नांदेड़ बम धमाका : क्या सीबीआई ने आरएसएस की भूमिका से ध्यान भटकाने के लिए जांच को उलझाया?

26 अक्टूबर 2018 को बेंगलुरु में केंद्रीय जांच ब्यूरो के क्षेत्रीय कार्यालय के सामने फोन पर बात करता एक पुलिसकर्मी. सीबीआई को नांदेड़ बम ब्लास्ट मामले से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को यशवंत शिंदे के साथ साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने बहस करने के लिए दस्तावेज देखने की मांगी की थी. इन दस्तावेजों में जांच मे की गई सीबीआई की कई बड़ी खामियां सामने आई हैं मंजूनाथ किरण/एएफपी/गैटी इमेजिस
30 December, 2022

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पूर्व सदस्य यशवंत शिंदे ने 13 दिसंबर को नांदेड़ की एक निचली अदालत के सामने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 2006 के नांदेड़ विस्फोटों की जांच में असली मास्टरमाइंड की अनदेखी करके और एक अज्ञात व्यक्ति प्रोफेसर देव, जिसका वे पता नहीं लगा सके, को मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए जांच में भ्रम की स्थिति बनाई है. यदि शिंदे के आरोप सही हैं, इससे संघ के उन सभी वरिष्ठ सदस्यों के नाम दब जाते है जिनके नाम जांच में सामने आए थे. शिंदे ने अदालत में एक हलफनामा दायर कर मुकदमे के गवाह के रूप में शामिल होने का अनुरोध किया और दावा किया कि मिलिंद परांडे, विश्व हिंदू परिषद के वर्तमान महासचिव, विस्फोटों के मुख्य साजिशकर्ता थे. अपने पिछले हलफनामे में उन्होंने दावा किया कि "प्रोफेसर देव" पुणे के एक शिक्षक हो सकते हैं जिनके साथ सीबीआई ने जानबूझकर रवि देव की पहचान को मिलाने की कोशिश की, जो ​​मिथुन चक्रवर्ती के नाम से भी जाने जाते थे. शिंदे ने दावा किया कि रवि देव न कि प्रोफेसर देव वह व्यक्ति थे जिन्होंने नांदेड़ विस्फोट मामले के कुछ आरोपियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था.

जब शिंदे ने अपने मामले पर बहस करने के लिए अदालत से दास्तावेजों को देखने की अनुमति मांगी, तो सीबीआई को कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज उनके साथ साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इन दस्तावेजों में से एक सीबीआई द्वारा 31 दिसंबर 2020 को दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट है. क्लोजर रिपोर्ट की एक प्रति कारवां के पास भी है. यह रिपोर्ट मामले की सीबीआई जांच में हुई कई चूकों को सामने लाती है. इनमें सीबीआई द्वारा मामले में एक प्रमुख अभियुक्त द्वारा नामित संदिग्धों का खंडन करना, विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेताओं से पूछताछ करने में विफल होना शामिल है, जिनके नाम जांच के दौरान अक्सर सामने आए और पूर्व में मामले की जांच करने वाले महाराष्ट्र आतंकवाद-रोधी दस्ते द्वारा एकत्र किए गए सबूतों की जान-बूझकर अनदेखी सबसे अधिक हैरान करने वाली चीज लगती है.

क्लोजर रिपोर्ट में कुल मिलाकर सीबीआई का ध्यान प्रोफेसर देव नाम के एक व्यक्ति की पहचान करने पर है, जिसे लेकर उनका दावा है कि उसने "प्रशिक्षण के लिए धन और विस्फोटक सामान उपलब्ध कराया" जिसके कारण 2003 और 2006 के बीच मराठवाड़ा क्षेत्र में चार विस्फोट हुए. ऐसा तब है जब जांच के दौरान प्रोफेसर देव का नाम चारों विस्फोटों के मुख्य आरोपी राकेश धावडे से पूछताछ के दौरान केवल एक बार सामने आया था. धावड़े ने वीएचपी के एक वरिष्ठ सदस्य शरद कुंटे का भी नाम लिया था, जिन्होंने उन्हें प्रोफेसर देव से मिलने के लिए कहा था, लेकिन कुंटे के एक साधारण से इनकार के बाद सीबीआई ने इसकी गहराई से जांच नहीं की. ऐसा लगता है कि इस सबूत के बाद भी एजेंसी परिणाम तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई. अपने हलफनामे में शिंदे ने तर्क दिया कि "ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई प्रोफेसर देव, उनके पूरे नाम और लोकेशन का भी पता नहीं लगा पाई.

शिंदे कहते हैं कि “उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती का असली नाम रवि देव बताया और उसका मोबाइल नंबर और वर्तमान स्थान जैसी सत्यापन योग्य जानकारी दी." मामले की पिछली सुनवाई तक शिंदे का मानना ​​​​था कि प्रोफेसर देव ही रवि देव था, जिसने 2003 में हुए विस्फोटों के लिए अभियुक्तों और खुद उनको प्रशिक्षित किया था.

