दस्तावेज

तिहाड़ जेल से नताशा और देवांगना के उम्मीद और प्रतिरोध के खत

तिहाड़ जेल में देवांगना कलिता द्वारा बनाई गई सुल्ताना का सपना का एक चित्रण. सुल्ताना का सपना बंगाली लेखिका और राजनीतिक कार्यकर्ता बेगम रूकैया द्वारा लिखित एक नारीवादी कहानी है जो 1905 में प्रकाशित हुई थी. देवांगना कलिता / सौजन्य पिंजरा तोड़

फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में एक साल पहले महिला अधिकार संगठन पिंजरा तोड़ की सदस्य नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को गिरफ्तार किया गया था. हाल ही में दोनों को दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है.

कलिता और नरवाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में क्रमशः महिला अध्ययन और ऐतिहासिक अध्ययन केंद्रों में डॉक्टरेट की छात्राएं हैं. वे 2019 के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और फरवरी में हुई हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से संबंधित कई अलग-अलग प्रथम सूचना रिपोर्टों के तहत आरोपी हैं और इनमें से लगभग सभी में उन्हें जमानत मिल गई है.

दोनों को पहली बार 23 मई को सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन से संबंधित एक प्राथमिकी के तहत गिरफ्तार किया गया था. अगले दिन उन्होंने जमानत हासिल कर ली. दिल्ली की एक अदालत ने यह दर्ज किया कि वे "केवल एनआरसी और सीएए का विरोध कर रहे थे और ... किसी भी हिंसा में शामिल नहीं हुए." जमानत मिलने के कुछ ही मिनटों के भीतर दोनों को एक दूसरे मामले में दंगा और हत्या के प्रयास सहित अधिक गंभीर आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया. उन पर सांप्रदायिक हिंसा से पहले दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया गया. उसी साल सितंबर में दूसरे मामले में कलिता को जमानत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा कि दिल्ली पुलिस "कोई भी सामग्री पेश करने में विफल रही" जिससे साबित हो सके उसने भीड़ को उकसाया था. नरवाल के मामले में दिल्ली की एक जिला अदालत ने फैसला सुनाया कि पुलिस द्वारा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए वीडियो में से कोई भी "आरोप को हिंसा में लिप्त या भड़काने वाला नहीं दिखाता है."

दूसरी प्राथमिकी में गिरफ्तार होने के छह दिन बाद 30 मई को 2020 की एफआईआर 59 के तहत नरवाल को फिर से गिरफ्तार किया गया. 5 जून को कलिता को एफआईआर 59 में गिरफ्तार किया गया. उन पर और कम से कम बीस अन्य कार्यकर्ताओं पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए.

जेल से नरवाल और कलिता दोनों ने पिंजरा तोड़ के सदस्यों को कई खत लिखे. नरवाल और कलिता ने तिहाड़ में अपनी रोजमर्रा की जिंदगी, अपने संघर्षों और चिंताओं के साथ-साथ उन क्षणों के बारे में लिखा है जिन्होंने उन्हें उम्मीद और ताकत दी. खतों के संपादित अंश नीचे पुन: प्रस्तुत किए गए हैं.

8 मार्च 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एक कार्यक्रम में देवांगना कलिता (बाएं) और नताशा नरवाल (दाएं). साभार : बिलाक्षन एस हर्ष

27/09/2020

... तुम्हें पता है, मुझे लगता है कि इस माहौल में बाहर रहना कहीं अधिक कठिन है. हमें तो बस इंतजार करना होता है. कई बार यह तकलीफदेह होता है, बस यही दिक्कत है. लेकिन तुम लोग कितने दबाव में होंगे? इतनी सारी चीजों को संभालना, कई सारे कठिन फैसले लेना, पारिवारिक दबावों को झेलना. दुनिया के टूटने का गवाह बनना. बुरी ताकतें इतनी तेजी से बढ़ रही हैं और बेरहमी से हर उस चीज को कुचल रही हैं जिन्हें हम पसंद करते हैं, बेहतर भविष्य की सभी उम्मीदें हर दिन कुचली जा रही हैं. यहां उम्मीद भरे गीतों को गाते हुए भी मेरी आंखें भर आती हैं क्योंकि इन गीतों में इतनी उम्मीदें हैं लेकिन अब इन उम्मीदों का कोई भविष्य नहीं है. "क्या अंधेरे दौर में भी गीत गाए जाएंगे?"

... वास्तव में जेल समाज की उन सभी बंदिशों की तार्किक परिणति का ही विस्तार है जिनके खिलाफ कोई संघर्ष कर रहा होता है यानी उसकी स्वायत्तता को कुचल दिया जाता है. लेकिन मैंने देखा है कि इस तरह की जगह में भी जो बनी ही किसी की स्वायत्तता और इंसानियत को नोच देने के लिए है और लोगों को महज जिंदा रहने के लिए छोड़ देती है, वहां भी लोग कुछ स्वायत्तता और इंसानियत को बचा ही लेते हैं. उन्हें ​किसी कोने में छिपा लेते हैं, हमेशा घूरती नजरों से छिपा लेते हैं. वे फिर भी हंसना, रोना, मिल कर गाना, नजदीकियां और दोस्ती बनाना, एक और भविष्य के बारे में सपने देख ही लेते हैं. मैंने यह भी महसूस किया है कि लोगों के पास असीम रचनाशीलता है. वे गरिमा के साथ जीने के लिए चीजों और जगहों को बदल देते हैं.

