एक साल पहले नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान मेरठ में एक ही दिन में पांच मुसलमानों (सभी पुरुष) की कथित रूप से पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई थी. लेकिन मृतकों के परिजनों द्वारा बार-बार शिकायत दर्ज कराने के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस ने अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की है. इस पूरे साल मृतकों के परिजनों ने उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों और मेरठ प्रशासन के वरिष्ठ सदस्यों के समक्ष निरंतर शिकायतें दर्ज कराई हैं जिनमें उन्होंने दर्जनों पुलिस वालों का नाम लिया है जिनकी गोलीबारी में उनके रिश्तेदारों की मौत हुई है. प्रत्यक्षदर्शी के बयानों वाली शिकायतों में शिकायतकर्ताओं ने लिखा है कि 20 दिसंबर 2019 को पुलिस ने सीएए विरोध प्रदर्शनकारियों को मारने के इरादे से अंधाधुंध गोलियां बरसाई. परिवारों ने लिखा है कि इस गोलीबारी में उनके रिश्तेदारों की मौत हो गई जो प्रदर्शन में भाग नहीं ले रहे थे बल्कि वहां से गुजर रहे थे.
बाद में पुलिस ने दावा किया कि मेरठ पुलिस द्वारा दर्ज चार अन्य एफआईआर उन पांच मौतों से संबंधित हैं. लेकिन इनमें से किसी भी एफआईआर में परिवार वालों के लगाए आरोप दर्ज नहीं हैं. यहां तक कि किसी भी एफआईआर में पुलिस की गोलीबारी का उल्लेख नहीं है. इसके अलावा पुलिस ने दावा किया है कि उनकी जांच में पाया गया है कि इन पांच लोगों की मौत प्रदर्शनकारियों की गोलीबारी में तब हुई जब उन्होंने पुलिस पर गोलियां चलाईं. परिजनों ने अपनी शिकायत में कहा है कि पुलिस ने उन्हें लगातार धमकाया और डराया है कि वे अपने बयान वापस ले लें. मैंने इस संबंध में मेरठ पुलिस को सवाल भेजे थे लेकिन पुलिस ने जवाब नहीं दिया.
मेरठ में जिन उपरोक्त पांच लोगों की मौत हुई थी उनके नाम हैं - अलीम अंसारी, मोहसिन, जाहिर, मोहम्मद आसिफ और आसिफ खान. यह लोग क्रमशः ढाबा, कबाड़ी, जानवरों का चारा, ई-रिक्शा चलाना और टायर रिपेयरिंग का काम करते थे और ये पांचों अपने-अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे. 20 दिसंबर को दोपहर 2 और शाम 6 बजे के बीच इन लोगों को गोलियां लगीं और उसी दिन सभी की मौत हो गई.
कई मृतकों के परिजनों का कहना है कि उन्होंने संबंधित पुलिस स्टेशनों में घटना वाले दिन ही शिकायत दर्ज करा दी थी लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया. चार मृतकों के परिजनों ने मजिस्ट्रेट न्यायालय में पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अपील की लेकिन उनकी अपीलों को या तो खारिज कर दिया गया या अभी सुनवाई लंबित है. पिछले साल मोहसिन अली, मोहम्मद आसिफ और जाहिर के परिजनों ने मेरठ के वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल, जिला मजिस्ट्रेट और उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजी से संपर्क किया. मोहम्मद आसिफ के पिता ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से भी संपर्क किया जिसने पुलिस के इस जवाब के बाद कि आसिफ की मौत प्रदर्शनकारियों की गोलियों से हुई थी, उनकी शिकायत को बंद कर दिया.
2019 में एक सात साल के बच्चे सहित 22 मुसलमान पुरुषों की 20 और 21 दिसंबर को हुए सीएए विरोधी आंदोलन में मौत हो गई थी. मरने वाले मुख्य रूप से मेरठ, कानपुर, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, संभल, रामपुर, बिजनौर और वाराणसी के थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुलिस की ज्यादतियों और मौतों की जांच के लिए एक याचिका डाली गई थी लेकिन उस पर फरवरी 2020 के बाद से सुनवाई नहीं हुई है. फरवरी में कोर्ट द्वारा यूपी पुलिस को निर्देश दिए जाने के बाद पुलिस ने 22 मौतों के संबंध में अपनी जांच के सैकड़ों पन्ने अदालत के समक्ष जमा कराए थे. पुलिस ने अदालत को दिए अपने जवाब में अपनी गलती नहीं मानी है और कहा है कि पुलिस की कार्रवाई में किसी की जान नहीं गई.
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