मेरठ में सीएए विरोधी प्रदर्शन में पुलिस की गोली से पांच की मौत का आरोप लेकिन दर्ज नहीं हुई एफआईआर, हाई कोर्ट में याचिका लंबित

26 साल के मोहसिन की मां नफीसा बेगम (बाएं) और बहन मोहसिना (दाएं). दिसंबर 2019 में मेरठ में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान मोहसिन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एक ही दिन में शहर में पांच मुस्लिम लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उनके परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें गोली मारी. ऋषि कोछड़/कारवां

एक साल पहले नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान मेरठ में एक ही दिन में पांच मुसलमानों (सभी पुरुष) की कथित रूप से पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई थी. लेकिन मृतकों के परिजनों द्वारा बार-बार शिकायत दर्ज कराने के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस ने अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की है. इस पूरे साल मृतकों के परिजनों ने उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों और मेरठ प्रशासन के वरिष्ठ सदस्यों के समक्ष निरंतर शिकायतें दर्ज कराई हैं जिनमें उन्होंने दर्जनों पुलिस वालों का नाम लिया है जिनकी गोलीबारी में उनके रिश्तेदारों की मौत हुई है. प्रत्यक्षदर्शी के बयानों वाली शिकायतों में शिकायतकर्ताओं ने लिखा है कि 20 दिसंबर 2019 को पुलिस ने सीएए विरोध प्रदर्शनकारियों को मारने के इरादे से अंधाधुंध गोलियां बरसाई. परिवारों ने लिखा है कि इस गोलीबारी में उनके रिश्तेदारों की मौत हो गई जो प्रदर्शन में भाग नहीं ले रहे थे बल्कि वहां से गुजर रहे थे.

बाद में पुलिस ने दावा किया कि मेरठ पुलिस द्वारा दर्ज चार अन्य एफआईआर उन पांच मौतों से संबंधित हैं. लेकिन इनमें से किसी भी एफआईआर में परिवार वालों के लगाए आरोप दर्ज नहीं हैं. यहां तक कि किसी भी एफआईआर में पुलिस की गोलीबारी का उल्लेख नहीं है. इसके अलावा पुलिस ने दावा किया है कि उनकी जांच में पाया गया है कि इन पांच लोगों की मौत प्रदर्शनकारियों की गोलीबारी में तब हुई जब उन्होंने पुलिस पर गोलियां चलाईं. परिजनों ने अपनी शिकायत में कहा है कि पुलिस ने उन्हें लगातार धमकाया और डराया है कि वे अपने बयान वापस ले लें. मैंने इस संबंध में मेरठ पुलिस को सवाल भेजे थे लेकिन पुलिस ने जवाब नहीं दिया.

मेरठ में जिन उपरोक्त पांच लोगों की मौत हुई थी उनके नाम हैं - अलीम अंसारी, मोहसिन, जाहिर, मोहम्मद आसिफ और आसिफ खान. यह लोग क्रमशः ढाबा, कबाड़ी, जानवरों का चारा, ई-रिक्शा चलाना और टायर रिपेयरिंग का काम करते थे और ये पांचों अपने-अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे. 20 दिसंबर को दोपहर 2 और शाम 6 बजे के बीच इन लोगों को गोलियां लगीं और उसी दिन सभी की मौत हो गई.

कई मृतकों के परिजनों का कहना है कि उन्होंने संबंधित पुलिस स्टेशनों में घटना वाले दिन ही शिकायत दर्ज करा दी थी लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया. चार मृतकों के परिजनों ने मजिस्ट्रेट न्यायालय में पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अपील की लेकिन उनकी अपीलों को या तो खारिज कर दिया गया या अभी सुनवाई लंबित है. पिछले साल मोहसिन अली, मोहम्मद आसिफ और जाहिर के परिजनों ने मेरठ के वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल, जिला मजिस्ट्रेट और उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजी से संपर्क किया. मोहम्मद आसिफ के पिता ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से भी संपर्क किया जिसने पुलिस के इस जवाब के बाद कि आसिफ की मौत प्रदर्शनकारियों की गोलियों से हुई थी, उनकी शिकायत को बंद कर दिया.

2019 में एक सात साल के बच्चे सहित 22 मुसलमान पुरुषों की 20 और 21 दिसंबर को हुए सीएए विरोधी आंदोलन में मौत हो गई थी. मरने वाले मुख्य रूप से मेरठ, कानपुर, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, संभल, रामपुर, बिजनौर और वाराणसी के थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुलिस की ज्यादतियों और मौतों की जांच के लिए एक याचिका डाली गई थी लेकिन उस पर फरवरी 2020 के बाद से सुनवाई नहीं हुई है. फरवरी में कोर्ट द्वारा यूपी पुलिस को निर्देश दिए जाने के बाद पुलिस ने 22 मौतों के संबंध में अपनी जांच के सैकड़ों पन्ने अदालत के समक्ष जमा कराए थे. पुलिस ने अदालत को दिए अपने जवाब में अपनी गलती नहीं मानी है और कहा है कि पुलिस की कार्रवाई में किसी की जान नहीं गई.

हाईकोर्ट में पुलिस ने जो दस्तावेज जमा कराए हैं उनकी कॉपी कारवां के पास है. इन दस्तावेजों और अन्य दस्तावेजों की पड़ताल करने से लगता है कि मेरठ पुलिस ने निरंतर रूप से अपने जवानों की गोलीबारी के संबंध में प्राप्त शिकायतों को नजरअंदाज किया, खासकर उन शिकायतों को जो मृतकों के परिजनों ने की थी. मीडिया में दिसंबर 2019 में प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से जो खबरें आईं थी वे परिजनों की शिकायतों की पुष्टि करती हैं. इन परिवारों के वकील अली जैदी और रियासत अली हैं. अली जैदी ने बताया कि पुलिस और प्रशासन ने उनके बयानों को कभी गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने कहा, “हमको तो कभी एंटरटेन ही नहीं किया गया. इस मामले में ऐसी कई चीजें हैं जो कानूनी दृष्टि से न्यायोचित नहीं हैं. शिकायत जिनके खिलाफ है वही लोग इसकी जांच कर रहे हैं.”