हालांकि अपने नवीनतम हलफनामा में उन्होंने निहित किया कि प्रोफेसर देव संभवतः एक अलग व्यक्ति हो सकता है. इसके अतिरिक्त एटीएस द्वारा दायर चार्जशीट सहित अन्य दस्तावेज, साथ ही मामले के एक अन्य आरोपी संजय चौधरी के नार्को टैस्ट के परिणाम भी मिथुन चक्रवर्ती को प्रशिक्षक के रूप में दिखाते हैं. शिंदे ने अपनी दलील में दोहराया कि परांडे को मामले में आरोपी बनाया जाना चाहिए. परांडे ने उनके कार्यालय में भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.
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अप्रैल 2006 में नांदेड़ में एक कार्यकारी इंजीनियर के घर पर गलती से एक बम फट गया और एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश हो गया. विस्फोट में वहां रहने वाले हिमांशु पांसे और नरेश राजकोंडवार मारे गए, जो अभी चल रहे मुकदमे में आरोपी हैं. शिंदे ने दावा किया कि पांसे उनका दोस्त था. तब एटीएस के नेतृत्व में नांदेड़ विस्फोट की जांच से पता चला कि पांसे और उसके दोस्त पिछले तीन बम विस्फोटों में भी शामिल थे. उस समय तक 2003 और 2004 के बीच परभणी, पूर्णा और जालना में मस्जिदों में हुए विस्फोटों को इक्का-दुक्का घटनाएं माना जाता था. सीबीआई द्वारा मामले को संभालने से पहले एटीएस ने फरवरी 2007 से पहले मामले में दो चार्जशीट दायर की थी. सीबीआई ने क्रमशः मार्च 2008 और मार्च 2009 में एक अतिरिक्त रिपोर्ट और आरोप पत्र दायर किया.

अगस्त 2016 में परभणी की जिला अदालत ने परभणी में एक मस्जिद में हुए विस्फोट से संबंधित एक मामले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया था. 2012 में जालना जिला अदालत ने पूर्णा और जालना में दो अलग-अलग मस्जिदों में एक साथ हुए विस्फोटों के मामले में सात आरोपियों को भी बरी किया था. जालना और परभणी के आरोपियों पर ही नांदेड़ मामले में भी मुकदमा चल रहा है. नांदेड़ विस्फोट में मुकदमा अभी तक पूरा नहीं हुआ है और सबूत के स्तर पर पक्ष संबंधित सबूत पेश करते हैं और उनकी तहकीकात की जाती है. सितंबर 2022 तक सीबीआई अभियोजक ने दस गवाहों से पूछताछ की थी. यह सब तब हो रहा था जब शिंदे अपने कथित प्रशिक्षण के 16 साल बाद अदालत के सामने पेश हुए, यह दावा करने के लिए कि उन्हें साजिश के बारे में पता था और इसलिए उन्हें एक गवाह माना जाना चाहिए.

शिंदे का मामला 29 अगस्त को शुरू हुआ जब उन्होंने अदालत के समक्ष एक हलफनामा दायर किया जिसमें दावा किया गया कि परांडे ही बम विस्फोटों का मास्टरमाइंड था और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई वरिष्ठ नेताओं सहित इसके वर्तमान प्रमुख मोहन भागवत ने "इस तरह की आतंकवादी गतिविधियों का मौन रहकर समर्थन किया था." हलफनामे में शिंदे ने अदालत से विनती की कि कथित मास्टरमाइंड परांडे के साथ कथित प्रशिक्षक रवि देव और राकेश धावडे, जिन पर उन्होंने प्रशिक्षण के लिए रसद उपलब्ध कराने का आरोप लगाया, को चल रहे मुकदमे में आरोपी बनाया जाना चाहिए. शिंदे ने दावा किया कि आरएसएस ने 2000 के दशक के दौरान देश भर में मस्जिदों या धार्मिक स्थलों पर कई बम विस्फोट किए होंगे लेकिन उनका यह आवेदन मराठवाड़ा क्षेत्रों में हुए धमाकों के आरोपियों तक सीमित था.

शिंदे ने अपने हलफनामे में खुद को आरएसएस का एक पूर्व प्रचारक बताया जिसने दो दशकों से अधिक समय तक इस विचारधारा को फैलाने का काम किया था. उसने निवेदन किया कि उसने खुद कभी किसी बम विस्फोट में भाग नहीं लिया, वह नेक नीयत से आगे आया था और इसलिए उसे मामले में गवाह बनाया जाना चाहिए. 22 सितंबर को सीबीआई ने अदालत से उनके अनुरोध को खारिज करने के लिए कहा. मामले की सुनवाई 4 नवंबर को फिर से होनी थी लेकिन उस दिन मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने इसमें शामिल पक्षों को सूचित किया कि मामला दूसरे न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया गया है.

एटीएस ने अप्रैल 2006 में अपना पहला आरोप पत्र दायर किया जिसमें बम बनाने के प्रशिक्षण और विस्फोटों के पीछे की साजिश की रूपरेखा थी. इसमें कहा गया है, “आरोपी मारुति केशव वाघ (जो नांदेड़ दुर्घटना में घायल हुए थे), हिमांशु वेंकटेश पांसे (मृतक), संजय उर्फ ​​भाऊराव विठ्ठलराव चौधरी, योगेश रवींद्र विदुलकर 2003 के मध्य में पुणे गए थे और सिंघड़ किले पर स्थित आकांक्षा रिसॉर्ट में उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती नाम के एक व्यक्ति से पाइप बम बनाने का प्रशिक्षण लिया.

