यूपी के मुस्लिम गांव पर पुलिस और पीएसी के हमले के बाद लोगों में भय, घरों के बाहर लिखा “मकान बिकाऊ है”

70 साल के जमीर खान के भतीजे की कार को पुलिस ने तोड़ दिया. 26 और 27 मई की दरम्यानी रात को पुलिस, पीएसी और मुखबिरों ने शामली के टपराना गांव में हमला कर गांव वालों को पीटा और उनके घरों का सामान तोड़ दिया. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले के मुस्लिम बहुल टपराना गांव में करीब 50 मुस्लिम घरों के बाहर चिपके पर्चों पर लिखा है :

यह मकान बिकाऊ है. हम पुलिस और उसके मुखबिर द्वारा की गई तोड़-फोड़ से पीड़ित हो कर गांव से पलायन करने पर मजबूर हैं.

हमारे बच्चे और औरतें मानसिक तौर पर पीड़ित हो कर गांव छोड़ने पर मजबूर हैं."

90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इस गांव के इन घरों में चिपके पर्चों की वजह 26 और 27 मई की दरम्यानी रात में घटी वह घटना है जिसमें लगभग 200 पुलिस, प्रादेशिक सशस्त्र बल (पीएसी) और मुखबिरों ने गांव पर हमला कर लोगों को पीटा और घरों का सामान तोड़ दिया. जिन लोगों को पुलिस ने पीटा उनमें एक 13 साल की बच्ची और एक 30 साल का मानसिक रूप से कमजोर नौजवान हैं.

26 मई को हुए पुलिस के इस हमले के कुछ पहले गोकशी के आरोप में जिलाबदर चल रहे दो भाई 55 साल के अफजाल और 52 साल के मुल्ला उर्फ इमरान के गांव में होने की खबर पाकर झिंझाना थाने से पुलिस ने आकर छापा मारा था और दोनों को गिरफ्तार करके का प्रयास किया था. घटना के संबंध में पुलिस ने 27 मई को सुबह 5.38 बजे जो एफआईआर दर्ज की है उसमें लिखा है, “जैसे ही हम पुलिस वाले दोनों अभियुक्तों को लेकर चलने लगे तो अचानक मोहल्ले व गांव के सैकड़ों लोग चिल्लाते हुए हाथों में लाठी, डंडे लेकर पुलिस की तरफ दौड़ पड़े.” एफआईआर में लिखा है कि पुलिस ने जब लोगों को “बताया कि हम थाना झिंझाना की पुलिस हैं तो गांव वाले और उत्तेजित व उग्र हो गए” और “पुलिस वालों पर रास्ते के दोनों ओर व छतों से ईंट-पत्थरों की बौछार करने लगे” और “जान से मारने की नीयत से पुलिस वालों पर फायरिंग करने लगे.” पुलिस की उक्त रिपोर्ट में 43 लोग नामजद हैं और करीब 80-90 को अज्ञात बताया गया है. आरोपियों के वकील नफीज खान ने हमें बताया है कि गिरफ्तार गांव वाले जेल में हैं और 19 जून को जमानत याचिका में सुनवाई होगी.

रिपोर्ट में पुलिस ने आरोप लगाया है कि गांव वालों के हमले में पुलिस की जीप क्षतिग्रस्त हो गई और दो सब-इंस्पेक्टर संजय कुमार और अनिल कुमार सोलंकी गंभीर रूप से घायल हो गए “और भीड़ गिरफ्तारशुदा अभियुक्त मुल्ला उर्फ इमरान और अफजाल को भी छुड़ा कर ले गई.” रिपोर्ट में आगे लिखा है कि बाद में एक और पुलिसकर्मी “पीआरवी एचजी 2167 चालक राजीव भी गंभीर रूप से घायल हो गया” और “तीनों घायलों को वाहन की व्यवस्था कर अस्पताल भिजवाया गया.”