... क्या आप सभी ने वुमन ऑन द एज ऑफ टाइम पढ़ी है? अगर नहीं, तो मेहरबानी करके पढ़ें. मैंने इसे दो बार पढ़ा है और चाहती हूं कि इसे फिर से पढ़ूं. मैं इस दौरान इससे और ज्यादा जुड़ पाई हूं और उम्मीद है कि आप भी जुड़ पाएंगे. शायद तब हम एक-दूसरे से मिल सकें जैसे कोनी और ल्यूसिएंट मिलते हैं. शायद एक दिन हम सभी एक नदी के किनारे बैठेंगे और प्रेम और आशा के गीत गाएंगे, प्रतिरोध और सिस्टरहुड के गीत गाएंगे.

“हाथों में हाथ हैं डाले हम,

जमाना क्या कर लेगा”

... हर तरफ हो रहे किसानों के मजबूत प्रतिरोध हमें बहुत ताकत और खुशी दे रहे हैं, खासकर यह जानना कि कई स्थानों पर महिलाओं और छात्रों ने इसमें शामिल होकर नेतृत्व किया. हम अखबारों में छपी तस्वीरों को देखते ही रह गए ... बेशक सभी अध्यादेश तमाम लोकतांत्रिक मानदंडों की साफ-साफ अवहेलना करके पारित किए गए हैं. शायद अब लोग इसके चरित्र को और साफ तौर पर देख पाएंगे. कम से कम उम्मीद तो की जा सकती है.

... हाथरस में जाति और पितृसत्ता की संरचनाओं की वेदी पर इतनी बेरहमी से एक और जीवन का गला घोंट दिया गया. हम सभी बहुत तकलीफ के साथ खबरों को देख रहे हैं. सत्ता का सारा ढांचा मौत के बावजूद उसे और उसके परिवार को बेज्जत करने पर आमादा है. लेकिन विरोध प्रदर्शनों, इतने सारे लोगों को बोलते, सड़कों पर उतरते हुए देखना बहुत खुशी की बात है. मैं उन सभी चीजों के बारे में सोचती रहती हूं जो हम अभी कर रहे होते. मुझे यकीन है कि आप सब कुछ कर रहे हैं, लिख रहे हैं, पोस्टर बना रहे हैं. देश भर में हो रहे तमाम विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरों में मैं किसी अनाड़ी की तरह आप लोगों ढूंढती रहती हूं. वैसे भी इस क्रूर शासन को मिल रही थोड़ी सी चुनौती भी हमें उम्मीद से भर ​देती है और दिलासा देती है.

...उम्मीद और दिलासा दोनों ही यहां बेशकीमती हैं. औरतें उन्हें अपने शरीर से कसकर पकड़ कर रखती हैं, उन्हें अपने बालों में गूंथ लेती हैं, उन्हें उन ताकतों से छुपाती हैं जो उन्हें इससे मरहूम करने पर तुली हुई हैं. लेकिन वह आपस में दरियादिली से इसे बांटती हैं, एक दूसरे को थामे रहती हैं, आंसू पोछती हैं, एक दूसरे को अपनी कहानियां बताती हैं. हर दिन कोई उनसे सीख सकता है कि किस तरह शान के साथ जिंदा रहना है, कैसे इस निजाम को खुद को तोड़ने नहीं देना है, भले ही आप कुछ ही दिनों में टूटा हुआ महसूस करें, कैसे खुद को और एक-दूसरे को थामना है और अगले दिन के लिए ताकत हासिल करनी है. इन दीवारों और तालों के बीच कितनी ही कहानियां हैं (जुबान बन कर फूटने को तैयार चुप्पियां हैं, दिल में गुस्सा उबला जा रहा है) 

बेइंतहा प्यार,
नताशा 

28/09/2020

उन सभी खतों को पाना इतना रोमांचक और दिल को भर देने वाला था जो इतनी मोहब्बत और खयालों से लबरेज थे. बहुत खूबसूरत, बहुत दिलकश थे. तबीयत खुश कर देने वाले हौसला देने वाले. जब से वे मुझे मिले हैं, मैं उन्हें हर दिन पढ़ती हूं, कई-कई बार पढ़ती हूं, उन्हें अपने अजीज, बहुत अजीज की तरह थामे रहती हूं. खासकर उन दिनों में जब बहुत उदास महसूस करती हूं, जब हिम्मत जवाब देने लगती है और थोड़ा और सहारे, थोड़ा और भरोसे की जरूरत होती है ताकि हम इससे उबर पाएं. हम डरते नहीं हैं, हम डर नहीं सकते. हम यहां हैं, यहां एक दूसरे के लिए इन दीवारों और सलाखों के जरिए, थामे हुए, जिंदा, बहते हुए.

लहर हजारो लंबी धारा
मंजिल का है दूर किनारा.

