दिल्ली दंगों का सच बाहर नहीं लाना चाहती दिल्ली पुलिस : जफरुल इस्लाम खान

शाहीन अहमद/कारवां
09 November, 2020

इस साल फरवरी में दिल्ली में हुई मुस्लिम विरोधी हिंसा के बाद से दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है. वह 72 साल के हैं और अप्रैल में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया था इसलिए कि उन्होंने देश के मुसलमालों का समर्थन करने पर कुवैत सरकार को शुक्रिया कहा था. फिर 29 अक्टूबर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने खान के घर छापा मारा. इस बारे में खान का कहना है कि छापा मारते वक्त जो दस्तावेज उन्हें दिखाए गए थे उनमें उनके एनजीओ का संबंध “कश्मीर आंतकवाद” से जोड़ा गया था.

इस साल अगस्त में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल पूरा हो गया. उस महीने कारवां के स्टाफ राइटर सागर ने दिल्ली दंगों और उनकी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के बारे में उनसे बात की थी.

सागर : दंगों के बाद जब आपने राजधानी पब्लिक स्कूल और शिव विहार का दौरा किया तो आपको वहां प्रत्यक्षदर्शियों ने क्या बताया?

जफर : 2 मार्च को हम लोग आधिकारिक दौरे पर गए थे. मेरे साथ करतार सिंह कोछड़ साहब भी थे. हम दोनों के अलावा हमारी सलाहकार समितियों के कई सदस्य थे. हम लगभग 20-30 लोग थे और साथ में तकरीबन 30-40 पुलिस अधिकारी भी थे जिनमें एक वरिष्ठ अधिकारी थे. हम लोग इनते लोगों के साथ इसलिए वहां गए थे ताकि कहीं कोई हमला या कुछ और दुर्घटना न घटे. यदि ऐसा हो भी तो हमारी सुरक्षा रहे क्योंकि उस वक्त भी हिंसा जारी थी.

हम राजधानी स्कूल और उसके बगल के डीआरपी स्कूल भी गए. राजधानी स्कूल का ड्राइवर और मैं साथ गए थे. ड्राइवर ने मुझे बताया कि वे लोग स्कूल में घुस आए थे. मैं बता दूं कि वह ड्राइवर हिंदू था. ड्राइवर ने मुझे उनके बारे में बताया कि वे लोग 20-25 साल के थे. हट्टे-कट्टे और चेहरे पर मास्क और हेलमेट लगाए हुए थे. पहले वे लोग राजधानी स्कूल में घुसे क्योंकि वह खुला हुआ था और उसके बाद स्कूल की छत पर जाकर एक बड़ी गुलेल लगा दी. आपने इसे वीडियो में देखा होगा. कुछ लोग वहीं रुक गए और कुछ लोग एक मोटी रस्सी के सहारे बगल वाले स्कूल में घुस गए और उसके गेट खोल दिए और फिर लोग स्कूल में घुस गए.

राजधानी स्कूल में तकरीबन 100 लोग रह रहे होंगे और तकरीबन 1000 से 1500 लोग बगल के स्कूल में थे. ये लोग 24 फरवरी की रात वहां आए थे और पूरे 24 घंटे वहीं थे. ड्राइवर ने मुझे बताया कि वे लोग छोटे ट्रकों में स्कूल से निकलते, तोड़फोड़ करते, दंगे करते और लौट आते थे. वे यहां आकर खाना खाते थे और आराम करते थे और फिर हिंसा करने निकल जाते थे. यही उनका रुटीन था. इसके बाद हम लोग डीआरपी स्कूल देखने गए. वहां के गार्ड ने, जो खुद हिंदू है, मुझे बताया कि उसने बहुत करीब से उन लोगों को देखा था. उसने बताया कि वे लोग उसे और उसकी बीवी को को न मर डालें ऐसा सोचकर वह अपने परिवार सहित पीछे के रास्ते से भाग गया था.

इसके बाद हम लोग अरुण स्कूल में गए जो पूर्व एमएलए, भूषण शर्मा का है. शर्मा ने भी हमें यही बताया और उन्होंने हमें स्कूल के सीसीटीवी कैमरा की तस्वीर दी. उस तस्वीर में दंगाइयों को देखा जा सकता है. वे लोग बिल्डिंग में घुसे, तोड़फोड़ की और कंप्यूटर हार्डवेयर और अन्य चीजें लूट ली. उन्होंने स्टील की रेलिंग भी तोड़ दी.

