दिल्ली पुलिस का खूनी रिकॉर्ड

दो साल पहले भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में प्रदर्शनकारियों को लेकर भड़काऊ भाषण दिया और इसके बाद तीन दिनों तक दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. अब यति नरसिंहानंद ने राष्ट्रीय राजधानी में एक और आग लगाने वाला भाषण दिया है. 3 अप्रैल 2022 को तीन सौ लोगों की मौजूदगी वाले एक हिंदू महापंचायत में गाजियाबाद में डासना देवी मंदिर के प्रमुख नरसिंहानंद ने दावा किया, "एक बार एक मुसलमान भारत का प्रधानमंत्री बन जाए तो बीस वर्षों में आप में से पचास प्रतिशत अपना धर्म बदल लेंगे. चालीस प्रतिशत हिंदुओं की हत्या कर दी जाएगी."

नरसिंहानंद को उत्तराखंड पुलिस ने तीन महीने पहले हरिद्वार में इसी तरह की एक जनसभा में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बीच उन्हें एक महीने के भीतर जमानत पर रिहा कर दिया गया. उनकी गिरफ्तारी ने उनके अहंकार को कम नहीं किया. दिल्ली में हिंदू महापंचायत में उन्होंने कहा, "यदि आप इस भविष्य को बदलना चाहते हैं, तो मर्द बनें. जो सशस्त्र है, वही मर्द है."

फरवरी 2020 में मिश्रा ने अपना भड़काऊ भाषण दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी की उपस्थिति में दिया था. और अब जहां नरसिंहानंद ने बयान दिया उस महापंचायत में कम से कम 30 पुलिसकर्मी मौजूद थे. यहां तक कि यह पंचायत आवश्यक अनुमति के बिना आयोजित की गई थी. घटना के लाइव मीडिया कवरेज के बावजूद, दिल्ली पुलिस ने उसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया. हालांकि पुलिस ने बाद में एफआईआर दर्ज की. यह पिछले दो वर्षों के ऐसे कई प्रकरणों में से एक है, जिसने यह स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली पुलिस राजधानी में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ने से रोकने के लिए बहुत कम प्रयास कर रही है.

महापंचायत के दो सप्ताह बाद 16 अप्रैल को उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंदू त्योहार हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित एक रैली के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक झड़पें हुईं. दिल्ली पुलिस ने हिंसा के मामले में नाबालिगों समेत 23 लोगों को गैरकानूनी रूप से जमा होने और दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार किया. गिरफ्तार लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं. बिना पूर्व अनुमति के जुलूस निकालने के लिए उग्र हिंदुत्व संगठन विश्व हिंदू परिषद और उसकी युवा शाखा बजरंग दल के दो लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. झड़पों के चार दिन बाद बीजेपी के नेतृत्व वाली उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने जहांगीरपुरी में मुस्लिम बहुल इलाके में अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया, जिसमें बुलडोजर ने एक मस्जिद के बाहरी फाटक सहित कई घरों को तोड़ दिया. सुबह करीब 10.15 बजे शुरू हुआ विध्वंस अभियान दो घंटे तक चला, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सुबह 11 बजे ही यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दे दिए थे.

राष्ट्रीय राजधानी के बहुत से निवासियों के लिए दिल्ली में 2020 के बाद से सांप्रदायिक घटनाएं सदमे के रूप में आई हैं. ऐसा लगता है कि शहर इस विश्वास पर कायम था कि इसका महानगरीय परिदृश्य और राष्ट्रीय राजधानी के रूप में इसकी स्थिति के अलावा कड़ी सुरक्षा और राजनीतिक शक्ति का केंद्र होने के चलते 2014 में बीजेपी के राष्ट्रीय सत्ता में आने के बाद शुरू हुए व्यापक सांप्रदायिकरण से इसकी रक्षा हो सकेगी. लेकिन यह विश्वास गलत साबित हुआ है. फरवरी 2020 के दंगे और केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक बल के रूप में दिल्ली पुलिस के इतिहास को समझने के लिए  पीछे मुड़कर देखना होगा.

प्रभजीत सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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