एफआईआर के अलावा पुलिस ने अपने हमले के दूसरे दिन एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की थी जिसमें लिखा था कि “कई थानों की फोर्स मौके पर पहुंची तथा मौके से उपरोक्त 'जिलाबदर गोकश' अफजल समेत समेत 30 लोगों को हिरासत में लिया गया है. उक्त प्रकरण में 45 नामजद तथा 80-90 अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध सुसंगत धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर आवश्यक वैधानिक कार्यवाही की जा रही है. घटना के बाद से ज्यादातर उपद्रवी/अभियुक्त घरों से फरार हैं जिनकी शीघ्र गिरफ्तारी हेतु प्रयास किए जा रहे हैं.” घरों के बाहर चिपके पर्चों के बारे में उस विज्ञप्ति में लिखा है, “पुलिस पर दबाव बनाने के तथा गिरफ्तारी से बचने के उद्देश्य से आरोपियों द्वारा पैम्पलेट चिपकाने की बात संज्ञान में आई है.” उस विज्ञप्ति में पुलिस ने कहा है कि कुछ असामाजिक तत्वों ने गांव की मस्जिद से एलान कर गांव वालों को पुलिस टीम पर हमला कर अभियुक्त को छुड़ाने के लिए उकसाया.” जबकि यह बात एफआईआर में नहीं है.

पुलिस की मार से घायल गांव वाला अपनी चोट दिखाते हुए. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

पुलिस की एफआईआर से घटना के एक दिन पहले यानी 25 मई को ईद के दिन रात 12 बजे अफजाल के घर में छापा मारने और उसे बर्बरता से पीटने की बात भी गायब है. हालांकि बाद में शामली जिले के एसपी विनीत जयसवाल ने छापामारी की बात कबूल की थी. मारपीट की आवाज सुन कर गांव के लोग इकट्ठा हो गए थे और उन्होंने थाना इंचार्ज को फोन कर दिया था. मारपीट की घटना के करीब डेढ़ घंटे बाद रात 1.30 बजे थाना इंचार्ज ने आकर पुलिस की इस हरकत के लिए गांव वालों से माफी मांगी थी और कहा था कि वे लोग अफजाल को सुबह थाने ले आएं. सुबह होते-होते अफजाल कहीं फरार हो गया और पुलिस ने रात 11 बजे गांव आकर लोगों को धमकाया कि अगर अफजाल को एक घंटे में हाजिर नहीं किया तो अंजाम ठीक नहीं होगा. गांव वालों ने हमें बताया कि उन्होंने अफजाल को सौंप दिया था लेकिन पुलिस और पीएसी ने फिर भी गांव पर हमला कर दिया.

घटना के लगभग दो सप्ताह बाद 9 जून को जब हम इस गांव में आए तो साफ लग रहा था कि यह छोटा सा गांव खौफ की चादर में लिपट कर ठिठर रहा है. चारों तरफ सन्नाटा था और हमारे पहुंचने के बहुत देर तक गांव वाले हमसे बातचीत करने, हमारे पास आने और हमें अपना नाम बताने से डर रहे थे. वहां मौजूद कुछ लोगों ने बिना नाम बताए ही हमसे कहा, “आपके सामने बोल देंगे तो पुलिस हमार नाम भी इस वारदात से जोड़ देगी.” फिर उन्हीं में से कुछ लोगों ने हमें गांव के प्रधान के पास चले जाने को कहा. उन्होंने कहा, “वह आपको पूरी बात बता देंगे.”

दोपहर होते-होते लोग हमसे खुलने लगे और हमारी बात अन्य लोगों से करा देने की पेशकश करने लगे. कुछेक ने हमें अपने जख्म भी दिखाए लेकिन अपना नाम फिर भी नहीं बताना चाहा.

फिर कुछ औरतों ने हमसे बात करनी शुरू की जिसके बाद दूसरों को भी हिम्मत मिली. औरतों ने हमें बताया कि हमले वाली रात पुलिस ने उन्हें भी गंदी-गंदी गालियां दी थी. महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों को पुलिस ने मारा था और घर के जवानों को उठा कर अपने साथ थाने ले गई. औरतों के अलावा हमें कई गांववालों ने बताया कि गांव के डॉक्टर अयाज खान ने मीडिया के सामने बात रखी थी तो पुलिस ने उनका नाम भी अज्ञात आरोपियों में शामिल कर लिया.