हमने फोटो ली और राजधानी स्कूल और डीआरपी स्कूल वापस आए ताकि लोगों को तस्वीर दिखा कर पूछ सकें कि क्या ये वही लोग हैं. उन लोगों ने हमें बताया कि हां ये वही लोग थे. इस बीच किसी ने यह नहीं कहा था कि ये लोग मुस्लिम हैं या राजधानी स्कूल के मालिक इन लोगों को यहां लाए थे. जो बातचीत हमारी उन लोगों के साथ हुई उसके अनुसार दंगाई बाहर से आए थे. उन लोगों को नहीं पता था कि वे कहां से आए थे लेकिन यह पता था कि बाहरी थे, स्थानीय नहीं थे. वे यहां रुके और वह किया जो करने आए थे और फिर छोटे ट्रकों में सवार होकर लौट गए.

अब एक नया नैरेटिव तैयार किया जा रहा है. (यहां खान दिल्ली पुलिस की राजधानी स्कूल मामले की चार्जशीट की बात कर रहे हैं.) 2 मार्च तक इस इलाके में ये बातें नहीं की जाती थीं. आप बता ही सकते हैं कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. मीडिया, कोर्ट और चार्जशीट में ऐसी बहुत सारी चीजें आई हैं जिनसे पता चलता है कि एक खास तरीके का नैरेटिव रचा जा रहा है.

ऐसा नहीं है कि हम लोग बस उसी दिन वहां गए थे. हम लोग 24 फरवरी से ही वहां के लोगों से संपर्क कर रहे थे, हम व्हाट्सएप संदेश और एसओएस कॉल प्राप्त कर रहे थे. इसलिए हमारे पास परिस्थिति की सूचना थी. लोगों को बाहर से लाया गया था और वे लोग प्रशिक्षित लोग थे. उन लोगों को पता था कि आग कैसे लगानी है और तोड़फोड़ कैसे करनी है. पहले वे चीजों को लूटते थे और फिर आग लगा देते थे और अगर आग पूरी नहीं पड़ती थी तो विस्फोट करने के लिए गैस सिलेंडर का इस्तेमाल करते थे. हमने ऐसे कई घर देखे जो अंदर से पूरी तरह से तबाह हो चुके थे. यहां तक की दीवारों को भी नुकसान पहुंचा था. पहला माला तबाह हो गया था और छत तबाह हो गई थी. अगर बिल्डिंग खड़ी भी है तो अंदर से तबाह हो चुकी थी. हमें घरों में, गराजों में, दफ्तरों में, दुकानों में और मस्जिदों में और तमाम जगह एक ही तरह का पैटर्न दिखाई दे रहा था. स्थानीय लोगों ने खुद हमें बताया कि दंगाइ पहले घर लूटते थे और बाद में घरों में आग लगा देते थे. सिर्फ यही नहीं उन लोगों को यह भी पता था कि किस संपत्ति का मालिक कौन है. अगर वह संपत्ति हिंदू की होती तो सिर्फ लूटमार करते थे लेकिन आग नहीं लगाते और अगर मुसलमान की होती थी तो उसे लूट कर आग लगा देते.

सागर : उनको जरूर अंदर से मदद मिल रही होगी, किसी ने तो उन्हें बताया होगा?

 इस्लाम  : हां, हमने जाना कि भले ही ज्यादातर लोग बाहर से थे, लेकिन कुछ लोग अंदरूनी सूत्र थे जो उनकी मदद कर रहे थे. ऐसा नहीं है कि उन्हें मौके पर ही पता चला होगा. इसकी तो जांच करनी होगी. गौर कीजिए कि 2002 के दंगों में गुजरात में क्या हुआ था. लिस्ट तैयार की जा चुकी थीं. वीएचपी के सदस्यों ने यह सब कबूल किया है कि उन्होंने पहले नगरपालिका के रिकॉर्ड और अन्य रिकॉर्ड से सूची तैयार की थी, और ये सूची बनाई. इसके लिए कई दिन पहले से योजना बनाई गई थी, यह एक दिन में नहीं हो सकता था. वास्तविकता यह थी कि वे सीएए, एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों को समाप्त करना चाहते थे. यह एक चेतावनी थी, "अगर तुमने ऐसा किया तो  हम तुम्हारे घर जला देंगे, तुम्हारे स्टोर जला देंगे, हम तुमको मार देंगे."