... आगे क्या हमारा इंतजार कर रहा है हम नहीं जानते. पूरी हिम्मत से हमें इसे मानना होगा, जो हम एक साथ मिलकर जुटा सकते हैं, खुद को नई शुरुआत और सबसे मुश्किल चुनौतियों के लिए तैयार रखना होगा. एक नई हकीकत जो बहुत जल्द, एकदम अचानक से आ गई है, यह इतनी कठिन और डरावनी है कि इस पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन मुझे लगता ​​है कि हम एक साथ धीरे-धीरे राह तलाशना और उसमें रहना सीख रहे हैं. दुनिया और अपने खुद के इतिहास से सीखते हुए, आगे बढ़ने के अलावा हम क्या कर सकते हैं. जो सामने आ रहा है और इंतजार कर रहा है उससे निपटने के लिए खुद को तैयार करना, यह भी एक गंभीर जिम्मेदारी है. ऐसा नहीं है कि मुझे इसके बारे में कोई शक नहीं था. यहां तक ​​​​कि अपना बोझ कम करने के लिए भी मैंने कभी इसे साफ-साफ नहीं कहा. इतने महीनों के बाद और भयानक दमन और आगे होने वाले और भी ज्यादा दमन के लगातार खौफ के बावजूद हम अभी भी कायम हैं. छोटी नैय्या अभी भी तैर रही है और राह दिखा रही है कि यह हमारी जिंदा रहने और सहन करने की सामूहिक क्षमता का सबूत है और इसे अपने आप में मौजूद संभावनाओं के तौर पर मंजूर किया जाना चाहिए. मैं तुम सब को बहुत याद करती हूं और यह जानकर मुझे जिंदा रहने की ताकत मिलती है कि इस बेरहम जुदाई, बेइंतहा तड़प के बावजूद तुम खुद को जिंदा रखे हुए हो.

... कभी-कभी मैं सचमुच महसूस करती हूं और मुझे अचरज होता है कि क्या इस खौफनाक वक्त में, "बाहर" की तुलना में "भीतर" होना शायद आसान है. "बाहर" जो हम कर रहे हैं वह भारी काम है और जिम्मेदारी है, जो मौजूदा वक्त में पहले से कहीं ज्यादा विकराल नजर आता है. मैं यह सोचती रहती हूं कि अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो कैसे इससे निपटती. जेल के भीतर कुछ भी करने की इजाजत नहीं है, हमारा एकमात्र राजनीतिक काम इंतजार करना और सहना, वक्त के साथ इस दर्दनाक मुठभेड़ में अपने चित्त को न खोना और अपने मन और शरीर को जिंदा रखना है ताकि जुल्म करने वाले हमारे हौसले और सपनों को तोड़ने में कामयाब न हो पाएं.

... जैसे-जैसे दिन और महीने गुजरते हैं, धीरे-धीरे पता चलता है कि कुल मिलाकर जेल वास्तव में इतनी असामान्य जगह नहीं है. यह महज उन तमाम जुल्मों का विस्तार है जो इस बेरहम दुनिया को परिभाषित करते हैं- शायद यह इसका काफी तीखा संस्करण है, बावजूद इसके मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है. किसी कारखाने, किसी बागान, किसी छात्रावास की तरह- यह एक और जगह है जो मजदूर वर्गों को कैद करती है, औरतों को कैद करती है.

… पितृसत्ता के तहत एक औरत की जिंदगी जेल में रहने के प्रशिक्षण के अलावा और क्या है? जब जेल का कोई कर्मचारी तुमको निर्देश देता है कि तुम इधर-उधर न जाओ, तो यह कोई असाधारण बात नहीं है- औरतों को हमेशा पिता, पति, प्रेमी कहते हैं कि वह इधर-उधर न जाएं. कम से कम जेल में सत्ता का इस्तेमाल साफ और पारदर्शी है, परिवार और समाज के मामले से उलट जहां यह "प्यार," "सम्मान" आदि से सजी होती है.

... निश्चित रूप से ऐसे भी दिन होते हैं जब कैद असहनीय हो जाती है, बस आपका बैरक, आपका वार्ड और बाहर का पार्क. दिन-ब-दिन.

... इस दौरान एक चीज जिसने मुझे सबसे ज्यादा ताकत दी, वह थी खुद के लिए प्रतिरोध के गीत गाना- अधूरी टूटी हुई लाइनें जिन्हें मैं याद कर सकी थी, लंबे दिन और रातों में उन्हें बार-बार और अंतहीन रूप से गाती, कभी-कभी कांपते होंठों से, कभी-कभी आत्मविश्वास के साथ, कभी-कभी खामोश रातों में बहुत जोर से, जैसे कितनी यादें चमक उठतीं, हौसला देती हुई, ताकत देती हुई, ​भरोसा देती हुई. हर शब्द इतने मायनों और इतने इतिहास से भरा हुआ महसूस होता था. "निडर, आजाद हो जाएगी वह तो नया जमाना लाएगी."