चार्जशीट देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आरएसएस और बजरंग दल द्वारा मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा उनकी प्रेरणा था. इसमें कहा गया है, “मुस्लिम उन मवेशियों को मारते हैं जिन्हें हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है. मुस्लिम चरमपंथियों ने वैष्णो देवी में हिंदू पंडितों की हत्या की थी. हम कब तक हिंदुओं के खिलाफ इस तरह के अन्याय को सहते रहेंगे? उन्होंने इस तरह के भाषण दिए कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए और मुस्लिमों से बदला लेने के लिए कुछ करने की जरूरत है.” साजिश का शिंदे द्वारा दिया विवरण काफी हद तक एटीएस की जांच से मेल खाता है. अपने हलफनामे में शिंदे ने दावा किया कि वे सिंघड़ किले के पास प्रशिक्षित लोगों में से केवल पांसे को जानते थे और किसी अन्य आरोपियों का नाम उन्होंने नहीं लिया. एटीएस की चार्जशीट में मिथुन चक्रवर्ती के बारे में और कोई विवरण नहीं दिया गया है, लेकिन उनकी जांच में कहीं भी प्रोफेसर देव का कोई उल्लेख नहीं है.

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट प्रोफेसर देव के अस्तित्व को लेकर एकमात्र सबूत के रूप में राकेश धावड़े से पूछताछ के बारे में बताती है. रिपोर्ट में कहा गया है, "प्रो. देव का नाम तब सामने आया जब पुणे के रहने वाले आरोपी राकेश दत्तारे धावडे ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह प्रोफेसर देव से पहली बार पुणे के आकांक्षा रिजॉर्ट में मिला था." इसमें आगे कहा गया है, "धावड़े ने खुलासा किया कि जुलाई/अगस्त 2003 में उसने पूणे के आकांक्षा गेस्ट हाउस में 7-8 लड़कों के रहने की व्यवस्था की थी.
उसने आगे खुलासा किया कि प्रोफेसर देव नाम का एक व्यक्ति भी गेस्ट हाउस में ठहरा हुआ था. उनके रहने के दौरान प्रोफेसर देव के कहने पर उसने कीलों, कैप्स, टॉर्च और पेट्रोल की व्यवस्था की थी.

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि उन्होंने देव की पहचान करने के लिए एटीएस द्वारा उन्हें सौंपे गए कॉल डिटेल रिकॉर्ड की मदद से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले 7-8 लड़कों की जांच की या छानबीन की हो. इसके बजाय सीबीआई की अधिकांश कोशिशें प्रोफेसर देव को खोजने के असफल प्रयासों में बेकार हो गई हैं.

शिंदे ने मुझसे कहा, "मिथुन चक्रवर्ती जिनका असली नाम रवि देव है, वास्तव में हमें प्रशिक्षित करने वाला व्यक्ति है." सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में धावड़े द्वारा दिया गया प्रोफेसर देव का शारीरिक विवरण शामिल था. उसमें लिखा है “प्रोफेसर देव सफेद मूंछों वाला 55 साल का व्यक्ति था. वह एक स्वस्थ दिखने वाला था 6 फीट का व्यक्ति था. उसने काले रंग की टोपी पहन रखी थी. अपनी बातों से वह गढ़वाल क्षेत्र का एक व्यक्ति लग रहा था. शिंदे ने कारवां को दिए एक साक्षात्कार में भी अपने ट्रेनर रवि देव का कुछ ऐसा ही वर्णन बताया था. उन्होंने देव को 62-65 वर्ष का शुद्ध हिंदी बोलने वाला उत्तर भारतीय बताया था. मेरे साथ पिछले एक साक्षात्कार में शिंदे ने कहा था कि प्रशिक्षण के चार साल बाद 2007 में वह देव से परांडे के साथ विहिप के मुंबई मुख्यालय फिरोजा मेंशन में मिले थे.

इस मामले में अन्य अभियुक्तों के नार्को टैस्ट के परिणाम देखकर भी शिंदे के विवरण की पुष्टि की जा सकती है. संजय चौधरी का परभणी ब्लास्ट के सिलसिले में नार्को टेस्ट हुआ जबकि नांदेड़ ब्लास्ट के सिलसिले में राहुल मनोहर पांडे का नार्को टेस्ट हुआ. किसी ने भी प्रोफेसर देव नाम के ट्रेनर का जिक्र नहीं किया. चौधरी ने वास्तव में कहा था कि उनका प्रशिक्षक मिथुन चक्रवर्ती था, जिसकी दाढ़ी थी और वह लंबा और मोटा था." पांडे ने अपने नार्को टेस्ट में ट्रेनर का नाम नहीं लिया लेकिन कहा कि पांसे को आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल के सदस्यों का समर्थन प्राप्त था. उसने कहा था कि, "जब तक उन्हें बजरंग दल के एक वरिष्ठ नेता का फोन नहीं आया, तब तक उन्होंने योजना को अंजाम नहीं दिया." सीबीआई की अंतिम रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेख नहीं है कि क्या उन्होंने प्रो. देव की पहचान निर्धारित करने के लिए चौधरी और पांडे की जांच की थी. हालांकि नार्को टैस्ट काफी हद तक सटीक जानकारी देने वाला नहीं साबित हुआ है और ज्यादातर जांच एजेंसियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया.