एक तरह से, यह वही है जो वे शाहीन बाग और अन्य सैकड़ों शाहीन बाग़ वालों को सबक सिखाने के लिए कर रहे थे. इसके लिए, बीजेपी नेता कपिल मिश्रा 23 फरवरी को वहां गए और उन्हें धमकाया, डीसीपी (नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस, वेद प्रकाश सूर्या) उनके साथ बगल में खड़े थे. यह उनकी पूरी योजना का हिस्सा था, यह अचानक नहीं हो सकता था. उन्हें क्या करना है इसके बारे में उन्हें थोड़ा तो पता होना ही चाहिए था. इसलिए लोगों को लाया गया था, काम किया गया था और अब पूरे नैरेटिव को बदला जा रहा है. वे गरीब मजदूर जिनके घर, दुकानें और गराज जल गए, अब उन्हें ही पकड़ा जा रहा है.

जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, कई चीजें सामने आएंगी. लेकिन ऐसे कई लोग हैं जिनकी मौत हो चुकी है, जिनके परिवार के सदस्य और दोस्त मर चुके हैं, कोई भी उनके घाव भरने के लिए आस-पास नहीं होगा.

सागर : वही लोग जिनसे आपने बात की- स्कूलों के ड्राइवर और गार्ड - ने दिल्ली पुलिस को बताया कि दंगाई नारे लगा रहे थे, वे मुसलमान ​थे और उन्हें फैजल का समर्थन मिला हुआ था.

इस्लाम  : 2 मार्च को, हमने इन तीन स्कूलों में बहुत समय बिताया और किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं कहा जैसा आपने बताया. ये चश्मदीद गवाहों - राजधानी स्कूल का ड्राइवर एक चश्मदीद गवाह है, डीआरपी स्कूल का गार्ड एक चश्मदीद गवाह है, और मालिक शर्मा, जो शायद चश्मदीद तो नहीं है, लेकिन जिन्होंने हमें इसके बारे में बताया था और हमें सीसीटीवी फुटेज दी - इन लोगों ने न तो नारों के बारे में या न इस बारे में कि वे लोग मुसलमान थे, कभी कुछ नहीं कहा. अगर वे मुसलमान होते, तो उनकी दाढ़ी होती या सर पर टोपी होती, या कुछ ऐसा होता जिससे पता चलता कि वे मुसलमान हैं. उन्होंने उस समय इस बारे में कुछ नहीं कहा. यह सब बाद में बनाया गया है, मुझे इसमें कोई सच्चाई नहीं दिख रही है.

सागर : क्या यह समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश है?

इस्लाम  : उनसे ऐसा करवाया जा रहा है, ऐसा नहीं है कि वे खुद से ऐसा कर रहे हैं. मैं इस बारे में बहुत ज्यादा नहीं कहूंगा, लेकिन उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यही काम उन्हें दिया गया था. 24 फरवरी को, जिस समय दंगे हो रहे थे स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि पुलिस कह रही थी कि उन्हें कोई आदेश नहीं मिला है. वे या तो दंगाइयों के साथ थे या बस वहां खड़े थे और कुछ ने मदद करने की भी कोशिश की-तीनों तरह के अधिकारी वहां मौजूद थे.

तो यह साजिश उसी दिन से हो रही थी. अफसरों को शायद पता था कि क्या करना है, और उपद्रवी नारे लगा रहे थे, "ये अंदर की बात है, पुलिस हमरे साथ है." इसके बहुत सारे वीडियो हैं, जहां दंगाई लोगों को घेर रहे हैं, लोगों की पिटाई कर रहे हैं, त्रिशूलों और तलवारों के साथ घूम रहे हैं - इस सब के बहुत सारे वीडियो हैं. ये वीडियो अन्य लोगों के लिए भी उपलब्ध होंगे [मुस्लिम समुदाय का जिक्र करते हुए], लेकिन मैं इस तरह के किसी भी वीडियो में नहीं आया हूं. पिस्तौल पकड़े शाहरुख का एक वीडियो है. अगर आप केवल एक फोटो निकालते हैं और दिखाते हैं, तो यह कुछ भी स्पष्ट नहीं करता है. मुझे पता चला कि उसी दिन उनके घर पर हमला हुआ था. अगर मेरे घर पर हमला हुआ, तो मैं मानसिक रूप से भी अस्थिर हो जाऊंगा.

