जब से केंद्र के विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध करने के कारण सिख किसानों को खालिस्तानी बताने की मुहीम चली है, पंजाब पुलिस गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत दलित सिखों को बिना सबूत निशाना बना रही है. जुलाई में नेताओं के एक समूह ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को एक पत्र में यह सूचित किया था कि “पंजाब भर में हाल के हफ्तों में 16 से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं. जबकि इस कानून के तहत मात्र 47 एफआईआर कांग्रेस सरकार के तीन साल के कार्यकाल में दर्ज की गई हैं.” इन मामलों के पीड़ित अक्सर गरीब मजहबी सिख, दलित सिख समुदाय के व्य हैं, जिन पर खालिस्तानी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया. अकाल तख्त और पंजाबी एकता पार्टी के अध्यक्ष सुखपाल सिंह खैरा जैसे नेताओं की और से आई गंभीर आलोचना के बावजूद राज्य पुलिस ऐसी बयानबाजी कर रही है जो पंजाब में खालिस्तान और उसके फैलाव के बारे में एक झूठी कहानी गढ़ती है.
ऐसे मामलों में तेजी से हुई बढ़ोतरी रिफ्रेंडम 2020 (जनमत संग्रह 2020) के जवाब में की गई कार्रवाई जान पड़ती है. रिफ्रेंडम 2020 एक स्वतंत्र संप्रभु सिख राज्य खालिस्तान के गठन के लिए सिख फॉर जस्टिस जैसे एक अलगाववादी समूह द्वारा प्रस्तावित दुनिया भर के सिखों का एक गैरबाध्यकारी जनमत संग्रह है. जैसा कि मैंने पहले भी रिपोर्ट की थी कि एसएफजे और इसके संस्थापक गुरुपतवंत सिंह पन्नू, दोनों का ही पंजाब, प्रवासी सिखों और यहां तक कि विदेशों में खालिस्तानी कट्टरपंथियों के बीच भी बहुत कम प्रभाव है. इतने कम समर्थन के बावजूद, पंजाब सरकार और केंद्र लगातार निर्मम ढंग से पन्नू और एसएफजेके के पीछे पड़ी रही उसे आतंकवादी और समूह को आतंकवादी संगठन बना दिया गया. कारवां ने एक रिपोर्ट में बताया है कि कैसे हिंदू आतंकवाद जैसे धार्मिक अतिवाद की धारणा को लगातार खारिज करते हुए गृह मंत्रालय ने "इस्लामी और सिख आतंकवाद" की जांच जारी रखी है. हाल ही में यूएपीए मामलों और गिरफ्तारियों से पता चलता है जांच जारी है.
जून-जुलाई 2020 में पांच लोगों के खिलाफ दर्ज की गई तीन अलग-अलग प्राथमिकियों की मैंने जांच की, जिनमें से दो पंजाब पुलिस ने दर्ज की थी और एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने. इन मामलों में आरोपी मुख्य रूप से दलित सिख थे और उनकी गिरफ्तारी यूएपीए के दुरुपयोग और पुलिस के झूठे अनुमानों के एक पैटर्न की तरफ इशारा करती है. उनमें से कई को एफआईआर की जानकारी दिए बिना या यहां तक कि बिना यह बताए ही गिरफ्तार किया गया कि उन पर खालिस्तानी उग्रवाद में शामिल होने का आरोप है. जुलाई में खैरा ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को लिखा कि ये मामले साफ तौर से इशारा करते हैं कि यह "केंद्रीय एजेंसियों और पंजाब पुलिस की सोची-समझी साजिश है कि बेकसूर सिख/दलित युवाओं को निशाना बनाकर पूरे सिख समुदाय की छवि को आतंकी और राष्ट्रद्रोही बताकर दागदार किया जा सके.”
28 जून को पंजाब के पटियाला जिले के समाना पुलिस स्टेशन ने आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत एक एफआईआर (नंबर 144 ऑफ़ 2020) दर्ज की. यूएपीए किसी आतंकी गतिविधि और संगठन में शामिल होने और गैरकानूनी गतिविधियों में भागेदारी करने पर लगाया जाता है. एफआईआर पुलिस उपाधीक्षक कृष्ण कुमार की एक शिकायत पर दर्ज की गई थी और उसमें कहा गया था कि गश्त के दौरान एक मुखबिर ने डीएसपी कुमार से संपर्क किया था जिसके चलते उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई. मुखबिर ने पांच आरोपियों का नाम बताया- लवप्रीत सिंह, सुखचैन सिंह, अमृतपाल सिंह, गवी और जस्स.
एफआईआर के अनुसार मुखबिर ने डीएसपी को बताया कि आरोपी व्यक्ति “पटियाला में आतंकवादी कार्रवाई करने के लिए राष्ट्र-विरोधी शक्तियों और विदेशी ताकतों" के साथ-साथ पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठन खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के सदस्यों और "खालिस्तानी समर्थक लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं." प्राथमिकी में दावा किया गया कि ये व्यक्ति "हथियारों से लैस" थे और "किसी विशेष समुदाय के लोगों को घातक नुकसान पहुंचाने की फिराख में थे और इस तरह शांति और कानून व्यवस्था को बाधित कर रहे थे." एफआईआर के अनुसार, मुखबिर कई जिलों से आरोपी व्यक्तियों पर नजर रखने के साथ-साथ सीमा पार बातचीत पर नजर रखते हुए पंजाब पुलिस की तुलना में अधिक कुशल दिखाई दिए.
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