जब से केंद्र के विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध करने के कारण सिख किसानों को खालिस्तानी बताने की मुहीम चली है, पंजाब पुलिस गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत दलित सिखों को बिना सबूत निशाना बना रही है. जुलाई में नेताओं के एक समूह ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को एक पत्र में यह सूचित किया था कि “पंजाब भर में हाल के हफ्तों में 16 से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं. जबकि इस कानून के तहत मात्र 47 एफआईआर कांग्रेस सरकार के तीन साल के कार्यकाल में दर्ज की गई हैं.” इन मामलों के पीड़ित अक्सर गरीब मजहबी सिख, दलित सिख समुदाय के व्य हैं, जिन पर खालिस्तानी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया. अकाल तख्त और पंजाबी एकता पार्टी के अध्यक्ष सुखपाल सिंह खैरा जैसे नेताओं की और से आई गंभीर आलोचना के बावजूद राज्य पुलिस ऐसी बयानबाजी कर रही है जो पंजाब में खालिस्तान और उसके फैलाव के बारे में एक झूठी कहानी गढ़ती है.
ऐसे मामलों में तेजी से हुई बढ़ोतरी रिफ्रेंडम 2020 (जनमत संग्रह 2020) के जवाब में की गई कार्रवाई जान पड़ती है. रिफ्रेंडम 2020 एक स्वतंत्र संप्रभु सिख राज्य खालिस्तान के गठन के लिए सिख फॉर जस्टिस जैसे एक अलगाववादी समूह द्वारा प्रस्तावित दुनिया भर के सिखों का एक गैरबाध्यकारी जनमत संग्रह है. जैसा कि मैंने पहले भी रिपोर्ट की थी कि एसएफजे और इसके संस्थापक गुरुपतवंत सिंह पन्नू, दोनों का ही पंजाब, प्रवासी सिखों और यहां तक कि विदेशों में खालिस्तानी कट्टरपंथियों के बीच भी बहुत कम प्रभाव है. इतने कम समर्थन के बावजूद, पंजाब सरकार और केंद्र लगातार निर्मम ढंग से पन्नू और एसएफजेके के पीछे पड़ी रही उसे आतंकवादी और समूह को आतंकवादी संगठन बना दिया गया. कारवां ने एक रिपोर्ट में बताया है कि कैसे हिंदू आतंकवाद जैसे धार्मिक अतिवाद की धारणा को लगातार खारिज करते हुए गृह मंत्रालय ने "इस्लामी और सिख आतंकवाद" की जांच जारी रखी है. हाल ही में यूएपीए मामलों और गिरफ्तारियों से पता चलता है जांच जारी है.
जून-जुलाई 2020 में पांच लोगों के खिलाफ दर्ज की गई तीन अलग-अलग प्राथमिकियों की मैंने जांच की, जिनमें से दो पंजाब पुलिस ने दर्ज की थी और एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने. इन मामलों में आरोपी मुख्य रूप से दलित सिख थे और उनकी गिरफ्तारी यूएपीए के दुरुपयोग और पुलिस के झूठे अनुमानों के एक पैटर्न की तरफ इशारा करती है. उनमें से कई को एफआईआर की जानकारी दिए बिना या यहां तक कि बिना यह बताए ही गिरफ्तार किया गया कि उन पर खालिस्तानी उग्रवाद में शामिल होने का आरोप है. जुलाई में खैरा ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को लिखा कि ये मामले साफ तौर से इशारा करते हैं कि यह "केंद्रीय एजेंसियों और पंजाब पुलिस की सोची-समझी साजिश है कि बेकसूर सिख/दलित युवाओं को निशाना बनाकर पूरे सिख समुदाय की छवि को आतंकी और राष्ट्रद्रोही बताकर दागदार किया जा सके.”
28 जून को पंजाब के पटियाला जिले के समाना पुलिस स्टेशन ने आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत एक एफआईआर (नंबर 144 ऑफ़ 2020) दर्ज की. यूएपीए किसी आतंकी गतिविधि और संगठन में शामिल होने और गैरकानूनी गतिविधियों में भागेदारी करने पर लगाया जाता है. एफआईआर पुलिस उपाधीक्षक कृष्ण कुमार की एक शिकायत पर दर्ज की गई थी और उसमें कहा गया था कि गश्त के दौरान एक मुखबिर ने डीएसपी कुमार से संपर्क किया था जिसके चलते उन्होंने एफआईआर दर्ज कराई. मुखबिर ने पांच आरोपियों का नाम बताया- लवप्रीत सिंह, सुखचैन सिंह, अमृतपाल सिंह, गवी और जस्स.
