सूचना के अधिकार के तहत जो नए दस्तावेज सामने आए हैं उनसे जज लोया की मौत से जुड़े मामलें में बड़ा खुलासा होता है. ये दस्तावेज रवि भवन की बुकिंग रजिस्टर से जुड़े हैं. रवि भवन नागपुर स्थित वो सरकारी अतिथिगृह है. कहा जा रहा है कि मौत से पहले जज वीएच लोया यहीं ठहरे थे. नए दस्तावेजों में ये बात सामने आई है कि रवि भवन के बुकिंग रजिस्टर में जज लोया के ठहरने से जुड़ी एंट्री है ही नहीं. नागपुर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने महाराष्ट्र सरकार को रजिस्टर की जो प्रतियां सौंपी थी उनमें कहीं ऐसी बात नहीं है कि जज लोया और अन्य जजों ने नवंबर 2014 के अंत में रवि भवन में कोई बुकिंग की थी. जजों के बारे में ऐसा कहा गया था कि वो अपने एक दोस्त के परिवार की शादी में शामिल होने नागपुर आए थे. 28 नवंबर से लेकर 6 दिसंबर 2014 तक रवि भवन के रजिस्टर में 30 नवंबर की तारीख में सिर्फ एक प्रविष्टि है. इसमें किसी जज से जुड़ी कोई प्रविष्टि नहीं है. और इस वक्त के आखिरी छह दिनों से जुड़े पन्ने तो पूरी तरह गयाब हैं.
इस साल जून के महीने में दी कैरेवन ने आरटीआई के तहत मिले दस्तावेजों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र के कानून और न्यायालय विभाग ने नागपुर के लोक निर्माण विभाग के डिवीजन नंबर 1 को 27 नवंबर 2014 को एक चिट्ठी भेजी थी और अनुरोध किया था कि रवि भवन में जज लोया और दूसरे जज विनय जोशी के लिए एक कमरा बुक करके रखा जाए. खत में लिखा था कि “30.11.2014 की सुबह से 1.12.2014 के शाम 7 बजे तक ये जज वहां सरकारी काम से रुकेंगे.” एक आरटीआई के जवाब में अतिरिक्त जानकारी निकल कर सामने आई है. इसमें खुलासा हुआ है कि उसी महीने की शुरुआत में लोक निर्माण विभाग को एक और चिट्ठी भेजी गई थी जिसमें सात जजों के लिए आठ कमरे बुक करने की बात कही गई थी. ये जज नागपुर के लिए “किसी जरूरी काम से 29.11.2014 (सुबह के 7 बजे) से 1.12.2014 के बीच सफर कर रहे थे.” लेकिन रवि भवन के बुकिंग रजिस्टर में इन नौ जजों में से किसी की एंट्री नहीं है- ना उन सात जज के बारे में जो जरूरी काम से सफर कर रहे थे और ना ही लोया और जोशी के बारे में.
रवि भवन के छह वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों ने हमें बताया है कि लिखित में दिए गए बुकिंग के सभी निवेदनों को रजिस्टर में लिखा जाता है. जिन कर्मचारियों ने हमें ये बात बताई वो यहां के रोजमर्रा के काम का हिस्सा हैं और वो कमरों के बुकिंग के काम में भी शामिल थे. उनमें से चार ने कहा कि अगर कोई फोन पर भी बुकिंग करवाता है तो उसकी एंट्री रजिस्टर में होती है. रजिस्टर में होने वाली एंट्री का उदाहरण देते हुए एक कर्मचारी ने हमें बताया कि बुकिंग का “सही प्रोटोकॉल” ये है कि इसे “नागपुर के पीडब्ल्यूडी के डिविजन नंबर 1” से होता हुआ आना चाहिए. उसने आगे कहा, “इसके बाद बुकिंग रजिस्टर में इससे जुड़ी जानकारी लिखी जाती है.” रवि भवन में जजों के ठहरने से जुड़ी बुकिंग से जुड़ी दोनों चिट्ठियां नागपुर पीडब्ल्यूडी के डिविडन नंबर 1 को लिखी गई थीं, ये स्थानीय लोक निर्माण विभाग के तहत आता है.
