10 नवंबर को तमिलनाडु के धरमपुरी जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र सित्तीलिंगी में दो हजार से अधिक मलयवासी आदिवासियों ने प्रदर्शन किया. यह प्रदर्शन एक ऐसे अपराध के खिलाफ हुआ था जो गांव में पहले कभी नहीं सुना गया था. अपराध था- एक 16 साल की नाबालिक युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या. आदिवासी केवल इस बात का विरोध नहीं कर रहे थे कि पुलिस दोषियों को पकड़ने में नाकाम रही है बल्कि स्वयं पुलिस की लापरवाही और मामले में उसकी उदासीनता और साथ ही खस्ताहाल सरकारी अस्पताल के खिलाफ भी प्रदर्शन कर रहे थे. इस अस्पताल में दुष्कर्म के बाद युवती को भर्ती किया गया था. नाम न बताने की शर्त पर 38 वर्षीय नर्स ने मुझे बताया, “जब पुलिस लड़की को लेकर जा रही थी तो हमें विश्वास था कि वे उसकी ठीक तरह से रेखदेख करेंगे. पुलिस हम आदिवासियों की कभी चिंता नहीं करती तब भी इस बार लगा था कि इतने गंभीर मामले में वह अपना काम ठीक तरह से करेगी. अब हमें उन लड़कों की ही तरह पुलिस भी हत्यारी लग रही है.”
2 दिन बाद आदिवासी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए 16 वर्षीय युवती के शव को 200 से अधिक पुलिसबल के साथ सित्तीलिंगी लाया गया. प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से दबाने के पुलिस के रिकॉर्ड के मद्देनजर यहां के रहने वालों ने भारी संख्या में गांव में पुलिस की उपस्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की. परिणामस्वरूप जिन भी लोगों से मैंने बात की उनमें से अधिकांश अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे. सित्तीलिंगी में कॉलेज के एक 21 वर्षीय छात्र ने मुझे बताया, “हमने लड़कों को कह रखा था कि वे अंतिम संस्कार की विडियो बना लें क्योंकि हम जानते थे कि पुलिस हिंसा कर सकती है और बाद में प्रदर्शनरियों पर इसका आरोप लगा सकती है.“
स्थानीय लोगों का मानना है कि पुलिस अपराध की जांच में सुस्ती के लिए ही नहीं बल्कि दुष्कर्म को मात्र इसका प्रयास दिखा कर छिपाने की कोशिश करने की भी दोषी है. पुलिस 16 वर्षीय युवती को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध नहीं करा सकी और उसने यौन हिंसा की सूचना अन्य एजेंसियों को नहीं दी. इसके अलावा और भी कई तरह की अनदेखी हुई जिसकी वजह से युवती की मौत हो गई. युवती की मौत धरमपुर शासकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में हुई जो यहां का जिला अस्पताल है. एफआईआर दायर करने से लेकर युवती की मौत तक की परिस्थितियों से लापरवाहियों का पता चलता है. लोग मानते हैं कि इस तरह की लापरवाही आदिवासियों के प्रति व्यवहार में आम है.
3 नवंबर को 16 वर्षीय नाबालिग लड़की धरमपुर के पप्पीरेड्डीपट्टी शहर के आवासीय स्कूल से दिवाली की छुट्टी में घर आई थी. दो दिन बाद उसके गांव के समुदाय के 2 आदमियों- ए सतीश और पी रमेश- ने गांव की एक नहर के किनारे कथित तौर पर उसका बलात्कार किया. रोते हुए उस युवती की 45 वर्षीय मां ने उस घटना के बारे में बताया जिसके बारे में मौत से पहले बेटी ने उन्हें बताया था. आरोपियों ने अपनी लुंगी निकाल कर लड़की के मुंह में ठूंस दी थी ताकि वह चिल्ला न सके. उसके कपड़े उतारे और उन कपड़ों से उसके हाथों को पीछे बांध दिया और फिर बारी बारी से उसका बलात्कार किया. लड़की का भाई जब उसका नाम पुकारता हुआ उसे ढूंढ रहा था तब उसकी आवाज सुन कर दोनों भाग गए और लड़की घिसटते हुए घर पहुंची.