एफआईआर के अनुसार मुखबिर ने डीएसपी को बताया कि आरोपी व्यक्ति “पटियाला में आतंकवादी कार्रवाई करने के लिए राष्ट्र-विरोधी शक्तियों और विदेशी ताकतों" के साथ-साथ पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठन खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के सदस्यों और "खालिस्तानी समर्थक लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं." प्राथमिकी में दावा किया गया कि ये व्यक्ति "हथियारों से लैस" थे और "किसी विशेष समुदाय के लोगों को घातक नुकसान पहुंचाने की फिराख में थे और इस तरह शांति और कानून व्यवस्था को बाधित कर रहे थे." एफआईआर के अनुसार, मुखबिर कई जिलों से आरोपी व्यक्तियों पर नजर रखने के साथ-साथ सीमा पार बातचीत पर नजर रखते हुए पंजाब पुलिस की तुलना में अधिक कुशल दिखाई दिए.
पटियाला के सेहरा गांव के सरपंच हाकम सिंह के अनुसार, पहली गिरफ्तारी एफआईआर दर्ज होने से दो दिन पहले हुई थी. हाकम ने कहा कि 26 जून को समाना पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने गांव में जाकर पंचायत की मौजूदगी में सेहरा के 25 वर्षीय सुखचैन सिंह को हिरासत में लिया. सुखचैन के दो भाई हैं जिनमें से एक का नाम बुधराज है और उसने मुझे बताया कि पुलिस ने कहा था कि वे मोबाइल सिम कार्ड के दुरुपयोग से संबंधित एक मामले के बारे में पूछताछ करने के लिए उन्हें पुलिस स्टेशन ले जा रहे हैं.
बुधराज ने बताया, "सरपंच और लगभग 200-250 लोगों की उपस्थिति में पुलिस वालों ने कहा कि सुखचैन को दो घंटे बाद रिहा कर दिया जाएगा. वह चाय पी रहे थे जब पुलिस ने उनसे कहा कि वापस आ कर पी लेना." बुधराज और हाकम ने मुझे बताया कि कुछ दिनों बाद जाकर गांव वालों को अखबारों से पता चला कि उन्हें यूएपीए के तहत दर्ज किया गया था और उनकी गिरफ्तारी 28 जून को पटियाला के गजेवासा गांव से दिखाई गई थी.
पांच महीने से भी ज्यादा वक्त हिरासत में बिताने के बाद सुखचैन सिंह को 11 दिसंबर को जमानत दी गई क्योंकि पुलिस समय पर आरोप पत्र दाखिल नहीं कर पाई. भारतीय आपराधिक प्रक्रिया में कहा गया है कि पुलिस को आम तौर पर एफआईआर दर्ज होने के तीन महीने के भीतर चार्जशीट दायर करनी चाहिए लेकिन यूएपीए अदालत में एक आवेदन प्रस्तुत करके पुलिस को 180 दिनों तक विस्तार की मांग करने का मौका देता है. हालांकि एफआईआर नंबर 144 के लिए 90 दिनों की मियाद 28 सितंबर को समाप्त हो गई थी लेकिन पंजाब पुलिस ने 2 नवंबर को जाकर मियाद बढ़ाने के लिए एक आवेदन दायर किया.
अपने आवेदन में पुलिस ने माना है कि सुखचैन के मोबाइल को डेटा निकालने के लिए साइबर अपराध विभाग को भेजा गया है और इसकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है. इसमें आगे कहा गया है कि सुखचैन के पास से एक पिस्तौल और कारतूस भी बरामद किए गए हैं लेकिन एफएसएल रिपोर्ट- फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी की रिपोर्ट - लंबित थी. यह स्पष्ट नहीं है कि फिर पांच महीने तक सुखचैन की नजरबंदी को सही ठहराने के लिए पुलिस के पास क्या सबूत थे. आखिरकार अदालत ने आरोप पत्र दाखिल न करने और मियाद बढ़ाने के बारे में समय सीमा के भीतर आवेदन नहीं करने का हवाला देते हुए उसे जमानत पर रिहा कर दिया.