लोया के गेस्ट हाउस में रुकने के दौरान की तारीखों से जुड़ी एंट्री का गायब होना संदेहास्पद है. खासकर तब और भी जब महाराष्ट्र की सरकारी शाखाओं द्वारा नौ जजों के लिए इस दौरान ठहरने की बुकिंग से जुड़ी कई चिट्ठियां जारी की गई हैं. ऐसा करने वालों में कानून विभाग भी शामिल है.
दी कैरेवन ने लोया की मौत से जुड़ी रहस्यमई परिस्थितियों पर पहली बार नवंबर 2017 में रिपोर्ट छापी थी, ऐसा उसके बाद किया गया था जब मृत जज के परिवार वाले अपने संदेह के साथ सामने आए थे. इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र राज्य खुफिया विभाग ने एक “विचारशील जांच” की और इसके निष्कर्ष में कहा कि लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी. लेकिन इसके बाद की दी कैरेवन द्वारा जज लोया की मौत से जुड़ी जांच में कई ऐसी परेशान कर देने बातें सामने आईं जो उनकी मौत की परिस्थियों से जुड़ी हुई थीं. इनमें वो गंभीर सवाल शामिल हैं जो रवि भवन के 17 वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों ने उठाए हैं और वहां ठहरने वालों की एंट्री से जुड़े रजिस्टर की छेड़छाड़ भी इसमें शामिल है.
बुकिंग रजिस्टर में की गई प्रविष्ठियों से ये बिल्कुल साफ है कि इसके पन्नों के साथ छेड़छाड़ की गई होगी- यहां तक की इन्हे नष्ट कर दिया गया होगा. इसके मायने बहुत गंभीर हैं- इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने लोया की मौत की जांच की मांग से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया. ऐसा करने के पीछे महाराष्ट्र सरकार की एसआईडी रिपोर्ट का हवाला दिया गया था. लेकिन राज्य सरकार ने कानून विभाग की वो चिट्ठियां जिनमें लोया के ठहरने से जुड़ा निवेदन किया गया था या रवि भवन के बुकिंग रजिस्टर को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश नहीं किया था. रवि भवन में लोया के ठहरने से जुड़ी जानकारी वाले किसी पन्ने को क्षति पहुंचाना उस सबूत हो क्षति पहुंचाने के बराबर होगा जिसे कोर्ट के सामने पेश किया जाना चाहिए था.
6 जून को वकील और कार्यकर्ता सतीश उइके ने नागपुर की पीडब्ल्यूडी के पास एक आरटीआई लगाई. इसमें उन सभी एप्लिकेशन की कॉपी मांगी गई थी जिसमें रवि भवन में 20 नवंबर 2014 से 2 दिसंबर 2014 के बीच बुकिंग की बात कही गई थी. जवाब में पीडब्ल्यूडी ने 27 से 30 नवंबर के बीच की रजिस्टर में एंट्री की जानकारी साझा की और जो बिल्कुल खाली थी. हालांकि, आखिरी दिन एक एंट्री जरूर थी, लेकिन इसका किसी जज के वहां ठहरने से कोई लेना देना नहीं था. इसमें 7 और 8 दिसंबर 2014 की प्रतियां भी सामने आईं. उइके ने पीडब्ल्यूडी के फैसले पर अपील की जिसमें 1 और 2 दिसबंर के पन्नों की कॉपी मांगी गई और आरोप लगाए कि 30 नवंबर के रिकॉर्ड के साथ “छेड़छाड़ की गई है और उन्हें हटाया गया है ताकि जज लोया की मौत से जुड़े आपराधिक सबूतों को छिपाया जा सके.”
अपील की सुनवाई के दौरान नागपुर पीडब्ल्यूडी के लोक सुचना अधिकारी और सहायक अभियंता चंद्रशेखर ईश्वर गिरी ने कहा कि “30.11.2014 के बाद संबंधित मूल रजिस्टर में 7.12.2014 से आगे की जानकारी है.” प्रथम अपीलीय प्राधिकारी और कार्यपालक अभियंता जनार्दन भानुस ने कहा, “जैसा की संबंधित रजिस्टर में 1.12.2014 से 6.12.2014 के बीच के रिकॉर्ड नहीं है इसलिए अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई 1.12.2014 से 2.12.2014 के बीच की जानकारी देने का सवाल ही नहीं उठता है.”