जब लड़की घर पहुंची तो उसके शरीर पर चोट और खरोंच के निशान थे और वह बहुत मुश्किल से चल पा रही थी. इसके तुरंत बाद उसके मां-बाप और भाई उसे 12 किलोमीटर दूर कोट्टापट्टी गांव में स्थित सबसे नजदीकी पुलिस स्टेशन ले गए. दुष्कर्म की शिकार युवती के 24 वर्षीय भाई ने मुझे बताया, “पहले तो कांस्टेबल ने शिकायत दर्ज करने से ही मना कर दिया. फिर बाद में 2000 रुपए रिश्वत देने और तमिलनाडु पुलिस की हेल्प लाइन में फोन करने के बाद रिपोर्ट दर्ज हो सकी.” भाई का कहना है, “पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया और मामले को छिपाने में लग गई क्योंकि वे लोग सतीश की मां के अवैध शराब के व्यवसाय में लिप्त हैं और उसे बचाना चाहते हैं.”
रिश्वत देने के बाद परिवार ने मौखिक शिकायत दर्ज कराई जिसमें सतीश और रमेश पर बलात्कार का आरोप लगाया. लेकिन कोट्टापट्टी पुलिस ने यौन अपराधों से बाल सुरक्षा कानून के तहत सामूहिक दुष्कर्म के प्रयास का मामला दर्ज किया. एफआईआर के साथ नत्थी हस्तलिखित शिकायत में भी 16 वर्षीय नाबालिग के साथ बलात्कार की कोशिश बताया गया है जबकि परिवार ने जोर देकर कहा है उन्होंने पुलिस को कहा था कि यह बलात्कार है और जो उन्हें युवती ने बताया था वह सब उन लोगों ने पुलिस को बताया. उस शिकायत में उस नाबालिक युवती और उसके पिता के हस्ताक्षर हैं. परिवार का कहना है कि लड़की ने शिकायत पर हस्ताक्षर नहीं किए थे और उनके पिता-जो एक अनपढ़ दिहाड़ी मजदूर हैं-ने यह समझकर साइन किया कि पुलिस ने वही लिखा होगा जो उन्होंने बताया है.
इस मामला में अपराध प्रक्रिया नियम में स्थापित पड़ताल के मानदंडों का कई स्तरों पर उल्लंघन हुआ है. मानक प्रक्रिया के अनुसार पुलिस के लिए जरूरी है कि जिस महिला पर बलात्कार का प्रयास हुआ है या जिसका बलात्कार हुआ है उसकी 24 घंटे के भीतर चिकित्सीय जांच की जाए. धरमपुरी के कार्यकारी पुलिस महानिरीक्षक डी मंगेश कुमार इस घटना के वक्त 2 हफ्ते की छुट्टी पर थे और जिला कलेक्टर एस मलारविझी का कहना है कि इस बालिका को सित्तीलिंगी से 45 किलोमीटर दूर हरूर के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया था. लेकिन परिवार इस दावे को खारिज करता है. परिवार वालों का कहना है कि उन सभी लोगों को उस लड़की के साथ ही अस्पताल के बाहर बैठाया गया और एक रजिस्टर में हस्ताक्षर कराए गए वह भी बिना यह बताए कि क्या और किस पर हस्ताक्षर कराया जा रहा है. लड़की के भाई का कहना है, “हममें से कोई भी अस्पताल के भीतर नहीं गया. पुलिस वालों ने अंदर जाकर डॉक्टर से बातचीत की थी.