हजार भेस धार के आई
मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल साकि
चली गई वह हार कर"

सामूहिक रूप से औरतों की नाफरमानी ही है जिसने "बाहर" जिंदा रहने में मदद की और यही है जो जेल में "भीतर" जिंदा रहने के लिए बेहद जरूरी है. हर दिन मैं उन औरतों से हासिल करती हूं जो यहां कई सालों से हैं; औरतें जिनका "बाहर" कोई नहीं है; (औरतें) जो लंबे मुकदमों के जरिए कभी न खत्म होने वाला इंतजार कर रही हैं; जो औरतें दूर देशों से हैं और अंग्रेजी या हिंदी भी नहीं बोलतीं; जिन औरतों ने यहीं अपने बच्चों को जन्मा  है और यहीं उनका पालन पोषण करती हैं; जिन औरतों के पास वकील करने के लिए पैसे नहीं हैं और वे सरकारी कानूनी सहायता प्रणाली की कठिन प्रक्रिया पर धैर्यपूर्वक बातचीत करती हैं; जिन औरतों ने सिर्फ इसलिए महीनों से अपने परिवार में किसी से बात नहीं की है क्योंकि उन्हें कोई फोन नंबर याद नहीं या ढूंढ नहीं सकती हैं और कोई भी उनके "घर" से खतों का जवाब नहीं देता; औरतें जो उतनी ही "अपराधी" हैं जितनी संरचनात्मक उत्पीड़न की कैदी. मैं साथी कैदियों के बारे में खत में नहीं लिख सकती लेकिन मेरे पास जेल का एक नाम है: "हम गुनागर औरतें." :)

एक रात हमारे बैरक में कहानी (सुल्ताना का सपना, बेगम रोकैया द्वारा लिखित और 1905 में प्रकाशित एक नारीवादी कहानी) का रीडिंग सत्र था. इससे मुझे खास, जाना-पहचाना और गर्माहट महसूस हुई और मैंने तुम सभी को बहुत याद किया.

ढेर सारा प्यार और अंतहीन आलिंगन,
देवांगना 

देवांगना कलिता और नताशा नरवाल द्वारा तिहाड़ की जेल नंबर 6-महिला जेल- से पिंजरा तोड़ के सदस्यों को भेजे गए खतों के लिफाफे. सौजन्य पिंजरा तोड़

28/10/2020

...हमारे पास तुम सभी के लिए एक काम है :) मेहरबानी करके महिला संगठनों और नारीवादी प्रकाशकों से जेल नंबर 6, तिहाड़ को साहित्य, किताबें और पर्चे दान करने के लिए कहें ताकि हम पुस्तकालय को समृद्ध और विविधतापूर्ण बना सकें. प्रौढ़ शिक्षा की किताबें, औरतों के लिए सिर्फ पढ़ना-लिखना सीखने वाली किताबें, औरतों के अधिकारों और जीवन के बारे में संसाधन सामग्री विशेष रूप से उपयोगी होगी. साथ ही, बच्चों के लिए कुछ रंगीन और रोमांचक कहानी की किताबें :) क्या आप हमें सावित्रीबाई फुले और स्कूली लड़कियों के उस चित्र का रंगीन प्रिंट-आउट भी भेज सकते हैं? दूसरी पेंटिंग जिसे हम बनाने की योजना बना रहे हैं, वह है सुल्ताना का सपना की सचित्र किताब को साथ मिलकर पढ़ती औरतों का गोंड कला शैली में बना चित्र.

आखिरकार पिछले महीने मैं पढ़ने और फोकस्ड रहने में सक्षम हो गई हूं. मैंने जेल के अंदर नौकरी के लिए आवेदन नहीं किया क्योंकि मेरा इरादा पढ़ाई का है लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है. "खुली गिनती" के दौरान (वह नियत समय जिसके दौरान कैदियों को अन्य बैरकों और जेल परिसर के भीतर खुले क्षेत्र में जाने की इजाजत दी जाती है) हमारा बैरक गतिविधि का एक निरंतर केंद्र है. बच्चे हमेशा अंदर और बाहर करते रहते हैं- मांगतें, खुशी और निराशा लाते- जबकि अन्य कैदी किसी न किसी कारण से लगातार आते रहते हैं : किसी को लिखित आवेदन चाहिए होता है; कोई पढ़ना-लिखना सीखना चाहता है (मैं कभी-कभी हिंदी भी पढ़ाती हूँ!); किसी को प्रेम पत्र लिखने या लजीज शायरी लिखने में मदद चाहिए; किसी के कानूनी व्यवस्था, उनके मामले, उनकी जमानत, उनके वकील के बारे में सवाल होते हैं; किसी को मन हल्का करने के लिए थोड़ा दिलासा या बातचीत की जरूरत है; कोई यह समझना चाहता है कि ई-मुलाकात कैसे बुक करें (वीडियो कॉल जो कैदियों को उनके संपर्कों के रूप में सूचीबद्ध व्यक्तियों के साथ करने की हजाजत है); कोई चाहता है कि मैं उन्हें एक कहानी पढ़कर सुनाऊं, किसी को कैंटीन सामान की सूची लिखानी होती है; कोई जानना चाहता है कि हमारे जैसे कॉलेज में उनके बच्चे कैसे पढ़ सकते हैं. इस प्रक्रिया में इंसान अनेकों जिंदगियों, अनेक मुलाकातों, गलियों, इच्छाओं और सपनों को पार करता है, करीब से जानता है, जुड़ता और रिश्ते बनाता है, नई मित्रता और सामूहिकता, नए जीवन गीत और इतिहास का निर्माण करता है. इस प्रक्रिया में हमें असंख्य दुआएं और आशीर्वाद भी मिले हैं: "हम सब से पहले आप लोग निकल जाओ मेरे प्यारे बच्चे" औरतें दरियादिल हैं, अपनी निरंतर और उत्कट इच्छाओं के साथ वह बहुत ​दरियादिल हैं.

