मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामला : सीबीआई के “कोई हत्या नहीं होने” के दावे पर सवाल

14 January, 2020

8 जनवरी को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले में किसी भी बच्चे की हत्या नहीं हुई है. एजेंसी की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत को सूचित किया कि सभी “35 लड़कियां जीवित हैं.” सीबीआई ने आश्रय गृह मामले में अपनी जांच के बारे में अदालत को अपडेट करते हुए यह दावा किया था. इस मामले को अदालत देख रही है. भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिना किसी टिप्पणी के वेणुगोपाल के तर्क को स्वीकार कर लिया. बिहार के मुजफ्फरपुर में परित्यक्त या भागे हुए बच्चों के पुनर्वास के लिए बने और सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त आश्रय गृह में तीस से अधिक नाबालिग लड़कियों के साथ मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण किया गया था. सभी लड़कियों की उम्र 18 वर्ष से कम थी. अगस्त 2018 से सुप्रीम कोर्ट मुजफ्फरपुर मामले को देख रही थी और सीबीआई को नियमित रूप से उसे अपडेट करना था. फरवरी 2019 में, शीर्ष अदालत ने मामले को बिहार से दिल्ली की एक विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण कानून (2012) के तहत अपराधों से संबंधित अदालत है. ट्रायल कोर्ट को 14 जनवरी को मामले पर अपना फैसला देना था, जिसे 20 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सीबीआई का दावा कि सभी “35 लड़कियां जीवित हैं.” उसके पहले के रुख का खंडन करता है. मई 2019 में सीबीआई ने अदालत से खुद कहा था कि संभवत: आश्रय गृह में रहने वाली कम से कम ग्यारह लड़कियों की हत्या हुई है और सीबीआई मामले की आगे की जांच करेगी. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एजेंसी ने सितंबर 2018 में दर्ज किए गए गवाहों के बयान को खारिज कर दिया. गवाहों ने स्पष्ट रूप से सीबीआई निरीक्षकों को बताया था कि आश्रय गृह में रहने के दौरान, उन्होंने अपने मालिक ब्रजेश ठाकुर और कर्मचारियों को वहां रहने वालों की हत्या करते देखा है. मुजफ्फरपुर के आश्रय गृह में शारीरिक और यौन उत्पीड़न का शिकार हुए 33 बच्चों के बयान कारवां को प्राप्त हुए. इन बयानों में मौजूद भयावह विवरण- जिनमें बलात्कार, गैंगरेप, यौन शोषण, अत्याचार, तस्करी और अप्राकृतिक यौन संबंध शामिल हैं- न केवल सीधे सीबीआई के रुख का खंडन करते हैं, वे सीबीआई की जांच की कमियों को भी उजागर करते हैं.

इस मामले का मुख्य आरोपी ठाकुर, एक प्रिंटिंग प्रेस का मालिक था, जिसके तीन प्रकाशन थे. वह 10 एनजीओ चलाता था और प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार भी था. वह राज्य सरकार की उस समिति का भी सदस्य था जो उन पत्रकारों का चयन करती है जिन्हें मान्यता दी जानी है. प्रत्येक वर्ष, उसे आश्रय गृह सहित विभिन्न परियोजनाओं को चलाने के लिए 3 करोड़ रुपए का सरकारी अनुदान प्राप्त होता था. उसे जून 2018 की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था. बाद में, उसी साल, ठाकुर को बिहार की जेल से पंजाब की एक जेल में स्थानांतरित करने का आदेश देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था, “यह उसकी शक्ति और प्रभाव ही है जिसके चलते इलाके के निवासियों ने भी उसके घर से आने वाली लड़कियों की चीखों को सुनने के बाद भी इस बारे में किसी को नहीं बताया.”

आरोपियों में बिहार कैबिनेट में पूर्व सामाजिक कल्याण मंत्री मंजू वर्मा, जिला बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दिलीप वर्मा, सीडब्ल्यूसी के सदस्य विकास कुमार, बाल-संरक्षण अधिकारी रवि कुमार रौशन और ​​बाल-संरक्षण इकाई की एक सहायक निदेशक रोजी रानी भी शामिल हैं. सीडब्ल्यूसी एक वैधानिक निकाय है और इसके पास प्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्ति है. यह राज्य सरकार के समाज-कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है.

सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ता के वकील फौजिया शकील ने कहा कि तस्करी, अप्राकृतिक अपराध और लड़कियों के गर्भपात की "सीबीआई द्वारा अब भी जांच नहीं की गई है."

*

मुजफ्फरपुर आश्रय गृह अपराधों का खुलासा अप्रैल 2018 में हुआ, जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) की एक टीम ने बिहार सरकार के समाज-कल्याण विभाग की देखरेख में बिहार में 110 आश्रय गृहों का स्वतंत्र सामाजिक अंकेक्षण किया. लेखापरीक्षा ने 17 ऐसे बाल देखभाल संस्थानों के कामकाज पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की. मुजफ्फरपुर आश्रय गृह, जिसका नाम बालिका गृह था, इनमें से एक था.

शुरुआत में बिहार पुलिस ने मामला दर्ज किया और जांच की. टिस के शोधकर्ताओं द्वारा अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने के एक महीने बाद, 31 मई 2018 को, पुलिस ने ठाकुर और उनके सहयोगियों सहित 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसमें राज्य कैबिनेट का एक मंत्री और राज्य की बाल कल्याण समिति का सदस्य भी शामिल था. पुलिस ने चुनिंदा मामलों में 10 ऐसी घटनाओं को दर्ज किया, जिसमें सात अन्य आश्रय घरों को इसकी जांच से बाहर कर दिया गया. जुलाई 2018 में, पटना उच्च न्यायालय द्वारा मुजफ्फरपुर मामले पर संज्ञान लेने के बाद, बिहार सरकार ने जांच सीबीआई को सौंप दी.

सितंबर 2018 में, एजेंसी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत इन बयानों को दर्ज किया, जो गवाहों की जांच करने के लिए पुलिस की शक्ति को रेखांकित करता है. बयानों में, बच्चियों ने कथित हत्यारों के नाम बताए और जिस तरीके से पीड़िताओं की हत्या की गई उस बारे में भी बताया. गवाहों ने अपनी खुद की पीड़ा को सुनाया. उन्होंने बताया कि कैसे मालिक, कर्मचारी और "बाहर" के लोग नियमित रूप से उन्हें ड्रग देते थे, उनका बलात्कार और गैंगरेप करते थे और उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते थे.

कारवां को प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, कम से कम 12 गवाहों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने आश्रय गृह में हत्याएं होते हुए देखीं. 13 ने कहा कि "बाहरी लोगों" ने उनके साथ बलात्कार किया और अन्य कई ने कहा कि उन्हें होटलों में भी ले जाया गया या उन्हें लड़कियों को घर ले जाने के बारे में पता था. यह तस्करी या जबरन वेश्यावृत्ति के अपराध को भी दर्शाता है. लगभग सभी गवाहों ने कहा कि उनके साथ नियमित रूप से अप्राकृतिक यौन संबंध और बलात्कार होता था. सभी ने ठाकुर को मुख्य अपराधी बताया गया. पीड़िताओं ने ठाकुर पर आश्रय गृह में लड़कियों के साथ बलात्कार और दुर्व्यवहार करने और कुछ लड़कियों की हत्या करने का आरोप लगाया. कई पीड़िताओं ने कहा कि उन्होंने ठाकुर को एक मानसिक रूप से विकलांग लड़की की हत्या करते और उसके शरीर को बोरे में भरते देखा. एक पीड़िता ने कहा कि ठाकुर ने एक नाबालिग लड़की की हत्या कर दी और कर्मचारियों ने पीड़िता को आश्रय गृह के यार्ड में लड़की को दफनाने के लिए मजबूर किया. एक अन्य पीड़िता ने कहा कि ठाकुर ने उसे डरा-धमकाकर आश्रय गृह की एक मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की का गला घोंटकर हत्या करने के लिए मजबूर किया.