सुखचैन की गिरफ्तारी एक अकेला मामला नहीं. उनकी गिरफ्तारी में दो अन्य लोगों के साथ-साथ अमृतसर के मजीठा ब्लॉक के 18 वर्षीय दलित सिख निवासी जसप्रीत सिंह और मानसा जिले के अचानाक गांव के निवासी अमृतपाल सिंह शामिल थे. तब पंजाब के पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने प्रेस को बताया था कि तीन गिरफ्तारियों के साथ एक आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया गया है. अखबारों ने सिख चरमपंथी समूह खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के सदस्य होने का आरोप लगाते हुए सुर्खियां बटोरीं और घोषणा की, “पंजाब पुलिस ने पटियाला से पाकिस्तान समर्थित केएलएफ आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया, 3 गिरफ्तार.” गुप्ता के प्रेस बयान के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने बताया, “पंजाब पुलिस द्वारा सामाजिक-धार्मिक नेताओं को निशाना बनाने की योजना बना रहे खालसा लिबरेशन फ्रंट के तीन सदस्यों की गिरफ्तारी के साथ राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों की एक बड़ी साजिश को नाकाम कर दिया है.”
लेकिन पुलिस हिरासत में दो सप्ताह के बाद यह भव्य घोषणा खोखली लग रही थी. 10 जुलाई को पुलिस ने अदालत को बताया कि उसके पास जसप्रीत के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और उसे छोड़ दिया गया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार जसप्रीत के पिता पलविंदर सिंह ने कहा कि पुलिस ने उनके बेटे की पिटाई की और पुलिस ने अन्य आरोपी व्यक्तियों पर थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल किया.
इस मामले में गिरफ्तार तीसरे व्यक्ति अमृतपाल सिंह को 29 जून को गिरफ्तार किया गया था. उनकी मां गुरनाम कौर ने बताया कि अमृतपाल पर केएलएफ के लिए काम करने का आरोप है, जो उसकी तंबाकू की लत के चलते मेल नहीं खाता क्योंकि सिखों में तंबाकू कड़ाई के साथ प्रतिबंधित है. "ओह तान जी, जर्दा, बीड़ियांते तंबाकू सब खांदा. वह चरमपंथियों में शामिल नहीं हो सकता. क्या उनके मानक इतने नीचे चले गए हैं कि वे आतंकवादियों के रूप में नशा करने वालों को भर्ती करने लगे हैं? क्या उन्हें कोई और नहीं मिल सकता?”
गुरनाम उनकी गिरफ्तारी के दिन को याद करती हैं. वह कहती हैं कि अमृतपाल का मालिक एक स्थानीय लंबरदार उसे कभी भी काम के बीच में खेत छोडकर कहीं जाने नहीं देता था. "उस दिन भी वह सुबह 8 बजे चला गया और 3.30 बजे के करीब दोहा पुलिस उसके खेतों में आ गई जहां अमृतपाल काम कर रहा था और लंबरदार के यह कहने के बावजूद कि मेरा बेटे को हर दिन सुरक्षित घर पहुंचाने की जिम्मेदारी उसकी है, पुलिस वाले उसे साथ ले गए.”
उन्होंने मुझे गांव के युवाओं से बात करने को कहा जिन्होंने परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में उसके दावों की पुष्टि की. "उनके परिवार में बस मां-बेटे ही हैं," गांव के ही एक व्यक्ति ने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा. उन्होंने यह भी सवाल किया कि तंबाकू खाने वाला व्यक्ति खालिस्तानी विचारधारा या चरमपंथी समूह से कैसे जुड़ा हो सकता है. उन्होंने कहा, ''उनका बेटा खेत मजदूर है लेकिन नशे की गिरफ्त में है, तो कर्ज में डूबी मां ने उसके नियोक्ता से कहा कि वह जो पैसा कमाए उसे सीधे उसे सौंप दें. इसके अलावा वह काम के बाद तुरंत घर पहुंचे इसकी व्यवस्था कर दे." गुरनाम ने कहा कि वह अब अदालत में केस लड़ रही हैं. "शुरुआत में मेरे पास वकील रखने के लिए पैसा नहीं था लेकिन अब किसी ने मुझे एक वकील दिया है. वह मेरा एकलौता बेटा है और इस उम्र में जीने का सहारा है." उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी से बीस दिन पहले ही अमृतपाल ने शादी की थी.