कानूनी तौर पर पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करनी होती है और उसकी जांच करनी होती है. मेरठ में हुई इन मौतों के संबंध में पुलिस ने ऐसा न कर अपने ही अधिकारियों द्वारा हत्या किए जाने के गंभीर आरोपों से खुद को बचाया है.

20 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के बहुत सारे इलाकों में सीएए विरोधी प्रदर्शन हुए थे जिनमें जुम्मे (शुक्रवार) की नमाज के बाद इस भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया. मेरठ में तकरीबन 2 बजे दोपहर को आंदोलनकारी फिरोज नगर, ट्यूबवेल तिराहा और कोतवाली में जमा हुए. ये मुस्लिम बहुल इलाके हैं. ये लोग हापुड़ सड़क से प्रहलाद नगर के भूमिया का पुल इलाके की तरफ बढ़ने लगे. ये सारे इलाके एक दूसरे से महज कुछ किलोमीटरों की दूरी पर हैं और ब्रह्मपुरी, लिसाड़ी गेट और नौचंदी पुलिस स्टेशन में आते हैं. दर्ज एफआईआरों के अनुसार कई पुलिस स्टेशनों की पुलिस प्रदर्शन स्थल पर मौजूद थी.

ईद-उल-हसन (बीच में), जिनके बेटे मोहम्मद आसिफ को 20 दिसंबर 2019 को मेरठ में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान गले के पास गोली मार दी गई थी. अपने बेटे की मौत के बाद से, हसन ने मेरठ जिले के पुलिस प्रमुखों के साथ-साथ मेरठ के जिला मजिस्ट्रेट और साथ ही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भी शिकायतें भेजीं, जिसमें पुलिस पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया. ऋषि कोछड़/कारवां

दिसंबर में यहां के स्थानीय लोगों ने कारवां को बताया था कि प्रदर्शन के मद्देनजर दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद कर लीं थी. स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि तनाव की स्थिति जरूर थी लेकिन जब तक पुलिस ने मुस्लिम नागरिकों को उकसाया नहीं तब तक प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे. एक मीडिया रिपोर्ट में छपी खबर के अनुसार पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया और एक बिंदु पर यह मुठभेड़ हिंसक हो गई जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शन को पूरी तरह से कुचलना शुरू कर दिया. उसने प्रदर्शनकारियों को लाठियों से पीटा, उन पर पत्थर फेंके, आंसू गैस के गोले और मिर्ची के बम फेंके. पुलिस की इन हरकतों के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए गए. चश्मदीदों ने कारवां और अन्य मीडिया संस्थानों को बताया कि पुलिस वालों ने लोगों का पीछा नजदीकी संकरी गलियों तक किया और उन पर हत्या या घायल करने के इरादे से अंधाधुंध गोलियां बरसाईं. अपनी शिकायतों में मोहम्मद आसिफ, मोहसिन, आलम अंसारी और जाहिर के परिजनों ने कहा है कि इनकी मौत गोलीबारी में हुई है. मीडिया में प्रकाशित खबरों में एक अन्य (छठवीं) मौत का भी जिक्र है लेकिन पुलिस के आधिकारिक रिकॉर्ड में केवल पांच मौतें ही दर्ज हैं. स्थानीय लोगों और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि गैर आधिकारिक आंकड़ा 10 के पार जा सकता है.

26 साल का मोहसिन कबाड़ी का काम करता था और वह अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटा था. वह अपनी बीमार मां, बीवी और दो बच्चों के साथ रहता था. जब मोहसिन की मौत हुई उस वक्त उसका छोटा बच्चा चंद महीनों का था. मोहसिन मेरठ के गुलजार इब्राहिम इलाके में रहता था. उसकी मां नसीमा बेगम ने मुझे बताया, “मेरा बेटा तो चारा लाने गया था. किसी ने आकर हमें बताया कि जब वह चारा लेकर लौट रहा था तो उसे गोली लग गई. मैं नंगे पैर भाग कर उसके पास गई. मोहसिन की मौत छाती पर गोली लगने से हुई थी. मैंने मोहसिन के परिवार से सितंबर में मुलाकात की थी और उसके बाद कई बार उनसे बात की.

21 जनवरी को मोहसिन के बड़े भाई इमरान ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत शिकायत दर्ज कराई. यह धारा मजिस्ट्रेट के सामने एफआईआर दर्ज कराने की मांग करने का अधिकार व्यक्तियों को देती है. जब पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार करती है तो शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन करते हैं और मजिस्ट्रेट पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और मामले की तहकीकात करने का निर्देश देता है.

इमरान ने अपनी शिकायत में लिखा है कि 20 दिसंबर 2019 को शाम तकरीबन 4 बजे उनका भाई मोहसिन लिसाड़ी गेट सड़क की तरफ गया था और ब्रह्मपुरी स्टेशन के पास उसे गोली लगी थी. शिकायत में इमरान ने लिखा है कि वहां जमा लोग शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे और अचानक भूमिया पुल की ओर से पुलिस ने उन पर गोलीबारी कर दी. इमरान ने अपनी शिकायत में दो चश्मदीदों के बयानों का भी उल्लेख किया है. इमरान की शिकायत में ब्रह्मपुरी स्टेशन के 16 पुलिस अधिकारियों को नामजद किया है और 50 से 60 अज्ञात अधिकारी पर आरोप लगाया है. इमरान ने धारा 302 और 120बी के तहत एफआईआर दर्ज कराने की मांग की है. भारतीय दंड संहिता की ये धाराएं हत्या और षड्यंत्र से संबंधित हैं. शिकायत में लिखा है, “पुलिस ने जमा भीड़ और वहां से गुजर रहे लोगों पर एक षड्यंत्र के तहत अंधाधुंध गोलियां चलाईं. जिन पुलिस अधिकारियों का नाम आवेदन में है उन्होंने आवेदनकर्ता के भाई की हत्या की है.”

