बीते 18 अक्टूबर को पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने डेरा सच्चा सौदा सिरसा के मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह और चार अन्य दोषियों - अवतार, जसबीर, कृष्ण कुमार, सबदिल- को डेरे के पूर्व श्रद्धालु और प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है. इसके साथ ही अदालत ने राम रहीम पर 31 लाख और अन्य दोषियों को 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. सजा के बाद राम रहीम आखिरी सांस तक जेल में रहेगा.
साल 2018 में डेरा मुखिया को डेरे में आई श्रद्धालु औरतों से बलात्कार और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड मामले में भी उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है. हालांकि श्रद्धालुओं को नपुंसक बनाने के मामले पर अभी अदालत में सुनवाई जारी है. गौरतलब है कि 12 अक्टूबर को हुई सुनवाई के मौके पर राम रहीम के वकील ने डेरे द्वारा किए जाने वाले समाज कल्याण के काम और राम रहीम की बिगड़ी सेहत का हवाला देते हुए अपने मुव्वकिल के साथ नरमी बरती जाने की अपील की थी.
राम रहीम और कृष्ण कुमार को कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 और 120बी (हत्या एवं आपराधिक षडयंत्र रचना) के तहत सजा सुनाई है. वहीं अवतार, जसबीर और सबदिल को आईपीसी की धारा 302, 120बी और आर्म्स एक्ट के तहत सजा सुनाई है.
रणजीत सिंह की 10 जुलाई 2002 को उनके गांव खानपुर कोलियां (जिला कुरुक्षेत्र) में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. राम रहीम को शक था कि रणजीत ने साध्वियों के यौन शोषण का खुलासा करने वाली गुमनाम चिट्ठी अपनी बहन से लिखवाई है. पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत के बेटे जगसीर सिंह ने 2003 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी. उच्च न्यायालय ने बेटे के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जिसके बाद सीबीआई ने राम रहीम समेत पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था. 2007 में अदालत ने आरोपियों पर कानून सम्मत धाराएं तय की. हालांकि शुरुआत में इस मामले में राम रहीम का नाम नहीं आया था लेकिन बाद में सीबीआई जांच के दौरान 2006 में राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयानों के आधार पर उसका नाम इस हत्याकांड में जुड़ा.
गुरमीत राम रहीम को अर्श से फर्श तक पहुंचाने में साध्वी बलात्कार मामला, छत्रपति हत्या और रणजीत हत्याकांड मुख्य कारण बने हैं. तीनों मामलों की कड़ियां आपस में गुंथी हुई हैं. इस पूरी घटना में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति नायक के तौर पर उभर कर सामने आते हैं जिन्होंने बेखौफ होकर अपने अखबार “पूरा सच” में डेरे के कुकर्मों को बेधड़क छापा और इसकी कीमत उन्हें अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी.
रामचंद्र छत्रपति के अलावा भी कुछ ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता थे जो उनकी मौत के बाद भी मीडिया की सुर्खियों से दूर जमीनी संघर्ष करते रहे. सीबीआई जांच को लेकर उन्होंने हस्ताक्षर अभियान चलाए, डेरे के हमले झेले, पुलिस ने झूठे मामलों में केस दर्ज का उन्हें जेलों में डाला पर वे झुके नहीं.
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिला की वकील और जन संघर्ष मंच हरियाणा की महासचिव सुदेश कुमारी इन्हीं में से एक हैं. सुदेश और उनका संगठन जन संघर्ष मंच हरियाणा राज्य में लंबे समय से औरतों, दलितों और मजदूरों के मुद्दे उठाता रहा है और उन पर संघर्ष करता रहा है.
साल 2002 में डेरा सिरसा में होते बलात्कारों को उजागर करती एक चिट्ठी सामने आई थी जिसमें इस बात का जिक्र था कि कुरुक्षेत्र जिला का एक मुख्य डेरा श्रद्धालु अपने परिवार के साथ डेरा छोड़ कर अपने गांव लौट आया है. इशारा सीधा रणजीत सिंह की तरफ था. 10 जुलाई 2002 को रणजीत की उसके गांव खानपुर कोलियां में हत्या कर दी गई.
