उन्नाव बलात्कार मामला : इंसाफ करने में विफल पुलिस और न्यायपालिका

5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की 23 वर्षीय महिला को पांच लोगों ने उस वक्त जिंदा जला दिया जब महिला रायबरेली में चल रहे अपने बलात्कार के मामले की सुनवाई के बाद अदालत से बाहर आ रही थी. अविशेक दास/सोपा इमेजिस/लाइट रॉकेट/गैटी इमेजिस
07 December, 2019

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5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की 23 वर्षीय महिला को पांच लोगों ने उस वक्त जिंदा जला दिया जब महिला रायबरेली में चल रहे अपने बलात्कार के मामले की सुनवाई के बाद अदालत से बाहर आ रही थी. महिला ने पिछले साल दिसंबर में रायबरेली अदालत में दो लोगों पर उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था. आपराधिक मामले में कार्रवाई शुरू करने के लिए किए अपने आवेदन में महिला ने बताया था कि उन्नाव जिले के उसके गांव के रहने वाले शिवम त्रिवेदी ने रायबरेली लाकर उसके साथ बलात्कार किया, बलात्कार का वीडियो बनाया और इसके बाद कई बार उसका यौन शोषण किया. शिवम त्रिवेदी ने उसे धमकी दी की अगर वह इनकार करेगी तो उस वीडियो को सार्वजनिक कर देगा. महिला ने अदालत को बताया कि त्रिवेदी ने उसे रायबरेली के कमरे में एक महीने तक बंद रखा और वहां उसके साथ बार-बार बलात्कार किया. 12 दिसंबर 2018 को महिला ने आवेदन दायर किया कि शिवम और उसके दोस्त शुभम त्रिवेदी ने बंदूक की नोक पर उसका बलात्कार किया जिसके बाद उसने रायबरेली के लालगंज पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की. शिकायत के आठ दिन बाद महिला ने पुलिस अधीक्षक से लिखित शिकायत की लेकिन एसपी ने भी कार्रवाई चालू नहीं की. इसके बाद महिला ने जिला अदालत में आरोपी व्यक्तियों की जांच का निवेदन किया. मार्च 2019 में कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने आरोपी दो लोगों के खिलाफ एफआईआर दायर की. लेकिन पुलिस और न्यायपालिका महिला को इंसाफ नहीं दे सके.

आरोपी शिवम को हिरासत में लिए जाने के 2 महीने बाद, 25 नवंबर 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जमानत पर रिहा कर दिया. पुलिस ने मीडिया को बताया है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही शिवम फरार चल रहा था. 10 दिन बाद जब महिला अदालत में सुनवाई के लिए आई तो शिवम, उसके पिता राम किशोर, शुभम और उसके पिता हरिशंकर और इन लोगों के एक साथी उमेश वाजपेयी ने हिंदू नगर के रेलवे स्टेशन में उस पर हमला कर दिया और मिट्टी का तेल डालकर उसे जला दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, जलती हुई वह महिला एक किलोमीटर तक चलती रही. 6 दिसंबर की रात 11.40 में, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मौत हो गई.

उन्नाव जिले में की यह दूसरी घटना है जो राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है. यह घटना हैदराबाद की पशु चिकित्सक के बलात्कार और आग लगाकर हत्या करने के थोड़े ही दिन बाद की है. लेकिन उन्नाव के दोनों मामलों में देखी गई प्रतिक्रियाएं, पुलिस और जनता की, हैदराबाद वाले मामले से एकदम उल्टी हैं. हैदराबाद वाले मामले में पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के दो दिनों के अंदर ही आरोपियों को पकड़ा लिया था लेकिन उन्नाव के मामले में रायबरेली जिला अदालत से आदेश होने तक पुलिस ने त्रिवेदियों के खिलाफ दर्ज शिकायत पर कार्रवाई नहीं की थी. भारतीय जनता पार्टी के विधायक कुलदीप सेंगर पर 17 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगने के लगभग एक साल बाद, अप्रैल 2018 में गिरफ्तार किया गया. दोनों मामलों के आरोपियों की सामाजिक पृष्ठभूमि अलग-अलग है. हैदराबाद मामले के आरोपी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के थे, लेकिन त्रिवेदी ब्राह्मण हैं और सेंगर ठाकुर.