एक पीड़िता ने कहा कि एक व्यक्ति जिसे वह “मामू” कहा करती थी, उसने घर में काम करने वाली किरण और "मीनू चाची" की मदद से उसका बलात्कार किया था. “एक बार किरण चाची ने मेरे हाथ और पैर बांध दिए थे और रूमाल से मेरा मुंह बंद कर दिया था. उसके बाद, मामू ने मीनू चाची के कमरे में मेरे साथ बलात्कार किया ... उन्होंने बदले में किरण चाची को पैसे दिए थे.'' एक अन्य पीड़िता ने बताया कि ठाकुर ने उसका यौन शोषण कैसे किया और उसने उसे दूसरी लड़की का बलात्कार करते हुए देखा. कई पीड़िताओं ने कहा कि ठाकुर और रोशन, सीपीओ, आश्रय गृह में नशे में धुत होकर आते और लड़कियों को कम कपड़े पहनने और उनके लिए नृत्य करने के लिए मजबूर करते थे. एक अन्य पीड़िता ने यह भी बताया कि ठाकुर ने मुझे कई बार अपनी जलती हुई सिगरेट से दागा. मेरी हथेली पर, बाएं कूल्हे पर, दोनों कूल्हों और घुटनों के ऊपर ... मैं बहुत रोया करती थी और हाथ जोड़कर उनसे कहती थी कि 'प्लीज, प्लीज मुझे जाने दो.'” एक अन्य पीड़िता ने बताया, “ठाकुर ने मुझे शराब में कुछ नशीला पदार्थ मिला कर पीने के लिए मजबूर किया. उसने दुपट्टे से मेरे पैर और हाथ बांधकर मेरा बलात्कार किया."

कई पीड़िताओं ने कहा कि उन्होंने ठाकुर को एक लड़की की हत्या करते हुए देखा था और उन्हें या तो चुप रहने की धमकी दी गई थी या उसके साथ मिलीभगत करने के लिए मजबूर किया गया था. (इस रिपोर्ट के अंत में इस तरह के कुछ बयानों को पुन: प्रस्तुत किया गया है.) एक पीड़िता ने कहा :

​ब्रजेश ने एक लड़की को मार डाला और उसे एक टैंक में डाल दिया. ​ब्रजेश ने दो अन्य पीड़िताओं और मीनू चाची के जरिए एक मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की को मार डाला. ​ब्रजेश ने उनसे कहा था, ''अगर तुम उसे नहीं मारोगी, तो मैं तुम्हें मार डालूंगा.'' ​ब्रजेश ने उसकी गर्दन पर पैर रख कर उसे मार डाला और मीनू (दो अन्य) ने उसके अंगों को पकड़ रखा था. जब वह मर गई तो मीनू चाची ने उसे एक बोरे में बंद कर दिया. मैंने एक खिड़की से देखा. किसी ने पूछा तो बताया गया कि एक कुत्ता मर गया है.

एक अन्य पीड़िता ने कहा कि ठाकुर ने उसे और एक अन्य लड़की को वहीं रहने वाली एक मानसिक रूप से विक्षिप्त का गला घोंटने को कहा. जब उन्होंने इनकार किया, तो उसने उन्हें मार डालने की धमकी दी. पीड़िता ने सीबीआई को बताया, "हम दोनों डर गए थे क्योंकि वह कुछ भी कर सकता था." नाबालिग लड़कियों ने मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की को मारने की कोशिश की, लेकिन उसे मार नहीं सकीं. “हम दोनों डर गए, हम उसे वहीं छोड़कर भाग गए. अगले दिन, लगभग 4-5 बजे ​ब्रजेश सर बालिका गृह में आए. विजय और जानवी (मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़कियों की देखरेख करने वाली) मानसिक रूप से विकलांग लड़की को वहां से ले गए." पीड़िता के बयान के अनुसार, केयरटेकर जानवी, ने बाद में आकर उनसे कहा, "उनसे पूछा कि उन्होंने उसे कैसे मारा, वह तो अभी भी जिंदा है. उसके बाद, हमने उनसे पूछा कि उस लड़की का क्या हुआ, तो उसने कहा, '​ब्रजेश सर ने उसे खत्म कर दिया है.'''

