फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में एक साल पहले महिला अधिकार संगठन पिंजरा तोड़ की सदस्य नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को गिरफ्तार किया गया था. हाल ही में दोनों को दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है.
कलिता और नरवाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में क्रमशः महिला अध्ययन और ऐतिहासिक अध्ययन केंद्रों में डॉक्टरेट की छात्राएं हैं. वे 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और फरवरी में हुई हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से संबंधित कई अलग-अलग प्रथम सूचना रिपोर्टों के तहत आरोपी हैं और इनमें से लगभग सभी में उन्हें जमानत मिल गई है.
दोनों को पहली बार 23 मई को सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन से संबंधित एक प्राथमिकी के तहत गिरफ्तार किया गया था. अगले दिन उन्होंने जमानत हासिल कर ली. दिल्ली की एक अदालत ने यह दर्ज किया कि वे "केवल एनआरसी और सीएए का विरोध कर रहे थे और ... किसी भी हिंसा में शामिल नहीं हुए." जमानत मिलने के कुछ ही मिनटों के भीतर दोनों को एक दूसरे मामले में दंगा और हत्या के प्रयास सहित अधिक गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया. उन पर सांप्रदायिक हिंसा से पहले दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया गया. उसी साल सितंबर में दूसरे मामले में कलिता को जमानत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली पुलिस "कोई भी सामग्री पेश करने में विफल रही" जिससे साबित हो सके उसने भीड़ को उकसाया था. नरवाल के मामले में दिल्ली की एक जिला अदालत ने फैसला सुनाया कि पुलिस द्वारा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए वीडियो में से कोई भी "आरोप को हिंसा में लिप्त या भड़काने वाला नहीं दिखाता है."
दूसरी प्राथमिकी में गिरफ्तार होने के छह दिन बाद 30 मई को 2020 की एफआईआर 59 के तहत नरवाल को फिर से गिरफ्तार किया गया. 5 जून को कलिता को एफआईआर 59 में गिरफ्तार किया गया. उन पर और कम से कम बीस अन्य कार्यकर्ताओं पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए.
जेल से नरवाल और कलिता दोनों ने पिंजरा तोड़ के सदस्यों को कई खत लिखे. नरवाल और कलिता ने तिहाड़ में अपनी रोजमर्रा की जिंदगी, अपने संघर्षों और चिंताओं के साथ-साथ उन क्षणों के बारे में लिखा है जिन्होंने उन्हें उम्मीद और ताकत दी. खतों के संपादित अंश नीचे पुन: प्रस्तुत किए गए हैं.
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