सागर : क्या वे अपने मन मुताबिक जांच कर रहे हैं और तथ्यों और गवाहों को पेश करने में अपनी मर्जी चला रहे हैं?

इस्लाम  : उनका कोई मकसद होता, तो उसे पूरा करना मुश्किल नहीं होता. उनका मकसद सच्चाई तक नहीं पहुंचना है. आपको सच्चाई पर पहुंचना होगा, यही एकमात्र तरीका है जिससे आप ऐसी चीजों को होने से रोक सकते हैं. लेकिन आपने सच की तलाश नहीं की, आप हर चीज पर लीपा पोती कर लेंगे. जिन लोगों ने ऐसा किया, जिन्होंने ऐसी योजना बनाई, उसे अंजाम दिया, सड़कों पर खड़े हुए और लोगों पर हमला किया, लोगों की पहचान की और उन्हें मार दिया. कई लोगों ने हमें बताया कि दंगाई लोगों के आधार कार्ड को देख रहे थे - अगर कोई मुसलमान होता, तो उसे मारते, अगर मुसलमान नहीं होता, तो उसे छोड़ देते. यह पूरे मोहल्ले की गलियों में हो रहा था. तो यह नई बात जो वे कह रहे हैं, यह एक षड्यंत्र है - पहले हिंसा करने की साजिश थी, और अब इसे एक नया मोड़ देने की नई साजिश हो रही है.

कोई भी सरकार जो ऐसा करती है वह भरोसे के काबिल नहीं है. सरकार का मकसद यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि फिर कभी हिंसा और दंगे न हों. इसीलिए सरकार बनती है, इसी लिए वह सत्ता में आती है, इसीलिए वह संविधान पर शपथ लेती है- कानून और व्यवस्था बनाए रखने और संविधान का पालन करने के लिए. लेकिन हो इसके उलट रहा है.

सागर : फैजल के पिता ने एक बयान दिया था कि पुलिस ने आकर स्कूल के शिक्षकों के बयान दर्ज किए, लेकिन उनमें से कोई भी चार्जशीट में नहीं है.

इस्लाम  : ऐसा इसलिए हुआ होगा क्योंकि ये बयान उनके नैरेटिव में फिट नहीं बैठते होंगे. अगर फिट बैठते, तो वे बयानों का इस्तेमाल करते, और जो कुछ भी फिट नहीं होता, वे खारिज कर देते.

सागर : दंगों के मामले लड़ने वाले कई वकीलों ने बताया है कि पहली बार वे एक ऐसी चार्जशीट देख रहे हैं जिसमें जांच एजेंसी एक किस्म की कहानी गढ़ रही है जबकि ऐसा करना जांच एजेंसी का काम नहीं है.

इस्लाम : न्यायाधीशों तक ने कहा है कि इस जांच में पूर्वाग्रह दिखता है. एक सत्र अदालत के न्यायाधीश ने यह कहा है कि यह एकतरफा है. कोई भी समझदार व्यक्ति समझ सकता है कि यह कहानी एक खास परिणाम हासिल करने के लिए बनाई जा रही है. मुझे नहीं लगता कि यह किसी भी समुदाय या समाज के लिए अच्छी बात है. सब के साथ इंसाफ होना चाहिए.

सागर : अपनी रिपोर्ट में आपने एक न्यायिक आयोग के गठन की सिफारिश की है.

इस्लाम : हां की है. हम एक फैक्ट फाइंडिंग दल में थे और हमने अपना काम कर दिया. लेकिन हमारी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है. यहां तक ​​कि न्यायिक आयोग की सिफारिशें भी बाध्यात्मक नहीं हैं लेकिन आयोग में अधिक शक्ति है. भले ही हमारी तथ्यान्वेषी समिति भी एक सांवैधानिक/कानूनी निकाय है लेकिन इसका एक उचित न्यायिक आयोग जितना कद नहीं है और न्यायिक आयोग होना चाहिए क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति की उच्च स्तरीय राज्य यात्रा के दौरान राजधानी में बड़ा दंगा हुआ है. उन सभी चीजों के बारे में सोचा जा रहा है कि यह कैसे हो सकता है. उस वक्त राजधानी में उच्च सुरक्षा थी और फिर भी दंगे हुए. यह कोई छोटी बात नहीं है. सच्चाई को बाहर लाना अत्यावश्यक है और जब तक हम सच्चाई तक नहीं पहुंचते, तब तक हम गलत राह पर रहेंगे.