इमरान ने शिकायत में कहा है कि उन्होंने इस घटना के संबंध में घटना वाले दिन ब्रह्मपुरी स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन पुलिस ने शिकायत के आधार पर कभी एफआईआर दर्ज नहीं की. उन्होंने कहा है कि जब उन्होंने जांच के लिए पुलिस पर दबाव डाला तो उनकी और उनके परिजनों की हत्या कर देने और गलत मामलों में फंसा देने की धमकी दी गई. अपने भाई की मौत के कुछ दिनों बाद इमरान ने मेरठ के जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराई. कारवां के पास शिकायत की कॉपी है जिसमें डीएम कार्यालय की मोहर लगी है. शिकायत में इमरान ने कहा है कि उन्होंने अपनी शिकायतें मेरठ के सीनियर सुपरिटेंडेंट, अतिरिक्त महानिदेशक मेरठ पुलिस और पुलिस महानिदेशक (लखनऊ) को डाक से भेजी है. इमरान के वकीलों ने हमें उन शिकायतों की कॉपियां भी दिखाईं.

इस साल फरवरी में मजिस्ट्रेट ने इमरान की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कराने की अपील को खारिज कर दिया. अगस्त में इमरान ने अपने वकील रियासत अली के माध्यम से अदालत में संशोधन याचिका डाली जिसमें पूर्व के आदेश को पलट देने और एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है. उस याचिका में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट की अदालत ने आवेदन में बताए गए तथ्यों की जांच किए बिना यह फैसला सुनाया है और फैसला सुनाते हुए उसने पुलिस की कहानी पर पूरी तरह से विश्वास किया है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि मोहसिन की मौत से जुड़ी पुलिस जांच में एफआईआर  होने का अर्थ यह नहीं है कि पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती और आवेदन को खारिज करने के लिए मामलों में केसों के दर्ज होने को कारण नहीं बताया जा सकता. इस आवेदन में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लेख है जिसमें कहा गया है कि पुलिस की गोली से यदि किसी की मौत होती है तो इस संबंध में तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.

20 वर्षीय ई-रिक्शा चालक मोहम्मद आसिफ की तस्वीर दिखाता परिवार का सदस्य. 20 दिसंबर 2019 को आसिफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. वह परिवार का एकमात्र कमाने वाला था. ऋषि कोछड़/कारवां

अली ने मुझे 18 अगस्त को बताया कि सत्र न्यायालय ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और आरोपी पुलिसवालों को भी नोटिस गया है. अली ने कहा, “अब हम यह कह सकते हैं कि केस बहस के चरण में है. इसकी अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी.” इस केस की पिछली सुनवाई 15 दिसंबर को हुई थी.

ई-रिक्शा चालक 20 साल का मोहम्मद आसिफ 20 दिसंबर 2019 को अपने घर जा रहा था जब उसके कंधे के पास गोली आकर लगी. उसके पिता ईद उल हसन को उनके पड़ोसियों से पता चला कि उनके बेटे की मौत हो गई है. आसिफ अपने पीछे अपने पिता, माता और दो छोटे भाई-बहनों को छोड़ गया है. वह अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था. अक्टूबर में आसिफ के पिता हसन ने धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराई. शिकायत में उन्होंने कहा है कि उनके बेटे की मौत सिटी अस्पताल हापुड़ रोड थाना नौचंदी के पास पुलिस द्वारा चलाई गई गोली से हुई है. उन्होंने लिखा है कि वहां से गुजर रहे कुछ लोगों ने आसिफ को अस्पताल पहुंचाया लेकिन अस्पताल में उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया और उसकी मौत दूसरे अस्पताल में हुई.

अपनी शिकायत में हसन ने नौचंदी स्टेशन, सिविल लाइन स्टेशन और मेडिकल स्टेशन के 31 पुलिस अधिकारियों को नामजद किया है और 20-30 अज्ञात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की है. शिकायत में लिखा है कि पुलिस अधिकारियों ने “षड्यंत्र के तहत हत्या के इरादे से गोलियां चलाईं जिसके चलते आवेदक के बेटे को गोली लगी.” शिकायत में उन्होंने पुलिस के खिलाफ धारा 120-बी, 302, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. ये धाराएं षड्यंत्र, हत्या, उकसाने और आपराधिक धमकी से संबंधित हैं.

हसन ने अपने आवेदन में कहा है कि उन्होंने अपनी शिकायतें मेरठ जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और मेरठ रेंज के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल को पहले फरवरी 2020 में और बाद में अगस्त 2020 में भेजी थीं और साथ ही उन्होंने वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट को भी शिकायतें भेजी थीं “लेकिन आवेदक के आवेदन को नौचंदी थाना ने रिपोर्ट के रूप में दर्ज नहीं किया है इसलिए आवेदक मजबूर होकर न्यायपालिका की शरण में आया है.” उन्होंने अनुरोध किया है कि एफआईआर दर्ज की जाए और किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए.