कानून विभाग ने 27 नवंबर 2014 की तारीख वाली जिस चिट्ठी में लोया और जोशी के लिए ठहरने के कमरों का अनुरोध किया था, उसमें लिखा था दोनों जज नागपुर “सरकारी काम से” जा रहे हैं- महाराष्ट्र एसआईडी ने जो कहा है यह चिट्ठी उस बात को लेकर विरोधाभास पैदा करती है. महाराष्ट्र एसआईडी के मुताबिक “जज लोया एक साथी के परिवार में हो रही शादी में शरीक होने गए थे.” इस चिट्ठी में नागपुर पीडब्ल्यूडी के एक अतिरिक्त अभियंता द्वारा भी कुछ लिखा गया है जिसमें रवि भवन के एक किरानी को इस बात के निर्देश दिए गए हैं कि “बिल्डिंग नंबर 1 में 1 कमरा दे दिया जाए.” नागपुर जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण ने 19 नवंबर 2014 को सात जजों के लिए कमरों की बुकिंग से जुड़ी चिट्ठी जारी की. ये चिट्ठी जज स्वप्न जोशी की ओर से जारी की गई थी. उनके परिवार के सदस्य की शादी 30 नवंबर को होने वाली थी. चिट्ठी में लिखा था कि सात जज- स्वप्न जोशी, श्रीकांत कुलकर्णी, आरजी अवचट, आरएन लड्डा, एसएम मोदक, एसबी भालकर और एलडी बाइल- “किसी जरूरी काम से” नागपुर से सफर कर रहे हैं. आठ दिनों बाद नागपुर पीडब्ल्यूडी ने लोया के लिए बुकिंग से जुड़ी एक चिट्ठी जारी की. लेकिन जजों के लिए सरकारी बुकिंग से लेकर एक किरानी को लोया और जोशी को अलग बिल्डिंग में कमरे देने के निर्देषों के बावजूद बुकिंग रजिस्टर में इनमें से कोई नाम मौजूद नहीं है.
रवि भवन गेस्ट हाउस के वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि यहां दो रजिस्टर होते हैं- एक बुकिंग रजिस्टर जिसमें पहले से की गई बुकिंग से जुड़ी जानकारी होती और दूसरा ठहरे हुए लोगों से जुड़ी जानकारी वाला रजिस्टर जिसमें यहां ठहर रहे अतिथियों की जानकारी होती है. रवि भवन के वर्तमान और पूर्व के छह कर्मचारियों ने इस बात की पुष्टी की कि किसी के यहां ठहरने के पहले की गई बुकिंग के अनुरोध को रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. एक कर्मचारी ने कहा, “जो चिट्ठी लिखी गई थी या फोन पर जो बुकिंग की जाती है इन सबके बारे में रजिस्टर में लिखा जाता है.” एक और कर्मचारी ने कहा, “अगर कोई सचिव आ रहे हैं या हाई कोर्ट के कोई जज आ रहे हैं या कोई राजपत्रित-सरकारी आधिकारी आ रहे हैं तो उनके नाम पहले बुकिंग रजिस्टर में लिखे जाते हैं.” कर्मचारियों ने रजिस्टर के इस्तेमाल से जुड़ी जो जानकारी दी वो नागपुर पीडब्ल्यूडी द्वारा दी गई जानकारी में नहीं झलकती है. क्योंकि 27 से 29 नवंबर 2014 के बीच के पन्नों में कोई प्रविष्टी है ही नहीं. जबकि ठहरने वालों से जुड़े रजिस्टर में इन्हीं तीन दिनों के समय में छह प्रविष्टियां हैं.
जिन 9 जजों के लिए बुकिंग का आनुरोध किया गया था उनमें से सिर्फ कुलकर्णी ही ऐसे हैं जिनका नाम वहां ठहरने वालों के रजिस्टर में दर्ज है- वो उन सात जजों में से एक हैं जिनका नाम 19 नवंबर को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा लिखी गई चिट्ठी में शामिल था. हालांकि, दूसरे रजिस्टर में उनका नाम गायब है.