पुलिस की हिंसा के बाद गांव के ज्यादातर लोग अपने घरों में ताला लगा कर चले गए और कई घरों में मवेशियों को चारा देने के लिए भी लोग नहीं हैं. गांव वालों ने हमें बताया, “कुछ घर जो अब खुले दिख रहे हैं, ये लोग अभी आए हैं. वरना सभी घर छोड़ कर चले गए थे. पिछले दस दिनों से घरों में ताला लगा था.” लेकिन ये लोग भी कैमरे के सामने नहीं आना चाहते थे. गांव वाले हमें वे घर दिखाने ले गए जिनमें पुलिस और पीएसी ने तोड़फोड़ की थी. कई घरों के लोगों ने पुलिस पर नगदी और सोने-चांदी की चीजें चुराने का आरोप लगाया. गांव वालों ने बताया कि पुलिस इतनी बर्बर थी कि बच्चों, महिलाओं, बूढ़े और जवानों को तो पीटा ही एक घर में बंधे गाय और बैल को बड़ी बेरहमी से पीटा. दोनों पशुओं ने छह दिन बाद चारा खाना शुरू किया. मारपीट करने के बाद पुलिस ने करीब 35 लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

70 साल के जमीर खान अपनी बैठक में सो रहे थे जब उन्हें तोड़फोड़ की आवाज सुनाई दी. उन्होंने बताया, “तोड़फोड़ की आवाज सुनकर मेरी नींद खुली तो मैं घर के अंदर चला आया. वहां मेरी दो बेटियां और मेरी पत्नी थीं. मेरी बेटी बोली, ‘अब्बू आप भाग जाइए यहां से.’ मैं बोला, ‘मैं कहां जाऊं. बूढ़ा आदमी हूं.’ मैं घर के अंदर ही बैठ गया.” खान ने याद किया कि पुलिस वालों ने उनकी बैठकी का किवाड़ तोड़ दिया और उस कमरे का भी जिसके अंदर वह अपने परिवार के साथ बैठे थे. “उन्होंने पूरे घर में तोड़फोड़ शुरू कर दी. मैंने उनसे कहा, ‘ये मेरी बेटियां हैं. इनको मत मारना.’ उन्होंने तुरंत तीन लाठी मुझे मारी और मेरा हाथ पकड़कर बहार ले आए. एक ने मुझे पकड़ा और दूसरा मुझे जोर-जोर से मारता रहा. मुझे खूब मारा. अंदर मेरी बेटियों को भी मारा. मेरी एक बेटी ने वीडियो बनाने के लिए फोन निकाला तो उसको मारा और उसका मोबाइल तोड़ दिया. मेरी पत्नी को भी मारा.” मुझे बाहर पीट रहे थे मेरी पत्नी और बेटियों को अंदर. जब मैं गिर गया तो बोले इसको गाड़ी में ले चलो. मैं बोला भाई मेरा पैर टूट चुका है और मैं बूढ़ा आदमी हूं. 70 साल का. मेरी बेटियों को पीटते रहे. उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी. फिर जाते हुए बोले यहीं पड़े रहना कहीं बाहर मत जाना. मैं वहीं लेटा रहा मेरा दर्द बढ़ता रहा. मेरे घर का पूरा समान तोड़ दिया. कुर्सी, दीवार घड़ी, बल्ब, फ्रिज, कूलर,पंखा, अलमारी, सब तोड़ कर चले गए.

खान ने बताया कि उनकी बेटी और बेटे की शादी 12 और 13 अप्रैल को होनी थी लेकिन लॉकडाउन लग जाने की वजह से शादियां टल गईं. उन्होंने दोनों की शादी के लिए सोने के दो-दो टूम बनाए थे और दो लाख रुपए नकद जोड़ कर रखे थे. “एक लाख रुपया मैंने अपनी जमीन पर क्रेडिट कार्ड से लोन लिया था और एक लाख रुपए मेरे बेटों ने मजदूरी कर के जोड़े थे. सब कुछ पुलिस वाले ले गए.”

खान ने बताया कि ईद में उनका भतीजा अपनी कार में दिल्ली से आया था. उसकी कार को भी पुलिस ने तोड़ दिया. “मेरे एक बच्चे का नाम एफआईआऱ में लिख दिया है.”

अन्य लोगों की तरह खान ने भी अपने घर के दरवाजे पर बिकाऊ घर का पर्चा लगा रखा है. उन्होंने बताया, “हम यहां पुलिस से पूरी तरह डरे हुए हैं. इस वजह से हमने अपने घरों पर पर्चे लगाए हैं. लेकिन पुलिस ने उन पर्चों को भी उखाड़ दिया.” खान बताया कि पुलिस के डर अब वह रात को सो नहीं पाते. उन्होंने बताया, “हम लोगों को अभी भी रात में नीद नहीं आती. डर लगता रहता है. मैं तो 7 दिनों तक चल भी नहीं पाता था.” खान ने 31 मई को गांव के पांच लोगों को बुलाकर अपनी बेटी का निकाह कर दिया.