शिंदे ने मुझसे कहा, “यह सीबीआई ही थी जिसने पहले अपने प्रतिवाद में एक अज्ञात व्यक्ति 'प्रोफेसर देव' का उल्लेख किया था. मेरे पास इसे सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं था.” कुछ दिनों पहले, मुझे प्रोफेसर देव की पहचान के संबंध में दिसंबर 2020 में दायर सीबीआई की अंतिम रिपोर्ट सहित कुछ दस्तावेजों को देखने की अनुमति दी गई थी. यह सीबीआई की रिपोर्ट ही थी जो किसी प्रोफेसर देव के बारे में बताती है. इस नई जानकारी के आधार पर मैंने तर्क दिया कि हो सकता है कि कोई प्रो. देव हो लेकिन यह केवल ध्यान भटकाने की रणनीति है. उन्होंने आगे कहा, “हमें प्रशिक्षित करने वाले रवि देव हैं और इसकी योजना बनाने वाले मिलिंद परांडे हैं. मैं उनकी पहचान भी बता रहा हूं. इन सुरागों पर काम करने में एजेंसियों को क्या दिक्कत हो सकती है?” हालांकि नए दस्तावेजों से पता चला कि सीबीआई ने बाद में धावड़े को आरोपी बनाया. नतीजतन, बाद में शिंदे ने अपनी तीन प्रार्थनाओं में से एक को वापस ले लिया जो धावडे को मामले में आरोपी बनाया जाने को लेकर थी.

इसके विपरीत सीबीआई प्रोफेसर देव पर पूरे षड़यंत्र को रचने का आरोप लगाती है जिसमें घटना को अंजाम देने वालों को वित्त पोषण, प्रशिक्षण देना और उन्हें विस्फोट सामग्री प्रदान करना शामिल है. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि उसे "प्रोफेसर देव" के बारे में नवंबर 2008 में जाकर पता चला. हालांकि तब तक, वे मार्च 2008 में पहले ही, एक पूरक रिपोर्ट दायर कर चुके थे. 22 सितंबर 2022 को नांदेड़ अदालत को दिए एक लिखित जवाब में, सीबीआई ने यह खुलासा नहीं किया कि जब उसने "प्रोफेसर देव" के बारे में पता चलने से आठ महीने पहले अपना पहला आरोप पत्र दायर किया था तब साजिश के बारे में उसकी समझ क्या थी. सीबीआई ने यह भी नहीं बताया कि उसने मिथुन चक्रवर्ती को एक संदिग्ध के रूप में खारिज क्यों किया, जबकि एटीएस के अनुसार बम बनाने के प्रशिक्षण के पीछे उसका हाथ था.
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ऐसा लगता है कि सीबीआई ने एक और महत्वपूर्ण सुराग को नजरअंदाज कर दिया है जिससे उसे प्रोफेसर देव, अगर ऐसा कोई व्यक्ति है तो, की पहचान करने में मदद मिल सकती थी. पूछताछ के दौरान धावड़े ने बताया था, ''शरद कुंटे ने उन्हें आकांक्षा रिसॉर्ट में प्रोफेसर देव से मिलने और सिंघड़ किले के पास 6-7 लोगों के रहने की व्यवस्था करने के लिए कहा. कुंटे उस समय पुणे के वाडिया कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर और विहिप के सक्रिय सदस्य थे." क्लोजर रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पुणे पुलिस की विशेष शाखा ने भी सीबीआई को विहिप नेता सिंघल और प्रोफेसर शरद श्रीकृष्ण कुंटे की गतिविधियों के बारे में सूचित किया था. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में विशेष शाखा की रिपोर्ट की सामग्री या प्रासंगिकता का उल्लेख नहीं किया गया है.

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट कहती है, “जांच के दौरान शरद कुंटे ने किसी प्रोफेसर देव से जान-पहचान या रहने-खाने आदि की व्यवस्था करवाने से साफ इंकार किया. हालांकि उसने कहा कि वह राकेश धावड़े को जानता है जो नौकरी के सिलसिले में आता था लेकिन कभी उससे किसी प्रोफेसर देव से मिलने के लिए नहीं कहा. ऐसा लगता है कि सीबीआई ने फेस वैल्यू देखकर काम किया. क्लोजर रिपोर्ट के शब्दों से ऐसा नहीं लगता है कि जांचकर्ताओं ने कुंटे से प्रोफेसर देव के साथ उसके संभावित संबंध पर पूछताछ की, केवल नरमी से उससे पूछा और फिर उसके इनकार के बाद पूछताछ को समाप्त कर दिया.

