दिल्ली हिंसा में बीजेपी विधायक की शिकायत करने वाले को खिलाया जहर और दी रिपोर्ट वापस लेने की धमकी

पिछले साल सितंबर में खजूरी खास के रहने वाले 22 वर्षीय मुशाहिद ने फरवरी 2020 में हुई हिंसा में बीजेपी नेता और दिल्ली विधानसभा के सदस्य मोहन सिंह बिष्ट तथा अन्य स्थानीय हिंदुओं के खिलाफ लक्षित सांप्रदायिक हमलों का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी. सीके विजयकुमार/कारवां

जब 22 वर्षीय मुशाहिद को 8 अप्रैल को होश आया तो उन्होंने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. मुशाहिद खजूरी खास के निवासी हैं, जो उत्तर पूर्वी दिल्ली के उन इलाकों में से एक है जहां फरवरी 2020 में मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी. मुशाहिद ने मुझे बताया कि 7 अप्रैल की दोपहर को तीन लोग उनके ई-रिक्शा में आकर बैठे और उन्हें गोकुलपुरी की एक फैक्ट्री लिए चलने को कहा. मुशाहिद ने बताया कि वहां पहुंचने पर पहले तो उन्होंने कोल्ड ड्रिंक पिलाई और फिर धमकी दी कि अगर वह दिल्ली हिंसा से जुड़ी अपनी रिपोर्ट वापस नहीं लेगें तो उन्हें और उनके पूरे परिवार को मार देंगे. मुशाहिद ने भारतीय जनता पार्टी के नेता मोहन सिंह बिष्ट तथा अन्य स्थानीय हिंदुओं पर अपने आस-पड़ोस के इलाके में हमला करने का आरोप लगाया था. आखिरी चीज उन्हें यही याद थी कि रिक्शा पर सवार तीन में से एक आदमी ने उन्हें जोरदार थप्पड़ मारा था. 7 अप्रैल की रात 11:02 बजे दर्ज किए गए उनके आपातकालीन-पंजीकरण कार्ड के अनुसार, “आज रात 8.30 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा कोल्ड ड्रिंक में अज्ञात पदार्थ मिलाया गया. गोकुलपुरी में बेहोश मिला."

मुशाहिद पिछले साल सांप्रदायिक हिंसा के बाद दिल्ली छोड़कर चले गए थे. अपने पिता के साथ ई-रिक्शा चलाने के लिए और राजनीति विज्ञान में एमए की पढ़ाई पूरी करने के लिए वह सितंबर में वापस लौट आए. उन्होंने मुझे बताया कि वह इसलिए वापस लौट आए क्योंकि उनके आस-पड़ोस वालों ने उन्हें हौसला दिया. उन्हें लौटने के लिए प्रेरित करने वालों में खजूरी खास के एक अन्य निवासी मुमताज मोहम्मद भी थे, जिसके बारे में मैंने कारवां में पहले भी एक रिपोर्ट की है. मुमताज ने भी अपनी पुलिस शिकायत में बिष्ट का नाम लिया है और वह भी कहते हैं कि शिकायत के बाद में उन्हें स्थानीय निवासियों और पुलिस की धमकियों का सामना करना पड़ा है.

मुशाहिद ने 13 सितंबर को अपनी शिकायत दर्ज कराई. इसमें उन्होंने 23, 24 और 25 फरवरी 2020 को हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का वर्णन किया. प्रत्येक घटना में उन्होंने खजूरी खास के उन हिंदू निवासियों का नाम लिया जिन्हें उन्होंने हिंसा को अंजाम देते हुए देखा था. उन्होंन भीड़ द्वारा लगाए जा रहे सांप्रदायिक नारों और दिल्ली पुलिस तथा बिष्ट के जयजय कार के नारों की बात भी बताई. उन्होंने यह भी लिखा कि उन्होंने अपराधियों को यह चर्चा करते हुए सुना कि उन्हें बिष्ट से निर्देश मिले थे कि "एक भी मुसलमान नहीं बचना चाहिए, और पुलिस हमारे साथ है, कोई भी हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता है." मुशाहिद ने लिखा कि वह 23 फरवरी को उस वक्त खजूरी खास में मुमताज के संजार चिकन कॉर्नर पर मौजूद थे, जब एक भारी भीड़ ने दुकान में पथराव करना शुरू किया और तोड़फोड़ की.