शुरुआत से ही इसकी जांच संदेहों के घेरे में थी क्योंकि इसमें सत्तारूढ़ सरकार से जुड़े लोगों के साथ-साथ राज्य सरकारों के सचिव स्तर के अधिकारियों और सांविधिक संस्थानों के अधिकारियों की सीधी भागीदारी थी, जिन्हें परित्यक्त बच्चों या शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हुए बच्चों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. जिला सीडब्ल्यूसी का प्रमुख दिलीप वर्मा पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद फरार हो गया. उसने पांच महीने बाद आत्मसमर्पण किया. इसी तरह, पुलिस ने शीर्ष अदालत को बताया कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मंजू वर्मा इस मामले में आरोपी होने के बाद से "गायब" हो गई थी. उसका पति, चंद्रशेखर वर्मा, ठाकुर का मित्र था, जो नियमित रूप से आश्रय गृह में आता-जाता था. जांच के दौरान, चंद्रशेखर वर्मा के घर से भारी मात्रा में गोला-बारूद मिला. इसके बाद दंपति पर शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए. मामला दर्ज होने के दो महीने बाद मंजू वर्मा ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.

अगस्त 2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने, जिसमें जस्टिस मदन लोकुर, दीपक गुप्ता और केएम जोसेफ शामिल थे, मामले का संज्ञान लिया. पीठ ने मामले को "राज्य द्वारा प्रायोजित घटना" के रूप में वर्णित किया था. न्यायाधीशों ने कहा, "क्या इस एनजीओ की साख जो घर-सेवा संकल्प और विकास समिति को संचालित करता है, सत्यापित है? अगर आप उसकी साख को सत्यापित किए बिना एनजीओ को धनराशि दे रहे हैं, तो यह राज्य की भागीदारी के बराबर है. ऐसा प्रतीत होगा कि उनके सभी गलत काम राज्य प्रायोजित हैं.”

कुछ महीनों बाद, नवंबर 2018 में, लोकुर और गुप्ता ने बिहार के पुलिस महानिदेशक को तलब किया और उन्हें यह बताने के लिए कहा कि मंजू को इस मामले के सिलसिले में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया. पीठ ने कहा, “शानदार. एक कैबिनेट मंत्री का पता नहीं लग पा रहा है. बहुत शानदार. ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कैबिनेट मंत्री का पता न चल पा रहा हो और कोई नहीं जानता कि वह कहां है.” इसके एक हफ्ते बाद मंजू वर्मा ने एक स्थानीय अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उसे तीन महीने के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और मार्च 2019 में जमानत पर रिहा कर दिया गया. आरोपों का असर उसकी राजनीतिक शक्ति पर नहीं पड़ा. मार्च में, लोकसभा चुनाव से पहले, उसे बिहार के बेगूसराय जिले में केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार के कैबिनेट मंत्री गिरिराज सिंह के साथ एक मंच साझा करते देखा गया.

नवंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने भी पुलिस को आरोपों को कम करने और अन्य आश्रय गृह मामलों में जांच के बारे में भी चयनात्मक रहने के लिए फटकार लगाई थी. “जब यौन हिंसा का आरोप लगाया गया है, तो यह या तो संगीन हो सकता है या अपनी प्रकृति में मामूली हो सकता है, लेकिन पुलिस प्राथमिकी दर्ज करते समय यह कैसे कह सकती है कि संगीन नहीं है? अगर एफआईआर में अपराध ही शामिल नहीं है, तो आप कैसे जांच करेंगे?” अदालत ने कहा. उसी महीने, अदालत ने शेष मामलों को सीबीआई को सौंप दिया और आगे अपनी जांच में सभी 17 आश्रय गृहों को शामिल करने के लिए कहा.

सीबीआई द्वारा गहन जांच की कोई भी उम्मीद जल्द ही खत्म हो गई. दिसंबर 2018 में एजेंसी ने एक समग्र आरोप पत्र दायर किया जिसमें अप्राकृतिक अपराधों और तस्करी के आरोप शामिल नहीं थे. हालांकि नई चार्जशीट में 21 आरोपियों के नाम हैं, लेकिन इसमें किसी भी रसूखदार व्यक्ति का नाम शामिल नहीं था. आरोपियों में से एक डॉ. अश्विनी, जिस पर पीड़िताओं ने आरोप लगाया था कि लड़कियों के साथ बलात्कार होने से पहले वह उन्हें ड्रग देता था, के वकील ने साकेत ट्रायल कोर्ट को बताया कि सीबीआई अश्विनी का बयान दर्ज नहीं कर रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो अधिकारी, अतुल प्रसाद और धर्मेंद्र सिंह शामिल थे. अदालत ने उनकी याचिका सीबीआई को भेज दी, लेकिन तीनों को कभी भी आरोपी नहीं बनाया गया.