सलेम के पर्यावरण कार्यकर्ता पीयूष मानुष ने गांव वालों के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था. उन्होंने बताया कि वह हरूर के अस्पताल की स्त्री रोग डॉक्टर आर मातेश्वरी से संपर्क बनाए हुए हैं जिसका दावा है कि उसने युवती की मेडिकल जांच की थी. मानुष ने बताया, “डॉक्टर ने मुझे बताया कि सफाई में वीर्य नहीं मिला क्योंकि जांच घटना के दो दिन बाद की गई थी. लेकिन झिल्ली टूटी हुई थी जिससे बलात्कार का संकेत मिलता है. और यह घटना के पुलिसिया विवरण के खिलाफ है.” उन्होंने बताया कि डॉक्टर का दावा है कि युवती के शरीर पर चोट के निशान नहीं थे. लेकिन परिवार वालों का कहना है कि उसकी पीठ और पेट में चोट के निशान थे और चेहरे में सूजन और काटने के निशान थे.
मैंने मातेश्वरी को ढेरों कॉल और संदेश भेजे और उनका मत जानना चाहा पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और मेडिकल रिपोर्ट भी परिवार को नहीं सौंपी गई.
एक दूसरी महत्वपूर्ण प्रक्रियागत गड़बड़ी में, नियम के विपरीत पुलिस ने उस नाबालिग लड़की को अपना वक्तव्य दर्ज कराने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया. मानुष कहते हैं, “यह सिर्फ लापरवाही का मामला नहीं है बल्कि पुलिस द्वारा किया गया एक आपराधिक षड्यंत्र है जिसमें वह पहले से बिगाड़ दिए गए मामले को छिपाने का प्रयास कर रही थी. न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास न ले जाकर युवती और उसके परिवार को बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) के बालगृह ले जाया गया जो किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम) के तहत धरमपुर के करीब कुरिंजी नगर में स्थापित है.
परिवार वालों का कहना है कि बालगृह में उन्हें एक बार फिर 2000 रुपए रिश्वत देने को कहा गया लेकिन यह नहीं बताया कि क्यों. परिवार के पास पैसे नहीं थे तो पुलिस और सीडब्लूसी के अधिकारियों ने उन्हें वापस सित्तीलिंगी भेज दिया. दूसरे दिन अपनी बकरियों को बेच कर वे लोग 2000 रुपए लेकर वापस आए.
बालिका को बालगृह ले जाना निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन था. पास्को कानून के अनुसार इस तरह के अपराध के बारे में सीडब्लूसी को पुलिस को सूचना देना आवश्यक है. लेकिन बालगृह में भर्ती करने की कोई आवश्यकता कानून में नहीं है. पुलिस ने परिवार को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी कि उन्हें वहां क्यों ले जाया गया. युवती के भाई का कहना है, “उन्होंने मेरे परिवार से कहा कि ये वह जगह है जहां पापा को आना होता है.”
युवती के भाई ने बताया, “हमने उनसे कहा कि कम से कम मेरी मां को वहां रुकने दिया जाए लेकिन उन लोगों ने इस बात से इनकार कर दिया और हमें वापस भेज दिया.” मानुष ने जोर देकर कहा कि नाबालिग लड़की की कस्टडी लेकर सीडब्लूसी ने गैरकानूनी काम किया है. वे कहते हैं, “इसे गरीब बच्चों और ऐसे बच्चे जो सुरक्षा की दृष्टि से परिवार में वापस नहीं जा सकते और जो परिवार की हिंसा से पीड़ित हैं उन्हें सीडब्लूसी में रखा जाता है.” “यदि राज्य को यह लगा था कि युवती को इलाज की जरूरत नहीं है तो युवती को परिवार के हवाले कर देना चाहिए था.”
