दिल्ली पुलिस ने कारवां के पत्रकारों पर हमले की रिपोर्ट दर्ज करने के एनएचआरसी के आदेश की उड़ाई धज्जियां

05 October, 2020

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दिल्ली पुलिस को कारवां के तीन पत्रकारों पर हुए हमले की कार्रवाई करने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए चार सप्ताह का समय दिए जाने के एक महीने बाद भी पुलिस ने अभी तक इसका अनुपालन नहीं किया है. 14 अगस्त को, कारवां के तीन पत्रकारों के साथ मारपीट करने के तीन दिन बाद, ह्यूमन राइन डिफेंडर-इंडिया के नाम से एक समूह ने एनएचआरसी के समक्ष एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें हमले की आपराधिक जांच कराने और पत्रकारों को मुआवजा देने की मांग की गई थी. छह दिन बाद एनएचआरसी ने शिकायत पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया, जिसमें उसे हमले की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहा गया. लेकिन 29 सितंबर को एचआरडीए-इंडिया के राष्ट्रीय कार्यकारी सचिव हेनरी टीफाग्ने ने एनएचआरसी को यह सूचित करते हुए लिखा कि पुलिस ने अभी तक आदेश का अनुपालन नहीं किया है. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक एनएचआरसी की वेबसाइट यही दर्शा रही थी कि दिल्ली पुलिस ने अभी भी कार्रवाई नहीं की है.

तीन पत्रकारों, शहीद तांत्रे, प्रभजीत सिंह और एक महिला पत्रकार, जिनकी पहचान उजागर नहीं की जा रही है, को भीड़ ने घेर लिया, पीटा, सांप्रदायिक गालियां दीं, हत्या करने की धमकी दी और उनका यौन उत्पीड़न भी किया. वे पूर्वोत्तर दिल्ली के सुभाष मोहल्ले में दो मुस्लिम महिलाओं और एक किशोरी द्वारा पुलिस अधिकारियों पर भजनपुरा थाना परिसर के भीतर यौन उत्पीड़न करने के आरोपों के बारे में रिपोर्टिंग करने के लिए गए थे. मोहल्ले की ये तीनों महिलाएं 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास समारोह के दौरान अपने हिंदू पड़ोसियों द्वारा सांप्रदायिक नारे लगाने खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए थाने गईं थीं.

शिकायत में कहा गया है कि, "हमारा दृढ़ विश्वास है कि प्रथम दृष्टया पुलिस जानबूझकर कार्रवाई करने में विफल रही, जो राष्ट्रीय राजधानी में ह्यूमन राईट डिफेंडरों और पत्रकारों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की गंभीर घटना है. स्पष्ट रूप से न केवल पत्रकारों पर एक हिंसक भीड़ ने हमला किया बल्कि दिल्ली पुलिस ने पत्रकारों का बचाव या रक्षा करने करने के लिए या एफआईआर दर्ज करने के लिए भी कोई पर्याप्त कार्रवाई नहीं की, जो कानूनी रूप से अनिवार्य है, यह पुलिस द्वारा कानून का गंभीर उल्लंघन है."

टीफाग्ने के माध्यम से एचआरडीए-इंडिया की शिकायत दायर की गई, एनएचआरसी से कई दिशा-निर्देश भी मांगे गए. इनमें दिल्ली के उत्तर-पूर्व जिले के पुलिस उपायुक्त को निर्देश दिए गए थे कि वे पत्रकारों के साथ मारपीट को लेकर शिकायत दर्ज करें, एक अलग पुलिस स्टेशन में जांच स्थानांतरित करने का निर्देश दें और एनएचआरसी को अपनी अलग से स्वतंत्र जांच करने के निर्देश भी दिए थे. शिकायत में महिला पत्रकार द्वारा दर्ज यौन उत्पीड़न की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर भजनपुरा पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर अशोक शर्मा के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की भी मांग की गई थी. भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए यौन उत्पीड़न या यौन हिंसा से संबंधित एक संज्ञेय अपराध के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस की विफलता को भी अपराध की श्रेणी में रखती है.

20 अगस्त के एनएचआरसी के आदेश में कहा गया है कि अगर दिल्ली पुलिस निर्धारित समय में रिपोर्ट दर्ज करने में विफल रही, तो आयोग 1993 के मानवाधिकार अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों को लागू करने के लिए बाध्य होगा और पुलिस अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा जाएगा. एनएचआरसी के लॉ रजिस्ट्रार सुरजीत रे ने कहा कि आयोग अंतिम तिथि के बाद कुछ दिनों के लिए यह तय करने के लिए इंतजार करेगा कि क्या रिपोर्ट पर कुछ कार्रवाई हो रही है. ऐसा न होने पर, पुलिस को जवाब देने का एक और अवसर दिया जाएगा या पुलिस को व्यक्तिगत रूप से तलब किया जाएगा.