सितंबर में हसन ने इंस्पेक्टर जनरल को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अपने और अपने परिवार के लिए सुरक्षा की मांग की थी. उस पत्र में उन्होंने लिखा था, “नौचंदी पुलिस आवेदक और उसके परिवार के प्रति शत्रुता का भाव रखती है और वह लगातार आवेदक को अपनी शिकायत वापस लेने को कह रही है. वे लोग हमें धमकी देते हैं कि पुलिस से भिड़ना ठीक नहीं है. वे कहते हैं कि जैसे ही उन्हें मौका मिलेगा वे हमें ऐसा सबक सिखाएंगे कि जिंदगी भर याद रखेंगे और उन्हें पता चल जाएगा पुलिस कैसे जांच करती है.”

हसन ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से भी पुलिस की गोलीबारी में अपने बेटे की हत्या की जांच करने का अनुरोध किया था. मार्च में आयोग ने मेरठ के एसएसपी को नोटिस भेजा था जिसका जवाब उन्होंने अगस्त में दिया. एसएसपी ने लिखा है कि पुलिस की जांच में आसिफ की मौत का कारण उस एफआईआर में दर्ज है जिसमें सीएए विरोधी आंदोलनकारियों पर पुलिस पर हमला करने और उस पर गोली चलाने का आरोप है और साथ ही उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप है. पत्र में लिखा है कि पुलिस ने कुछ उपद्रवियों की पहचान की है और एक शूटर का पता लगाया है जो आसिफ की मौत के लिए जिम्मेदार है.

जबकि हसन की शिकायत पर उसी पुलिस ने जांच की थी जिस पुलिस पर हसन ने आरोप लगाया है लेकिन आयोग ने एसएसपी के दावे को स्वीकार कर लिया. अगस्त के आखिर में आयोग ने हसन को एसएसपी के जवाब के साथ नत्थी एक पत्र भेजा. उस पत्र में लिखा था, “जवाब के मद्देनजर आयोग इस शिकायत को बंद कर रहा है.”

25 साल का आलिम अंसारी कोतवाली के पास जिस रईस होटल में काम करता था उस होटल के मालिक ने 20 दिसंबर 2019 के प्रदर्शन के मद्देनजर होटल बंद कर दिया था. आलिम के भाई मोहम्मद सलाहुद्दीन ने मुझे बताया कि घर लौट रहे आलिम को गोली सीधे सिर पर आकर लगी और उसकी खोपड़ी फट गई. सलाहुद्दीन ने आलिम के एक वीडियो का जिक्र किया जो उन्हीं के इलाके अहमदनगर में शेयर किया जा रहा था. उसमें एक आदमी आलिम के शव के बगल में खड़े होकर मदद के लिए गुहार लगा रहा है. एक दूसरे वीडियो में, जो पहले वीडियो के कुछ देर बाद लिया गया होगा, उसमें पुलिस की गाड़ी आलिम के शव के पास आकर रूकती है और पुलिस वाले बेतरतीब तरीके से आलिम को टांग से उठाकर गाड़ी में भर रहे हैं.

सलाहुद्दीन ने मुझसे कहा, “यह वीडियो शाम 5 या 5.30 बजे रिकॉर्ड किया गया था. मुझे 4.30 बजे फोन आया था कि मेरे भाई को गोली लगी है. हम उसके शव को ढूंढने सिटी अस्पताल गए जहां बहुत सारी पुलिस थी और उन्होंने हमें भीतर नहीं जाने दिया. उस रात बहुत डर का माहौल था. दूसरे दिन हम लोग अस्पताल पहुंचे.” सलाहुद्दीन विकलांग हैं और उन्होंने मुझे सिलसिलेवार ढंग से उन घटनाओं के बारे में बताया जो उसके कुछ घंटों के भीतर घटी थीं जिसमें आलिम के शव को हासिल करने के लिए उनके परिवार को धक्के खाने पड़े थे. अंततः आलिम का शव 21 दिसंबर की शाम को उनके हवाले कर दिया गया.

जब सितंबर में मैं आलिम के परिवार वालों से मिला तो आलिम के 80 साल के पिता हबीब अंसारी फूट-फूट कर रो रहे थे और उनकी बीवी सायरा उनके बगल में बैठी हुई थीं. सायरा ने मुझसे कहा कि उन्हें अपने बेटे की हत्या का इंसाफ चाहिए. उन्होंने कहा, “पहले तो लाश भी नहीं उठाई, फिर अब बोलते हैं कि हमने नहीं मारा. लेकिन हमारी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की.”

अक्टूबर में सलाउद्दीन ने धारा 156 (3) के तहत नौचंदी सिविल लाइन्स और मेडिकल पुलिस स्टेशन के 31 नामजद पुलिस अधिकारियों और 20-30 अज्ञात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. उसमें उन्होंने हापुड़ रोड में मौजूद चश्मदीद लोगों के बयानों का उल्लेख किया है जो लोग आलिम के शव को सिटी अस्पताल ले गए थे और जहां शव को लेने से इनकार कर दिया गया था. उन्हीं लोगों ने फिर आलिम का शव अस्पताल से बाहर निकाला जहां से पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया. सलाउद्दीन मुझे अपने साथ उस चश्मदीद के घर भी ले गए. मैं चश्मदीद के पिता से मिला जिन्होंने मुझे बताया कि उस घटना के बाद से वह चश्मदीद पुलिस के डर से कहीं छिपा हुआ है. पिता ने मुझे बेटे का पता नहीं दिया.

अपनी 156 (3) की शिकायत में सलाहुद्दीन ने लिखा है कि उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई थी. 14 फरवरी को दायर उस शिकायत की कॉपी कारवां के पास है और उसमें डीएम के कार्यालय की मोहर लगी है. शिकायत में सलाउद्दीन ने लिखा है कि उन्होंने मेरठ आईजी, एसएसपी और एडीजी के समक्ष भी शिकायत दर्ज कराई है. सलाउद्दीन ने लिखा है कि उनके बयान में नामजद पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 120बी, 302, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज की जाए और उनके भाई की हत्या की स्वतंत्र जांच कराई जाए.