2008 के मालेगांव विस्फोट के बाद एटीएस ने नवंबर 2008 में धावड़े को गिरफ्तार किया और उससे पूछताछ की. एक महीने बाद सीबीआई ने धावड़े को हिरासत में ले लिया. 24 दिसंबर 2008 के इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में उल्लेख किया गया है कि धावड़े ने जालना अदालत को बताया कि कुंटे उन दो व्यक्तियों में से एक था - दूसरे की पहचान प्रोफेसर देव के रूप में की गई थी - "जिसने 2003 में आकांक्षा रिसॉर्ट में में 7-10 लोगों को पाइप बम तैयार करने का प्रशिक्षण दिया था..”

उस समय के कई लेख "देव" (Dev) और "देव" (Deo) के बीच झूलते रहे, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के लेख ने "प्रोफेसर देव (Deo)" की आगे पहचान नहीं की. हालांकि, लेख में कुंटे की पहचान वाडिया कॉलेज में प्रोफेसर होने के अलावा, लगभग दो दशकों तक विहिप के शहर अध्यक्ष के रूप में भी की गई है. लेख में उस समय पुणे एटीएस के प्रमुख पीटर लोबो के हवाले से कहा गया है, "हम सबूत जुटा रहें हैं लेकिन हमने उनसे एक बार पूछताछ की थी." लोबो ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि कुंटे से आगे पूछताछ के लिए मुंबई एटीएस से कोई आदेश नहीं मिला. लोबो ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "आदेश जारी होने के बाद हम विहिप के शहर अध्यक्ष के तौर पर उनकी गतिविधियों की जांच करेंगे." लोबो कारवां को इंटरव्यू देने पर सहमत नहीं हुए.

 24 दिसंबर को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कुंटे के हवाले से कहा गया है कि उन्हें जालना अदालत के सामने दिए गए धावड़े के बयान के बारे में जानकारी थी. और धावड़े ने एटीएस के दबाव में आकर बयान दिया था. धावड़े के बयान के बारे में इंडिया टुडे द्वारा प्रकाशित एक लेख में कुंटे और के. देव को पुणे कॉलेज के दो शिक्षकों के रूप में हिंदुत्व आतंकवादी संदिग्धों को बम बनाने का प्रशिक्षण देने वाला बताया गया. यदि के. देव वास्तव में सीबीआई के प्रोफेसर देव से जुड़ा है तो यह उसकी पहचान उजागर करने का सबसे करीबी बिंदू है. शिंदे ने भी अपनी प्रस्तुति में धावड़े के बयान का उल्लेख किया और संकेत दिया कि प्रोफेसर देव पुणे में रहने वाले प्रोफेसर हो सकता है. कारवां को धावड़े का बयान प्राप्त नहीं हुआ. कारवां स्वतंत्र रूप से प्रोफेसर देव या के. देव की पहचान को सत्यापित नहीं कर सका. हालांकि, सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में ऐसा कोई सुझाव नहीं दिया गया है कि प्रोफेसर देव पुणे में रहने वाला या प्रोफेसर हो सकता है.

कुंटे के इनकार करने पर सीबीआई द्वारा तुरंत विश्वास करने में विचित्र बात यह है कि यह उनके मामले को काफी कमजोर करता है. सीबीआई ने धावड़े के बयान के आधार पर ही एक अज्ञात प्रोफेसर देव को धमाकों का मास्टरमाइंड माना था. उसी धावड़े ने एजेंसी को यह भी बताया कि उसे प्रोफेसर देव के बारे में कुंटे के बाद ही पता चला, जिसने उसे आकांक्षा रिसॉर्ट में प्रोफेसर देव से मिलने के लिए कहा था. सीबीआई आश्चर्यजनक रूप से धावड़े के बयान के पहले भाग को अपनी पूरी जांच का आधार बनाती है, जबकि साथ ही यह भी कहती है कि दूसरा भाग पूरी तरह से झूठा है. सीबीआई जो उल्लेख करने में विफल रही है वह यह है कि पहले वाले का अस्तित्व दूसरे बयान पर टिका है. कोई प्रोफेसर देव नहीं होता अगर कुंटे ने धावड़े को देव के बारे में कभी नहीं बताया होता.

कुंटे वर्तमान समय में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष हैं जो पुणे में प्रतिष्ठित फर्ग्यूसन कॉलेज सहित पूरे महाराष्ट्र में पचास से अधिक शैक्षिक प्रतिष्ठान चलाती है. सोसाइटी का मुख्यालय भी पुणे में कॉलेज के परिसर में है. फरवरी 2020 में न्यूजलॉन्ड्री ने बताया कि कुंटे ने गुप्त रूप से अपने शैक्षणिक संस्थानों की जनशक्ति और संसाधनों का इस्तेमाल महाराष्ट्र पुलिस के लिए भीमा कोरेगांव मामले में चार्जशीट को मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए किया. वह आरएसएस के एक वरिष्ठ सदस्य भी प्रतीत होते हैं. दिसंबर 2014 में नई दुनिया में प्रकाशित एक लेख में कुंटे को आरएसएस के पश्चिमी क्षेत्र के बौद्धिक विंग प्रमुख बताया गया है. 19 फरवरी 2022 को आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक और सर्वोच्च नेता एमएस गोलवलकर की जयंती पर कुंटे ने संघ द्वारा संचालित एक यूट्युब चैनल पर उनके जीवन पर 40 मिनट का व्याख्यान दिया. हाल ही में कुंटे ने आरएसएस के एक प्रकाशन, विश्व संवाद केंद्र में जुलाई 2022 में आरएसएस के एक वरिष्ठ सदस्य के अंतिम संस्कार पर शोक व्यक्त किया किया.

