करीब 16 महीने दिल्ली की मंडोली जेल में कैद रहने के बाद 20 साल के शहाबुद्दीन और 25 वर्षीय फरमान को जमानत मिल गई है. जेल में गुजारे यातना से भरे दिनों के बारे में शहाबुद्दीन ने मुझे बताया, “तकरीबन रोज ही पुलिस वाले गालियां देते थे और मारते थे. कहते थे तुम मुल्ले दंगे करते हो.” शहाबुद्दीन ने आगे बताया कि जेल में एक बार एक अधिकारी ने उस पर खाने में कीड़े मिलाने का झूठा आरोप लगाया जिसके बाद पुलिस वालों ने उसके हाथ-पैर रस्सी से बांध कर उसे एक डंडे से लटका दिया और उस पर लाठियां बरसाने लगे.
पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुई हिंसा के वक्त खजूरी चौक पर 32 वर्षीय ऑटो चालक बब्बू खान की हत्या के आरोप में दोनों को गिरफ्तार किया गया था. दोनों पर दो आपराधिक मामले लगाए गए हैं.
हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हत्या के मामले में दोनों की जमानत का आदेश 4 जून 2020 को दे दिया था और फिर 9 जून 2020 को दंगे से जुड़े दूसरे मामले में भी उन्हें कड़कड़डूमा कोर्ट से जमानत मिल गई थी लेकिन जेल अधिकारी दोनों की रिहाई टालते रहे. शहाबुद्दीन 20 जुलाई को जेल से बाहर आया और आते ही अपनी मां तबस्सुम के गले लग गया. लोगों के घरों में झाढ़ू-पोछा कर आजीविका चलाने वाली तबस्सुम ने मुझे बताया, “मैं थाने के अंदर कैद अपने बेटे को दूर से देख कर रोती थी.” तबस्सुम करीब दो साल पहले अपने शराबी पति को खो चुकी हैं इसके कारण वह अपने चारों बच्चों को स्कूल नहीं भेज पातीं.
शहाबुद्दीन ने मुझे बताया, “पिछले साल 9 मार्च को जब मैं अपने काम से लौट रहा था तब पुलिस ने मुझे सड़क से यह कह कर उठा लिया कि मुझे पूछताछ करके छोड़ देगी लेकिन फिर मुझे पता चला कि वे मुझे जेल भेजने के लिए मामला तैयार कर रहे हैं.”
शहाबुद्दीन ने आगे बताया, "हिरास्त में लेने के बाद वे मुझे थप्पड़ मारते रहे और “तुम मुसलमान दंगे करते हो” कह-कह कर गालियां देते रहे. मेरे गले से मेरा तावीज खींच लिया और मेरी जेब में रखी दवाई भी छीन ली." 10 मार्च की शाम को शहाबुद्दीन को दंगों से जुड़े एक मामले में आरोपी बना कर अदालत के सामने हाजिर किया गया. जेल में दस दिन कैद में रहने के बाद शहाबुद्दीन को एक और झटका तब लगा जब अधिकारियों ने बब्बू खान की लिंचिंग के मामले में उसे फिर अदालत में पेश करने की बात बताई.
पुलिस ने आरोप पत्र में शहाबुद्दीन के साथ दस अन्य मुस्लिम नौजवानों को भी बब्बू खान की हत्या के मामले में आरोपी बनाया है. शहाबुद्दीन ने बताया, "पुलिस वालों ने मुझे दंगों का एक वीडियो दिखाया, जिसमें वे दावा कर रहे थे कि मैं वीडियो में दिख रहे दंगाइयों में से एक हूं लेकिन मैं कहीं दिखाई नहीं दे रहा था." आरोप पत्र में भी पुलिस बब्बू खान को मारने वाली भीड़ में शहाबुद्दीन की मौजूदगी नहीं दिखा पाई. आरोप पत्र में दो चश्मदीद गवाहों, दलीप शर्मा और दीपक कुमार, के बयानों को 15 अप्रैल और 23 अप्रैल 2020 को शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत के तौर पर पेश किया गया है, जबकि शहाबुद्दीन को 9 मार्च को गिरफ्तार किया जा चुका था. दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत द्वारा दिए गए जमानत के आदेश में कहा गया है कि "रिकॉर्ड में लाए गए सभी साक्ष्यों की विवेचना से भान होता है कि इस मामले में कथित तौर पर याचिकाकर्ता (शहाबुद्दीन) की पहचान करने वाले गवाह दलीप का धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज किया गया बयान 15 अप्रैल 2020 अर्थात 40 दिन बाद का है और इस गवाह ने घटना के दिन या उसके बाद भी पुलिस को फोन कर शिकायत नहीं की थी.”
आदेश में आगे लिखा है, “इसी तरह दूसरे प्रत्यक्षदर्शी दीपक का भी सीआरपीसी की धारा 161 के तहत 23 अप्रैल 2020 को अर्थात घटना के 57 दिन बाद बयान दर्ज किया गया था और उसने भी घटना के दिन या उसके बाद पुलिस से शिकायत नहीं की थी.”
शहाबुद्दीन का केस लड़ रहे वकील अब्दुल गफ्फार ने मुझे बताया, “मामले की जांच करने वाली पुलिस की अपराध शाखा ने जिस वीडियो को गिरफ्तारी का आधार बना कर पेश किया था, वह हमें नहीं दिखाया गया. हालांकि अभियोजन पक्ष ने अदालत में स्वीकार किया कि न उस वीडियो में शहाबुद्दीन को देखा जा सकता है और न ही उसके मोबाइल की लोकेशन घटना स्थल की है.”