सुदेश कुमारी मुझे एक लंबी मुलाकात में बताया, “रणजीत की हत्या के बाद जब हम उनके परिवार से मिले और उनकी बहन के साथ बात की तो उससे हमें पता चला कि उस लड़की के साथ भी बलात्कार हुआ था और चिट्ठी में कुरुक्षेत्र की जिस साध्वी का जिक्र है वह वही थी. वह काफी डरी हुई थी. लड़की ने हमें रोते-रोते बताया कि मैं और मेरा भाई तो गुरुमीत राम रहीम को अपना भगवान मानते थे. मेरे भाई ने उसके लिए घर में खास कमरा बनवाया हुआ था. जब भी वह इस इलाके में आता था तो हमारे ही घर पर ठहरता था. लड़की इतनी डरी हुई थी कि उसे लग रहा था कि उसके भाई की तरह उसकी भी हत्या हो जाएगी. लड़की ने हमें डेरे में अन्य साध्वियों के साथ हुए बलात्कार और मार-पीट के बारे भी बताया. उसका कहना था कि पुलिस उनकी सुन नहीं रही. अगर एक बार उसके भाई की हत्या की जांच सीबीआई जैसी बड़ी एजेंसी से हो जाए तो सारा मामला खुल जाएगा.”
जन संघर्ष मंच हरियाणा अपनी तरफ से जांच कर ही रहा था कि इसी बीच पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की भी हत्या हो गई. यह इस मामले में दूसरी हत्या थी. कातिलों को मौके पर ही पकड़ लिया गया था और वे डेरे के लोग निकले. उन्होंने बयान दिया कि उन्हें डेरे के प्रबंधक किशनलाल ने भेजा था. सुदेश बताती हैं, “जब छत्रपति की अस्थियां कुरुक्षेत्र पहुंचीं तो एक शोक सभा हुई जिसमें पत्रकार भाईचारा और कई जनसंगठन शामिल हुए. इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया कि डेरे की सीबीआई जांच के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जाए जिससे पत्रकार छत्रपति, रणजीत और पीड़ित साध्वियों को इंसाफ मिल सके.
पर डेरे के आतंक के चलते किसी ने भी इस प्रस्ताव में उल्लेखित काम को आगे नहीं बढ़ाया. लेकिन जन संघर्ष मंच हरियाणा ने पहलकदमी करते हुए सीबीआई जांच की मांग को लेकर पर्चा निकाला जिसका शीर्षक था “हालात बता रहे हैं कि खुद डेरे के मुखिया ने कराए हैं ये हत्याकांड”. इसे बड़े स्तर पर आम लोगों के बीच वितरित किया गया और हर जिले में हस्ताक्षर अभियान चलाया.
इस अभियान की शुरुआत कुरुक्षेत्र में हर साल आयोजित होने वाले गीता उत्सव (दिसंबर 2002) से की गई जिसमें तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत मुख्यतिथि थे. मौके का फायदा उठाते हुए सुदेश और उनके संगठन ने ब्रह्मसरोवर पर आयोजित कार्यक्रम के बीच में ही बलात्कार और दोनों हत्याओं के मामले को लेकर मोर्चा खोल दिया. गीता उत्सव के बीचोबीच भारी प्रदर्शन हुआ. सुदेश और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. सुदेश ने बताया कि उनके दिमाग में था कि अगर उपराष्ट्रपति के आने के मौके पर मामले को खोला जाए तो शायद इसका कुछ असर पड़े.
इसके बाद जन संघर्ष मंच हरियाणा ने प्रदेश भर में डेरे द्वारा कराई गईं हत्याओं की सीबीआई जांच के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जिसके तहत पर्चे बांटे गए, बसों-ट्रेनों में पोस्टर लगाए गए, लाखों की संख्या में हस्ताक्षर करवाए गए. इस दौरान मंच के कार्यकर्ताओं पर डेरे के लोगों ने संगठित हमले किए. सुदेश बताती हैं, “कोई भी राजनीतिक दल सामने नहीं आया. हमें हत्या की धमकी दी गई, हमारे वीडियो बनाए गए. लेकिन हमने सूझबूझ के साथ सार्वजनिक जगहों, कॉलेजों, बस-अड्डों बगैरह पर विभिन्न जिलों में कैंप लगाए. उस वक्त हमने 15 जिले कवर किए और प्रचार किया.”
इस अभियान के क्रम में 5 फरवरी 2003 को जब फतेहाबाद जिला में मंच की 14 सदस्यीय टीम पहुंची जिसमें 5 महिलाएं और 9 छात्र थे तो फतेहाबाद बस अड्डे पर 500-700 डेरा समर्थकों ने उन पर हमला कर दिया. यह अब तक का सबसे बड़ा हमला था. मंच की महिला कार्यकर्ताओं के कपड़े फाड़ दिए गए, उनकी चुन्नियां खिंची गईं, मारा-पीटा गया, सारे कागजात फाड़ दिए गए. इसी बीच फतेहाबाद पुलिस मंच कार्यकर्ताओं को थाना सिटी ले गई और यह कहा कि डेरे के लोग हजारों की संख्या में हैं तुम्हारी जान को खतरा है. लेकिन पुलिस ने उल्टा मंच कार्यकर्ताओं के खिलाफ ही आईपीसी की 307 (हत्या की कोशिश), 323, 506, 147, 148 जैसी धाराओं के तहत मामला बना दिया और आरोप यह लगाया गया कि इन्होंने हत्या करने के इरादे से डेरा समर्थकों पर हमला किया.