मैं 12 नवंबर को पुणे के डीईएस में कुंटे के ऑफिस गया. उनकी निजी सहायक विभावरी ने मेरा संपर्क विवरण लिख लिया और मुझसे पूछा कि मैं किस विषय पर कुंटे का साक्षात्कार लेना चाहता हूं. विभावरी ने कहा कि अगर कुंटे साक्षात्कार के लिए राजी हो जाते हैं तो वह मुझसे संपर्क करेंगी. उन्होंने मुझे कुंटे का फोन नंबर देने से इनकार कर दिया. उनका बाद में कभी फोन नहीं आया. मैंने कुंटे को उनके आधिकारिक ईमेल पर भी ईमेल किया था, लेकिन उन्होंने इस लेख के प्रकाशन तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
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ऐसा लगता है कि सीबीआई ने शिंदे की याचिका के जवाब में मिलिंद परांडे को क्लीन चिट दे दी है. जवाब में कहा गया, “जहां तक मिलिंद परांडे की भूमिका का संबंध है, जांच के दौरान सीबीआई द्वारा पूछताछ किए गए गवाहों में से किसी ने भी उनका नाम नहीं लिया है और न ही जांच में उनकी संलिप्तता सामने आई है.” यह एक साफ झूठ है. नांदेड़ विस्फोट के बाद एटीएस ने सेवानिवृत्त मर्चेंट नेवी कैप्टन और आरएसएस के पूर्व सदस्य संतकुमार रंगविट्ठल भाटे से पूछताछ की थी. पूछताछ में भाटे ने एटीएस को बताया कि कैसे परांडे ने उन्हें आरएसएस से जुड़े युवाओं के कई समूहों को प्रशिक्षित करने के लिए कहा था, जिनमें से कुछ बाद में मराठवाड़ा विस्फोटों में आरोपी बने थे.

जब मैंने पुणे में भाटे से उनके घर पर बात की, तो उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने 2000 में नागपुर के भोंसला मिलिट्री स्कूल में सौ से अधिक लोगों के साथ हिमांशु पांसे को प्रशिक्षित किया था. भाटे ने मुझे बताया कि उन्होंने मुख्य रूप से उन्हें एस्क्रिमा स्टिक्स के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया था, जो एक हथियार है जिसे अक्सर फिलिपिनो मार्शल आर्ट में इस्तेमाल किया जाता है. भाटे ने कहा कि उन्होंने उन्हें परांडे के अनुरोध पर प्रशिक्षित किया और परांडे ने प्रशिक्षण आयोजित किया था.  उन्होंने बताया कि उन्होंने तीन ऐसे शिविरों में भाग लिया था, जिसमें नागपुर का एक शिविर भी शामिल था, लेकिन 2003 में आकांक्षा रिसॉर्ट में बम बनाने का प्रशिक्षण नहीं लिया था. भाटे ने मुझे बताया कि वह किसी प्रोफेसर देव को नहीं जानते थे, लेकिन उन्होंने भोंसला मिलिट्री स्कूल में इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक व्यक्ति की मौजूदगी के बारे में बताया. "मैं उसका नाम नहीं जानता, लेकिन वह खुफिया ब्यूरो से एक सेवानिवृत्त कर्मी था." भाटे ने मुझे बताया कि उन्होंने आईबी के आदमी सहित स्कूल के अन्य प्रशिक्षकों से बातचीत नहीं की, क्योंकि वे गाली-गलौज करते थे. उन्होंने एक पेशेवर के रूप में प्रशिक्षण दिया था और उसे साजिश की जानकारी नहीं थी. भाटे ने कहा कि उसने पूछताछ के दौरान एटीएस जांचकर्ताओं के साथ परांडे के नाम सहित ये सभी विवरण पहले ही साझा कर दिए थे.

भाटे ने मुझे जो बताया, उसकी परभणी अदालत में उनकी गवाही से भी पुष्टि होती है, जहां उन्हें परभणी बम विस्फोट मामले में अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश किया गया था. फैसले में भाटे की गवाही का उल्लेख इस प्रकार है: "पीडब्लू 48 अभियोजन गवाह सनथकुमार भाटे का अभियोजन पक्ष द्वारा उस संबंध में परीक्षण किया गया है. उन्होंने गवाही दी है कि उसने मार्शल आर्ट और छड़ी की कला फिलीपींस, कनाडा और अमेरिका में सीखी थी. बजरंग दल के अनुरोध पर और मिलिंद परांडे के अनुरोध पर उन्होंने नागपुर कैंप में प्रशिक्षण देने की सहमति दी. इससे पहले गढ़िंगलाज में सभा हुई थी. वहां उनकी हिमांशु पांसे, मिलिंद परांडे से जान-पहचान हुई.” भाटे उन दस गवाहों में शामिल नहीं हैं जिनसे सीबीआई ने नांदेड़ की निचली अदालत के सामने अब तक जिरह की है. मामले में सीबीआई की चार्जशीट तक कारवां की पहुंच नहीं है और यह पुष्टि करना अभी तक संभव नहीं है कि क्या भाटे सीबीआई की जांच में शामिल थे या सीबीआई ने उन्हें एक गवाह के रूप में माना था.