40 साल के आसपास के जाहिर भी उस दिन बीड़ी पीने बाहर निकले थे. जाहिर जानवरों के चारा का काम करते थे और लिसाड़ी गेट इलाके में रहते थे. उस दिन जाहिर ने अपनी पत्नी के परिवार में एक शादी में जाने के लिए अपने बालों को कलर किया था. वह बीड़ी लेकर आए और एक छोटी दुकान के साथ बैठ कर पीने लगे. उनके पड़ोसियों ने बताया कि वहीं उनकी कनपटी पर गोली लगी. पड़ोसियों का कहना है कि पुलिस ने जाहिर को गोली मारी. उन लोगों ने अपनी उन कोशिशों के बारे में बताया जो लिसाड़ी गेट के आसपास के इलाके में भारी पुलिस के बंदोबस्त के बीच जाहिर को अस्पताल पहुंचाने के लिए उन लोगों ने की थीं. सितंबर में जब मैं जाहिर के मोहल्ले में गया तो वहीं के इकराम ने मुझे बताया कि सबको पता है कि पुलिस ने जानबूझकर उसे गोली मारी थी. “वह सड़क के किनारे बीड़ी पी रहे थे और हम लोग उन्हें अस्पताल नहीं पहुंचा सके क्योंकि पुलिस ने गली को ब्लॉक कर दिया था.” जाहिर की बीवी ज्यादा बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, “अभी तक एफआईआर ही नहीं हुई है पुलिस वालों के खिलाफ, 9 महीने हो गए.”

जाहिर के भाई शाहिद ने 17 जनवरी को लिसाड़ी गेट पुलिस स्टेशन के 18 नामजद पुलिस अधिकारियों और 30-40 अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत शिकायत दर्ज कराई है. अपनी शिकायत में उन्होंने धारा 120बी और 302 के तहत एफआईआर दर्ज कराने की मांग की है. शिकायत में उन्होंने कहा है कि नामजद पुलिस अधिकारियों ने “भीड़ पर गोली चलाने का षड्यंत्र किया. वे लोग भीड़ को मां-बहन की गालियां दे रहे थे और मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने और मार डालने की धमकी दे रहे थे. जिन लोगों का नाम मैंने अपनी शिकायत में लिया है, उन पुलिस वालों की गोलियों से कई लोग जख्मी हुए हैं लेकिन लोग डरे हुए हैं और अपने घायल रिश्तेदारों को बाहर निकल कर शिकायत करने नहीं दे रहे हैं. पुलिस ने मेरे बेकसूर भाई जाहिर को मार दिया.”

30 दिसंबर को शाहिद ने मेरठ डीएम के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराई. डीएम कार्यालय की मोहर लगी वह शिकायत कारवां के पास है. 156 (3) के तहत दर्ज की गई अपनी शिकायत में शाहिद ने लिखा है कि उनके पिता मुंशी ने घटना वाले दिन लिसाड़ी गेट स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी लेकिन पुलिस ने उस रिपोर्ट को अनदेखा कर दिया.

फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुलिस ने इन मौतों से संबंधित ढेरों पन्ने की अपनी जांच की रिपोर्ट दायर की है. इन दस्तावेजों में पुलिस ने जरूरी दस्तावेज, जैसे पंचनामा, एफआईआर, पीड़ितों की जानकारी और राज्य भर के आरोपियों की जानकारी दी है, लेकिन इनमें पीड़ितों के परिवारों का बयान नहीं है. और तो और पुलिस के ब्योरे में ढेरों अनियमितताएं दिखाई पड़ती हैं.

दिसंबर में प्रदर्शन के दौरान पुलिस के व्यवहार की न्यायिक जांच की मांग करने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस को ये दस्तावेज दायर करने का आदेश दिया था. 4 जनवरी 2020 को मुंबई के वकील अजय कुमार ने अदालत में जनहित याचिका डाली थी. समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स और द टेलीग्राफ में प्रकाशित पुलिस क्रैकडाउन की खबरों का हवाला देते हुए कुमार ने याचिका में कहा था कि पुलिस का काम संविधान के बुनियादी मूल्यों के विपरीत है. उन्होंने मामले की न्यायिक जांच की मांग की थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस याचिका को ऐसी ही मांग वाली तीन अन्य याचिकाओं के साथ जोड़कर सुनवाई की. इन याचिकाओं में एक याचिका भारत के पूर्व प्रमुख सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला और अध्यात्मिक गुरु अग्निवेश और अन्य ने डाली थी. स्वामी अग्निवेश की पिछले साल सितंबर में मौत हो गई.

25 वर्षीय अलीम अंसारी के भाई मोहम्मद सलाहुद्दीन (दाएं) और पिता हबीब अंसारी (बाएं). अलीम के सिर में गोली लगी थी. मजिस्ट्रेट को दी गई शिकायत में सलाउद्दीन ने लिखा कि पुलिस ने उसके भाई को गोली मारी. ऋषि कोछड़/कारवां

हबीबुल्लाह और अग्निवेश की याचिका में कहा गया है कि पुलिस ने उन रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया जिसमें मुसलमान और अनुसूचित जाति के लोग रहते थे. याचिका में पुलिस की कार्रवाई को कानून और व्यवस्था के नाम पर अत्याधिक और गैर वाजिब बताया गया है. याचिका में आगे लिखा है कि पुलिस ने उन लोगों पर भी हमला किया जो प्रदर्शन में शामिल नहीं थे और लोगों को समुदायों में दहशत पैदा करने के उद्देश्य से गिरफ्तार किया गया. उस याचिका में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश के निवासियों द्वारा शांतिपूर्ण और कानूनी प्रदर्शन के दौरान पुलिस की जानबूझकर, अकारण, मनमाने, गैरकानूनी कार्रवाई के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गई थी जो माननीय सुप्रीम कोर्ट या माननीय हाईकोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में गठित स्वतंत्र न्यायिक आयोग द्वारा हो.