पुलिस के हमले के बाद जमीर खान का घर. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

जब हमला हुआ तब जमीर खान की 22 साल की बेटी जैनद अंदर सो रही थी. उसने बताया कि उसके घर पर हमला रात करीब 3.30 बजे के आस-पास हुआ था. उसने कहा, “हम लोगों की नींद खुली तो बाहर से गालियों और समान टूटने की जोरों की आवाज आ रही थी. उसने बताया, “मेरे अब्बू बाहर बैठक से अंदर हमारे पास कमरे में आ गए. हमारे घर का दरवाजा तोड़ कर पुलिस और पीएसी अंदर घुसी और तोड़फोड़ शुरू कर दी. हम जिस कमरे में बैठे थे उसके दरवाजे पर इतनी जोर से मारा की हमारे कमरे का दरवाजा टूट गया. मैं अपने फोन से वीडियो बनाने लगी तो उसे छीन कर तोड़ दिया. मेरे अब्बू को पीटते हुए बहार ले गए. वह 70 के हैं. भला कोई इस उम्र के आदमी को इतनी बेहरमी से पीटता है.” जैनद ने बताया कि जब हमला हुआ था तो घर में उनके अतिरिक्त बहन, अम्मी और अब्बू थे. “उन्होंने मुझे, मेरी बहन, मेरी अम्मी और अब्बू सब को मारा. घर का सारा सामान तोड़ दिया. मेरी भाभी का फ्रिज, कपड़े धोने की मशीन, पंखा, कूलर, मोटरसाइकिल, मेरे ताऊ के लड़के की कार बाहर खड़ी थी उसे भी तोड़ दिया.

65 साल के जमशेद अली ने बताया कि जब पुलिस अफजाल को गिरफ्तार करने आई तो उसके घर और गांव वालों ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अफजाल कातिल नहीं है और उसने कोई जुर्म नहीं किया है. “पुलिस वालों ने कहा कि वह जिलाबदर है इसलिए हम उसको लेकर जांएगे तो गांववाले इकट्ठा हो गए और उनसे कहा कि आप सुबह भी आ सकते थे या चौकीदार से कहलवा देते तो हम खुद पहुंचा देते.” इस बात पर पुलिस से गांव वालों की तू-तू, मैं-मैं हो गई “जिसके बाद 26 और 27 मई की दरम्यानी रात करीब 2 बजे 10-12 गाड़ियों में 200 के करीब पुलिस और पीएसी जवानों ने आ कर गली के पहले मकान से लेकर आखिर मकान तक तोड़-फोड़ की.”

पुलिस के इस दावे के विपरीत की मोहल्ले वालों ने अफजाल और उसके भाई को छुड़ा लिया, अली ने बताया कि गांव वालों ने अफजाल को पुलिस के हवाले कर दिया था लेकिन फिर भी पुलिस ने मोहल्ले में तोड़-फोड़ की और बूढ़े, बच्चे, महिला और पुरुष सब को लाठियों से पीटा. मोहल्ले वालों की दो कारें, 10 बाइकें तोड़ दी और घर में जो भी सामान दिखाई पड़ा, संदूक, अलमारी, फ्रिज, कपड़े धोने की मशीन, एलईडी टीवी, सब तहस-नहस कर दिया.

अली ने बताया कि पुलिस ने उन लोगों से कहा, “यहां से पाकिस्तान जाओ. यहां क्या कर रहे हो. पाकिस्तान जाओ, वर्ना कब्रिस्तान जाओ.” अन्य गांव वालों की भांति अली ने भी बताया कि उन्हें अब पुलिस के खिलाफ बोलते हुए डर लगता है कि ऐसा ना हो कल उन्हें भी गिरफ्तार करने आ जाए. “हमनें अपना मकान बेचने के पर्चे निकाले थे उनको भी पुलिस ने फड़वा दिए.” अली ने कहा, “वे हमें पाकिस्तानी क्यों कह रहे थे. क्या हमनें यह देश आजाद नहीं कराया? हम इसी देश के हैं. कहीं बहार से तो आए नहीं हैं. हमनें कुर्बानी दी है इस देश की खातिर.”