मानव अधिकार कार्यकर्ता देविका प्रसाद के अनुसार, जिन्होंने एचआरडीए-इंडिया की शिकायत का मसौदा तैयार करने में सहायता की, एनएचआरसी को दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करने के लिए चार सप्ताह का समय नहीं देना चाहिए था. प्रसाद ने पूछा, "उन्हें चार सप्ताह का समय क्यों देना पड़ा? यह एक बड़े पैमाने पर हुई हिंसक घटना नहीं थी. यह एक दिन में तीन लोगों पर हुआ हमला था. राज्य प्रशासन को इतना समय देना, उन्हें ढील देने की तरफ ही इशारा करता है." प्रसाद ने कहा कि उनके अनुभव बताते हैं कि ऐसे मामलों में जहां पुलिस के खिलाफ शिकायत की गई हो एनएचआरसी "सक्रिय" नहीं रहता है. उन्होंने विस्तार से बताया, "ऐसे मामलों में जहां यह स्पष्ट है कि राज्य प्रशासन मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, एनएचआरसी खुद से हस्तक्षेप नहीं करता, भले ही उसके पास ऐसा करने की शक्तियां हों. इसके बजाय, वह शिकायत मिलने का इंतजार करता है."

फिर भी, प्रसाद को यह को विश्वास है कि एनएचआरसी एचआरडीए की शिकायत पर कार्रवाई करेगा. उन्होंने कहा, "अगर याचिकाकर्ता मामले को लेकर सक्रिय है और उसके पास शिकायत को लेकर आगे बढ़ने के लिए समर्थन और बुनियादी ढांचा है, तो एनएचआरसी को कदम उठाने के लिए मजबूर किया जा सकता है."

दूसरी तरफ टीफाग्ने ने माना कि उनका कर्तव्य था कि वे एनएचआरसी के समक्ष ऐसी शिकायतें दर्ज करें, भले ही उनका अनुभव प्रसाद की ही तरह यह दर्शाता हो कि इसकी संभावना नहीं है कि आयोग इस पर कोई कार्रवाई करेगा. उन्होंने मई 2018 में प्राकृतिक-संसाधन कंपनी वेदांता के स्वामित्व वाले स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट में पुलिस की गोलीबारी में 13 प्रदर्शनकारियों को मार डालने के बाद उनके द्वारा दायर की गई शिकायत पर कार्रवाई करने में एनएचआरसी की विफलता का उदाहरण दिया. उन्होंने आगे कहा कि एचआरडीए-इंडिया ने 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम की समीक्षा करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए एनएचआरसी का आह्वान भी किया था और अपील भेजी थी. लेकिन, टीफाग्ने के अनुसार, उन्हें सूचना मिली कि उनकी "शिकायत खारिज कर दी गई है." टीफाग्ने ने बताया कि उन्होंने एक कानून की समीक्षा करने के लिए अपील की थी, कोई शिकायत नहीं की थी. "तब से, मैं अपने दोस्तों के साथ ये मजाक करता हूं कि अगर मैं एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एचएल दत्तू को यह कहते हुए कोई पत्र भेजूं कि आपने ये बहुत अच्छा काम किया है, तो मुझे जबाव मिलेगा कि मेरी शिकायत खारिज कर दी गई है."

टीफाग्ने ने कारवां के पत्रकारों पर हमले जैसे मामलों की शिकायत दर्ज कराने का उनके लिए क्या महत्व है, इस पर जोर दिया. ''हम सभी लोग मानव अधिकारों के क्षेत्र से जुड़े हैं," एचआरडीए-इंडिया नेटवर्क का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम एक साथ मानवाधिकार संस्थाओं को मजबूत करें. इसके कामकाज की नकारात्मक प्रवृत्ति मेरे लिए उम्मीद खोने का कोई कारण नहीं है."

टीफाग्ने ने एनएचआरसी की वैश्विक प्रासंगिकता के बारे में जोर देते हुए कहा कि यह ग्लोबल एलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस का सदस्य है, जो इसी तरह के सौ से अधिक संगठनों का नेटवर्क बनाता है. उन्होंने कहा कि यह एशिया पैसिफिक फोरम का एक संस्थापक सदस्य है, जो मानवाधिकार संस्थाओं का एक क्षेत्रीय गठबंधन है. उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं का वैश्विक स्तर पर यह जनादेश है कि वे मानवाधिकार रक्षकों के संरक्षण के लिए काम करें. ऐसा करने का एक तरीका इसके बारे में प्रचार करना है. दूसरा तरीका और हम जो भी करते हैं, वह आयोग के समक्ष शिकायतों को उठाना और लड़ना है."

वह आगे कहते हैं, "पत्रकार भी मानव अधिकारों के रक्षक हैं, खासकर जब वे उस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे होते हैं जैसा कि प्रभजीत सिंह और शाहिद तांत्रे और महिला पत्रकार कर रही थीं." टीफाग्ने ने कहा कि अगर एनएचआरसी ने कार्रवाई नहीं की तो वह मामले को अदालत में ले जाने के लिए तैयार हैं. "अगला विकल्प उच्च न्यायालय में जाना होगा और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के लिए अदालत से एनएचआरसी में हस्तक्षेप करने के लिए कहा जाएगा. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों में संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल होता है. अगर देरी का कोई खास कारण है, तो मैं इसे मानने को तैयार हूं. लेकिन अगर जानबूझकर देरी होती है, तो इसमें कुछ गलत है, जैसा कि हम पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई हिंसा के बारे में देख रहे हैं."

अनुवाद : अंकिता