मार्च 2019 में, पटना स्थित पत्रकार निवेदिता झा की ओर से, शकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अवकाश याचिका दायर की. शकील ने कहा कि सीबीआई “जांच करने में पूरी तरह से विफल रही है” और वह जो काम कर रही है “बकवास” है. शकील ने कहा कि सीबीआई ने कोई संज्ञेय अपराध नहीं जोड़ा है जैसा कि पीड़िताओं ने अपने बयानों में बताया था, जैसे हत्या, तस्करी और वेश्यावृत्ति. अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली.

मई 2019 में सीबीआई ने अदालत को बताया कि उसे संदेह है कि वहां रहने वाली 11 लड़कियों की हत्या कर दी गई है. जून 2019 में, जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​और एमआर शाह की खंडपीठ ने शकील की याचिका पर एक आदेश पारित किया और सीबीआई को विभिन्न नए पहलुओं की जांच करने का आदेश दिया. इनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377, जो अप्राकृतिक यौन को अवैध घोषित करता है और सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत अपराधों को शामिल किया गया, क्योंकि पीड़िताओं ने सीबीआई को अपने बयानों में आरोप लगाया था कि आरोपी लड़कियों का यौन शोषण करते हुए वीडियो टेप करते हैं. अदालत ने सीबीआई को बाहरी लोगों और अधिकारियों की भागीदारी के साथ-साथ अवैध तस्करी की संभावना की जांच करने का भी निर्देश दिया.

हाल ही में, 8 जनवरी 2020 को, जब सीबीआई ने सीलबंद लिफाफे में अपनी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की, तो उसके वकील वेणुगोपाल ने अदालत में इस बारे में कुछ नहीं कहा कि इन पहलुओं को आगे बढ़ाने के लिए एजेंसी ने क्या किया है. चूंकि सीबीआई ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में बेंच को दायर की थी और इसे शकील के साथ साझा नहीं किया था, इसलिए उन्हें रिपोर्ट की सामग्री का पता नहीं था.

जांच की अस्पष्टता ऐसी है कि याचिकाकर्ता को यह भी पता नहीं है कि इस समय कितने पीड़ित इस मामले में शामिल हैं. पुलिस और सीबीआई दोनों शामिल पीड़िताओं की संख्या पर एक स्पष्ट तस्वीर देने में विफल रहे हैं. यहां तक ​​कि याचिकाकर्ता और शकील तक को यह स्पष्ट नहीं है कि सीबीआई इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंची कि 35 लड़कियों की हत्या की गई थी, उसके बाद दावा किया कि वास्तव में यह संख्या 11 थी और बाद में माना कि सभी 35 ल​ड़कियां जीवित हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि ये वही लड़कियां हैं जिनके बयान 2018 में दर्ज किए गए थे या जांच में बाद में शामिल हुई लड़कियां थी. सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयानों का हवाला देते हुए, शकील ने मुझसे कहा, “मुझे यकीन नहीं है कि सभी लड़कियों के बयान 161 के तहत दर्ज किए गए थे. हमें सीबीआई से कभी कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है और हम अंधेरे में तीर चला रहे हैं.”

जांच की शुरुआत में, एफआईआर दर्ज होने से पहले ही, सीडब्ल्यूसी अधिकारियों ने पीड़िताओं को एक आश्रय गृह से दूसरे में स्थानांतरित कर दिया. 2018 में, मुजफ्फरपुर के पास के जिले सुपौल के सांसद रंजीत रंजन ने लोक सभा को बताया कि जांच शुरू होने से पहले ही लड़कियों को एक जगह से दूसरी जगह भेज कर गायब कर दिया गया था. अतुल प्रसाद, जो समाज-कल्याण मंत्री के प्रमुख सचिव थे, ने जनवरी 2019 में मीडिया को बताया कि लड़कियों को उनकी देखरेख में स्थानांतरित कर दिया गया था और विभाग में कई लोगों को इस निर्णय के बारे में पता नहीं था.