अली ने कहा, मेरे दो लड़के है एक ट्रक चलाता है दूसरा ओमान में नॉकरी करता है. वह भी ईद पर घर आया हुआ था और पुलिस ने एफआईआर में उसका नाम भी डाल दिया. अली ने कहा, “मुसलमानों के साथ यह ज्यादा हो रहा है. उनको ज्यादा मारा पीटा जा रहा है. 43 लोग नामजद हैं और 80-90 को अज्ञात बताया है. पुलिस ने गांव वालों पर 19 धाराएं लगाई हैं. इन अज्ञात लोगों की वजह से गांव के 500 लोग घरों से जा चुके है क्योंकि किसी को पता नहीं कि पुलिस किसको और कब गिरफ्तार कर लेगी. सब पुलिस के डर से कहीं भाग गए हैं”

उस रात 45 साल की मुमताज के साथ पुलिस ने बदसलूकी की. उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस ने उनके घर के बाहर रखे सामान को तोड़ा फिर भीतर आ गए. मुमताज ने कहा, “मैं बहुत ज्यादा डर गई क्योंकि मुझे लगा कि वे मेरे बच्चे को मार डालेंगे. उस वक्त घर में मैं और मेरा पांच साल का बच्चा था.” उन्होंने बताया कि पुलिस वाले उन्हें गंदी-गंदी गालियां दे रहे थे और वह हाथ जोड़ कर उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थीं कि घर में कोई पुरुष नहीं है. “लेकिन वे दरिंदे नहीं माने,” उन्होंने बताया. घर बेचने का पर्चा मुमताज ने भी अपने घर के बाहर लगाया था. उन्होंने कहा, “हमारा समान तोड़ दिया. हमें घर से बेघर कर दिया. हम अपना घर बेचने और गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं. सरकार भी हमारा साथ नहीं दे रही. हम इस हालत में क्या करें.” मुमताज ने बताया कि 35 के करीब पुलिस वालों ने उनके घर पर हमला किया तो उस वक्त रात के 3.30 बज रहे थे. “उन्होंने लाइट और बिजली का बोर्ड तोड़ दिया. मेरा बच्चा बहुत घबरा गया था.” उन्होंने आगे बताया, “वे ऐसी-ऐसी गाली दे रहे थे कि मैं उनको कह तक नहीं सकती. मेरे पास घर खर्च के 10 हजार रुपए दराज में रखे थे वह भी निकाल कर ले गए. उस समय मुझे मेरे बच्चे की पड़ी थी कि बस किसी तरह हम लोग बच जाएं.” मुमताज ने बताया कि बाद में “घर बिकाऊ है” वाला पर्चा पुलिस ने निकलवा दिया. मुमताज उसी दिन घर छोड़ कर चली गई थीं और 6 जून को घर वापस लौटीं. उन्होंने कहा, “उस दिन की दहशत मेरे जहन से निकल नहीं पा रही है. वो गालियां अभी भी गूंज रहीं है मेरे कानों में.”

गांव वाले पुलिस की शिकायत करने से भी डर रहे हैं. उन्हें डर है कि शिकायत करने पर पुलिस अज्ञात लोगों में उनका नाम डाल देगी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

मुमताज अब गांव में रहना नहीं चाहतीं. उन्होंने कहा, “हम कोई मुजरिम नहीं थे, तो हमारे साथ इतनी ज्यादती क्यो हुई. अभी भी शाम होने पर हम घर के बहार नहीं जा पाते. हम इस गांव से जाना चाहते हैं पुलिस और मुखबिरों से तो जान बचेगी. कहीं भी रहेंगे. कुछ भी मेहनत-मजदूरी कर लेंगे. कहीं तो सिर छिपाने की जगह मिलेगी. अगर बच्चे ही नहीं बचेंगे तो हम क्या करेंगे. बच्चे साथ में होंगे तो भविष्य के बारे में भी सोचा जाए. जान है तो जहान है.”

43 साल की शायस्ता ने बताया कि पुलिस वाले जबरदस्ती घर का दरवाजा तोड़कर अंदर घुसे और घुसते ही तोड़फोड़ शुरू कर दी. उन्होंने बताया कि वह अपनी तीन बेटियों के साथ ऊपर के कमरे में सो रहीं थीं और उनका बेटा नीचे सो रहा था. “वे लोग मेरे बेटे को मारने लगे. मेरी चीख निकल गई.” शायस्ता के बेटे ने इस साल दसवीं की परीक्षा दी है और कक्षा 11वीं की पढ़ाई ऑनलाइन कर रहा था. उन्होंने कहा, “मैंने अपने बच्चे को कभी किसी काम के लिए बाहर जाने तक नहीं दिया था और पुलिस वाले उसे मारते हुए अपने साथ ले गए.”