... यह आपराधिक न्याय प्रणाली कई लोगों की जिंदगियों को बर्बाद और तबाह कर देती है, यहां बहुत सारी गरीब और मजदूर वर्ग की औरतों को झूठा फंसाया और कैद किया गया है; उनका परिवार, घर, भविष्य चकनाचूर हो गया लेकिन अभी भी वे जिंदा हैं, किसी तरह का यह लगभग एक चमत्कार ही है! यहां औरतें अक्सर कहा करती हैं, "पुलिस रस्सी को साप बना सकती है." हमें शायद "राजनीतिक कैदियों" की श्रेणी को छोड़ देना चाहिए या इस पर फिर से काम करना चाहिए- एक राजनीतिक कैदी कोई अपवाद नहीं है; अधिकांश गुनाहगर औरतें कैद हैं और ​दरिंदगी की शिकार हैं, उनके जीवन और रिश्ते टूट गए, उनके पास कानूनी प्रक्रिया की पेचीदगी समझने के लंबे इंतजार के सिवा कोई रास्ता नहीं है. वे सभी राजनीतिक कैदी हैं!

... क्या कोई तरीका है कि जमा करने की समय सीमा 31 दिसंबर से आगे बढ़ाई जा सकती है? (कलिता जेएनयू में अपनी एमफिल का काम जमा करने की समय सीमा का जिक्र कर रही है, समय सीमा बढ़ा दी गई है.)

... पंखे भी कल से बंद हैं एकदम चुप. औरतों की जेल चारों तरफ से मर्दों की जेल से घिरी हुई है. सड़क या गली से गाड़ियों के गुजरने की आवाज भी नहीं आती है, केवल आधी रात के आसपास दूर से ट्रेन की सीटी की आवाज आती है. हममें से जिन्हें मंडोली जेल से स्थानांतरित किया गया है, वे हमें बताती हैं कि उस बहुमंजिला जेल से सड़कें दिखाई देती हैं, यह कम सुनसान लगता है लेकिन पेड़ और पक्षी कम हैं.

... इस बुरे सपने के बीच भी पिछली बार भेजे गए खतों ने हमें थोड़ा चिंतित किया. हमें अपने सपनों और गीतों को थामना चाहिए; निराशा हमें कहीं नहीं ले जाएगी, हम आशा को नहीं छोड़ सकते. सबसे जरूरी बात, हमारे बारे में ज्यादा चिंता न करें, हम इस वक्त ठीक हैं, धीरे-धीरे खुद को तैयार कर रही हैं.  क्वारंटीन के दौरान लगता था यहां छह महीने रहना होगा. तैयारी एक वर्ष या उससे अधिक के लिए है. यूएपीए मामले में जमानत मिलना आसान नहीं होगा, यह एक लंबा, बहुत लंबा इंतजार हो सकता है लेकिन हम एक समय में एक दिन, एक साल में एक साथ इस अलगाव को सहेंगे और जीवित रहेंगे. मुझे आलिंगन की याद आती है. लेकिन आलिंगन और मिलन के उस दिन तक आप अपना ख्याल रखें, खूब सांस लें और जैने नताशा हर रात जेल में सोती है वैसे सोएं.

प्यार और आक्रोश,
डी 

12/11/2020

हमारे बिछोड़ से अब तक दो मौसम बीत गए. भीषण गर्मी और उमसी रातों की जगह अब सर्दी की सुहानी शामों और शानदार नीले आसमान ने ले ली है.

... अम्मा को जमानत मिल गई और कल रात वह चली गई, एक खालीपन छोड़ गई. वह हमारे साथ केवल दो हफ्ते तक रही लेकिन हमें इतना प्यार दिया कि हम जीवन भर इसका स्वाद चखेंगे.

उनकी हंसी सबसे प्यारी थी और उनके पास ऐसे अद्भुत किस्से थे. उनके पास घर में दो बकरियां हैं और उन्हें पूरे उस्मानपुर में, जो सीलमपुर के पास है, "बकरे वाली अम्मा" के नाम से जाता है. जब हमने उन्हें अपने मामले के बारे में बताया, तो उन्होंने हमें बताया कि जब हर जगह दंगे हो रहे थे, तो कैसे उनकी गली में लोगों ने कुछ नहीं होने दिया. उन्होंने बाद में हमें बताया कि कैसे मेरठ के कुछ दंगों में उनके माता-पिता की भी मौत हो गई थी. वह एक "हिंदू" थीं लेकिन इस्लाम का भी पालन करती थी. कल ही, बैरक की एक अन्य साथी खाला ने हमें बताया कि उन्होंने (अम्मा) बताया था कि उन्होंने अपनी दूसरी शादी के लिए हिंदू होने के लिए "धर्मांतरण" किया था.