मुशाहिद ने लिखा कि अगले दिन, जब वह शाम 5 बजे के आसपास अपने घर से बाहर निकले, तो उन्होंने देखा कि आस-पड़ोस के इलाकों के स्थानीय हिंदू मुसलमानों की दुकानों को लूट रहे हैं और आग के हवाले कर दे रहे हैं. इसमें एक मकबूल की मोटरसाइकिल की दुकान भी थी. मुशाहिद ने दर्ज कराया है कि उन्होंने देखा कि हिंदू भीड़ ने दुकान के शटर को लोहे की छड़ से खोला, दुकान को लूटा और फिर पेट्रोल डालकर जला दिया. उन्होंने लिखा कि बाद में उसी रात उन्होंने उसी भीड़ को मुस्लिम घरों में पेट्रोल बम फेंकते देखा.

मुशाहिद ने आगे लिखा है कि 25 फरवरी की सुबह एक हिंदू भीड़ उनकी गली में घुसी और घरों पर पथराव करना और पेट्रोल बम बरसाना शुरू कर दिया. स्थानीय लोगों में से एक ने एक घर पर विस्फोटक फेंका, जिससे एक बड़ा धमाका हुआ और भीड़ के एक सदस्य ने मुशाहिद पर अपनी बंदूक से गोली भी चला दी. फिर बिष्ट गली में पहुंचे. मुशाहिद ने लिखा, "मैंने देखा कि मोहन सिंह बिष्ट ने अपने सहयोगी के हाथों से विस्फोटक लिया और उसे मुमताज भाई के घर में फेंक दिया, जिससे घर में बहुत बड़ा धमाका हुआ.” मुशाहिद ने कहा कि भीड़ ने मुमताज सहित अन्य मुस्लिमों के घरों को लूट लिया.

कारवां के साथ हुई मुमताज की बात मुशाहिद के सभी आरोपों को सही बताती है. उन्होंने भी जुलाई 2020 में बिष्ट, दयालपुर एसएचओ और हिंदू स्थानीय लोगों के नाम के साथ औपचारिक शिकायत दर्ज कराई थी. उनकी शिकायतों में से किसी के खिलाफ भी कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई. लेकिन दोनों ने कहा कि उन्हें अपनी शिकायतें वापस लेने के लिए स्थानीय लोगों से भारी दुश्मनी, दबाव और धमकियां मिलीं. मुशाहिद का मानना ​​था कि इस साल अप्रैल में जहरखुरानी की घटना इसी कड़ी का नया हिस्सा है.

9 अप्रैल को मैंने उत्तर पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क में जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में मुशाहिद से बात की, जहां उन्हें भर्ती कराया गया था. उन्होंने घटना को याद करते हुए कहा, "मैंने अपना रिक्शा खजूरी में खड़ा किया था. कुछ लोग आए और मुझसे पूछा कि क्या मैं गोकुलपुरी चलूंगा. मैंने उन्हें मना कर दिया लेकिन उन्होंने जोर दिया और कहा कि जिताना किराया चाहिए देंगे.” वे लोग इस बात पर जोर देते रहे कि उन्हें गोकुलपुरी की एक फैक्ट्री से कुछ सामान लेकर आना है. और आखिरकार मुशाहिद चलने के लिए मान गए.