अमृतपाल को भी 15 दिसंबर को पटियाला की नाभा सेंट्रल जेल से जमानत पर रिहा किया गया था. सुखचैन की तरह अदालत ने उन्हें भी जमानत दी क्योंकि समाना पुलिस समय पर आरोप पत्र प्रस्तुत करने में विफल रही थी. सुखचैन के वकील उदय प्रताप सिंह शेरगिल के अनुसार, एफआईआर में आरोप पत्र आखिरकार उसी महीने बाद में दायर किया गया था लेकिन आरोपी व्यक्तियों को अभी तक दस्तावेजों की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई है. उन्होंने कहा कि सभी आरोपियों को पूरी चार्जशीट उपलब्ध कराने के बाद ही मामला आगे बढ़ेगा.
पंजाब के कपूरथला जिले में भोलथ निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा सदस्य खैरा ने जुलाई में तीनों परिवारों से मुलाकात की थी. उन्होंने चार अन्य विधायकों (कंवर संधू, जगदेव सिंह, निर्मल सिंह खालसा और जगतार सिंह जग्गा), पटियाला के पूर्व सांसद धर्मवीर गांधी और पूर्व विधायक सुच्चा सिंह छोटेपुर की टीम के साथ दौरा किया. मुख्यमंत्री अमरिंदर को लिखे अपने पत्र में खैरा ने सबूतों के अभाव में एफआईआर 144 में जसप्रीत की रिहाई पर जोर दिया. खैरा ने लिखा, "पटियाला पुलिस द्वारा इस तरह का एक आकस्मिक बयान इस तथ्य के बावजूद है कि शंकर दिनकर गुप्ता डीजीपी पंजाब ने 1 जुलाई को एक विशेष प्रेस विज्ञप्ति जारी की और उन्हें और अन्य को खालिस्तानी मॉड्यूल घोषित किया. इस प्रकार जसप्रीत की गिरफ्तारी और रिहाई से यह स्पष्ट है कि पंजाब पुलिस अत्याचार करने और बेगुनाहों को गिरफ्तार करने के लिए यूएपीए कानून का दुरुपयोग कर रही है."
पटियाला पुलिस की जांच टीम के सदस्य पुलिस अधीक्षक हरमीत सिंह हुंदल ने मुझे बताया कि एफआईआर 144 में आरोप पत्र 21 दिसंबर को प्रस्तुत किया गया था और केवल सुखचैन, अमृतपाल और लवप्रीत को गिरफ्तार किया गया था. हुंदल ने कहा कि चौथे आरोपी जसप्रीत को 10 जुलाई को छोड़ दिया गया और पांचवें आरोपी का पता नहीं चल सका. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी के अनुसार, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की, जसप्रीत की गिरफ्तारी और सबूतों के बिना नजरबंद करना जैसी और भी “विसंगतियां” हो सकती हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि पंजाब पुलिस को सलाह दी गई है कि ऐसी चीजों को न होने दें, जिससे युवाओं को अन्याय महसूस हो और वे भटक जाएं.
2 जुलाई को पंजाब पुलिस ने भोलाथ पुलिस स्टेशन में यूएपीए के तहत एक और एफआईआर (नंबर 49 ऑफ 2020) दर्ज की, जो सिख फॉर जस्टिस से संबंधित थी. एफआईआर 144 की तरह यह भी एक डीएसपी जतिंदरजीत सिंह की शिकायत पर दर्ज की गई थी और दो व्यक्तियों, जोगिंदर सिंह गुर्जर तथा एसएफजे के संस्थापक, पन्नू का नाम दर्ज किया गया था. गुर्जर इटली के निवासी हैं जो फरवरी 2020 में भारत आए थे. अपनी शिकायत में डीएसपी जतिंदरजीत ने कहा कि गुर्जर "सिख फॉर जस्टिस के एक प्रमुख और सक्रिय सदस्य हैं" और एसएफजे की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए ... पंजाब/भारत और विदेशों में स्थित एसएफजे गुर्गों/कार्यकर्ताओं को वित्तीय सहायता देने के लिए लगातार पन्नू के संपर्क में थे." गुर्जर के खिलाफ मुख्य आरोपों में से एक यह था कि वह नवंबर 2019 में "एसएफजे द्वारा आयोजित भारत विरोधी सम्मेलन में भाग लेने और सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए" जिनेवा गए थे. शिकायत में इन आरोपों का कोई सबूत नहीं दिया गया था और केवल यह कह दिया गया कि जतिंदरजीत को "विश्वसनीय इनपुट मिले थे", और इसके बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि गुर्जर ने यूएपीए के तहत अपराध किए थे.