याचिका में आगे कहा गया है,

राज्य सरकार के अधिकारी- निर्वाचित या पुलिस कर्मचारियों में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के विरूद्ध बेरहम पूर्वाग्रह मीडिया साक्षात्कार और अन्य वीडियो रिकॉर्डिंग में स्पष्ट दिखा है. उदाहरण के लिए, उच्च पदस्त पुलिस अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को पाकिस्तान चले जाने या पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले, पुलिसिया हिंसा का स्वाद चखने लायक हैं, जैसी बाते कही हैं.  यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री ने ही प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बदला लेने की बात कही है. पुलिस द्वारा की जाने वाली अनियंत्रित हिंसा, जो लोगों के उत्पीड़न के बराबर है, वह बताता है कि उनका व्यवहार भेदभाव करने वाला था.

इन सभी याचिकाओं की सुनवाई हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायाधीश सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ के सामने हुई और 27 जनवरी को अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह पुलिस कार्रवाई में मारे गए सभी लोगों से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी अदालत के समक्ष जमा कराए. 17 फरवरी को राज्य सरकार ने नौ पन्नों का एक हलफनामा दर्ज किया जिसके साथ 579 अनुलग्नक (एनेक्सचर) दस्तावेज थे. इनमें मेडिकल प्रमाणपत्र, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एफआईआर, मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों की सूची हैं. ये सारे दस्तावेज कारवां के पास उपलब्ध है.

दिसंबर 2019 की रिपोर्ट में कारवां ने बताया था कि प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी के तुरंत बाद पुलिस ने बयान दिया था कि उसने गोलीबारी नहीं की है. 21 दिसंबर को राज्य पुलिस के प्रमुख ओपी सिंह ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई गई है और प्रदर्शनकारियों की मौत आपसी गोलीबारी में हुई है. उस वक्त पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी जारी किए थे जिसमें कथित तौर पर दिखाया गया था कि प्रदर्शनकारी पुलिस पर गोली चला रहे हैं. वीडियो क्लिप में एक कुछ सेकेंड के फुटेज भी हैं जिनमें एक आदमी हवा में गोली चलाता दिखाई दे रहा है. मेरठ में मैं कई लोगों से मिला और उन्होंने पुलिस के दावे झूठा कहा. जिन स्थानीय लोगों का मैंने इंटरव्यू किया उन्होंने मुझे वे वीडियो दिखाएं जो उन्होंने 20 दिसंबर को हापुड़ रोड पर बनाए थे जिसमें दिखाई पड़ता है कि पुलिस असाल्ट राइफल से प्रदर्शनकारियों पर निशाना साध रही है. वकील रियासत अली ने मुझे कहा कि उन्होंने परिवार के सदस्यों की शिकायतों के साथ ऐसे कई वीडियो जमा कराए हैं.

लेकिन अपने जवाब में पुलिस और राज्य सरकार ने इन आरोपों की अनदेखी करते हुए दावा किया है कि गोलीबारी में उनका हाथ नहीं था. हाई कोर्ट में दायर अपने जवाब में यूपी पुलिस ने कहा है कि 20 दिसंबर 2019 को चार एफआईआर दर्ज हुई थी जिनमें मेरठ में हुई पांचों मौतों की रिपोर्ट है. मोहसिन की मौत से संबंधित एफआईआर का नंबर 672 है जो ब्रह्मपुरी स्टेशन में दर्ज की गई थी. आलिम की मौत से संबंधित एफआईआर संख्या 817 नौचंदी पुलिस स्टेशन में, जाहिर और आसिफ खान की मौत से संबंधित एफआईआर 1079 और आसिफ की मौत से संबंधित एफआईआर 1080 लिसाड़ी गेट पुलिस स्टेशन में दायर की गई थी.

सभी एफआईआर में एक बात समान है. किसी में भी पुलिस फायरिंग का जिक्र नहीं है. इन सभी में कहा गया है कि 20 दिसंबर 2019 की दोपहर को मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने जमा होकर सीएए विरोधी नारे लगाने शुरू किए और पुलिस को धमकाया जिससे पुलिस डर गई. सभी में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों के हाथों में लट्ठ, पत्थर, देसी कट्टे और पेट्रोल बम थे और उन्होंने पुलिस पर फायरिंग की. इन सभी एफआईआरों में इन्हें दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि पुलिस ने बार-बार प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी कि धारा 144 लागू है लेकिन “बलवाइयों” ने पुलिस की बात नहीं सुनी.

इन चारों एफआईआरों में कहा गया है कि पुलिस वालों को प्रदर्शनकारियों से जान का खतरा था और इसलिए प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोले चलाए और रबड़ की गोलियां चलाई. एफआईआर संख्या 817 और 672 में पुलिस द्वारा मिर्ची बम फेंकने की भी बात है. एफआईआर संख्या 1080 में शिकायतकर्ता पुलिस वाले ने कहा है कि एक दंगाई ने अन्य प्रदर्शनकारियों से कहा कि “पुलिस वाले सरकार का प्रतीक हैं और हमें इनको सबक सिखाना चाहिए” जिसके बाद भीड़ ने पुलिस को गालियां दी और मारने के इरादे से उन पर हमला किया, पत्थर बरसाए और गोलियां चलाई. उस पुलिस अधिकारी ने, जिसने एफआईआर संख्या 1009 दायर की है, ऐसी ही घटना का उल्लेख दो “उपद्रवियों” के संदर्भ में किया है जिसके बारे में अधिकारी ने कहा है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा कि “आओ पुलिस वालों को सबक सिखाएं.” इससे भीड़ उकसावे में आ गई और पुलिस पर पत्थर फेंकने लगी, डंडो और लाठियों से हमला करने लगी और गालियां देने लगी. दो अलग-अलग एफआईआर में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर लगाए गए अवरोध को तोड़ दिया. सभी एफआईआरों में प्रदर्शनकारियों के लिए एक जैसी शब्दावलियों का इस्तेमाल है जैसे बलवाई, गैरकानूनी हथियारों से लैस, मारने के इरादे से पुलिस पर हमला करना और सोची समझी साजिश.

