इस साल फरवरी में दिल्ली में हुई मुस्लिम विरोधी हिंसा के बाद से दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है. वह 72 साल के हैं और अप्रैल में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया था इसलिए कि उन्होंने देश के मुसलमालों का समर्थन करने पर कुवैत सरकार को शुक्रिया कहा था. फिर 29 अक्टूबर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने खान के घर छापा मारा. इस बारे में खान का कहना है कि छापा मारते वक्त जो दस्तावेज उन्हें दिखाए गए थे उनमें उनके एनजीओ का संबंध “कश्मीर आंतकवाद” से जोड़ा गया था.
इस साल अगस्त में अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल पूरा हो गया. उस महीने कारवां के स्टाफ राइटर सागर ने दिल्ली दंगों और उनकी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के बारे में उनसे बात की थी.
सागर : दंगों के बाद जब आपने राजधानी पब्लिक स्कूल और शिव विहार का दौरा किया तो आपको वहां प्रत्यक्षदर्शियों ने क्या बताया?
जफर : 2 मार्च को हम लोग आधिकारिक दौरे पर गए थे. मेरे साथ करतार सिंह कोछड़ साहब भी थे. हम दोनों के अलावा हमारी सलाहकार समितियों के कई सदस्य थे. हम लगभग 20-30 लोग थे और साथ में तकरीबन 30-40 पुलिस अधिकारी भी थे जिनमें एक वरिष्ठ अधिकारी थे. हम लोग इनते लोगों के साथ इसलिए वहां गए थे ताकि कहीं कोई हमला या कुछ और दुर्घटना न घटे. यदि ऐसा हो भी तो हमारी सुरक्षा रहे क्योंकि उस वक्त भी हिंसा जारी थी.
हम राजधानी स्कूल और उसके बगल के डीआरपी स्कूल भी गए. राजधानी स्कूल का ड्राइवर और मैं साथ गए थे. ड्राइवर ने मुझे बताया कि वे लोग स्कूल में घुस आए थे. मैं बता दूं कि वह ड्राइवर हिंदू था. ड्राइवर ने मुझे उनके बारे में बताया कि वे लोग 20-25 साल के थे. हट्टे-कट्टे और चेहरे पर मास्क और हेलमेट लगाए हुए थे. पहले वे लोग राजधानी स्कूल में घुसे क्योंकि वह खुला हुआ था और उसके बाद स्कूल की छत पर जाकर एक बड़ी गुलेल लगा दी. आपने इसे वीडियो में देखा होगा. कुछ लोग वहीं रुक गए और कुछ लोग एक मोटी रस्सी के सहारे बगल वाले स्कूल में घुस गए और उसके गेट खोल दिए और फिर लोग स्कूल में घुस गए.
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