नांदेड़ और परभणी विस्फोट की जांच में ही नहीं बल्कि 2008 के मालेगांव विस्फोट की जांच में भी नागपुर के भोंसला मिलिट्री स्कूल का कई बार उल्लेख किया गया है. स्कूल की स्थापना हिंदू महासभा के एक नेता बीएस मुंजे ने की थी. मुंजे आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार के गुरु भी थे. यह स्कूल उन 12 संस्थानों में से एक है जो आरएसएस से जुड़ी सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा चलाए जाते हैं. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पुलिस अधीक्षक ने उन्हें बताया था कि, "उनके पास कुछ विश्वसनीय स्रोत की जानकारी है कि प्रोफेसर देव का नागपुर के भोंसला मिलिट्री स्कूल के साथ कुछ संबंध है.”  

एनआईए के अनुसार रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, एनआईए द्वारा की जा रही मामलों की जांच में प्रोफेसर देव भी वांटेड है. " यह स्पष्ट नहीं है कि किस मामले में उसकी खोज की जा रही है. एनआईए ने सीबीआई को यह भी सूचित किया था कि, "वह व्यक्ति (प्रोफेसर देव) सेना से सेवानिवृत्त हुआ हो सकता है." क्लोजर रिपोर्ट से लगता है कि सीबीआई ने न तो सेना से पूछताछ की और न ही भोंसला मिलिट्री स्कूल के पदाधिकारियों से पूछताछ की. उन्होंने केवल स्कूल को एक पत्र लिखकर पूछा कि प्रोफेसर देव ने उनके साथ क्या कुछ काम किया है. सीबीआई को मिलिट्री स्कूल से एक अप्रत्याशित प्रतिक्रिया मिली, कि वहां प्रोफेसर देव नाम का कोई कर्मचारी नहीं था.
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सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में परांडे के अलावा विहिप के एक और प्रमुख नेता का नाम बार-बार आता है. रिपोर्ट में कहा गया है, “इस घटना से लगभग दो-तीन महीने पहले पुणे में आयोजित एक रैली में धावडे ने प्रोफेसर देव को विहिप नेता श्री अशोक सिंघल के साथ देखा था. इसके बाद वह प्रोफेसर देव से कई बार मिले.” विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने के बाद 2015 में सिंघल का निधन हो गया. वह 1990 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन फैजाबाद में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए हिंसा के लिए उकसाने वाला भाषण देने वालों में भी शामिल थे. एक इंटरव्यू में शिंदे ने मुझे बताया था कि सिंघल ही थे जो परांडे को वीएचपी में लाए थे.

क्लोजर रिपोर्ट में इस मामले के संबंध में कभी भी सीबीआई द्वारा सिंघल से पूछताछ करने का उल्लेख नहीं है. इसके बजाय, ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई ने पुणे में सिंघल की बैठकों की तस्वीरों, ऑडियो, वीडियो या डिजिटल रिकॉर्डिंग एकत्र करने पर अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया. उन्होंने पुणे शहर के डिप्टी और पुलिस कमिश्नर और कई प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया घरानों को पत्र भेजकर कहा कि वे पुणे में सिंघल की रैलियों के किसी भी तस्वीर, ऑडियो, वीडियो रिकॉर्डिंग हासिल करने में मदद करें. क्लोजर रिपोर्ट कहती है कि मीडिया ने उन्हें कोई ऑडियो या वीडियो साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया.

पुलिस की विशेष शाखा ने सीबीआई को सूचित किया कि "माहेश्वरी चैरिटेबल फाउंडेशन में 25.12.2002 से 30.12.2002 तक वीएचपी नेता श्री अशोक सिंघल का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था." आकांक्षा रिसोर्ट में हुए ट्रेनिंग कैंप से छह महीने पहले ही इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. लेकिन सीबीआई ने यह कहते हुए कि यह वर्ष 2003 में आयोजित नहीं किया गया था, इस कार्यक्रम को वह संभावित स्थान मानने से इनकार कर दिया जहां धावड़े प्रोफेसर देव से मिल सकता था. अंतिम रिपोर्ट में लिखे अपने बयान में धावड़े ने यह उल्लेख नहीं किया था कि उन्होंने किस वर्ष सिंघल और प्रोफेसर देव को एक साथ देखा था लेकिन महीनों के हिसाब से यह प्रशिक्षण से पहले की घटना थी. यह संभवतः धावड़े की गलतफहमी हो सकती है, लेकिन सीबीआई इसे निर्णायक सबूत मानती है. नतीजतन, सिंघल जांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं बन सका.