20/11/2020

"वक्त की कैद में है जिंदगी"

कल से हमें आखिरकार पूरी "खुली गिनती" के दौरान अपने वार्ड से बाहर रहने की इजाजत है- यानी सुबह दो घंटे और शाम को एक घंटे के बजाए सुबह 6 से 12 बजे और दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक. प्रशासन से महीनों की गुहार और याचिकाओं के बाद आखिरकार इसकी इजाजत मिल गई है. तुम्हें पता है कि यह वास्तव में उस क्षण की तरह लगता है जब मिरांडा हाउस कर्फ्यू की समय सीमा बढ़ा दी गई थी. हॉस्टल से लेकर जेल तक संघर्ष जारी है. :P 

… एलएसआर छात्रा ऐश्वर्या की आत्महत्या. (2 नवंबर को लेडी श्रीराम कॉलेज की द्वितीय वर्ष की छात्रा ऐश्वर्या रेड्डी ने आत्महत्या कर ली थी.) तुम जानती हो इससे मुझे गहरा धक्का लगा है … वास्तव में इसने रोष, हताशा, गुस्सा और लाचारी की बहुत सारी भावनाओं को उबारा है. मैं गंभीरता से सोच रही थी कि कोई प्रतिरोध या संघर्ष कैसे हर रोज बढ़ते क्रूर दमन के सामने खड़ा होगा, जो केवल और तेज होगा और हमारी दुनिया को घेर लेगा. मैं थानेदार और तन्मय के बारे में सुनकर बहुत हैरान थी. (जुलाई 2020 में, दो कार्यकर्ताओं तन्मय निवेदिता और कल्याणी, जो बिहार के अररिया जिले की एक अदालत में एक सामूहिक बलात्कार पीड़िता के साथ अपनी गवाही के लिए थीं, को पीड़िता के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था क्योंकि उसने उसी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने वाले बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. शोहिनी उन दो कार्यकर्ताओं की सहयोगी है जो उनके रिहाई अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थी.)

... कृपया उन्हें मेरा सारा प्यार और सलाम दें और निश्चित रूप से अन्य सभी गिरफ्तारियों के बारे में पढ़ना वास्तव में निराशाजनक और परेशान करने वाला रहा है, यहां तक ​​कि ऐसे लोग भी जो इतने बूढ़े हैं और जिनके लिए कोई राहत नजर नहीं आती.

... मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि आप किस दौर से गुजरे होंगे और अभी भी गुजर रहे होंगे, खासकर जब इस लॉकडाउन ने एक साथ रहने, एक-दूसरे का हाथ थामने और गले लगाने की गर्मजोशी और आश्वासन से वंचित कर दिया है. एक तरह से हर कोई एक तरह की जेल में बंद है.

... आप जानते हैं कि मैं यह नहीं कहूंगी कि निराशा या डर नहीं है. इन वक्तों में ये स्वाभाविक भावनाएं हैं. उन्हें दूर करने का एकमात्र तरीका उन्हें एक-दूसरे के साथ साझा करना और एक-दूसरे के जरिए से हौसला और ताकत हासिल करना है. हम यहां यह सब हमारे चेहरे पर मुस्कान और हमारे दिलों में शांति के साथ भी केवल हमारी सामूहिक ताकत के दम पर सह पा रहे हैं. हम आप सभी और हमारे सामूहिक संघर्षों से अपनी ताकत हासिल करते हैं, जिस तरह से हम सब कुछ के बावजूद एक-दूसरे को थामे रहते हैं. "हाथो में हाथ है अपना, जमाना क्या करेगा." :)

पीएस : ओएमजी! एफएम [रेडियो] पर बेगम अख्तर की गजलें चल रही हैं. अंदर क्या हलचल है बता नहीं सकती. उफ्फ, कोई ऐसा कैसे गा सकता है!

... हालांकि पुस्तकालय में ज्यादातर किताबें गीता प्रेस की हैं,​ फिर भी प्रेमचंद, मोहन राकेश, कृष्ण चंदर, राही मासूम रजा, अमृता प्रीतम, [मार्गरेट] एटवुड, (गेब्रियल गार्सिया) मार्केज, इसाबेल अलेंदे, आरके नारायण की कुछ किताबें हैं. आप जानते हैं कि मुझे प्रोग्रेस पब्लिशर्स की दो किताबें भी मिलीं और एक ट्रॉट्स्की की … फिर किताबों के पीछे बेतरतीब अगडम-बगडम लिखा है और कुछ पुरानी नोटबुक्स मुझे लाइब्रेरी में सेट करते समय मिली हैं. प्रार्थनाएं हैं, प्रियजनों के लिए नोट्स, लिखना सीखने का प्रयास, इन दीवारों के बीच जिंदगी के निशान बसे हैं.

... साथ ही आपका खत पाकर बहुत अच्छा लगा. जब हमें कोई खत मिलता है तो हमें जो खुशी और उत्साह महसूस होता है, मैं उसके बारे में बता नहीं सकती. बस हमारे पैरों की थिरकन से ही लोग यह जान जाते हैं कि हमें खत मिला है ... यह जानना थोड़ा दिल दहला देने वाला है कि हर कोई कितना अकेला और अलग-थलग महसूस कर रहा है और हर किसी के दिल में क्या है वास्तव में एक-दूसरे के साथ साझा करने में असमर्थता हैं. हो सकता है कि आप लोग एक-दूसरे को खत लिखें :P हो सकता है कि ऐप्स वास्तव में भावनाओं की गहराई, सभी दुखों की विशालता और सबके दिलों में छिपे अकेलेपन को नहीं पकड़ सकते.