सुदेश बताती हैं, “धारा 307 में जमानत नहीं हो सकती थी तो हमें हिसार जेल में रखा गया. हम डेढ़ महीना जेल में रहे. पूरा प्रशासन डेरे के साथ मिला हुआ था. हमारे जेल जाने के बाद भी राज्य में बड़े प्रदर्शन हुए. मंच ने अपना अभियान जारी रखा. फतेहाबाद के वकील हरजीत सिंह संधू और उनके साथी वकीलों ने पूरी निडरता से हमारा साथ दिया और पूरे छह साल हमारा केस बिना फीस के लड़ा. उस समय हरियाणा के पत्रकार संघ और कुरुक्षेत्र बार एसोसिएशन ने पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए हमारा समर्थन किया.’’
सुदेश और उनके साथियों को छह साल बाद 10 जून 2009 को इस मामले में दोष मुक्त करार दिया गया. उनके ऊपर लगे आरोप के पक्ष में एक पोस्टर तख्ती की बरामदगी को बतौर सबूत पेश किया गया था. इस पोस्टर तख्ती में राम रहीम मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई थी.
सुदेश अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताती हैं, “जेल से बाहर आने के बाद जब मैं रणजीत के पिता से मिली तो वह बहुत भावुक होकर कर मिले. उनका कहना था कि बेटा आप हमारी खातिर जेल गए. मैंने उन्हें कहा कि आप ऐसा बिलकुल मत सोचो क्योंकि यह हमारे संगठन का कर्तव्य था. उसी समय पीड़ित साध्वी ने भी मुझे कहा की दीदी अगर आप नहीं डरे तो मैं भी बिल्कुल नहीं डरूंगी. सीबीआई जांच के लिए आएगी तो मैं बेखौफ होकर अपने बयान दर्ज कराऊंगी. असल में जन संघर्ष मंच ने लोगों के बीच पसरे डेरे के खौफ को तोड़ा था.”
जन संघर्षों और कानूनी लड़ाइयों के चलते ही 2003 में दोनों हत्याओं के मामले सीबीआई को सौंपे गए. साध्वियों से बलात्कार के मामले पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था.
रणजीत सिंह के गांव के ही तर्कशील सोसाइटी हरियाणा के नेता व तर्कशील पथ पत्रिका के संपादक मास्टर बलवंत सिंह रणजीत सिंह कत्ल मामले में मुख्य गवाहों में से एक थे. उनकी गवाही दूसरे दोनों मामलों में भी काम आई. साध्वी द्वारा लिखी गुमनाम चिट्ठी बलवंत सिंह को भी रजिस्टर्ड पोस्ट से मिली थी. मेरे साथ बातचीत करते हुए बलवंत सिंह बताते हैं कि रणजीत के परिवार के साथ मेरे अच्छे रिश्ते थे. रणजीत के पिता सात बार हमारे गांव के सरपंच रहे. वह एक रसूखदार परिवार है. रणजीत जवानी में ही डेरे का अनुयाई बन गया था. गांव के जमींदार परिवारों के बहुत से नौजवान शराब और दूसरे नशों के आदी होकर अपनी जमीन जायदाद गंवा चुके थे. रणजीत के पिता को इसी बात की तसल्ली थी कि उसका बेटा डेरे में जाने के कारण शराब या दूसरा नशा नहीं करता था. इसलिए उन्होंने रणजीत को डेरा जाने से नहीं रोका. जब रणजीत के घर दो लड़कियों के बाद लड़का हुआ तो उसकी श्रद्धा डेरे के प्रति और बढ़ गई. वह डेरे के बड़े-बड़े सत्संग करवाता था. वह अपने परिवार समेत डेरे में रहने लगा था और उसकी बहन भी डेरे में साध्वी बन गई थी.
मास्टर बलवंत बताते हैं, “मुझे रणजीत के कत्ल के बाद पता चला था की वह डेरा छोड़ कर गांव आ गया था. जब गुमनाम चिठ्ठी मुझे मेरे स्कूल में रजिस्टर्ड डाक के जरिए मिली तो स्कूल के अन्य साथी अध्यापकों ने फोटो स्टेट करवा ली और इस प्रकार यह आग की तरह फैलती गई और स्थानीय डेरा श्रद्धालुओं तक भी पहुंच गई.”
