तिहाड़ से खबर : नहीं डिगे गिरफ्तार किसानों के हौसले, आंदोलन वापिस लेने से किया इनकार

29 जनवरी को सिंघू सीमा पर तैनात पुलिस. संचित खन्ना / हिंदुस्तान टाइम्स / गेट्टी इमेजिस

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29 जनवरी को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पंजाब के पेरों गांव के 43 वर्षीय किसान जसमिंदर सिंह नम आंखों से मेरी तरफ देखते हुए कहते हैं, “सरकार को क्या लगता है… वह हमें जेल में डालकर हमारे हौसले तोड़ देगी. वह बड़ी गलतफहमी में है. शायद उसने हमारा इतिहास नहीं पढ़ा. हम तब तक वापस नहीं हटेंगे, जब तक यह तीनों कृषि कानून वापस नहीं हो जाते.”

गुस्से का गुब्बार थोड़ा थमने पर तिहाड़ जेल की छोटी सी चक्की (कमरा) में लगे रोशनदान से आ रही रोशनी को जसमिंदर एकटक देखते रहे. एक लंबी खामोशी को खुद ही तोड़ते हुए उन्होंने कहा, “29 जनवरी को हम कई किसान नरेला मार्किट से सामान लाने गए थे. जब वापस आ रहे थे तो पुलिस ने हम निहत्थों पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया.”

“ये देख पुलिस ने कितनी बुरी तरह से मारा है.” जसमिंदर ने अपना पजामा हटाकर अपने पैरों पर पड़े डंडों की चोट के निशान दिखाते हुए कहा.

जसमिंदर एक-एक कर अपने शरीर पर लगी चोटों के निशान मुझे दिखाते रहे. गेहूंए शरीर पर नीले रंग के बड़े-बड़े निशान खुद ही अपनी कहानी बता रहे थे. यह इस बात के सबूत थे कि उन्हें डंडों से बहुत बुरी तरीके से पीटा गया है.

जसमिंदर ने बताया कि 30 के करीब किसानों पर लाठीचार्ज करने के बाद पुलिस उन्हें हरे रंग की एक बस में चढ़ाकर एक थाने में ले आई और मेडिकल करवा कर उन्हें तिहाड़ जेल में बंद कर दिया.

हरियाणा की टोहाना तहसील के हिम्मतपुरा गांव के 47 वर्षीय किसान मलकीत सिंह भी उन्हीं किसानों में शामिल थे, जिन्हें पुलिस ने 29 जनवरी को लाठीचार्ज करने के बाद गिरफ्तार किया था. मलकीत सिंह के चेहरे पर भय मिश्रित आत्मविश्वास के अस्पष्ट से भाव थे. उनके इन अस्पष्ट भावों के बारे में पूछने पर उन्होंने मुझे बताया, “डर तो कुछ नहीं है, बस चिंता है. हमें तो यह भी नहीं पता है कि हमारे ऊपर धाराएं कौनसी- लगाई हैं और क्यों लगाई हैं.”

मलकीत सिंह के साथ उनकी चक्की में बंद पंजाब के संगरूर जिले के देहला गांव के दो नौजवान किसान, जगसीर और जस्सी लगातार सारे किसानों की हिम्मत बढ़ाने के लिए पंजाबी में छोटी-छोटी लोक कहावतें सुना रहे थे. नौजवान किसान जस्सी ने मुझे बताया, “मैं पिछले कई साल से बीकेयू (उग्राहां) के साथ काम कर रहा हूं और किसानों पर होने वाले राजकीय दमन का पहले भी गवाह रहा हूं. हमारी सारी किसान यूनियनों ने ऐलान कर दिया है कि जब तक जेलों में बंद किसानों को नहीं छोड़ा जाता, तब तक सरकार से किसी भी तरह की बातचीत नहीं की जाएगी. सरकार को पता होना चाहिए कि किसान गिरफ्तारियों से डरने वाले नहीं हैं. हमारे हौसले पहाड़ों से भी बड़े हैं और हमारा हौसला तोड़ पाना इस सरकार के बस की बात नहीं. पंजाब की किसान लहर मजबूती से संघर्ष करने के लिए जानी जाती है और हम सभी किसान इसी संघर्षशील किसान लहर के वारिस हैं.”