29/11/2020

... इस जगह की रोजमर्रा की लय में समय का पहाड़ घुल गया है जिसमें मैं काफी लीन हो गई हूं. बच्चों के साथ समय बिताना, अन्य कैदियों के साथ एक-दूसरे की कहानियां सुनना, बाहर जिंदगी की यादें, एक-दूसरे की निराशाएं, कानूनी जीवन को गहनता से देखना, जो हर दिन बड़ी मेहनत से जीते थे. जेल जीवन के इतने सारे जुगाड़ सीखना. आप जानते हैं, हम मजाक कर रहे थे कि हमें जेल में जिंदा रहने के 101 तरीके जेल सर्वा​इवल मैनुअल लिखने चाहिए.

ठीक है, रात के 10.30 बजे हैं और मुझे बहुत नींद आ रही है :P

07/12/2020

मैं पुस्तकालय में पुराने नोट्स में मिले एक कैदी की एक कविता के साथ खत्म करती हूं:

दिल में हैं अरमान

आंखों में है प्यार

जाहिर करूं तो करूं कैसे

जेल में है यार.

कब तक बंद रख लेगी

हमें ये जेल की दीवार

जेल भी नहीं इतनी बुरी

की कम करदे हमारा प्यार.

खुले आसमान के नीचे हमारी एकजुटता की रात तक

जब चांद पिंजरे में नहीं होगा

हम देखेंगे!

ढेर सारा प्यार और आक्रोश,
एन

07/12/2020

पुनश्च: खैर, इस सर्दी में फिर से सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों से मैं संतुष्टि महसूस कर रही हूं. मैं आपको उन भावनाओं, यादों के बारे में नहीं बता सकती जो यह पैदा कर रहे हैं. 

मैंने अखबार में एक युवा लड़की का संक्षिप्त प्रोफाइल पढ़ा, जो विरोध प्रदर्शन में अपने माता-पिता के साथ जा रही है क्योंकि वह भी खुद को एक किसान मानती है. वह रात में विरोध प्रदर्शन में भाग लेती है. इसने बस मेरा दिल भर दिया और मेरी आंखें भर आईं. मैं वास्तव में एक दिन उससे मिलना चाहती हूं. हर दिन हम अखबारों का इंतजार करते हैं जैसा हमने पहले कभी नहीं किया और हर तस्वीर को लगभग दस बार देखते हैं.

नताशा नरवाल द्वारा दिल्ली की तिहाड़ जेल में बनाई गई "द सी-सेक मीटिंग" शीर्षक वाला एक स्केच. स्केच दिल्ली में केंद्रीय सचिवालय क्षेत्र में पिंजरा तोड़ के सदस्यों द्वारा आयोजित कई बैठकों को संदर्भित करता है. नताशा नरवाल / सौजन्य पिंजरा तोड़

23/02/2021

आश्वस्त करने वाला अभी तक चौंका देने वाला समय. एक साल, जब से यह सब फूट पड़ा है, वह क्षण जो हमें इस पागल मोड़ पर ले आया है जिसका हम आज सामना कर रहे हैं. हाल ही में हम इस बारे में बात कर रहे थे कि उन लोगों को कैसा महसूस होना चाहिए जब वह किसी प्रमुख ऐतिहासिक घटना जैसे राजशाही का तख्तापलट, उपनिवेशवाद का अंत, दासता का उन्मूलन, फासीवाद की हार, आपातकाल का अंत-देखते हैं या उनका हिस्सा बनते हैं. हमने क्या देखा है, भविष्य ने हमारे लिए क्या रहस्योद्घाटन रखा है?

 ... उस बाजी (किसी उम्रदाराज औरत के लिए एक सम्मानजनक शब्द, जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के बाहर धरना-प्रदर्शन का जिक्र करते हुए) की एक याद जिन्होंने टेंट लाइन को स्थानांतरित करते समय भीगी आंखों से हंसते हुए कहा था और जो हंसी चारों ओर फैल गई थी, "जबसे आंख खुली है बस घर की चार दिवारी देखी है. आज रात तीन बजे सड़क में खड़ी हूं, वह कर रही हूं जो कभी भी नहीं सोचा था करूंगी!"

... एक शाम जब थोड़ा उदास सी थी तो कुछ राहत पाने के लिए नाटकीय बादलों को घूरते हुए, मेरे बगल में लेटे हुए छोटे बच्चों में से एक पूछता है, "देवांगना, आसमान कहां से आता है?" उनके अगले सवाल ने मुझे और भी हैरान कर दिया, "आसमान घर से आया है क्या?" वह यहीं बड़ा हुआ है, घर के लिए उस उत्साह को महसूस करना सीख लिया है, घर की उस लालसा को जिसे हर कोई छोड़ देता है. यह छोटा बच्चा अंकलों से डरता है, जब भी वह किसी पुरुष पुलिस या कर्मचारी को जेल के अंदर देखता है तो छिपने के लिए भाग जाता है. उसे फ्रॉक पहनना पसंद है और ज्यादातर उसे लड़की के तौर पर ही लिया जाता है. एक बार अचानक उसने कहा, “आप भी मेरे साथ चलोगी बाहर? मुझे न डर लगेगा.”

"किस से?"

"अंकल से."

24/02/2021

... हमारे हर्षित चेहरों को देखकर मुलाकातों की प्रभारी मैट्रॉन (मुख्य परिचारिका) भावुक हो गईं. "बहुत दिनों बाद मुझे भी मेरे हॉस्टल के दोस्तों की याद आ गई," उन्होंने कहा. मुझे वाकई उम्मीद है कि आने वाले महीनों में हम और चेहरों के साथ फिर से मिलेंगे. हमें इंतजार है, प्यार और गुस्से के साथ इंतजार है.