ज्ञात रहे कि उस समय यह गुमनाम चिठ्ठी देश के प्रधानमंत्री, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सभी जिलों के एसपी, मीडिया संस्थानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास भी पहुंची थी. तर्कशील सोसाइटी हरियाणा के मास्टर बलवंत के अलावा यह चिठ्ठी उस समय सोसाइटी के राज्य अध्यक्ष राजाराम हंडियाया को भी प्राप्त हुई थी. राजाराम की भी डेरा मामले में गवाही हुई थी और उन्हें भी डेरा समर्थकों के हमले का शिकार होना पड़ा था .
बलवंत मामले को तफसील में समझाते हुए कहते हैं, “हम दोनों तर्कशील नेताओं ने अपनी सोसाइटी की मीटिंग में वह चिट्ठीयां रखीं और अन्य जन संगठनों से विचार कर मामले की तफ्तीश करने की योजना बनाई. गुमनाम चिठ्ठी बांटे जाने के बारे में पूछताछ करते-करते डेरे के श्रद्धालु कभी दस, कभी बीस, कभी पचास की संख्या में मुझे धमकाने के लिए आने लगे. उन्हें शक था कि चिट्ठी मैंने ही रणजीत के साथ मिल कर लिखवाई और बंटवाई है. मैं उन्हें समझाता रहा कि चिट्ठी मुझे डाक से मिली है और मुझे मिलने से पहले ही दैनिक अखबार अमर उजाला और पंजाब केसरी भी इस चिठ्ठी के आधार पर बिना किसी डेरे का नाम लिए खबर छाप चुके थे. डेरे वाले उस समय तो संतुष्ट होकर चले जाते लेकिन कुछ दिनों बाद फिर आ जाते. एक बार मैं अपनी तर्कशील सोसाइटी का मानसिक रोगों का कैंप लगा रहा था. वहां पर डेरे से जुड़े दो व्यक्ति आए. एक व्यक्ति जो अपने पजामे के साथ पिस्तौल लटकाए हुआ था मुझसे पूछने लगा क्या तुम्हें चिठ्ठी रणजीत ने दी है? जब मैंने उससे कहा कि मैं कितनी बार तुम लोगों को जवाब दे चुका हूं कि मुझे चिठ्ठी डाक से मिली है तो वह गुस्से से बोला या तो यह चिट्ठी तुमने लिखी है या रणजीत ने तुमसे लिखवाई है. रणजीत को तो हम मारेंगे ही, छोड़ेंगे तुम को भी नहीं. तभी मैंने भी तैश में आकर जोर से बोला तुम अभी चला लो गोली. मेरे जोर से बोलने पर कैंप में आए लोग एकदम मेरे पास इकठ्ठा हो गए तो वे वहां से चले गए. मुझे बाद में पहचान हुई कि ये दोनों सबदिल और जसबीर थे (जिन्हें अभी राम रहीम के साथ सजा हुई है). उस दिन से मैं सतर्क रहने लगा. कुछ दिनों बाद रणजीत का कत्ल हो गया.’’
“शुरू में रणजीत के कत्ल के बाद उनके पिता ने एफआईआर में शक के आधार पर अपने गांव के ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के नाम लिखवाए थे पर रामचंद्र छत्रपति के कत्ल के बाद ही परिवार का शक डेरे की तरफ गया. जब उन्होंने पुलिस के पास दुबारा जाकर राम रहीम के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने का प्रयास किया तो पुलिस ने कहा कि अब एफआईआर बदली नहीं जा सकती आप कोई और पक्का सबूत या गवाह लेकर आओ. फिर मैंने सामने आकर गवाही दी. डेरा मुखिया को कठघरे में खड़ा करने में मेरी गवाही बहुत काम आई. जांच के समय जहां-जहां मेरी गवाही की जरूरत पड़ी मैं पीछे नहीं हटा. गवाही देने के समय भी मुझे लगातार धमकियां दी गईं, मेरा पीछा किया गया और पैसे का लालच भी दिया गया. लेकिन मैंने अपने जमीर की आवाज सुनी और सच का साथ दिया.”
रणजीत सिंह हत्या मामले में राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद बलवंत सिंह महसूस करते हैं, “यह रणजीत के परिवार की 19 साल की कड़ी तपस्या और खतरों से जूझने का फल है कि खुद को भगवान घोषित करने वाले, दूर तक राजनीतिक पहुंच वाले गुरमीत राम रहीम को कड़ी सजा मिल पाई है. इससे संदेश जाएगा कि कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं. मैं कामना करता हूं कि हमारी अदालतों में न्याय पाने के लिए इतना लंबा समय नहीं लगेगा. इस मौके पर मैं बहादुर साध्वियों, रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति और उसके परिवार की हिम्मत और संघर्ष को भी याद करता हूं. और मैं यह कहना नहीं भूलता कि जन संघर्ष मंच हरियाणा जैसा संगठन अगर जमीन पर संघर्ष न करता तो शायद यह इंसाफ न मिल पाता.”