दिल के रोगी 65 साल के गुर्जर को 10 जुलाई को भोलेनाथ के गांव अकाला में उनके घर से गिरफ्तार किया गया था. मैंने अकाला से गुर्जर के परिचितों में से एक से बात की, जो उनकी गिरफ्तारी के बाद कानूनी कार्यवाही में उनकी सहायता कर रहे हैं. उन्होंने पहचान जाहिर न करने का अनुरोध किया. "वह बहुत ही भोला इंसान है लेकिन अनपढ़ है,” परिचित ने कहा. उन्होंने कहा कि गुर्जर इटली में एक गुरुद्वारे में सेवा करते थे. "जिनेवा के बारे में उन्हें कई अन्य लोगों की तरह बताया गया था कि कोई धार्मिक मण्डली कुछ आयोजन कर रही है जहां मुफ्त यात्रा और खाना भी मिलेगा और वह सिर्फ दूसरों के साथ मस्ती और धूमधाम का हिस्सा बनने के लिए गए थे," परिचित ने मुझे बताया.
खैरा ने भी अपने पत्र में उल्लेख किया कि उन्होंने 3 जुलाई को अकाला का दौरा किया "जहां ग्राम पंचायत और गांव के बुजुर्गों ने अपनी बेगुनाही के लिए व्रत किया." उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी छोटे-मोटे आधार पर की गई है. उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद गुर्जर ने जमानत के लिए आवेदन किया और मामले की कार्यवाही ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत खोखले मामले को उजागर कर दिया. सुनवाई के दौरान जतिंदरजीत ने माना कि "जोगिंदर सिंह ने कभी भी गुरपवंत सिंह पन्नू की गतिविधियों में भाग नहीं लिया या प्रचारित नहीं किया और आज तक यह जांच जारी है." जमानत आदेश के अनुसार, डीएसपी ने आगे स्वीकार किया कि "सुनवाई के सबूतों को छोड़कर जोगिंदर सिंह गुर्जर के खिलाफ कोई ठोस सबूत पुलिस फाइल में नहीं आया है." आदेश में उल्लेख किया कि गया है कि जतिंदरजीत ने एक शपथ पत्र में यह कहा था.
सरकारी वकील ने यह भी माना कि “गुप्त सूचना के आधार पर प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को छोड़कर कोई दस्तावेज नहीं है कि आरोपी एसएफजे संगठन का सदस्य है.” 30 जुलाई को गुर्जर को जमानत पर रिहा कर दिया गया था लेकिन इतालवी निवासी को अपना पासपोर्ट जमा करने के लिए मजबूर किया गया था और अदालत की अनुमति के बिना देश छोड़ने से रोक दिया गया था.
मैंने भोलथ मामले के बारे में कपूरथला जिले की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कनवदीप कौर से बात की. उन्होंने कहा कि मामला अभी भी जांच के दायरे में है. "रिपोर्ट्स का इंतजार है और फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के निष्कर्षों और रिपोर्टों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी."
यूएपीए के तहत दलित सिखों को धमकी दी जाने और निशाना बनाए जाने ने जुलाई में पंजाब के संगरूर जिले के गांव रत्ता खेरा के 22 वर्षीय दलित सिख लवप्रीत सिंह की आत्महत्या के बाद विशेष ध्यान खींचा. 13 जुलाई को लवप्रीत ने एनआईए कार्यालय से पूछताछ के लिए आए एक सम्मन पर हाजिर होने के कुछ ही घंटों बाद चंडीगढ़ के एक गुरुद्वारे में आत्महत्या कर ली. उनके बहनोई गुरमीत सिंह ने मुझे बताया कि लवप्रीत केवल मिडिल स्कूल तक पढ़े थे और ग्रंथी के रूप में काम करते थे. उनकी शादी को एक साल से भी कम समय हुआ था और वह अपनी पत्नी मनजीत कौर के साथ बरनाला जिले के गांव सहेजरा में रह रहे थे.