बालगृह में ले जाए जाने के एक दिन बाद 7 नवंबर को नाबालिग युवती की तबीयत और खराब हो गई. उसकी योनि से रक्त का रिसाव हो रहा था और उसे उल्टियां हो रही थी. बालगृह की स्टाफ मुरुगम्मल एन और वी शालिनी, युवती को शहर के मेडिकल कॉलेज ले गईं. परिजन ने बाताया कि गंभीर मेडिकल हालात के बावजूद सीडब्लूसी के स्टाफ ने उन लोगों से कहा कि डॉक्टरों को बलात्कार के बारे में ना बताएं और सिर्फ उल्टी की शिकायत करें. युवती की मां का कहना है, “सीडब्लूसी ने हमें बताया कि बलात्कार का जिक्र न करें क्योंकि परिवार की बदनामी होगी और मामला अधिक जटिल और महंगा कानूनी मामला बन जाएगा.” वह कहती हैं, “काश मैंने उन लोगों की बात नहीं सुनी होती तो शायद आज मेरी बेटी जिंदा होती.”
मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाने के 3 दिन बाद नाबालिग लड़की की तबीयत अचानक से बहुत खराब हो गई. सुबह 9 बजे से कुछ देर बाद आईसीयू में भर्ती कराने के महज 15 मिनट बाद उसे मृत घोषित कर दिया. डिस्चार्ज समरी के अनुसार, बालगृह की वार्डन आर पुनिता ने युवती की मौत होने के बाद ही डॉक्टरों को बलात्कार की बात बताई थी.
डिस्चार्ज समरी में लिखा है कि अस्पताल में भर्ती कराए जाने के वक्त लड़की को “चक्कर और उल्टियों के दौरे पड़ रहे थे और उसे चक्कर आने का संदेह था.” उस रिपोर्ट में आगे लिखा है कि बालिका के सिर का सीटी स्कैन करने से पता चलता है मस्तिष्क में सूजन थी और दिमाग में चोट पहुंची थी. परिवार के वकील सुभाष मोहन के अनुसार परिवार को 6 दिसंबर के दिन हरूर सत्र न्यायालय में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट प्राप्त हुई जिसमें मौत के लिए दम घुटने की आशंका व्यक्त की गई थी. उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम की प्राथमिकी से यह संकेत मिलता है कि 16 वर्षीय लड़की का बलात्कार हुआ था.
तिरु एमएस सर्वानन, धरमपुर सीडब्लूसी के अध्यक्ष, ने मुझे बताया कि जब पुलिस नाबालिग लड़की को बालगृह लेकर आई थी तो उसने बलात्कार का प्रयास बताया था और मेडिकल रिपोर्ट जमा नहीं की थी. वह कहती हैं कि यही वो कारण है जिसके कारण स्टाफ ने मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को नहीं बताया कि 16 वर्षीय नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ है. जब मैंने पूछा कि तब क्यों सीडब्लूसी के स्टाफ ने युवती के परिजन को यह कहा कि डॉक्टरों से रेप के बारे में न बताए. तो अध्यक्ष ने कहा कि पीड़िता के परिजन ने स्टाफ के निर्देशों का गलत वर्णन किया. उन्होंने कहा कि परिवार ने सीडब्लूसी के स्टाफ को बलात्कार की बात नहीं बताई थी. उन्होंने संदेह जाहिर किया कि शायद पुलिस ने उन लोगों को धमकी दी थी.
सर्वानन ने दावा किया कि नाबालिग लड़की के शरीर पर चोट के निशान नहीं थे और उसकी योनि से रक्त का रिसाव नहीं हो रहा था. इस दावे को परिवार वाले गलत बताते हैं. मैंने पीड़िता के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया था और उसके चेहरे, पीठ और जांग पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. जब मैंने पूछा कि पीड़ित को सीडब्लूसी ने भर्ती करने से इनकार क्यों नहीं किया जबकि परिवार पर लापरवाही और गलत व्यवहार का कोई आरोप नहीं था तो सीडब्लूसी के अध्यक्ष का कहना था कि तमिलनाडु में आमतौर पर मजिस्ट्रेट के पास ले जाने से पहले पीड़िता को सीडब्लूसी को सौंप दिया जाता है. हालांकि यह प्रक्रिया से इतर बात है. मानुष ने मुझे बताया कि ठेका मजदूरों को लगाने और लापरवाही और अस्पष्ट अधिकार के कारण सीडब्लूसी रोजाना के कुप्रबंधन और लापरवाही वाली संस्था बन कर रह गई है. इस तरह की घटनाएं हमेशा होती रहती हैं लेकिन लड़की की मौत के कारण इस बार चर्चा में आ गई.