मुशाहिद ने बताया, "वह मुझे एक गली में ले गए. वह रिहायशी इलाका था और एक महिला हमारी तरफ देखते हुए रुक गई, जैसे कि उसे लगा हो कि कुछ गलत हो रहा है लेकिन फिर वह चली गई." उन्होंने कहा, “मुझे बहुत प्यासा लगी थी. मुझे लगा कि यहां पर उनका कारखाना है इसलिए मैंने उनमें से एक से कहा, 'मुझे प्यास लग रही है, थोड़ा पानी मिलेगा?’ वह थोड़ी दूर गया और कोल्ड ड्रिंक लेकर लौटा.” मुशाहिद ने कहा कि उस आदमी ने उसे प्लास्टिक के गिलास में कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए दी. मुशाहिद बताते हैं कि उन्होंने उसे गिलास में कोल्ड ड्रिंक डालते हुए नहीं देखा. उन्होंने कहा, "वह पीछे से कहीं से इसे मेरे पास लाया." उन्होंने कहा कि उन लोगों ने भी बोतल से कोल्ड ड्रिंक पी. मुशाहिद ने कहा कि लोगों ने उनसे रिक्शा से उतर कर सामान लाने में उनकी मदद करने के लिए कारखाने तक आने के लिए कहा. मुशाहिद ने रिक्शा गली के एक कोने में खड़ा किया और लगभग 20-25 फीट तक उनके साथ चले. उन्होंने मुझसे कहा, "सड़क चौड़ी थी लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं रिक्शा वहीं छोड़ दूं." मुशाहिद ने कहा, "जैसे ही मैंने उन्हें बताया कि रिक्शा को कारखाने तक लाने के लिए काफी जगह है तो उनमें से एक ने मेरा कॉलर पकड़ लिया और मुझे दंगों के मामलों में अपनी शिकायत वापस लेने की धमकी दी."

मुशाहिद ने कहा, "मैंने उनसे कहा, 'मैंने आपके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं की है' और उन्होंने जवाब दिया,'जिस किसी के खिलाफ तुमने खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है उसी ने भेजा है. बेहतर होगा तुम अपनी शिकायत वापस ले लो.' फिर उसने मुझे जोरदार थप्पड़ मारा और मैं तुरंत बेहोश हो गया. मुझे अगले दिन इसी अस्पताल में होश आया.”

मुशाहिद के पिता मोहम्मद सलामत भी अस्पताल में मौजूद थे. सलामत ने कहा कि वह उस समय बहुत परेशान हो गए थे जब मुशाहिद उस शाम घर नहीं लौटा क्योंकि परिवार को पुलिस से शिकायत के बारे में पहले भी धमकी मिली थी. सलामत ने कहा कि मुशाहिद सामान्य रूप से शाम 5 बजे तक घर आ जाता था. सलामत ने बताया कि शाम 7 बजे तक इंतजार करने के बाद वह पुलिस स्टेशन गए. "मैं गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन में शाम 7 से 8 बजे के बीच अपने बेटे के बारे में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचा था और मुझे कहा गया कि अगली सुबह तक मुझे सूचित कर देंगे लेकिन तब मुझे पता चला कि मेरा बेटा बाहर पुलिस स्टेशन में ही पड़ा है." सलामत ने आगे कहा. "मैंने उसे गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन के परिसर में बेहोश पड़ा पाया."

सलामत को पुलिस ने यह नहीं बताया कि मुशाहिद वहां कैसे पहुंचा. सलामत ने कहा, "मेरे बेहोश बेटे के साथ कोई पुलिसकर्मी उपस्थित नहीं था और पुलिस ने इस बारे कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया. पुलिसवालों ने मुझे कहा कि मैं पहले अपने बेटे की जान बचाने के लिए उसे अस्पताल ले जाऊं. लेकिन उन्होंने मेरी मदद नहीं की." सलामत ने कहा कि वह पहले अपने बेहोश बेटे को घर ले आए ''और फिर होश में आने के बाद किसी अन्य व्यक्ति की मदद से उसे बाइक पर अस्पताल ले गए.''

सलामत ने कहा, "मैं उसे आपातकालीन वार्ड में ले गया जहां डॉक्टरों ने उसके शरीर के अंदर पाइप डालने से पहले किसी भी परिणाम के लिए मेरी सहमति ली." उन्होंने कहा, ''उन्होंने उसे भर्ती कर लिया और दो दिनों के बाद जाकर वह कुछ बोल पाया. मैं वास्तव में घबरा गया था. ई-रिक्शा गायब था और मेरा बेटा बेहोश.” जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पुलिस से स्टेशन पर मदद क्यों नहीं मांगी, तो उन्होंने जवाब दिया, "मेरी हिम्मत नहीं हुई." 