पूछताछ के दिन लवप्रीत ने अपने पिता केवल सिंह को सुबह 9 बजे फोन किया यह बताने के लिए कि वह चंडीगढ़ में सेक्टर 51 में पेशी के लिए आए हैं. गुरमीत ने बताया, "उनके पिता ने फिर उनसे कहा कहदी पेशी?" (कैसी पेशी?) "उसने जवाब दिया, 'बस मुझे फोन मत करो,' और अपना फोन बंद कर दिया." गुरमीत ने कहा कि परिवार को नहीं पता था कि लवप्रीत चंडीगढ़ जा रहे थे और किसने पूछताछ के लिए बुलाया था. फिर उस शाम के बाद लवप्रीत ने अपने पिता को फोन करके बताया कि अब अंधेरा हो रहा है और वह सुबह लौट आएंगे.
गुरमीत ने कहा, "उस कॉल के बाद अगले तीन दिनों के लिए उसका फोन बंद हो गया और यह उसकी मौत का कारण बन गया. हमें पता चला कि उसने शाम आठ बजे मोहाली के गुरुद्वारे में कमरा लिया था. आखिर में मेरे ससुर केवल सिंह जो दिहाड़ी करते हैं 15 जुलाई को लेहरा पुलिस स्टेशन गए और शिकायत दर्ज करा कर वापस लौट आए. इसके तुरंत बाद, उन्हें पुलिस स्टेशन से फोन आया कि मोहाली के फेज 8 से गुरुद्वारा अंब साहिब अधिकारियों से उन्हें लवप्रीत की आत्महत्या की सूचना मिली है.''
लवप्रीत ने एक सुसाइड नोट छोड़ा जिसमें लिखा था, “मैं अपनी पत्नी से माफी मांगता हूं. मैं तुम्हें बीच में छोड़ रहा हूं. तुमने मेरे लिए जो किया है मैं उसे कभी नहीं चुका पाऊंगा. मुझे तुम याद आओगे. मैंने तुम्हारे साथ मिलकर जिंदगी के कई ख्वाब देखे लेकिन तकदीर ने साथ नहीं दिया.” गुरमीत ने मुझे बताया कि लवप्रीत की मौत में परिवार को गड़बड़ी का शक था क्योंकि वह इस तरह का नहीं था कि खुद की जान ले ले और फिर अपने परिवार और दोस्तों से माफी मांगने के लिए एक ऐसा सुसाइड नोट छोड़े.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एनआईए ने दीवारों पर लिखे खालिस्तान समर्थक नारों को लेकर 2018 के मामले में लवप्रीत को तलब किया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब पुलिस ने अक्टूबर 2018 में इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की थी और अप्रैल 2020 में एनआईए के पदभार संभालने से पहले एक बार भी लवप्रीत को तलब नहीं किया था. केवल ने एक्सप्रेस को बताया, “लवप्रीत की मौत का संबंध एनआईए के सम्मन से है. मुझे नहीं पता कि एनआईए कार्यालय के अंदर उसके साथ क्या हुआ था. जांच होनी चाहिए और मेरे बेटे की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए.” पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, जो गुमनाम रहना चाहते थे, एनआईए का इरादा लवप्रीत से मामले में हामी भरवाने का था, लेकिन 22 वर्षीय ने डर के मारे सम्मन में भाग लेने के बाद खुद की जान ले ली.