उइके को 30 नवंबर 2014 से जुड़ी बुकिंग रजिस्टर की जो कॉपी मिली है उसमें सिर्फ एक प्रविष्टी है- इसमें “नितिन” रावत का नाम लिखा है, नितिन रावत नाम का एक व्यक्ति फिलहाल अखिल भारत कांग्रेस की पिछड़ी जाति विभाग के प्रमुख है और वो नागपुर में रहता है. जब उनसे संपर्क किया गया, तो रावत ने कहा कि उन्हें ऐसा कुछ भी याद नहीं है कि उन्होंने रवि भवन से जुड़ी कोई बुकिंग की हो. लेकिन वहां ठहरने वालों के रजिस्टर में 30 नवंबर से पांच प्रविष्टियां हैं जिनमें से एक नाम “रजिस्ट्रार एस कुलकर्णी” का है. पिछले साल दिसंबर में दी कैरेवन ने ये छापा था कि कुलकर्णी के वहां ठहरने से पहले की एंट्री के साथ छेड़छाड़ की गई है- इसमें लिखा है कि रवि भवन में बाबासाहेब अंबेडकर मिलिंद पाखले नाम के एक अतिथि ने “30-11-17” या 30 नवंबर 2017 को चेक इन यानी रहने से जुड़ी प्रविष्टि की है, वहीं इस पेज में साल 2014 से जुड़ी प्रविष्टी भी है. वहां ठहरने वालों से जुड़े रजिस्टर में नवंबर 2014 से जुड़ी प्रविष्टी में चेक आउट यानी कमरा छोड़ने से जुड़ी प्रविष्टि में तीन साल बाद की बात है जिसमें समय का जिक्र नहीं है, हालांकि तारीख 30-11-2017 की ही है. 20 दिसंबर 2017 को मिलिंद पाखले नाम के वकील ने सदर पुलिस स्टेशन में इस बात की शिकायत दर्ज कराई की रवि भवन के रजिस्टर में उन्होंने जो प्रविष्टि की थी उसके साथ छेड़छाड़ की गई है.
बुकिंग रजिस्टर में हुई छेड़छाड़ उसी दौरान की गई लगती है. आरटीआई अपीलीय प्राधिकरण ने दावा किया कि “30.11.2014 के बाद संबंधित मूल रजिस्टर में 7.12.2014 के बाद के रिकॉर्ड हैं” और “1.12.2014 से लेकर 6.12.2014 तक के रिकॉर्ड नहीं हैं.” वहां ठहरने वालों से जुड़े रजिस्टर में इन तारीखों में कम से कम सात प्रविष्टियां मौजूद हैं- इनमें से दो प्रविष्टियां 2 दिसबंर की हैं, दो 3 दिसंबर की हैं, एक 5 दिसंबर की है और दो 6 दिसबंर की हैं. लोया के वहां ठहरने से जुड़ी तारीखों के मामले में वहां ठहरने वालों से जुड़ी एक भी जानकारी बुकिंग रजिस्टर में दर्ज नहीं है. एक तरफ जहां वहां ठहरने वालों से जुड़े रजिस्टर से छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज कराई गई है, वहीं इससे जुड़ी कई ऐसी जानकारियां हैं जो बुकिंग रजिस्टर से गायब हैं. ऐसे में इस बात की गुंजाइश पैदा होती है कि लोया की मौत से जुड़ी तारीखों के मामले में बुकिंग रजिस्टर से छेड़छाड़ की गई है.
आरटीआई प्राधिकारियों के साथ उइके के जो पत्राचार हुए हैं उसकी दृष्टी से लोया के रवि भवन में ठहरने से जुड़े रूम की बुकिंग के लिखित रिकॉर्ड का गायब होना और चिंताजनक हो जाता है. महाराष्ट्र के कानून विभाग ने 2 जून 2018 की तारीख में दिए गए एक आरटीआई जवाब में कहा था कि लोया के कमरे की बुकिंग से जुड़ी चिट्ठी को “नष्ट” कर दिया गया है क्योंकि ये एक साल पुरानी हो गई थी. ये जवाब देने वाली आईएम भार्गव कानून विभाग की जनसूचना अधिकारी हैं. वो विभाग की डेस्क अधिकारी भी हैं. संयोग की बात है कि नवंबर 2014 वाली उस चिट्ठी पर इन्हीं के दस्तखत हैं जिसमें लोया के लिए रवि भवन में कमरा बुक करने की बात कही गई थी.