शायस्त ने पुलिस पर आरोप लगाय कि उसने उनके घर से 150000 रुपए, आधा किलो चांदी, पांच तोला सोना चुरा कर ले गए. “मुझे गाली दे रहे थे, ‘पत्थर मारेगी साली. ईंट बरसाएगी.’ हमलोग तो उसी दिन गांव आए थे और हमें कुछ पता भी नहीं था. मेरे घर वाले ने रुड़की के पास आम का बाग लिया हुआ है.” पुलिस ने शायस्ता के घर के शौचालय तक को तोड़ दिया.

70 साल की नईमा ने बताया कि जब हमला हुआ तब घर में वह और उनका बेटा मेहबूब थे जो मानसिक तौर पर कमजोर है. “दो पुलिस वाले मेरे घर में आए मेरे बेटे को मारने लगे. मैंने कहा भाई यह तो बावला है इसको मत मारो तो पुलिस वाले ने मुझे धक्का दे दिया. मेरा सिर दरवाजे में जा लगा. मैं फिर आई तो उन्होंने तीन डंडे मुझे मारे. वे लोग मेरे बेटे को पीटे रहे थे और घर का सामान तोड़ रहे थे. उन लोगों ने बाल्टी, चूल्हा, पंखा, खाट तोड़ दिया.” नईमा ने आगे कहा, “अब हम गरीब हैं और मांग कर खाते हैं. ईद पर मोहल्ले वालों ने 3000 रुपए दिए थे, पुलिस वाले पैसे और बेटे मेहबूब को ले गए.” मेहबूब 30 साल का है और वह खुद खाना भी नहीं खा पता. नईमा ने बताया, “कुछ साल पहले वह खो गया था. दो साल पहले ही मिला था. मुझे तो अपने बेटे की चिंता है. पता नहीं अल्लाह मियां वह कैसा होगा.”

पुलिस ने गांव के छोटे-छोटे बच्चों तक को पीटा. 13 साल की बच्ची ने बताया कि जब पुलिस दरवाजा तोड़ कर उसके घर में घुसी तो वह डर कर खटिया के नीचे घुस गई. “ईद का दूसरा दिन था और घर में अब्बू, मेरे दो भाई, दो बहनें और दोनों जीजा थे. उन्होंने अंदर आते ही तोड़फोड़ शुरू कर दी. मैं खाट के नीचे छुप गई. जब वे मेरे भाई और अब्बू को पीटने लगे तो मेरी चीख निकल गई. फिर उन्होंने मुझें भी बहुत मारा.” 13 साल की वह बच्ची हमें यह बताते-बताते रोने लगी और बेहोश होकर गिर पड़ी.

उसके अब्बू, भाई और जीजा नाई हैं. पुलिस ने उसकी अम्मी और भाभी को पीटा. फिलहाल उस घर में कोई पुरुष नहीं है और औरतें सहमी हुई हैं. उन्हें नहीं पता कि उनके घर के पुरुष जेल से कैसे आजाद होंगे. लोगों ने बताया कि यह परिवार रोज कमाने-खाने वाला है और लॉकडाउन के चलते आर्थिक रूप से पहले ही टूटा हुआ है.

पुलिस के हमले और गांव वालों के आरोपों के बारे में एसपी जायसवाल ने मेरे सवालों का जवाब तो नहीं दिया बल्कि व्हाट्सएप पर यह लिख कर भेजा दिया : “मस्जिद से एलान करने वाला एक अभियुक्त गिरफ्तार हो चुका है. गुंडा एक्ट में जिलाबदर गोकश, जिसके लिए पुलिस गई थी वो उसी रात गिरफ्तार हो गया था. उसका भाई छुड़ा लिया था उपद्रवियों ने पुलिस पर हमला कर के, वो भी जिलाबदर गोकश था गुंडा एक्ट में. दोनों अपराधियों की लॉकडाउन के दौरान गोकशी करने की सूचना झिंझाना पुलिस को मिली थी, इस सूचना पर एहतियातन ईद के अगली दिन यानी 26-27 की रात इन्हें गिरफ्तार करने के लिए गई थी पुलिस.”