हालांकि सिंघल के कार्यक्रम को कई मीडिया चैनलों ने दिखाया था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने हिंदुओं को रामजन्मभूमि भूमि नहीं दी, तो वे देश भर में सरकार का विरोध करेंगे. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि बैठक में उत्तर प्रदेश पुलिस के एक महानिरीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुए विहिप के तत्कालीन उपाध्यक्ष श्रीशचंद्र दीक्षित और 2009 में विहिप के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने ओंकार भावे ने भी भाग लिया था. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी ने बताया कि विहिप के एक अन्य पूर्व उपाध्यक्ष गिरिराज किशोर और वीएचपी के पूर्व अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने भी बैठक में भाग लिया.

सीबीआई ने सकल, दिनमान, मिड डे, लोकसत्ता, सामना, टाइम्स ऑफ इंडिया, आजतक, स्टार टीवी, एनडीटीवी और केंद्र सरकार की प्रेस एजेंसी पीआईबी को पत्र भेजे थे. अंतिम रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि केवल दिनमान और पीआईबी ने सीबीआई को नकारात्मक जवाब दिया. ऐसा लगता है कि रैलियों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सीबीआइ ने सिर्फ चिट्ठियां ही भेजीं थी.
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इस जांच में मामले में एक और महत्वपूर्ण साक्ष्य को भी खो दिया है. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि आकांक्षा रिसॉर्ट के मालिक अविनाश मजूमदार ने उन्हें बताया कि गेस्ट हाउस का रजिस्टर उस समय के निरीक्षक श्री एसटी महाजन और अब एसीपी और पीएसआई मोरे द्वारा लिया गया था.” रिपोर्ट में कहा गया है कि, “महाजन और अनिल तामायचेकर, तत्कालीन आईओ, जिन्होंने कथित तौर पर गेस्ट हाउस रजिस्टर प्राप्त किए थे, को भी तलब किया गया था लेकिन उन्होंने अपने पास कोई दस्तावेज होने से इनकार किया है. श्री प्रवीण मोरे, पीएसआई, निरीक्षक, परभणी की अपराध शाखा से भी 5.11.2020 को संपर्क किया गया था, जो गेस्ट हाउस में जाने के बारे में कुछ नहीं बता सके कि वहां से कोई आगंतुक रजिस्टर एकत्र किया गया या नहीं. रजिस्टर का अंत में पता नहीं लगाया जा सका. ऐसा लगता है कि सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथ में लेने के पूरे 12 साल बाद महत्वपूर्ण सबूतों के लिए शायद ही मोरे से संपर्क किया था. शिंदे की अधिकांश गवाही गेस्ट हाउस में जो कुछ हुआ उससे संबंधित है और रजिस्टर उनके दावों की पुष्टि करने में महत्वपूर्ण हो सकता है.

ऐसा लगता है कि सीबीआई ने एटीएस द्वारा एकत्र किए गए अन्य सबूतों की भी जांच नहीं की. एटीएस ने आरोपियों के 61 फोटोग्राफ और फोन कॉल डिटेल रिकॉर्ड सीबीआई को भेजे. तस्वीरें किसकी हैं और उसमें क्या दिखाया गया है इसका कोई उल्लेख नहीं है. लेकिन इस बात का भी कोई उल्लेख नहीं है कि क्या इनमें से कुछ सबूत के तौर पर उपयोगी था या सीबीआई ने इन्हें लेकर जांच की थी. सीबीआई कॉल डिटेल रिकॉर्ड से आरोपी या प्रोफेसर देव के अनुमानित स्थान का पता लगा सकती है.

13 दिसंबर को शिंदे ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत सुरक्षा की मांग करते हुए गवाह के रूप में जोड़े जाने की अपनी कानूनी स्थिति का बचाव किया, जिसके तहत न्यायालय के पास मुकदमे के किसी भी चरण में किसी भी गवाह को बुलाने की असाधारण शक्ति होती है. शिंदे के वकील ने अप्रैल 2004 से बेस्ट बेकरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित करते हुए फिर से सुनवाई का आदेश दिया. इससे पहले सीबीआई ने अपने लिखित जवाब में अदालत को इस प्रावधान का इस्तेमाल करने से आगाह किया था. उन्होंने लिखा था, " सीआरपीसी धारा 311 के तहत शक्ति का प्रयोग केवल उस मामले में किया जाना चाहिए जब गवाह के सबूत मामले में उचित निर्णय के लिए आवश्यक होते हैं." सीबीआई ने जांच के संबंध में कारवां द्वारा भेजे गए प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.

शिंदे ने बम बनाने के प्रशिक्षण में अपने शामिल होने और हलफनामा दाखिल करने के बीच 16 साल के अंतराल का यह तर्क देते हुए बचाव किया कि उन्होंने इस अवधि के दौरान कई आरएसएस और बीजेपी नेताओं से संपर्क किया था ताकि उन्हें मामले पर कदम उठाने के लिए मनाया जा सके. उन्होंने लिखा है कि, "उनका इरादा ईमानदार और भरोसे से जुड़ा है." शिंदे की अर्जी पर कोर्ट 26 दिसंबर को फैसला सुनाएगी.