सागर : जब आपने सरकार से आधिकारिक रूप से कहा कि एक न्यायिक आयोग होना चाहिए तो आपको क्या जवाब मिला?

इस्लाम : मुझे नहीं पता. मेरे कार्यालय ने इसे भेजा लेकिन जवाब आने से पहले मेरा कार्यकाल समाप्त हो गया. हो सकता है उन्हें जवाब मिला हो लेकिन मुझे इसके बारे में नहीं पता क्योंकि मुझे निजी तौर पर प्रतिक्रिया नहीं मिली. यह आधिकारिक रूप से कार्यालय में गया होगा.

सागर : यह भी संभव है कि कुछ लोगों को नेताओं द्वारा संगठित किया गया हो. लोग ट्रकों में लाए गए हों. क्या यह संभव है कि कुछ लोग सुनियोजित रूप से इसके पीछे काम कर रहे थे?

इस्लाम : अगर वे चाहते हैं तो वे आसानी से सीसीटीवी फुटेज देख कर जान सकते हैं कि लोग कहां से आए थे क्योंकि अब सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में सीसीटीवी कैमरे हैं.
जब लगभग हजार लोग बाहर से आते हैं तो वे आसमान से तो गिरते नहीं. वे कहीं से आते हैं, किसी मार्ग से होकर आते हैं. वे टोल भी पार करते होंगे.

जब वे दिल्ली की सड़कों पर उतरे होंगे तो वहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे. हर मोहल्ले में बहुत सारे मुखबिर हैं जो आपको सूचना दे सकते हैं. लेकिन यह सब तभी संभव है जब आपके इरादे साफ हों. यह देखने के लिए कि बाहर से कौन आया और चौबीस घंटे के भीतर छोड़ दिया गया, आप मोबाइल कॉल रिकॉर्ड देखकर बता सकते हैं कि चौबीस घंटों में कौन शहर में आया और फिर बाहर चला गया. आप पता लगा सकते हैं कि बागपत या लोनी से कौन आए. ये बातें लोग कहते हैं मैं तो सिर्फ बता रहा हूं. आप यह पता लगा सकते हैं कि कौन लोग हैं जो चौबीस और पच्चीस फरवरी को यहां आए थे. यह काफी आसान है.

सागर : चार्जशीट में मैंने एक नई चीज देखी. उन्होंने मोबाइल टावरों से सीधे डेटा लेने की मांग की है. वे पहले मोबाइल कंपनी में गए और क्षेत्र में मौजूद नेटवर्क की संख्याओं का पता किया और फिर लोगों को एक-एक करके फोन करने लगे कि आप इस स्थान पर थे, इसलिए आप भी इसमें शामिल थे.

इस्लाम : सब कुछ उल्टे तरीके से हो रहा है. यह इसका ही एक और उदाहरण है.

सागर : जिस वजह से समस्या पैदा हुई है वह है कि पुलिस ने लोगों पर दंगे वाले इलाके में मौजूद होने का आरोप लगाया और लोगों को जवाब देना पड़ रहा है कि उनके घर ही उस इलाके में हैं. वे पीड़ितों को आरोपी बना रहे हैं.

इस्लाम : लोग घरेलू चीजें, दवाओं या किसी भी अन्य कारण से बाहर गए होंगे और वे कहते हैं कि सीसीटीवी फुटेज में आपकी तस्वीर है. अगर मैं हर दिन बाहर जाता हूं तो मेरी फोटो हर दिन आएगी. अब इनको सबूत बनाया जा रहा है. बल्कि अगर वे पता लगाते हैं कि कौन बाहरी लोग आकर रुके थे, तो सीसीटीवी फुटेज के जरिए आरोपियों को पकड़ना आसान होगा. यदि उनका ऐसा करने का इरादा है तो वे सब कुछ ढूंढ सकते हैं लेकिन मैं देख सकता हूं कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है.