अगर कोई पहले के जांच अधिकारी और जहां लड़कियों को स्थानांतरित कर दिया गया था, उस आश्रय गृह के अधीक्षक के बयान की जांच-पड़ताल करे तो शकील की उलझन और रंजन के संदेह को विश्वसनीयता मिलती है.

सीबीआई के पहले आईओ ज्योति कुमारी के बयान के अनुसार, (कारवां के पास यह दस्तावेज है) एफआईआर दर्ज होने के एक दिन पहले, 30 मई 2018 को, घर पर छापे के दौरान, उन्हें कुल 46 लड़कियां मिलीं,​ जिनकी उम्र 8 से लेकर 17 वर्ष के बीच थी. उस दिन कुमारी ने लिखा था कि इन लड़कियों में से दो को सामाजिक-कल्याण विभाग के आदेश पर बिना बयान दर्ज किए उनके माता-पिता को सौंप दिया गया था. शेष 44 लड़कियों में से 14 को मधुबन के एक आश्रय गृह में स्थानांतरित कर दिया गया. अपने बयान में, कुमारी ने इन 14 लड़कियों को "मानसिक बीमारी से पीड़ित" के रूप में वर्णित किया. उन्होंने कहा कि इनमें से 16 को पटना शहर में दो अलग-अलग आश्रय घरों में स्थानांतरित कर दिया गया, जबकि 14 को पटना जिले के मोकामा में स्थानांतरित कर दिया गया.

कुमारी ने आगे कहा कि वह बयान दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष 30 लड़कियों को पेश कर सकती थीं. उन्होंने लिखा, "मानसिक बीमारी से पीड़ित होने के कारण 13 अन्य लड़कियां, अपने बयान नहीं दे सकीं." कुमारी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि चौदहवीं लड़की के साथ क्या हुआ था, जिसे उन्होंने पहले कहा था कि वह "मानसिक रूप से बीमार है."

 इसका जवाब मधुबनी आश्रय गृह के अधीक्षक के बयान में तलाशा जा सकता है. मधुबनी आश्रय गृह उन स्थानों में से एक है जहां 42 लड़कियों में से 14 को स्थानांतरित कर दिया गया था. मधुबनी के अधीक्षक ने लिखा कि जुलाई 2018 में 14 लड़कियों में से एक सुबह 3.24 बजे अपने आश्रय गृह से "भाग गई" थी. पटना, मधुबनी और मोकामा में आश्रय घरों के अन्य अधीक्षकों के बयानों से पता चलता है कि जब जांच चल रही थी, तब लड़कियों को नियमित रूप से जिले के भीतर स्थानांतरित कर दिया गया था. बयानों से यह भी पता चलता है कि मुजफ्फरपुर आश्रय गृह से लड़कियों को मार्च 2018 में मधुबनी लाया गया था, इससे पहले भी टिस ने आधिकारिक रूप से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. मधुबनी अधीक्षक द्वारा दिए गए एक बयान में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान, दो लड़कियों को नेपाल भी भेजा गया था.

इस पृष्ठभूमि में, शीर्ष अदालत के लिए एजेंसी का नवीनतम दावा और भी कम समझ में आता है. “हमने कभी नहीं कहा कि 35 लड़कियों की हत्या कर दी गई. हमें हत्या की गई लड़कियों की संख्या के बारे में भी नहीं पता है,” शकील ने मुझे बताया. “यह सीबीआई का मानना था कि 11 लड़कियों की हत्या कर दी गई थी. फिर लड़कियों ने अपने 161 के बयान के तहत हत्याओं के बारे में खुलासा किया. अगर अब सीबीआई कहती है कि हत्याएं नहीं हुई हैं, तो या तो लड़कियां झूठ बोल रही थीं या सीबीआई अपना रुख बदल रही है.''

इस रिपोर्ट के साथ पांच मूल बयानों को पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है.