई बड़ी खामियां सामने आई हैं
मंजूनाथ किरण/एएफपी/गैटी इमेजिस
26 अक्टूबर 2018 को बेंगलुरु में केंद्रीय जांच ब्यूरो के क्षेत्रीय कार्यालय के सामने फोन पर बात करता एक पुलिसकर्मी. सीबीआई को नांदेड़ बम ब्लास्ट मामले से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को यशवंत शिंदे के साथ साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने बहस करने के लिए दस्तावेज देखने की मांगी की थी. इन दस्तावेजों में जांच मे की गई सीबीआई की कई बड़ी खामियां सामने आई हैं
मंजूनाथ किरण/एएफपी/गैटी इमेजिस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पूर्व सदस्य यशवंत शिंदे ने 13 दिसंबर को नांदेड़ की एक निचली अदालत के सामने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 2006 के नांदेड़ विस्फोटों की जांच में असली मास्टरमाइंड की अनदेखी करके और एक अज्ञात व्यक्ति प्रोफेसर देव, जिसका वे पता नहीं लगा सके, को मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए जांच में भ्रम की स्थिति बनाई है. यदि शिंदे के आरोप सही हैं, इससे संघ के उन सभी वरिष्ठ सदस्यों के नाम दब जाते है जिनके नाम जांच में सामने आए थे. शिंदे ने अदालत में एक हलफनामा दायर कर मुकदमे के गवाह के रूप में शामिल होने का अनुरोध किया और दावा किया कि मिलिंद परांडे, विश्व हिंदू परिषद के वर्तमान महासचिव, विस्फोटों के मुख्य साजिशकर्ता थे. अपने पिछले हलफनामे में उन्होंने दावा किया कि "प्रोफेसर देव" पुणे के एक शिक्षक हो सकते हैं जिनके साथ सीबीआई ने जानबूझकर रवि देव की पहचान को मिलाने की कोशिश की, जो ​​मिथुन चक्रवर्ती के नाम से भी जाने जाते थे. शिंदे ने दावा किया कि रवि देव न कि प्रोफेसर देव वह व्यक्ति थे जिन्होंने नांदेड़ विस्फोट मामले के कुछ आरोपियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था.

जब शिंदे ने अपने मामले पर बहस करने के लिए अदालत से दास्तावेजों को देखने की अनुमति मांगी, तो सीबीआई को कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज उनके साथ साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इन दस्तावेजों में से एक सीबीआई द्वारा 31 दिसंबर 2020 को दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट है. क्लोजर रिपोर्ट की एक प्रति कारवां के पास भी है. यह रिपोर्ट मामले की सीबीआई जांच में हुई कई चूकों को सामने लाती है. इनमें सीबीआई द्वारा मामले में एक प्रमुख अभियुक्त द्वारा नामित संदिग्धों का खंडन करना, विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेताओं से पूछताछ करने में विफल होना शामिल है, जिनके नाम जांच के दौरान अक्सर सामने आए और पूर्व में मामले की जांच करने वाले महाराष्ट्र आतंकवाद-रोधी दस्ते द्वारा एकत्र किए गए सबूतों की जान-बूझकर अनदेखी सबसे अधिक हैरान करने वाली चीज लगती है.

क्लोजर रिपोर्ट में कुल मिलाकर सीबीआई का ध्यान प्रोफेसर देव नाम के एक व्यक्ति की पहचान करने पर है, जिसे लेकर उनका दावा है कि उसने "प्रशिक्षण के लिए धन और विस्फोटक सामान उपलब्ध कराया" जिसके कारण 2003 और 2006 के बीच मराठवाड़ा क्षेत्र में चार विस्फोट हुए. ऐसा तब है जब जांच के दौरान प्रोफेसर देव का नाम चारों विस्फोटों के मुख्य आरोपी राकेश धावडे से पूछताछ के दौरान केवल एक बार सामने आया था. धावड़े ने वीएचपी के एक वरिष्ठ सदस्य शरद कुंटे का भी नाम लिया था, जिन्होंने उन्हें प्रोफेसर देव से मिलने के लिए कहा था, लेकिन कुंटे के एक साधारण से इनकार के बाद सीबीआई ने इसकी गहराई से जांच नहीं की. ऐसा लगता है कि इस सबूत के बाद भी एजेंसी परिणाम तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई. अपने हलफनामे में शिंदे ने तर्क दिया कि "ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई प्रोफेसर देव, उनके पूरे नाम और लोकेशन का भी पता नहीं लगा पाई.

शिंदे कहते हैं कि “उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती का असली नाम रवि देव बताया और उसका मोबाइल नंबर और वर्तमान स्थान जैसी सत्यापन योग्य जानकारी दी." मामले की पिछली सुनवाई तक शिंदे का मानना ​​​​था कि प्रोफेसर देव ही रवि देव था, जिसने 2003 में हुए विस्फोटों के लिए अभियुक्तों और खुद उनको प्रशिक्षित किया था.

हालांकि अपने नवीनतम हलफनामा में उन्होंने निहित किया कि प्रोफेसर देव संभवतः एक अलग व्यक्ति हो सकता है. इसके अतिरिक्त एटीएस द्वारा दायर चार्जशीट सहित अन्य दस्तावेज, साथ ही मामले के एक अन्य आरोपी संजय चौधरी के नार्को टैस्ट के परिणाम भी मिथुन चक्रवर्ती को प्रशिक्षक के रूप में दिखाते हैं. शिंदे ने अपनी दलील में दोहराया कि परांडे को मामले में आरोपी बनाया जाना चाहिए. परांडे ने उनके कार्यालय में भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.
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अप्रैल 2006 में नांदेड़ में एक कार्यकारी इंजीनियर के घर पर गलती से एक बम फट गया और एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश हो गया. विस्फोट में वहां रहने वाले हिमांशु पांसे और नरेश राजकोंडवार मारे गए, जो अभी चल रहे मुकदमे में आरोपी हैं. शिंदे ने दावा किया कि पांसे उनका दोस्त था. तब एटीएस के नेतृत्व में नांदेड़ विस्फोट की जांच से पता चला कि पांसे और उसके दोस्त पिछले तीन बम विस्फोटों में भी शामिल थे. उस समय तक 2003 और 2004 के बीच परभणी, पूर्णा और जालना में मस्जिदों में हुए विस्फोटों को इक्का-दुक्का घटनाएं माना जाता था. सीबीआई द्वारा मामले को संभालने से पहले एटीएस ने फरवरी 2007 से पहले मामले में दो चार्जशीट दायर की थी. सीबीआई ने क्रमशः मार्च 2008 और मार्च 2009 में एक अतिरिक्त रिपोर्ट और आरोप पत्र दायर किया.

सागर कारवां के स्टाफ राइटर हैं.

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