तिहाड़ जेल में लगभग 120 के करीब किसानों के बंद होने की खबर सरकार ने खुद स्वीकारी है. जेल के जिस वार्ड में मैं बंद था उसमें उन बंदियों को बंद किया गया था जिनके नाम जे, के, एल और एम अक्षरों से शुरू होते हैं. अपनी तीन दिनों की हिरासत के दौरान इसी वार्ड में मेरी मुलाकात 70 साल के बाबा जीत सिंह से हुई. बाबा जीत सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के गांव बनियानी के गुरुद्वारे में ग्रंथी हैं और किसान आंदोलन में बुराड़ी मैदान में बैठे किसानों को लंगर खिलाते हैं. सफेद दाढ़ी-मूंछों के बीच छुपे उनके झुरीदार चेहरे के बीच पसरी उनकी हंसी सत्ता पर तंजकसती-सी लगती है. उन्होंने मुझे बताया, “मैं तो सरकार के बताए गए बुराड़ी मैदान में बैठे किसानों के लिए लंगर व्यवस्था में लगा हुआ था. हमारे ऊपर लाठीचार्ज करके हमें भी उठा लाए.”

बाबा जीतसिंह ने मुझे उनके साथ बंद हरियाणा के रोहतक जिले के रिठाल गांव के 60 वर्षीय किसान जगबीर सिंह से मिलवाया. जगबीर सिंह ने मुझे बताया, “मुझे पीरागढ़ी के मेट्रो स्टेशन के पास से पुलिस ने गिरफ्तार किया. मैं राजेन्द्र प्लेस, अपने भाई के घर रहा था, लेकिन मुझे रास्ते में ही यह कहकर गिरफ्तार कर लिया कि बस आधार कार्ड देखकर छोड़ देंगे. इन्होंने छोड़ने के लिए थोड़ी न उठाया था. बल्कि तिहाड़ में डालने के लिए उठाया था. मेरे साथ जींद के एक नौजवान किसान को भी तिहाड़ में बंद कर दिया.”

जगबीर सिंह यह सब बता ही रहे थे कि उन्होंने पास खड़े नौजवान नरेंद्र गुप्ता की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह देखिए इस लड़के को. यह तो किसान भी नहीं है. फिर भी इसको किसान आंदोलन के नाम पर बंद कर दिया.”

मैंने जब नरेंद्र गुप्ता से उनका पक्ष पूछा तो उन्होंने मुझे बताया, “मैं तो दिल्ली का रहने वाला हूं और किसान भी नहीं हूं. मैं चुपचाप अपने घर की तरफ जा रहा था. अचानक पुलिस ने मुझे उठा लिया. मैंने पुलिस को बताया भी कि मैं किसान नहीं हूं लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी. हालांकि अब मुझे बाहर निकालने की प्रक्रिया की जा रही है. शायद जल्दी ही मैं घर वापस चला जाऊं.”

जेल की जिस चक्की में मैं कैद था उसकी बगल की चक्की में पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक के कुछ नौजवान किसान भी कैद थे. वे दिन मैं कई-कई बार ऊंची आवाज में किसान लहर से जुड़े पंजाबी लोकगीत गाते-

“केन्द्र दी सरकार रही सदा किसाना लई गद्दार,

हो जट्टा तगड़ा होजा.

आजा सड़क ते धरना मार, लड़ाई छिड़ पई आर या पार

हो जट्टा तगड़ा होजा.”

गीत के बाद वह ‘किसान एकता जिंदाबाद’ के नारे लगाते, जेल में कैद दूसरे बंदी जिंदाबाद के नारों के साथ अपना जवाब बुलंद करते.”

जिन किसानों से मैं मिला उन्होंने मुझे अपने परिवार वालों के फोन नंबर दिए. ज्यादातर ने अपने परिवार वालों से ज्यादा कुछ नहीं कहा. वे चाहते थे कि मैं उनके घर जाकर उनके परिवार वालों को यह हौसला दूं कि वह ठीक हैं.

गीतों और नारों को रिकॉर्ड करने के लिए जेल में मेरे पास कुछ न था, लेकिन ये सदाएं अभी भी मेरे कानों में गूंज रही हैं. 

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