जाहिर की तस्एवीर दिखाता परिवार का सदस्कय. चालीस साल के जाहिर पशु व्यापारी थे, जिन्हें 20 दिसंबर 2019 को कनपटी में गोली मार दी गई थी. उनके परिवार वालों और पड़ोसियों ने कहा कि पुलिस ने उन्हें गोली मारी. ऋषि कोछड़/कारवां

एफआईआर संख्या 1080 में प्रदर्शनकारियों पर लिसाड़ी गेट पुलिस स्टेशन में पेट्रोल बम से हमला करने और आग लगाने का आरोप है. एफआईआर संख्या 817 में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की विभिन्न संपत्तियों को, जिनमें पुलिस वाहन और मोटरबाइक भी शामिल हैं, आग लगा दी. इनमें से किसी भी एफआईआर में पुलिस फायरिंग का जिक्र नहीं है और न ही घायल हुए प्रदर्शनकारियों का. पुलिस के बयान का यह अंतर परिवार की शिकायत पर एक अलग एफआईआर करने की जरूरत दिखाता है और कानूनन पुलिस को घटना से जुड़ी किसी भी शिकायत को स्वीकार करना चाहिए और सभी पक्षों की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए.

इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर जवाब में पुलिस ने बताया है कि उसने इलाकों के प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है. जवाब के अनुसार मेरठ में पुलिस ने 40 आदमियों पर आरोप दर्ज किए हैं और उन्हें गिरफ्तार किया है. ये सभी 40 मुसलमान हैं और जिस वक्त इलाहाबाद कोर्ट में पुलिस ने अपना जवाब दायर किया था उस वक्त तक 13 लोगों को जमानत मिल चुकी थी.

पुलिस ने दावा किया है कि इन आरोपियों ने पुलिस पर गोलियां चलाईं और इन गोलियों से मेरठ में पांच लोगों की मौत हुई. कुछ मामलों में पुलिस ने दावा किया है कि मरने वाले लोग प्रदर्शनकारियों में शामिल थे और यही बात एफआईआर संख्या 1079 से संबंधित चार्जशीट में भी कहीं गई है जिस की कॉपी कारवां के पास है. चार्जशीट की समरी में लिखा है कि गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने पुलिस अधिकारियों को मारने के इरादे से गोलियां चलाईं और इन गोलियों में उनके साथी प्रदर्शनकारियों- जाहिर और आसिफ- की मौत हो गई. इन मौतों के संबंध में पुलिस ने हत्या के लिए धारा 304 को आरोपपत्र में शामिल किया है और अनुलग्नक से पता चलता है कि पुलिस ने चारों एफआईआरों में धारा 304 जोड़ी है.

आरोपपत्र में आलिम और मोहम्मद आसिफ की मौतों का भी जिक्र है. उसमें कहा गया है कि जाहिर और आसिफ खान प्रदर्शनकारी भीड़ में शामिल थे और अपनी ही गोलीबारी में मारे गए. लेकिन डायरी एंट्री में दावा किया गया है कि मोहम्मद आसिफ की मौत भी इसी फायरिंग में हुई थी. इसमें लिखा है कि मोहम्मद आसिफ के शव को पोस्टमार्टम के लिए मेरठ मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. डायरी एंट्री में आगे दावा किया गया है कि पुलिस को आलिम की मौत का पता प्रदर्शनों के बाद 21 दिसंबर को चला. डायरी एंट्री के एक पन्ने, जो चार्जशीट का हिस्सा है, में लिखा है कि लिसाड़ी गेट स्टेशन को आलिम की मौत का पता 21 दिसंबर 2019 को चला और स्टेशन के अधिकारी ने इसकी तहकीकात की. आलिम की मौत का स्थान नौचंदी है और पोस्टमार्टम के लिए नौचंदी पुलिस स्टेशन भेजा गया था.

पुलिस का यह दावा आलिम के भाई सलाहुद्दीन के आरोपों से अलग है. सलाउद्दीन ने दिसंबर 2019 को कारवां को बताया था और बाद में इस साल सितंबर में भी बताया कि पुलिस द्वारा भाई के शव के ले जाने के बाद वह अपने भाई के शव की खोज रात भर करते रहे थे. उन्होंने उस वीडियो का भी उल्लेख किया जिसमें आलिम के शव को ले जाते हुए पुलिस अधिकारी दिखाई दे रहे हैं, जो 20 दिसंबर को रिकॉर्ड किया गया था. इसका मतलब है कि पुलिस को यह पता था कि आलिम की मौत सिर पर लगी गोली से उसी दिन हो गई थी. वकील ने बताया कि पुलिस ने जानबूझकर आलिम की मौत में उसके हाथ से संबंधित जानकारियों को धुंधलाया है. उन्होंने कहा, “वे लोग अपनी ही कहानी बता रहे हैं और उसे ही पेश कर रहे हैं.”

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय ने आलिम की मौत पर एक जांच बैठाई थी. 22 दिसंबर 2020 को प्रकाशित द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार एडीएम ने अभी तक यह रिपोर्ट जमा नहीं की है.