26/02/2021

जेल में सोचने के लिए बहुत समय है, उन लंबी रातों की तरह जब मैं बहुत उम्मीद और चिंता के साथ सोचा करती थी कि फिर से जुड़ने, ठीक होने और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया कैसे सामने आएगी.

... हम जेल नंबर 6 के अंदर महिला दिवस का आयोजन करेंगे. उस दिन की उम्मीद में जब हम फिर से मिलेंगे और यह सब साझा करेंगे और फिर से बताएंगे….

प्यार और आक्रोश,

देवांगना

14/03/2021

वसंत के आगमन का एक शांत रविवार, सनबर्ड ने हमारे पार्क में कपड़े सुखाने की डोरी पर एक जटिल बुनावट का घोंसला बनाया है. वे चटख लाल फूल शहर की गगनचुंबी इमारतों से फूट रहे होंगे?

...इस महीने की शुरुआत काफी रोमांचक रही है. जेल नंबर 6, महिला दिवस कार्यक्रम मनाने की तैयारियों में डूबा रहा :) हमने यह दिन मनाने के लिए एक आवेदन दिया था जैसा कि पहले होता था. दिन की शुरुआत चहल-पहल भरी होती जिसने यहां एक अच्छी हलचल पैदा कर दी, जैसे कि चीजें हो रही थीं. उन लोगों के लिए, जो कई सालों से कैद हैं, "सामान्य स्थिति" में धीरे-धीरे वापसी का संकेत था, उस ठहराव और एकरसता को तोड़ने का संकेत था जो कोरोना जेल के अंदर भी ले आया था- शायद वक्त काटने का बोझ थोड़ा सा कम हुआ.

... इस दिन का इतिहास उन साथियों के साथ साझा करना जो जानने को उत्सुक थे; अभ्यास सत्रों में लोगों को उभरते और बदलते हुए, चरित्र गढ़ते और उसमें घुस जाने, लड़खड़ाते होंठों से लेकर आत्मविश्वास से भरे डायलॉग डिलीवरी; एक दूसरे के साथ काम करना और सामूहिक रूप से नाटक करना; "तोड़ तोड़ के" के बोल एक साथ सीखना किसी को भी यह देखकर खुशी से भर देता. :)

... नाटक की पटकथा सरल थी, पात्र और संवाद एक साथ उभरते और विकसित होते, बीस कलाकारों का प्रेरक दल जिसमें कुछ साथी कैदी शामिल थे जिनके साथ पिछले कई महीनों में आराम और विश्वास का रिश्ता बनाया गया था. 

... उन दिनों के अंत में हम अविश्वसनीय रूप से थक जाते थे लेकिन यह वह थकावट नहीं थी जो स्थायी कारावास से आती है. यह एक स्फूर्तिदायक थकावट थी जो संभावनाओं का सामना करने से आती है. एक ऐसा अहसास जो नया नहीं, बल्कि परिचित था, जिसने प्रचार के एक लंबे दिन के अंत को चिह्नित किया था; बैठकें जहां बातचीत कहीं पहुंची; रात विरोध! एक अहसास जो पिछले महीनों से अपना काम कर रहा था लेकिन जिसने 8 मार्च के लिए एक ठोस अभिव्यक्ति पाई- हमारा काम, हमारे सपने कभी नहीं रुक सकते, चाहे वे कहीं भी हों _____ (एक शब्द जो उन जेल अधिकारियों द्वारा मिटा दिया गया है जो खतों को पढ़ते हैं) हमें या वे हमारे साथ क्या करते हैं! उन्होंने हमें गीत गाने के लिए कैद किया, वह हमें कहां रखेंगे जब जेल के अंदर भी गीत गूंजेंगे? "शोषण दमन को मिटाएगी वो तो नया जमाना लाएगी."

... फातिमा शेख की भूमिका नताता ने निभाई (जैसा कि बच्चे नताशा को प्यार से बुलाते हैं) सब यही चाहते थे :D यह काफी मनोरंजक था, लेकिन लोगों के "समय पर" रिहर्सल में न आने से वह कुछ गुस्सा भी हो जाती ... हाहा!

16/03/2021

... एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण रियायत जिसके लिए जेल अधिकारियों को राजी कर लिया गया, वह यह थी कि प्रैक्टिस के चलते किसी का वेतन नहीं काटा जाता है क्योंकि हमारे अधिकांश कलाकार भी जेल के अंदर विभिन्न काम कर रहे थे, इसने वास्तव में अपनी नौकरी खोने के बारे में सभी की चिंताओं को कम करने में मदद की!

... प्यार के खत लिखते रहिए, यह हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं. आप जानते हैं, मैं एक किताब पढ़ रही थी, उसमें 1914 में फिजी के बा जिले के गिरमिटिया भारतीय मजदूरों के औपनिवेशिक सचिव को एक याचिका दी गई थी. मजदूर चाहते थे कि डाकघर में एक "हिंदुस्तानी" नियुक्त किया जाए, जो पोस्टकार्ड पर सही पते लिख सके... इतिहास के जरिए खत किस तरह कितना ज्यादा और कितनी नरमी से मायने रखते हैं...

प्यार और आक्रोश,

देवांगना