जिस आरटीआई में चिट्ठी की कॉपी मांगी गई थी उसी में उइके ने उससे संबंधित किसी और “ऑफिस नोट औऱ पूरे दस्तावेज” की मांग की थी. इसके जावब में भार्गव ने कहा: जैसाकि ये दस्तावेज उप सचिव के मौखिक निर्देशों पर जारी किया गया था, इसके बारे में कोई टिप्पणी नहीं की गई है. वैसे ही, अगर इस ऑफस द्वारा रवि भवन में बुकिंग के लिए कोई दास्तावेज जारी भी किया गया है, वहां इस ऑफिस के किसी दस्तावेज के आधार पर कमरा बुक नहीं किया गया था.
भार्गव ने बिना पूछे जिस बयान में कहा है कि लोया के लिए “कमरा उस ऑफिस द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों के आधार पर बुक नहीं किया गया” शक पैदा करने वाला है. इसके बाद 15 और 19 सितंबर 2018 की दो आरटीआई में उइके ने भार्गव से उनके इस जवाब के बारे में सवाल किया. उन्होंने 21 सितंबर को जवाब दिया: “इस ऑफिस ने कमरे की बुकिंस से जुड़ा कोई दस्तावेज नहीं हासिल किया है. इसलिए एक निजी विचार साझा किया गया था.” सूचना के अधिकार से जुड़े कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत जन-सूचना अधिकारी किसी भी परिस्थिति में अपना “निजी विचार” दे सकते हैं.
भार्गव ने आरटीआई के जवाब में जो निजी विचार दिया है अगर वो सच है तो बेतुका होगा. नागपुर पीडब्ल्यूडी से चिट्ठी की जो कॉपी हासिल की गई है उससे ये बात साबित होती है कि रवि भवन को राज्य सरकार की संस्थओं से दो चिट्ठियां मिली थीं जिनमें कानून विभाग की भी चिट्ठी शामिल थी. इनमें लोया के वहां ठहरने के दौरान कई कमरों की बुकिंग की बात कही गई थी. लोया और जोशी की बुकिंग से जुड़ी जो चिट्ठी थी उस पर भार्गव के दस्तखत थे और उसमें “नागपुर स्थित रवि भवन के मैनेजर को जरूरी एक्शन” के लिए कहा गया था. इसमें एक अतिरिक्त अभियंता ने बुकिंग कलर्क को विशेष निर्देश भी दिए थे- जिनका नाम “श्री सावंत” था- जिसमें कहा गया था कि “बिल्डिंग नंबर 1” में कमरा दिया जाए. रवि भवन के अलग-अलग सदस्यों के बीच पत्राचार की इस साफ श्रृंखला को ध्यान में रखते हुए, इसे समझना मुश्किल है कि भार्गव इस बात को लेकर इतना आश्वस्त कैसे थीं कि कमरा “उनके ऑफिस से जुड़े दस्तावेज के आधार पर बुक नहीं किया गया था.”
उनके जवाब से कई सवाल पैदा होते हैं. अगर कमार कानून विभाग के दस्तावेज पर बुक नहीं किया गया था फिर इसने ऐसी कोई चिट्ठी जारी ही क्यों की था? क्या भार्गव जब अपना निजी विचार दे रही थीं तब उन्हें ये बात पता थी कि रवि भवन के बुकिंग रजिस्टर में लोया या जोशी के नाम से की गई बुकिंग की कोई जानकारी नहीं होगी? इससे भी बड़ी बात ये है कि भार्गव, जो एक जन सूचना अधिकारी हैं, उन्हें आखिरकार अपने निजी विचार देने की नौबत क्यों आन पड़ी? जब दी कैरेवन ने उन्हें फोन किया तो उन्होंने कहा कि वो सवालों के जवाब सिर्फ ईमेल पर देंगी. इसके छापे जाने तक उन्होंने ईमेल पर भेजे गए सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.
बावजूद इसके की महाराष्ट्र सरकार के कानून विभाग ने कार्यरत जजों से जुड़ी बुकिंग के लिए पहले से लिखित में दिया था, उनके नाम की उपस्थिति गायब है. रवि भवन के वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों के मुताबिक प्रक्रिया के अनुसार इन नामों को बुकिंग रजिस्टर में लिखा जाना चाहिए था. इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि ये सिर्फ एक संयोग है. वैकल्पिक तौर पर ये माना जा सकता है इससे जुड़े पन्नों को जानबूझकर रजिस्टर से हटा दिया गया. अगर ऐसा है, तो ये ना सिर्फ सबूत को मिटाने के बराबर है बल्कि संभवत: ये अदालत की अवमानना भी है.