इस साल अप्रैल में, मुशाहिद को नशीला पदार्थ दिया गया था और गोकुलपुरी में उसे बेहोश छोड़ दिया गया. उससे कहा गया था कि अगर उसने दिल्ली हिंसा के बारे में दर्ज कराई शिकायत वापस नहीं ली तो उसे और उसके परिवार को जान से मार दिया जाएगा. मुशाहिद को लगभग एक सप्ताह के लिए उत्तर-पूर्व दिल्ली के जगप्रवेश चंद्र अस्पताल में भर्ती किया गया था. सीके विजयकुमार/कारवां

8 अप्रैल को जब मुशाहिद को होश आया तो उन्होंने बताया कि उन्होंने 100 नंबर पर फोन किया और गोकुलपुरी स्टेशन के दो पुलिस अधिकारी अस्पताल आए. "उन्होंने मेरा बयान दर्ज किया," उन्होंने मुझे बताया. “बाद में मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं इसे पढ़ सकता हूं. पुलिस ने शिकायत लिखी थी कि अपराधियों पर बस मेरा रिक्शा चुराने का आरोप लगाया था, और लिखा था कि चोरी करने के इरादे से मुझे जहर दिया गया. मैंने पुलिस से कहा, ''सर आपने मेरी पूरी शिकायत नहीं लिखी है. उन्होंने मुझे धमकी भी दी, और मुझसे कहा कि मैं अपनी शिकायत वापस ले लूं.'' मुशाहिद ने कहा कि अपनी शिकायत में इस बात को खास तौर पर दर्ज कराना चाहते थे कि अपराधियों ने बिस्ट के कहने पर उन्हें धमकी भी दी थी क्योंकि उन्होंने विधायक के खिलाफ पहले शिकायत दर्ज कराई थी.

मुशाहिद ने कहा कि पुलिस ने उन्हें बताया कि जो अतिरिक्त विवरण वह दर्ज कराना चाहते हैं, उसे बाद में जोड़ा जा सकता है, लेकिन उन्होंने शिकायत पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. मुशाहिद ने पुलिस को बताया, "अगर आप इसे मेरी इच्छा के अनुसार दर्ज करेंगे तो ठीक है नहीं तो मैं इस पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा." "फिर उन्होंने मुझसे पूछा, 'तुम किसका नाम लेना चाहते हो?' मैंने कहा, 'मैंने अपनी पिछली शिकायत में मोहन सिंह बिष्ट और उनके सहयोगियों का नाम लिया है, मैं उनको ही नाम का जिक्र करना चाहता हूं और आप लिख सकते हैं कि वह मेरे सामने आते हैं तो मैं उन्हें पहचान सकता हूं.'' मुशाहिद ने बताया कि यह सुनकर पुलिस उठकर चली गई. "उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा. वह बस उठकर चले गए."

मुशाहिद को 13 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. अगली सुबह, वह उसी जगह पर गए जहां नशीला पदार्थ खाने के बाद वह होश खो बैठे थे. उन्होंने मुझे 15 अप्रैल को फोन पर बताया, "वह गंगा विहार था और उस जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे जहां उन्होंने मुझे अपना ई-रिक्शा पार्क करने के लिए कहा था." मुशाहिद ने 16 अप्रैल को दिल्ली पुलिस के आयुक्त एसएन श्रीवास्तव को एक शिकायत दर्ज की. 12 दिन बाद दिल्ली के पूर्वी रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार के कार्यालय से उनके मामले का संज्ञान लेते हुए उन्हें ईमेल के जरिए जवाब मिला.

गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारी अद्रीश यादव, जो अस्पताल में मुशाहिद से मिलने गए थे, ने 9 अप्रैल को मुझसे कहा, “मैं मुशाहिद को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उसकी विस्तृत शिकायत दर्ज कराने के लिए बुलाऊंगा.” 4 मई को, मुशाहिद की छुट्टी होने के तीन हफ्ते बाद, मैंने यादव को फोन किया और उनसे पूछा कि जब मुशाहिद ने बिष्ट के नाम का जिक्र किया तो वह अस्पताल से बाहर क्यों चले गए थे. लेकिन यादव ने इस सवाल को बार-बार नजरअंदाज किया और जोर देकर कहा कि उन्होंने मुशाहिद को स्टेशन आने और अपराध के स्थान की पहचान करने के लिए कहा था ताकि वह यह निर्धारित कर सकें कि यह घटना किस थाने के तहत आती है.

मुशाहिद ने मुझे बताया कि उन्हें 28 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद यादव का फोन आया. उसी दिन उन्हें उनकी ईमेल की गई शिकायत की पावती मिली. कॉल के दौरान यादव ने उन्हें अपने रिक्शा की चोरी के बारे में ई-एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा. मुशाहिद ने यादव को बताया कि वह पहले ही घटना के बारे में एक ताजा शिकायत दर्ज कर चुके हैं और जोर देकर कहा कि वह न केवल अपने रिक्शा के बारे में शिकायत दर्ज कराना चाहते थे बल्कि अपनी शिकायत वापस लेने की धमकी के बारे में भी शिकायत दर्ज कराना चाहते थे. यह सुनकर यादव फोन पर ही भड़क गए और कहा कि जब तक मुशाहिद घटना स्थल की पुष्टि नहीं कर देते तब तक वह घटना की जांच नहीं कर सकते. मुशाहिद ने उन्हें मौके पर ले जाने की पेशकश की.

मुशाहिद के अनुसार, यादव ने उसके बाद उनके फोन कॉल का जवाब देना बंद कर दिया. मुशाहिद ने कहा, ''जब भी मैं निर्धारित समय पर पुलिस स्टेशन जाने से पहले उन्हें फोन करता, तो वह मेरा फोन नहीं उठाते. मुझे लगता है वह मुझे तभी बुलाते हैं जब वह कुछ दबाव महसूस करते हैं." उन्होंने कहा कि 28 अप्रैल को उनकी शिकायत की ईमेल पावती और उस दिन यादव की कॉल के बाद से किसी पुलिस अधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया.

संयुक्त पुलिस आयुक्त के जिस कार्यालय से मुशाहिद की ईमेल की गई शिकायत को संदर्भित किया गया था, उसने मुझे सूचित किया कि मुशाहिद की शिकायत को उत्तर पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त संजय कुमार सेन के कार्यालय में भेज दिया गया है. सेन ने ईमेल किए गए प्रश्नों का जवाब नहीं दिया. मैंने यादव से पूछा कि क्या उन्हें डीसीपी या जेसीपी कार्यालय से कोई ताजा निर्देश मिला है लेकिन उन्होंने मामले पर आगे चर्चा करने से इनकार कर दिया.

अपने ऊपर लगे आरोपों के बारे में पूछे जाने पर विधायक बिष्ट ने मुझे बताया कि उन्हें इस मामले के बारे में कुछ भी नहीं पता है. "यह एक झूठी शिकायत है और कुछ लोग मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं," उन्होंने कहा. "वह पुलिस को भी परेशान कर रहे हैं." बिष्ट ने आगे कहा कि उन्हें दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा से संबंधित किसी भी जांच के लिए नहीं बुलाया है. जैसा कि मैंने कारवां के लिए पहले भी एक रिपोर्ट की थी कि दिल्ली पुलिस ने बिष्ट और अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ दिल्ली हिंसा में हिंसक भीड़ का नेतृत्व करने की कई शिकायतों की अनदेखी की है.

मुशाहिद ने कहा, “पुलिस ने डकैती की शिकायत दर्ज करने की भी कोशिश की ताकि किसी की मौत होने पर भी डकैती का ही मामला बने.”