कई बार फोन करने और संदेश देने के बावजूद मैं इस केस के जांच अधिकारी मंगेश कुमार पी लक्ष्मी से संपर्क स्थापित नहीं कर पाया और जब यह रिपोर्ट छपने जा रही थी तब तक मुझे उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
बालिका की मौत के बाद सित्तीलिंगी और मेडिकल कॉलेज के बाहर एक साथ कई प्रदर्शन हुए. उस वक्त तक पुलिस की जांच आगे नहीं पड़ी थी. एफआईआर में बलात्कार का अपराध शामिल नहीं किया गया था और युवती ने जिन लोगों की पहचान की थी उनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया था. सित्तीलिंगी के स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले भी ग्राम पंचायत ने, जिसे स्थानीय भाषा में उरकेट्टु कहा जाता है, सतीश और रमेश को दुर्व्यवहार के लिए झाड़ लगाई थी. 2017 में एक नहा रही महिला का वीडियो बनाते सतीश पकड़ा गया था. रमेश एक प्रवासी मजदूर है जो तिरूपुर की एक कपड़ा मिल में काम करता है. वह दारू पीकर अपनी बीवी को पीटने के लिए बदनाम है और उसकी बीवी उसे छोड़कर जा चुकी है.
तेज हो रहे विरोध को शांत करने के लिए 11 नवंबर को जिला कलेक्टर मलारविझी और कार्यवाहक महानिरीक्षक कुमार सित्तीलिंगी गांव आए. गांव वालों और परिजन की मांगों को सुनने के बाद कलेक्टर ने आश्वासन दिया कि पुलिस नई एफआईआर दर्ज करेगी और उसमें बलात्कार और पुलिस की लापरवाही का आरोप शामिल किया जाएगा और राजस्व संभागीय अधिकारी मामले में सरकार की लापरवाही की जांच करेंगे.
शाम तकरीबन 6 बजे राजस्व विभाग के अधिकारी के युवती के परिजन के वक्तव्य रिकॉर्ड करने के बाद प्रदर्शन रुक गया. इस वक्तव्य के आधार पर नई एफआईआर दर्ज की जानी है. परिवार वालों ने अपनी बेटी की मौत तक की सभी परिस्थितियों को विवरण रिकॉर्ड कराया था जिसमें चिकित्सीय जांच में लापरवाही और उनसे मांगी गई रिश्वत के बारे भी बताया गया. इसके बावजूद 12 नवंबर को दर्ज एफआईआर में पुलिस की लापरवाही और गलत व्यवहार का आरोप शामिल नहीं है.
मानुष कहते हैं, “पुलिस की लापरवाही और आपराधिक षड्यंत्र को एफआईआर में शामिल किया जाना चाहिए जैसा कि कठुआ वाले मामले में हुआ था. नहीं तो पुलिस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी.” मोहन ने बताया कि उन लोगों ने 3 दिसंबर को हरूर सत्र न्यायालय में आवेदन कर मेडिकल रिकॉर्ड और उन दस्तावेजों की मांग की है जिस पर पुलिस निर्भर थी. ये दस्तावेज मिलने के बाद वे लोग संबंधित आरोप दायर करने के लिए आवेदन करेंगे.
प्रदर्शन के कारण 11 नवंबर को पुलिस ने सतीश को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन रमेश ने आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन अब तक पुलिस ने सीडब्लूसी के स्टाफ या पुलिस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है और सित्तीलिंगी में व्याप्त तनाव कम नहीं हुआ है. एक प्रदर्शनकारी ने गांव में व्याप्त भावना को इस तरह बयान किया, “वो लोग हमसे कहते रहे की जिन लड़कों ने बलात्कार किया है उन्हें गिरफ्तार करेंगे लेकिन पुलिस को कौन गिरफ्तार करेगा.”