इस साल जुलाई में जब सेंगर के खिलाफ शिकायत करने वाली महिला अपने वकील और चाची और मौसी के साथ रायबरेली आ रही थी, तो उनकी कार एक ट्रक से टकरा गई. इस घटना में उसके दोनों रिश्तेदारों की मौत हो गई और शिकायतकर्ता और वकील गंभीर रूप से घायल हो गए जिन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा. अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सेंगर के खिलाफ चल रही सुनवाई 45 दिन के अंदर पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन यह केस अब तक चल रहा है. उन्नाव के दोनों ही मामले उत्तर प्रदेश सरकार की कानून और व्यवस्था के दावों की पोल खोल देते हैं.

23 साल की महिला के मामले में पुलिस ने कई अवसरों पर दावा किया है कि महिला पर हमला होने के फौरन बाद ही उसने पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. 6 दिसंबर को यूपी पुलिस ने ट्वीट किया, “पिछले दो सालों में 5178 पुलिस मुठभेड़ में 103 अपराधी मारे गए हैं और 1859 घायल हुए हैं.” हैरान करने वाली बात है कि पुलिस ने त्रिवेदियों के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में मामला दर्ज नहीं किया और इस साल 5 दिसंबर तक शुभम फरार रहा. उस महिला को जला दिए जाने के बाद सोशल मीडिया और मीडिया में पुलिस के वक्तव्य में पुलिस ने शिवम के खिलाफ शिकायत का उल्लेख तो किया है लेकिन अदालत से आदेश मिलने तक मामला दायर न करने कि अपनी सफलता की बात नहीं की. जब मैंने राज्य पुलिस के मीडिया सेल के इंचार्ज को फोन किया तो उन्होंने यह कहते हुए कि इस मामले के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, मेरा फोन बीच में ही काट दिया.

2013 में, ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि बलात्कर सहित गंभीर अपराधों के मामले में पुलिस को सात दिनों के भीतर हर हाल में एफआईआर दर्ज करनी होगी. महिला ने अपने निवेदन में अदालत से निर्देश न होने तक पुलिस द्वारा कार्रवाई न करने का गंभीर आरोप लगाया था. बाद में आवेदन को एफआईआर मान लिया गया. एफआईआर के मुताबिक, कहे गए आरोप जनवरी और दिसंबर 2018 के दौरान हुए थे.

23 साल की उस महिला ने अपनी शिकायत में बताया है कि शिवम ने उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया और बहला-फुसलाकर रायबरेली लाकर उसके साथ बलात्कार किया और वीडियो बना लिया. उसने लिखा है कि इसके बाद शिवम उसे ब्लैकमेल करने लगा कि अगर वह उसे जबर्दस्ती करने से रोकेगी तो वह वीडियो को सार्वजनिक कर देगा. महिला ने लिखा है कि वीडियो और शादी का झूठा वादा कर शिवम त्रिवेदी ने उसके साथ उसकी इच्छा के खिलाफ बार-बार बलात्कार किया.

जब महिला ने शादी करने का दबाव डाला तो शिवम ने रायबरेली में किराए का एक कमरा लिया और महिला को वहां कैद कर बलात्कार करने लगा. शिकायतकर्ता के अनुसार, “शिवम ने उससे कहा था कि वह उसे कमरे के बाहर जाने नहीं देगा और उस पर नजर रखेगा.” शिवम उसे धमकी देता था कि अगर वह बाहर गई तो वह उसे जान से मार देगा. इस दौरान शिवम उसे अलग-अलग शहरों में ले जाता था और दबाव डालकर उसका बलात्कार करता था.

इस बीच जब महिला ने शादी पर जोर दिया तो 9 जनवरी 2018 को शिवम उसे सिविल कोर्ट ले गया और शादी का पंजीकरण सर्टिफिकेट तैयार करवाया. उसने सर्टिफिकेट तो बनाकर तैयार कर लिया लेकिन आधिकारिक रूप से शादी दर्ज नहीं कराई. महिला ने बताया था कि वह रायबरेली के किराए के कमरे में एक महीने तक रही जिसके बाद शिवम उसे वापस गांव ले गया और उसके मां-बाप के पास छोड़ आया. इसके बाद शिवम शादी की बात को टालने लगा और आखिर में उसने धमकी दी कि वह शादी नहीं करेगा और उसके दोस्त और वह मिलकर उसे और उसके परिवार को मार डालेंगे. अपनी शिकायत में महिला ने लिखा है कि मार दिए जाने के डर से वह घबरा गई और निराश होकर रायबरेली के साकेत नगर में अपनी चाची के पास आकर रहने लगी.