मोहसिन के परिवार ने भी मोहसिन की मौत की जानकारियों को धुंधलाने का आरोप पुलिस पर लगाया है. मुझसे बात करते हुए मोहसिन की मां ने कहा, “उसकी छाती पर गोली लगी थी और गोली उसके शरीर के भीतर थी लेकिन पुलिस ने बताया कि गोली उसकी छाती से घुस कर पीठ से निकल गई, जो गलत बयानी है. मोहसिन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जो पुलिस ने एनेक्सचर के साथ अदालत में जमा की है, में लिखा है कि “उसकी छाती से पार होकर गोली पीठ के रास्ते बाहर निकल गई.” मोहसिन के परिवार वालों ने एक वीडियो का जिक्र किया जो उसका शव प्राप्त करने के बाद बनाया गया था जिसमें छाती में गोली के घुसने का घाव दिखाई पड़ता है. उस वीडियो में शूट कर रहा आदमी पीठ पर कैमरा कर बताता है कि वहां कोई घाव नहीं है. स्थानीय लोगों ने वह वीडियो मेरे साथ शेयर किया. मोहसिन के परिवार वालों ने कहा कि वह वीडियो सटीक है और जब यह वीडियो बनाया जा रहा था तो मोहसिन का भाई वहां मौजूद था.

नफीसा बेगम ने कहा कि पुलिस ने उन्हें मजबूर किया इसलिए उन्हें शव को जल्दबाजी में दफनाना पड़ा. उनका कहना था, “पुलिस वालों ने आधी रात को ही लाश दफनाने को कहा और कब्रिस्तान जाकर मौलवी से कब्र खोदने को बोल दिया.” दिसंबर 2019 को कारवां ने रिपोर्ट की थी कि अन्य पीड़ितों के परिवारों ने भी ऐसी ही शिकायत की है. सलाउद्दीन ने कहा था कि शव सौंपे जाने के दो घंटे के अंदर ही आलिम की बॉडी दफनाने के लिए उन्हें मजबूर किया गया.

पुलिस ने हाई कोर्ट में अपना जवाब 17 फरवरी 2020 को विशेष गृह सचिव भूपेंद्र सिंह चौधरी के मार्फत दर्ज कराया था. तब तक पुलिस के कई अधिकारियों और मेरठ प्रशासन को मोहसिन, जाहिर और आलिम के परिवारों की शिकायतें मिली गई होंगी. ये शिकायतों उन शिकायतों के अतिरिक्त थीं जो इन परिवारों ने घटना वाले दिन ही दर्ज कराई थीं, लेकिन जवाब के साथ नत्थी एनेक्सचर में इन शिकायतों का जिक्र मुश्किल से ही मिलता है और इनमें शिकायतों में बताई गई जानकारियों को शामिल नहीं किया गया है. मेरठ मामलों से संबंधित कई दस्तावेजों में से दो पन्नों में पुलिस ने एक सूची जमा की है जिसमें पुलिस ने माना है कि उन्होंने मोहसिन और जाहिर के परिवारों से धारा 156 (3) के तहत शिकायत मिली हैं और पुलिस ने मोहसिन के भाई द्वारा आईजीआरएस में दायर शिकायत की भी बात स्वीकारी है. आईजीआरएस यूपी सरकार द्वारा गठित लोक शिकायत वेबसाइट है. उस सूची में आरोपी अधिकारियों के नाम हैं लेकिन शिकायत में जो जानकारियां हैं उन्हें शामिल नहीं किया गया है. पुलिस ने लिखा है कि इन मौतों से संबंधित धाराओं को आरोपों की एफआईआरों में जोड़ दिया गया है लेकिन उसने यह नहीं बताया है कि इन शिकायतों पर अलग से एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई है जबकि पूर्व में दायर एफआईआर में उल्लेखित आरोपों से शिकायत में उल्लेखित आरोप एकदम अलग है.

जवाब के साथ विशेष सचिव सिंह ने लिखा है कि राज्य भर में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आठ शिकायतें प्राप्त हुई हैं और सभी शिकायतों को विशेष जांच टीमों की पड़ताल का हिस्सा बनाया गया है. एनेक्सचर के मुताबिक, इन आठ शिकायतों केवल तीन मेरठ की हैं. 17 फरवरी को उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में याचिकाकर्ताओं को पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराने का समय दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 18 मार्च तय की लेकिन यह सुनवाई नहीं हुई. हाई कोर्ट की वेबसाइट में याचिका पर सुनवाई से संबंधित कोई आदेश नहीं है.

इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता सईद फरमान अली नकवी इन पीएलआई के लिए एमिकस क्यूरी है. जब सितंबर में मैंने नकवी से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के चलते फिलहाल अदालत पुराने मामलों की सुनवाई नहीं कर रही है और यह मामला अभी तक सूचीबद्ध नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि अदालत फिलहाल ताजी याचिकाओं और उच्च प्राथमिकता वाले मामलों की ही सुनवाई कर रही है.

मैंने यूपी पुलिस के डीजीपी और मेरठ के वरिष्ठ सुपरिटेंडेंट को इन शिकायत के संबंध में सवाल भेजे थे कि क्यों एफआईआर दर्ज नहीं की गई और आरोपी पुलिस वालों पर क्या कार्रवाई की गई है लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन तक 10 दिन बीत जाने के बावजूद यूपी पुलिस ने जवाब नहीं दिया.

पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज न होने के बावजूद अधिवक्ता जैदी और अली हताश नहीं हुए हैं. अली ने मुझसे कहा हम सभी पांच हत्याओं के मामलों में धारा 156 (3) के तहत आवेदन करेंग. सलाहुद्दीन ने भी कहा कि जब तक उनके पास एक भी विकल्प मौजूद है, वह अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, “आप लोगों के दिल्ली से आते रहने से हमारा हौसला बढ़ता है.”