शहाबुद्दीन ने मुझे बताया, "पुलिस वालों ने मुझे पुलिस थाने लाते समय सड़क पर घूंसों और लातों से मारा और फिर मुझे जेल भेज दिया. पुलिस वालों ने मुझसे कहा था कि मुझे दस दिनों में रिहा कर दिया जाएगा." शहाबुद्दीन ने कहा कि थप्पड़ इतने तेज थे कि मेरा निचला होंठ फट गया और मेरी मेरी जीभ दांतो के बीच आकर कट गई.”
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के विभिन्न पुलिस थानों के पुलिस वालों और बाद में क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने 2020 के दंगों से जुड़े मामलों की जांच करते हुए पिछले साल मार्च और अप्रैल में मस्जिदों को जलाने और अपने ही साथी मुसलमानों की हत्या के अपराध में नौजवान मुस्लिमों को उनके घरों या रह चलते हुए उठाया. एफआईआर नंबर 119/2020 में बब्बू खान की लिंचिंग के लिए शहाबुद्दीन के साथ फरमान, इमरान, मारूफ, मो. रिजवान, मो. तैयब, इसरार अहमद, आदिल, जुबेर, शमीम, इकबाल और खजूरी खास के अन्य निवासियों को भी आरोपी बनाया गया है. इनमें से ज्यादातर अब जमानत पर रिहा हो चुके हैं. अन्य आरोपी भारत भूषण, राहुल, संदीप, हरजीत सिंह, कुलदीप, धर्मेंद्र गिरी और सचिन रस्तोगी भी जमानत पर बाहर हैं.
शहाबुद्दीन की तरह ही फरमान के लिए भी बब्बू खान की हत्या के आरोप में मंडोली जेल में बिताए 16 महीने तकलीफदेह रहे और दंगों के ही एक अन्य मामले में उसकी गिरफ्तारी के बाद उसे इस हत्या के मामले में भी आरोपी बना दिया गया. कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव, जिन्होंने पाया कि फरमान की गिरफ्तारी 20 मार्च 2020 को हुई थी और प्रत्यक्षदर्शी गवाह मुन्ना और दलीप शर्मा के अभियुक्तों के खिलाफ बयान बहुत बाद में 18 मई 2020 और 15 अप्रैल को दर्ज किए गए थे, के जमानती आदेश में साफ है कि जिस तरह शहाबुद्दीन के खिलाफ झूठे चश्मदीद गवाह पुलिस ने पेश किए ठीक वैसे ही फरमान के मामले में भी किया गया.
जमानत के आदेश में यह भी कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत 4 मार्च 2020 को “चश्मदीद” गवाह दलीप ने अपने पहले बयान में फरमान का जिक्र कहीं नहीं किया था. न्यायाधीश ने 20 जून 2020 के जमानती आदेश में लिखा, “फरमान इस मामले में लगभग एक साल से न्यायिक हिरासत में है. यह बताने की जरूरत नहीं है कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है. आरोप पत्र पहले ही दाखिल किया चुका है और कोविड-19 महामारी के कारण मामले की सुनवाई में लंबा समय लगने की संभावना है." एफआईआर नंबर 103/20 में मामले में उसकी रिहाई का पहला आदेश 19 जून 2020 को आया.
फरमान ने मुझे रिहा होने के बाद बताया कि चूंकि वह मुस्लिम था इसलिए जेल के अंदर उसे पीटा गया और गाली दी गई और 7-8 दिनों के बाद उसे एक हत्या के मामले में भी आरोपी बनाए जाने का पता चला. उसने बताया, "जब मुझे मेरे ऊपर लगे हत्या के इलजाम के बारे में बताया गया तो मुझे अपने माता-पिता और भाई-बहनों की चिंता सताने लगी क्योंकि घर में मेरे सिवा कमाने वाला कोई नहीं है. मैं सोच में पड़ गया कि अब वे इस मुसीबत में मेरे लिए वकील कैसे कर पाएंगे."
हत्या के मामले के आरोप पत्र में दो चश्मदीद गवाहों और खुद पुलिसकर्मियों के बयानों को फरमान के खिलाफ सबूत के रूप में पेश किया गया जबकि घटना स्थल पर फरहान के फोन की लोकेशन, किसी वीडियो या किसी सीसीटीवी फूटेज में उसकी शक्ल नहीं थी. फरमान ने मुझे बताया, "जब मुझे गिरफ्तारी के बाद आदालत ले जाया गया तो पुलिसकर्मियों ने मुझे अदालत परिसर की सीढ़ियों पर भी पीटा और मुझे धमकी दी कि मैं न्यायाधीश के सामने कुछ न बोलूं. फिर मुझे जेल भेज दिया गया." उसने आगे कहा, "मैंने ये 16 महीने रो-रो कर गुजारे और एक दफा तो मुझे मुस्लिम कह कह कर चिढ़ाने वालों से मेरी हाथापाई तक हो गई.” फरमान ने अपनी लाचारी के बारे में कहा, “जेल में मुझे मन किया कि मैं फांसी लगा लूं.”
मंडोली जेल के सुप्रिटेंडेंट सुनील कुमार, उसी जेल के पुलिस उपमहानिरीक्षक राजेश चोपड़ा और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त एसके जैन को मैंने इस संबंध में सवाल ईमेल किए थे लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया. खजूरी खास के एसएचओ पवन कुमार ने मुझे व्हाट्सएप पर बताया कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है लेकिन यदि कोई सवाल है तो कार्यालय में आकर बात करूं. लेकिन आने से पहले उन्हें फोन कर लूं. बाद में जब मैंने उन्हें फोन किया तो कुमार ने कहा कि चूंकि मामला विचाराधीन है इसलिए कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.