उनकी मौत के बाद, पंजाब में विपक्षी नेताओं ने आत्महत्या की जांच की मांग की थी. राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और दिरबा से आम आदमी पार्टी के विधायक हरपाल सिंह चीमा और आप से विद्रोह कर पंजाबी एकता पार्टी बनाने वाले खैरा, दोनों ने ही आत्महत्या के बाद रत्ता खेरा में लवप्रीत के परिवार से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने बाद में प्रेस से बात की और इसे संदिग्ध आत्महत्या कहा. मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में, खैरा ने लिखा, “उन्होंने अपने सुसाइड नोट में खुलासा किया कि मेरी मृत्यु के बाद, मेरे परिवार या मेरे दोस्तों को परेशान नहीं किया जा सकता है. इसका स्पष्ट अर्थ है कि वह यूएपीए के तहत मानसिक और शारीरिक यातना को सहन नहीं कर सके और अपनी जान ले ली ताकि उनके परिवार को इस काले कानून से बचाया जा सके. "
खैरा के पत्र में यह भी कहा गया है कि गुरमीत ने लवप्रीत के पैर और जननांग क्षेत्र पर हिंसा के निशान देखे थे और बहनोई ने भी मुझे यही बात बताई थी. लवप्रीत के सगे मामा हरविंदर सिंह, जो रट्टा खेहरा के सरपंच भी हैं, ने मुझे बताया कि अंतिम संस्कार की रस्म के लिए युवक के शरीर को धोते समय परिवार ने उसके जननांगों पर चोट के निशान के साथ-साथ उसके पैर में भी सूजन देखी थी. खैरा ने कहा, "गांव के निवासियों ने फिर कहा कि लवप्रीत का चाल-चलन अच्छा था, अमृत छिका था और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था ... इसलिए, हम सेक्टर 51 चंडीगढ़ एनआईए कार्यालय में मृतक लवप्रीत की पूछताछ का सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्ड, पोस्टमार्टम रिपोर्ट की पुष्टि करने के लिए निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग करते हैं, ताकि उसकी आत्महत्या की सच्चाई को सबके सामने लाया जा सके.”
लवप्रीत के चाचा हरविंदर सिंह, जो रत्ता खेरा के सरपंच भी हैं, ने कहा कि चीमा और खैरा के शामिल होने के बावजूद युवक की आत्महत्या की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है. उन्होंने कहा, "मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ," उन्होंने कहा. लवप्रीत के पिता केवल ने भी यही कहा, "कई संगठन और नेता आए लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.“ खैरा ने परिवार की बात उठाई लेकिन कोई समाधान नहीं दिया. उन्होंने कहा, "यह चौंकाने वाली बात है कि छह महीने से अधिक समय के बाद भी लवप्रीत को आत्महत्या के लिए मजबूर करने और परिवार को न्याय नहीं देने की परिस्थितियों की कोई जांच नहीं हुई है. यह पूर्ण अराजकता की स्थिति है और बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है."
सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं खैरा और विधायकों की टीम ने यूएपीए के तहत दलित सिखों के उत्पीड़न पर चर्चा करने के लिए अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह से भी मुलाकात की. उनकी बैठक के बाद, 27 जुलाई को जत्थेदार ने राज्य और केंद्र सरकार से सिख युवाओं को "आतंकित" करने से रोकने का आह्वान किया. उन्होंने मीडिया को बताया, “युवाओं को यूएपीए के तहत बुक किया जा रहा है और बिना किसी कारण या मामूली अपराधों के लिए सलाखों के पीछे डाला जा रहा है. मुझे लगता है कि यह सिख युवाओं को आतंकित करने के लिए माहौल बनाने की कोशिश है. ”
यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में संख्यात्मक बढ़त का अर्थ यह नहीं है कि अपराध साबित होने की संख्या में भी इजाफा हुआ है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, पंजाब पुलिस ने 2007 से यूएपीए के तहत लगभग 120 मामले दर्ज किए हैं और उनमें से 20 को एनआईए में स्थानांतरित कर दिया गया है. नवंबर 2020 में समाचार पत्र द ट्रिब्यून ने बताया था कि राज्य में 400 से अधिक व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के बावजूद 11 वर्षों में केवल एक ही सजा हुई है. मैंने यूएपीए के आरोपों की बेबुनियाद प्रकृति और दलित सिखों को निशाना बनाए जाने के बार में पटियाला रेंज के पुलिस महानिरीक्षक जतिंदर सिंह औलख और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पंजाब पुलिस ब्यूरो के निदेशक अर्पित शुक्ला को सवाल भेजे थे. औलख ने यह कहते हुए कि वह 22 फरवरी तक छुट्टी पर हैं और "बहुत व्यस्त हैं," जवाब देने से इनकार कर दिया और शुक्ला ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.