एफआईआर में लिखा है कि 12 दिसंबर 2018 को शिवम ने किसी तरह उसके घर का पता लगा लिया और “शुभम त्रिवेदी के साथ मोटरसाइकिल पर वहां आ धमका.” दोनों ने उससे शिवम के पास लौट आने की मिन्नतें कीं. इन लोगों ने महिला से कहा कि वे लोग उसके साथ मंदिर जाएंगे और “भगवान पर हाथ रखकर साथ रहने की प्रतिज्ञा लेंगे.” मंदिर ले जाने का झूठा वादा कर शिवम और शुभम उसे एक खेत में ले गए जहां बंदूक दिखाकर दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया. शिकायतकर्ता के अनुसार, वे लोग उसे खेत में छोड़ कर चले गए.

इस घटना के बाद महिला ने पुलिस से संपर्क किया. पहले उसने लालगंज थाने में शिकायत की और बाद में रायबरेली एसपी के समक्ष. लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद महिला ने भारतीय दंड संहिता की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच की मांग की शिकायत दर्ज की. मार्च 2019 में पुलिस ने दोनों के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म और आपराधिक धमकी का मामला दर्ज किया. लेकिन एफआईआर के बावजूद, सितंबर तक पुलिस ने किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया.

बाद में शिवम और शुभम ने रायबरेली सत्र न्यायालय में अंतरिम जमानत की अर्जी डाली. दोनों के वकील ने जिरह की कि दोनों के खिलाफ पहले कोई आपराधिक मामला नहीं है और इन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने से उनकी बदनामी होगी. लेकिन सत्र न्यायाधीश ने उनके आवेदन को अपराध की गंभीरता के मद्देनजर “असंतोषजनक” बताकर खारिज कर दिया. इसके अगले महीने पुलिस ने शिवम को गिरफ्तार कर लिया लेकिन शुभम गिरफ्तारी से बचता रहा. बाद में अदालत ने शुभम को भगोड़ा घोषित कर दिया.

दो महीने बाद शिवम ने जमानत की अर्जी सत्र न्यायालय के सामने पेश की. इस बार शिवम के वकील ने अदालत को बताया कि महिला और शिवम शादीशुदा हैं और महिला उसकी पत्नी है. अदालत के आदेशों से पता चलता है कि महिला को सरकारी वकील दिया गया था. सरकारी वकील ने इस बात से इनकार किया कि दोनों शादीशुदा हैं और अदालत को बताया कि शिवम ने महिला के साथ बलात्कार किया है और उसका वीडियो बनाया है और साथ ही अपने दोस्त के साथ महिला का सामूहिक बलात्कार भी किया है. 25 अक्टूबर को अदालत ने शिवम की जमानत याचिका खारिज कर दी.

इस साल नवंबर में शिवम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के समक्ष जमानत याचिका डाली. कोर्ट के आदेश के अनुसार, आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि 9 जनवरी 2019 को शिवम और महिला ने शादी कर ली थी और महिला ने एफआईआर इसलिए डाली थी क्योंकि शिवम के माता-पिता ने विवाह को मानने से इनकार कर दिया था. शिवम के वकील ने अदालत से यह भी कहा कि महिला ने बलात्कार की एफआईआर दो दिन बाद दर्ज कराई है. अदालत के सामने बस विवाह का समझौता पेश किया, प्रमाण पत्र नहीं.

अदालत में दर्ज रिकॉर्ड से पता चलाता है कि महिला को मिले सरकारी वकील ने यह बात मानी कि महिला ने बलात्कार की शिकायत दो साल तक नहीं की थी. उस वकील ने इस बात का जिक्र नहीं किया कि सामूहिक दुष्कर्म के बाद पुलिस ने महिला की शिकायत दर्ज नहीं की थी और न ही उस वकील ने मामले का पूरा संदर्भ अदालत के सामने पेश किया. इसके विपरीत सरकारी वकील ने अदालत से सिर्फ इतना कहा कि शिवम ने महिला से शादी का झूठा वादा किया था.

हाईकोर्ट के जज राजीव सिंह ने शिवम को जमानत पर रिहा कर दिया. जमानती आदेश में जज ने लिखा है, “दोनों पक्षों की जिरह, उपलब्ध सामग्री, और परिस्थितियों और तथ्यों पर विचार करने के बाद, मामले की सच्चाई पर किसी तरह का विचार व्यक्त किए बिना, मेरा विचार है कि आवेदनकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.” जमानत की पहली शर्त थी कि शिवम, “गवाह को प्रभावित करने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या अपनी आजादी का गलत फायदा उठाने का प्रयास नहीं करेगा.” 10 दिन बाद औरत को जलाने के जुर्म में शिवम को गिरफ्तार किया गया.

फिलहाल पुलिस ने सभी पांचों पुरुषों को गिरफ्तार कर लिया है और उन पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया है. अब यह मामला हत्या का बन जाएगा.